एकता-अखण्डता का तिरस्कार है जनमत संग्रह की मांग
श्रेष्ठता ग्रन्थी एक रोग है। यह जिसे अपनी चपेट में लेता है उसके विनाश का कारण तो बनता ही है, उसके अपने संगठन, समाज, राष्ट्र और कालान्तर में पूरे विश्व के लिए भी समस्या उत्पन्न करता है। इतिहास साक्षी है स्वयं को श्रेष्ठ नस्ल घोषित करने वाले जिनके राज्य में सूर्य अस्त नहीं होता था, उनके भाग्य का सूर्य कब का अस्त हो चुका है और आज वे एक छोटा सा देश है। इस श्रृंखला में जो एक नाम और जुड़ा है वह है श्री श्री अरविंद केजरीवाल। उन्हें भ्रम है कि सही मार्ग पर चलने वाले वह दुनिया के इकलौते व्यक्ति हैं। इसलिए टकराव उनका शौक है। बेशक यह बीते समय की बाते हैं ं लेकिन सच तो है कि नौकरी से आंदोलन, पार्टी, सत्ता, अपने, पराये सब उनके निशाने पर रहे हैं। स्वयं को नैतिकता का नायक साबित करते हुए उन्होंने पार्टी के बैठक में बाक्सर बुलाकर अपने मजबूत साथियों को बाहर का रास्ता दिखाया तो विधि द्वारा स्थापित मुख्यमंत्री के पद की जिम्मेवारियों का पालन करने की शपथ लेकर गणतंत्र दिवस समारोह को बाधित करने की धमकी दी। विधानसभा में लोकपाल विधेयक पेश करते हुए नियम मर्यादा का पालन करने से इंकार किया। दुबारा हुए चुनाव में ईमानदारी का ढोल पीटते हुए अपने साथियों की सलाह की अनदेखी करते हुए अनेक अपात्रों को भी टिकट दिये।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने वोट बैंक को पूरी तरह गवां दिया जिसका परिणम हुआ केजरीवाल पार्टी की एकतरफा जीत। इस जीत के बाद उन्होंने अभूतपूर्व ढ़ंग से कार्य करते हुए 21 संसदीय सचिव बनाये तथा उपराज्यपाल से टकराव का रास्ता चुना ताकि अपनी श्रेष्ठता ग्रन्थी को तुष्ट कर सके। उनके इस प्रयास को हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट दोनो ने ही अस्वीकार किया। दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश है इसलिए संविधान उन्हें निरंकुशता की अनुमति नहीं देता इसलिए उन्होंने दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जा की मांग उठाई। लोकतंत्र में मत भिन्नता होना कोई असामान्य घटना नहीं है। संविधान की मर्यादा का ध्यान रखते हुए सभी को अपनी मांग पर जोर देने का अधिकार है। लेकिन देश की एकता और अखंडता को ताक पर रखने व संविधान की मान्य परम्पराओं का मजाक उड़ाने का अधिकार किसी को नहीं है।
यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने ‘जनमत संग्रह’ शब्द ही संविधान में शामिल नहीं किया क्योंकि ससंद, विधानसभा से स्थानीय शासन के समय-समय पर होने वाले चुनावों में जनता को अपना मत व्यक्त करने का लगातार अवसर मिलता ही रहता है। आश्चर्य है कि केजरीवाल साहब देश के संविधान के विरूद्ध जाकर भी पूर्ण राज्य के दर्जा दिलाने की मांग पर जनमत संग्रह करवाने की तैयारी में है। उन्हें भूलता है कि हर राज्य में पांच वर्ष बाद होने वाले चुनाव जनमत संग्रह ही तो है। समय-समय पर होने वाले इन चुनावों के परिणाम उस राज्य विशेष की जनता के राय का प्रदर्शन ही तो है। वह स्वयं जिस चुनाव में भारी बहुमत से जीते वह क्या था? क्या उन्हें इतना विवेक भी नहीं है कि उनकी यह सोच देश के सामने अन्तहीन चुनौतियों का एक ऐसी पिटारा खोल देगी जिससे पार पाना आसान न होगा।
आज केजरीवाल दिल्ली में पूर्ण राज्य के लिए जनमत संग्रह करवाते हैं तो कल दिल्ली के लिए अलग संविधान अथवा अलग सर्वभौमिकता के लिए भी करवा सकते हैं। उनका अनुशरण करते हुए देश की एकता को तोड़ने का प्रयास कर रहे देशद्रोही इस या उस राज्य को देश से अलग होने की मांग लिए जनमत संग्रह कराने पर जोर देंगे तो उन्हें किस तर्क से रोका जा सकेगा। हालांकि इस देश का हर नागरिक पूरी तरह से देशभक्त है और समय-समय पर देशद्रोहियों को करारा जवाब देता रहा है। परंतु यह भी नहीं भूला जा सकता कि हम एक बार धर्म के आधार पर हुए रक्तरंजिम विभाजन का दंश झेल चुके हैं। यदि सांप के बिल में हाथ डाला गया तो बहुत संभव है क्षणिक आवेश अथवा साम्प्रदायिक धु्रवीकरण फिर से कोई ऐसे जक्ष्म दे जिसका प्रायष्चित भी संभव न हो। अतः इस मूर्खता पूर्ण प्रयास को पूरी सख्ती के साथ नकारने में स्वयं केजरीवाल के साथियों को भी आगे आकर इस प्रस्ताव से अपनी असंबंद्धता घोषित करनी चाहिए। क्योंकि यह मुद्दा राजनीति का नहीं राष्ट्र की प्रतिष्ठा का है। अतः उन्हें अपनी राजनैतिक दुकानदारी के लिए राष्ट्र की अस्मिता से खेलने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उनके साथियों के लिए यह उचित अवसर है कि वे अपनी अभिव्यक्ति और अस्तित्व का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए केजरीवाल जी को श्रेष्ठता ग्रन्थी का त्यागने का संदेश दें। उन्हें ठंडे दिमाग से मनन करते हुए यह पड़ताल करनी चाहिए कि स्वतंत्रता से आज तक अनेक विषयों पर राज्य और केंद्र सरकारों के बीच मतभेद रहे हैं। लेकिन कभी भी कोई राजनीतिक दल संवैधानिक व्यवस्था को चुनौती देकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने की हद तक नहीं गया। क्या वे सभी नेता मूर्ख, अज्ञानी अथवा कायर थे?
केजरीवाल की इस हरकत से उनके राजनैतिक विरोधियों को यह कहने का अवसर मिलेगा कि दिल्लीवासियों की अपेक्षाओं को पूरा करने में नाकाम रहे केजरीवाल जनमत संग्रह के नाम पर केंद्र से टकराव बढ़ाकर जनता को गुमराह करना चाहते हैं। वह जनसंवाद से बजट बनाने की बात तो जरूर करते हैं पर यह जनसंवाद कब और कहां हुआ इसपर मौन रहते हैं। उन्हें जनमत का निर्माण करने के लिए व्यवहारिक कठिनाईयों की चर्चा करने और ज्यादा अधिकार अथवा पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए आंदोलन करने का अधिकार है। इसके लिए उन्हें कोई नहीं रोक सकता परंतु संवैधानिक प्रावधानों की मर्यादा को तार-तार करने की छूट नहीं हर्गिज नहीं दी जा सकतीहै। यदि कल दूसरे भी ऐसा करने लगे तो भारत को खंड-खंड करने का सपना पालने वाले सफल हो सकते हैं।
यह कोई प्रथम अवसर नहीं है जब आम आदमी पार्टी के किसी नेता ने जनमत संग्रह की बात की हो। पार्टी के संस्थापक (मगर अब निष्कासित) प्रशांत भूषण भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों की तैनाती पर जनमत संग्रह की मांग कर चुके हैं। प्रशांत भूषण ने यह भी कहा था, ‘माओवादियों का आप में स्वागत है।’ माओवादियों की कानूनी लडाई लड़ना उनका व्यवसाय हो सकता है लेकिन देश के प्रति भी उनका कुछ कर्तव्य है। उस समय उन्होंने इसे अपना निजी बयान बताकर विवाद को बढ़ने से रोक दिया हो परंतु अब जबकि केजरीवाल भी लगभग वहीं बात कह रहे हैं तो क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि इन लोगों को देश की एकता अखंडता की परवाह नहीं है। वैसे यह शुभ संकेत है कि कांग्रेस ने तत्काल केजरीवाल के इस अविवेकी प्रस्ताव का विरोध कर जिम्मेवार विपक्ष होने का परिचय दिया है। उसे भी इस बात का अहसास है कि एक बार यह परम्परा शुरू हो गई तो भारत को तोड़ने के प्रयासों में लगे पड़ोसी देश की शह पर अलगाववादियों को विश्व के सामने यह रोना रोने का अवसर मिलेगा कि हमसे भेदभाव होता है। यदि दिल्ली में जनमत संग्रह हो सकता है तो हमारे यहां क्यों?
यदि केजरीवाल ओर उनके साथी आत्मनिर्णय या जनमत संग्रह कराने के प्रति सचमुच गंभीर हैं तो उन्हें एक बार फिर से चुनावी दंगल में उतरना चाहिए लेकिन देश को कमजोर करने वाली कोई भी बात कहने से पहले महाभारत के शांतिपर्व में पितामह भीष्म का वह कथन अवश्य स्मरण रखना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था, ‘शांति के लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े वह कम हैं परंतु जब सवाल राष्ट्र की अस्मिता का हो, यदि हजार युद्ध भी लड़ने पड़े तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए।’
विनोद बब्बर संपर्क-09868211911
एकता-अखण्डता का तिरस्कार है जनमत संग्रह की मांग
Reviewed by rashtra kinkar
on
21:25
Rating:

No comments