व्यसन बनता इंटरनेट

आज संचार सुविधाओं का बहुत तेजी से विकास हुआ है। इंटरनेट बहुत तेजी से हमारे जीवन में घुसपैठ कर रहा है। ‘डिजिटल इण्डिया’ अभियान बेशक इसे और तेजी प्रदान करेगा। यह पूर्ण सत्य है कि इसके फायदे और नुकसान दोनों है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसे किस रूप में अपनाते है। इंटरनेट की सहायता से हमें किसी भी तरह की जानकारी मिनटों-सैंकड़ों में मिल जाती है। इंटरनेट के माध्यम से सोशल मीडिया हमें हजारों मील दूर रह रहे लोगों के सम्पर्क रखने, उनसे बात करने, कोई फोटो, फिल्म अथवा दस्तावेज का आसानी से आदान प्रदान कर सकते हैं। अब तो ऑनलाइन बैंकिंग, ऑनलाइन बिलिंग, ऑनलाइन शापिंग, ऑनलाइन रिजर्वेशन, ऑनलाइन एडमिशन और न जाने क्या-क्या ऑनलाइन है। लेकिन यह भी उल्लेखनीय है कि जरा सी चूक व्यक्तिगत सूचनाओं के दुरुपयोग और धोखे तक पहुंच सकती हैं। ‘आपकी लाटरी निकली है, विदेशी मुद्रा ट्रान्सफर के लिए फलां-फला सूचनाएं और ऑनलाइन इतनी फीस भेजे’ जैसे संदेश आम बात हैं
हमारी भावी पीढ़ी में इसके प्रति दीवानगी है। आभासी दुनिया में जीने वाले समझते है कि इंटरनेट की कृपा से बिना घर से एक कदम बाहर रखे वे सारी दुनिया के बारे में जानते हैं। वास्तव में आज इंटरनेट का एक गंभीर समस्या भी बन रहा है। आधुनिक युग में सूचनाओं के आदान प्रदान और ज्ञान के प्रसारण का यह माध्यम सामाजिक समस्या के रूप में हमारे सामने आ रहा है। कभी नशीली दवाओं का सेवन व्यसन था लेकिन आज इंटरनेट से चिपके रहना भी व्यसन बन चुका है। ‘नेटब्रेन’ नामक इस रोग के शिकार को दिन हो या रात बस नेट की ओर बढ़ने की ललक रहती है। ऐसा करते हुए वह पूरी तरह से नकारात्मक होकर रह जाता है। आज जिस तरह से हर जानकारी के लिए इंटरनेट की ओर भागने की प्रवृति बढ़ रही है उसका स्वाभाविक परिणाम है स्मरण शक्ति में कमी आना।
अपने बच्चों को आधुनिकतम सुविधाएं देते हुए आज हम सोचते हैं कि हमारी अगली पीढ़ी हमसे बहुत होशियार और तेज हो रही है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है, इसपर विचार नहीं किया जाता। इस सत्य से मुंह मोड़ना आत्मघाती होगा कि तीव्र संचार सुविधाएं जिसमें इंटरनेट प्रमुख है बच्चो और युवाओं को तन और मन से बीमार बना रही हैं। जो लोग इंटरनेट को तेजी का प्रतीक बताते हुए दावा करते हैं कि इसके माध्यम से उनका युवा बेटा तेजी से मैसेज भेज सकता है, इसलिए वह सुपरफास्ट है, तो वह यह भूलता है कि आज भी किसी सूदूर गांव का बच्चा बहुत तेजी से पेड़ चढ़ सकता है। तेज गति से तैर कर नदी पार कर सकता है। उसका तो पूरा शरीर फुर्तीला है जबकि मोबाइल पर तेजी से अंगुलियां घुमाने वाले के शेष शरीर में जबरदस्त सुस्ती धीमापन आया है। सत्य तो यह है कि पहले हमारे बच्चों की गतिविधियां बहुआयामी हुआ करती थीं, लेकिन आज स्मार्टफोन ने उनकी स्मार्टनैस छीन कर उन्हें अब एकआयामी अर्थात् थुलथुल, बेडौल और तन-मन से बीमार बना दिया हैं।
संचार क्रांति का दुरुपयोग चरम पर है। मोबाइल हर युवा के हाथ में ही नहीं, बल्कि प्राईमरी स्कूल से ही बस्ते में पहुंच अबोध बच्चों की जिन्दगी का अहम हिस्सा बन रहा है। एस.एम.एस. और वीडियो का शौक इतना बढ़ चुका है कि वे उसी में मस्त हैं और अपने भविष्य को लेकर बेखबर। ऐसे में पढ़ाई का क्या अर्थ रह जाता है। इससे श्शायद ही कोई बेखबर हो लेकिन गत सप्ताह दुःख की कोई सीमा न रही जब एक मैट्रो स्टेशन से कुछ दूरी पर मोबाइल में व्यस्त एक युवा रिक्शा चालक से कहीं चलने के लिए कहा तो उसने सिर उठाये बिना इंकार कर दिया। अचानक उसका मोबाइल उसके हाथ से छूटकर मेरे बैग पर आन गिरा। जब मैंने उसे उठाया तो सिर शर्म से झुक गया क्योंकि उसमें अश्लील फिल्म चल रही थी। जानकारी मिली कि यह सामान्य बात है। आश्चर्य हुआ कि राष्ट्र की प्राथमिकता स्वस्थ, प्रतिभाशाली युवा ह या यौन-कुण्ठा से ग्रस्त ब्रेननेट के रोगी। फेसबुक, व्हटसअप आदि पर अश्लील सामग्री का आदान-प्रदान करने के लिए ग्रुप बने है तो दूसरी ओर कुछ अपराधिक प्रवृति के लोग इनबाक्स में चैट के बहाने तरह- तरह की गंदगी परोसते हैं। सम लैंगिकता का प्रचार जारी है। केवल युवा ही नहीं बल्कि प्रौढ़ और वृद्धों को भी ब्लैकमेल किया जाता है।
पुलित्जर पुरस्कार के लिए नामित किये गए लेखक निकोलस कार की चर्चित पुस्तक है द शैलोज नेे मानव मन-मस्तिष्क पर इंटरनेट के प्रभावों विषय पर अपनी चर्चित पुस्तक ‘द शैलोज’ में कहा है, ‘इंटरनेट हमें सनकी बनाता है, हमें तनावग्रस्त करता है, हमें उस ओर ले जाता है जहां हम इस पर ही निर्भर हो जायें।’ चीन, ताइवान, कोरिया अदि देशों ने इंटरनेट व्यसन को राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट के रूप में लिया है और इससे निबटने की तैयारी भी शुरू कर दी है।
नेट जिस तरह से ‘सामाजिक नेटवर्क’ को छिन्न-भिन्न कर रहा है उससे चिंतित एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के अनुसार इंटरनेट पर घण्टों समय बिताने वाले बच्चों पर शारीरिक और मानसिक दोनों तरीके से प्रभाव पड़ता है। बच्चे व्यायाम और खेलकूद छोड़कर कम्प्यूटर के सामने ही अपना समय व्यतीत करते हैं। इससे कम्प्यूटर की रोशनी और ध्वनि से आंखों और कानों पर असर होता है। वहीं इंटरनेट पर उपलब्ध थ्रिल, एडवेंचर और हिंसक वीडियो गेम्स खेलने से बच्चों के मस्तिष्क पर भी असर पड़ता है। बच्चे अपनी आदत के अनुसार देखे गये गेम्स को वास्तविक जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं, इससे बड़ी दुर्घटना होने का खतरा भी बना रहता है। कई बार अवसाद ग्रस्त होकर बच्चे गलत कदम भी उठा लेते हैं। दूसरी ओर इंटरनेट में परोसी जा रही अश्लीलता भी बच्चों में मानसिक विकार को जन्म देती है। देश की उच्चतम न्यायालय ने भी इंटरनेट के माध्यम से बहुत तेजी से फैली पोर्नाेग्राफी साइट द्वारा हमारे युवा चरित्र को खोेखला करने पर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से इस पर प्रतिबंध लगाने को कहा था लेकिन उसने असमर्थता दिखाई। क्या यह सत्य नहीं कि अश्लील फोटो और वीडियो देखकर युवा होते बच्चों की मानसिकता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में यौन अपराधों को बढ़ना स्वाभाविक ही है।
किसी भी सोशल नेटवकिंग साइट के माध्यम से ऑनलाइन चैटिंग को सस्ता और सहज तो बताया जाता है लेकिन क्या हम इस बात से इंकार कर सकते हैं कि इसने सामाजिक मेल.मिलाप को बहुत बुरी तरह से प्रभावित किया है। यहां तक कि घर के सदस्यों का आपसी सम्पर्क भी कम होने लगा है क्योंकि हम लगातार इंटरनेट पर बने रहने के आदी रहे हैं। देर रात तक जागकर कम्प्यूटर, स्मार्टफोन पर लगे रहने वाले लाखों लोग ‘स्लीप सिंड्रोम’ की चपेट में आ चुके हैं। इसी कारण वे अवसाद जैसी मानसिक बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
स्पष्ट है कि समस्या गंभीर है लेकिन हमने तो अब तक इसपर नियंत्रण के बारे में सोचना भी शुरु नहीं किया। बच्चे हमारा भविष्य हैं इसलिए उनके क्रियाकलापों पर हमारी नजर होनी चहिए। ंएक मित्र की तरह उन्हें सही व गलत से अवगत कराते हुए उन्हें सामाजिकता से जोड़ना जरूरी है। समय निकाल कर हर रोज उनसे सुखद वातावरण में बातचीत, उनके साथ खाना,, यदाकदा इकट्ठे घुमना, परिवार, समाज और संसार की समस्याओं पर चर्चा। नैतिक मूल्यों पर कोरे प्रवचन से ज्यादा प्रभावी उन्हें अपने जीवन में उतारना है। इसकी शुरुआत हम सप्ताह में एक दिन ‘नो नेट डे’ के रूप में कर सकते हैं। तभी और केवल तभी हमारे बच्चों में किसी सकारात्मक परिवर्तन की आशा की जा सकती है। -- डा. विनोद बब्बर 9868211911
व्यसन बनता इंटरनेट
Reviewed by rashtra kinkar
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