आतंकवाद का फन कुचलने की चुनौती
बेशक आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है। यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका, हर जगह आतंक का आतंक मचा है। आईएसआई एसआई के गुर्गे लगातार रक्तपात करते हुए खाड़ी के देशों को रौंद रहे हैं जबकि उनके इरादे पूरी दुनिया को एक झण्डे के नीचे लाने के नाम पर धार्मिक उन्माद भड़काने के हैं। सारी दुनिया उनके इरादों से चिंतित है लेकिन दूसरों के चिता करने से हमेे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की छूट नहीं मिल सकती। स्वयं को सक्षम, सजग और शक्तिशाली बनाना हर स्वाभिमानी राष्ट्र का प्रथम कर्तव्य होता है।
अगर हम स्वयं को सजगता को कसौटी पर कसे तो पंजाब में गुरदासपुर जिले के दीनानगर पुलिस स्टेशन पर आधुनिकतम हथियारों से लैस सेना की वर्दी में पूरी तैयारी के साथ पहंुचे तीन आतंकियों द्वारा कब्जा करने की कोशिश, जिसमें पुलिस अधीक्षक सहित सात लोग मारे गए तथा 15 घायल हुए, आखिर क्या संकेत है? उससे पहले एक चलती बस पर गोलियां बरसाने की घटना यदि कोई संकेत है तो यही कि हम जिस बातचीत, अमन के जिन समझौतों पर तालियां बजा रहे हैं, वे सब ढकोसले है। दरअसल जम्मू कश्मीर के बाद पंजाब में भी आतंक को फिर से जिंदा करने की तैयार हो रही है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि दुस्साहसिक वारदात की जड़ें सीमा पार यानी पाकिस्तान तक जाती हैं। अतः आतंकवाद के नाग का फन कुचलने के लिए उसके बिल तक पहुंचना जरूरी है।
आश्चर्य की बात यह है कि दुनिया का हर अमनपसंद नागरिक जानता है कि आतंकवाद से किसी का भला होने वाला नहीं है। क्षणिंक संतुष्टि प्राप्त करने वाले समाज को दीर्घकाल तक क्षति उठानी पड़ती है। मुट्ठीभर राक्षसों के कारण उस सम्पूर्ण समाज को भेदभव का शिकार होना पड़ता है जब उन्हें अकारण संदेह की नजर से देखा जाता है। स्पष्ट है कि आतंकवाद को धर्मयुद्ध (जेहाद) कहना मानवीय अपराध है और इस राह पर चलकर यदि कोई धर्मराज स्थापित करने का दावा करता है तो उसकी लगाम तत्काल कसे जाने की जरूरत है। जरा सी भी लापरवाही अथवा समर्थन आत्मघाती साबित होता है। अमेरिका का उदाहरण हमारे सामने है। अफगानिस्तान से रूस की सेनाओं से लड़ने के लिए जिन तालिबानों को उसने मदद दी बाद में वे ही अमेरिका के लिए समस्या बन गए तो अमेरिका को उसे नष्ट करने के लिए अपनी सेनाएं भी भेजी। अमेरिका की वह भूल न केवल उसे बल्कि सारे विश्व को महंगी पड़ रही है।
पाकिस्तान की दुर्दशा का कारण भी कोई दूसरा नहीं है। भारत विरोध की मानसिकता पर खड़ा पाकिस्तान ने तीन युद्धों में मुंह की खाने के बाद आतंकवाद को अपना हथियार बनाने की ठानी। इसके लिए उसे धार्मिक कट्टरता का सहारा भी लिया। बेशक दुनिया का कोई भी धर्म आतंकवाद का समर्थन नहीं करता परंतु इस वास्तविकता से कौन इंकार करेगा कि धार्मिक उन्माद ही आतंकवाद के वर्तमान दौर का मूल कारण है। दूसरों के घर जलाने का जनून आज उसे जला रहा है। आईएसआई जैसे संगठन बेगुनाह लोगों की जान ले रहे हैं। उन्हें ऐसा करने से रोकना वहां की किसी के बस से बाहर है।
पाकिस्तान में सरकार तो नाममात्र की है। नवाज शरीफ सरकार का अस्तित्व तो है पर इकबाल नहीं है। उनकी हैसियत प्रधानमंत्री तो दूर हमारे केजरीवाल जितनी भी नहीं है। ऐसे में उनके किसी वायदे की हैसियत शून्य के आसपास ही है। अतः उनसे कोई भी समझौते करने से पहले उसके हस्र को भी समझना जरूरी है। कटु सत्य यह है कि जब तक हम पाकिस्तानी जनरलों को यह ं समझाने मे सफल नहीं होगे कि भारत आतंकवाद को खत्म करने के लिए कड़े कदम उठाने के लिए तैयार है तब तक उन्हें अपनी नीति बदलने की जरूरत महसूसअनुभव है कि हर आतंकी हमले के बाद भारत पाकिस्तान के साथ बातचीत स्थगित कर देता है और फिर कुछ समय बाद वार्ता की प्रक्रिया फिर चल पड़ती है।
इस बात में शायद ही किसी को शक हो कि पाकिस्तान सही राह पर है। वास्तव में वह आत्मघाती राह पर है अतः अमेरिका के दबाव में बातचीत करना समय की बर्बादी है। हम दुनिया को यह समझाने में भी असफल रहे है कि पाकिस्तान उन्हें ब्लैकमेल कर रहा है। आतंकवाद से छुटकारा पाना है तो दुनिया को इस ब्लैकमेलिंग का इलाज करना होगा। पाकिस्तान से संबंध सुधारने और मोमबत्तियां जलाने या आम के टोकरे कबूलने या भेजने में अपनी ऊर्जा बर्बाद करने की बजाय हमें अपनी सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने पर बल देना चाहिए। क्योंकि आतंकवादी उड़कर नहीं आए थे। अपनी व्यवस्था में हुई चूक के लिए किसी दूसरों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
आतंकवाद को साफ करने के लिये पहले राजनीति की सफाई जरूरी है। सभी को जागरूक करना होगा ताकि वे किसी के बहकावे में नहीं आयें। यदि देशद्रोहियों पर नकेल न कसी गई तो ये जहरीले नाग इस देश के अमन चैन को डस लेंगे।धर्म का सार्वजनिक प्रदर्शन, उन्मादी नारों और भाषणों के साथ साथ राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने तथा देशद्रोही नारों का किसी भी कीमत पर न सहन करने का संदेश दिये बिना परिवर्तन की आशा करना स्वयं को धोखा देना है। सरकार को सीमावर्ती क्षेत्रों की कड़ी चौकसी करनी चाहिए। आईबी में अधिकारियों की कमी, सुरक्षा बलों में हजारों पदों के खाली होने का अर्थ है हम स्वयं अपनी सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं है। सीमाओं के मसलों को सुलझाना होगा। देश के नागरिकों को शिक्षित करना होगा। उन्हें देश के प्रति वफादारी और न्याय की सीख देनी होगी। हम कोशिश करें तो आतंकवाद का यह दानव सिर नहीं उठा सकता। माननीय प्रधानमंत्री जी को भी अपने विदेश दौरे कुछ कम कर सीमाओं के लिए भी समय निकालना चाहिए तो रक्षा मंत्रालय की मांगों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करना चाहिए। जम्मू कश्मीर में सिर उठाने वाले हर देशद्रोही के फन को कुचलने के स्थायी आदेश देने चाहिए। ऐसे तत्वों को देखते ही गोली मारने के अतिरिक्त विश्व शांति का कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इस संबंध में हमें महाभारत के शांतिपर्व में पितामह भीष्म का वह कथन अवश्य याद रखना चाहिए जिसके अनुसार, ‘शांति के लिए कोई भी कीमत कम नहीं है। लेकिन जहां राष्ट्र की अस्मिता और स्वाभिमान का प्रश्न हो तो हजार युद्ध भी स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।’
आतंकवाद की स्वीकार्यता शून्य प्रतिशत होनी चाहिए लेकिन भारत में मीडिया विशेष रूप से इलैक्ट्रोनिक मीडिया दोषियों के पक्ष में अनावश्यक माहौल बनाने का काम करता है। दोषी के कुकृत्य को अनदेखा करते हुए उसकी जाति, उसके धर्म, उसके प्रांत, भाषा के कारण उसे पीड़ित बताना अथवा उसके प्रति सहानुभूति का माहौल बनाना उचित नहीं कहा जा सकता। यह सुखद है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सभी टेलीविजन चैनलों से कहा कि वे पंजाब में गुरुदासपुर जिले के दीनानगर में एक थाने के भीतर छिपे आतंकवादियों के खिलाफ जारी अभियान की सीधी तस्वीरें न दिखाने का आदेश दिया। मंत्रालय ने यह भी कहा कि कुछ चैनलों ने नियमों का उल्लंघन करते हुए इसका प्रसारण किया है।
यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि आतंक से जुड़े किसी भी व्यक्ति को महिमा मंडित करने वालों पर भी नकेल कसने की आवश्यकता है। स्वतंत्रता मनमानी नहीं हो सकती। स्वतंत्रता के साथ कुछ जिम्मेवारियां है तो उसकी सीमाएं भी है। सीमाओं का अतिक्रमण सदैव विनाशकारी होता है। अतिक्रमण चाहे आतंकवादियों द्वारा किया जा रहा हो या मानवाधिकारों के नाम पर आतंकवाद के समर्थन में चलाई जा रही मुहिम हो। सरकार का प्रथम मानवाधिकारी कर्तव्य निर्दोष नागरिकों की सुरक्षा है, न कि आतंकवादियों के मानवाधिकारों की सुरक्षा के नाम पर रात रात भर अदालतों को जगाने और अनावश्यक सनसनी का माहौल बनाने वालों को प्रचार देना है। आतकवाद का फन कुचलने के लिए जहां उसकी बामी में बम डालना जरूरी है वहीं न्यायपालिका के सम्मान के महत्व को भी रेखांकित करना होगा। यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं होगा कि जिस आतंकी और उसके साथियों के कारण निर्दाेष लोगों के टुकड़े-टुकड़े हुए। सैंकड़ों बच्चे, महिलाएं और बीमारों को भी नहीं बक्षा गया। उसके बावजूद उसे अपने बचाव के लिए 22 साल तक हर अवसर दिया गया। लेकिन कुछ अचानक प्रक्रिया की खामियां गिनाने लगे मानों न्याय पर पहला अधिकार अपराधी का हो। देश के बच्चे- बच्चे को देश की सुरक्षा के प्रति सचेत और हर संकट का दिलेरी से सामना करने के लिए तैयार करना होगा। जयहिंद!
विनोद बब्बर संपर्क-09868211911
आतंकवाद का फन कुचलने की चुनौती
Reviewed by rashtra kinkar
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