प्रोफेसर की परीक्षा

हमारे एक मित्र है- लालजी भाई। कभी पढ़ाते थेे। किस किस को पढ़ाया और किस किस को छोड़ा यह जानना मुश्किल नहीं है। जब भी उनसे मिलना होता है उनके दिल में सभी मित्रों के प्रति जो श्रद्धा-स्नेह है वह छलकने लगता है। 
कल उनसे मिलना हुआ। हमारा पोता साथ था। स्कूल का छात्र है। कालेज प्रोफेसर से पहली बार मिला। बातचीत का सिलसिला शुरु हुआ। हम जिस मित्र का भी नाम लेते  डा. लाल उसका इतिहास भूगोल बताते। मैंने कहा-
शर्मा जी के बारे में बताईये
शर्मा, उसे कुछ आता जाता कहां है। मैंने उसे सिखाने की बहुत कोशिश की।
और सचदेवा जी?
 सचदेवा को मैने नौकरी लगवाई। लेकिन अहसान नहीं मानता। 
शास्त्री जी?
 बस ऐसे ही है। तुम देखते ही हो मैं उनकी कितनी मदद करता हूं लेकिन वो काम नहीं आते।
तिवारी जी? 
तिवारी की मैने पढ़ाया।
मिश्रा जी? 
मिश्रा की पत्नी को मैंने हिन्दी सिखाई।
चावला जी? 
चावला की किताब मैंने सुधारी। 
हम बातचीत में मग्न थे कि पोते ने धीरे से कहा- 
और डा. लाल? 
लालजी की आरा मशीन चालू थी। बोले- सब ऐसे ही है। वो भी कोई अच्छा आदमी नहीं है। कभी किसी के काम नहीं आया। तुम उसे कैसे जानते हो?
जब तक मैं कु समझता, लाल जी  की चेतना भी लौट चुकी थी। वे सन्न थे  लेकिन पोते के चेहरे पर विजयी मुस्कान था। प्रोफेसर साहब ने बहुतो को पढ़ाया, सिखाया लेकिन आज एक स्कूली छात्र ने कालेज प्रोफेसर की बोलती बंद कर दी। बेचारे लाल जी भाई! 
अब तो मुझे भी अपने ही पोते से डर लगने लगा है। न जाने कब........! -- विनोद बब्बर 09868211911
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