सात्विक लहरों की सवारी

बचपन से पढ़ता रहा हूं-समुन्द्र में ज्वार-भाटा आता है। जब समुद्र के सतह का जल बार-बारी से ऊपर चढ़ता और नीचे गिरता है तो उसे ‘लहरें’ कहते हैं। तूफान के दौरान हवाएं बहुत बड़ी-बड़ी लहरों के साथ तीव्र गति से चलती हैं और भयंकर विनाश का कारण बन सकती है। लेकिन जब एक दिन समुन्द्र तट पर खड़ा लहरों को देखा तो ये लहरे अपनत्व भरी लगी। बार-बार मेरे जैसे असंख्य लोगों के चरण स्पर्श कर लौट जाने वाले ये लहरे  मन को आनंद दे रही थी। ज्वार भाटा को कारण चन्द्रमा को बताया जाता है। तो चन्द्रमा को मन का देवता भी कहा जाता है। लगा जैसे लहरें मन-मस्तिष्क पर सवार हो विचार और आनंद लहरों को सक्रिय करने का कारण बनी रही हों। ये लहरंे हवा संग झूम रही हैं या हवा इन लहरों संग अटखेलियां कर रही है। लहर का शोर है या जोर। ये लहरे चलकर आती हैं या उड़कर। 
तभी मन की एक लहर ने दिशा बदली- ‘तट हो या तटस्थता,, दोनो ही परिवर्तन के मौन साक्षी होते हुए भी इतिहास में स्थान नहीं पा सकते। दोनो ही  बांधते हैं लेकिन लहरंेे समुद्र की हो या विचार की आगे केवल स्वयं ही आगे नहीं बढ़ती बल्कि बढ़ाती भी है। लहरों का इशारा स्पष्ट है- आगे बढ़ो। पिछली लहरांे से भी आगे। केवल आगे ही नहीं, अनन्त की ओर भी। निरन्तर बढते़ रहो। चेरावेति-चेरावेति।  
अचानक एक गीत मन में गूंज उठा- ‘तोहरे ताल मिले नदी के जल में। नदी मिले सागर में। सागर मिले कौन से जल में कोई जाने न!’  क्या वास्तव में ऐसा है? आश्चर्य है कि न केवल सागर का स्रोत बल्कि सागर के जल का उपयोग भी तो सभी जानते हैं पर न जाने क्यों जानकर भी अनजान रहते हैं। यदि सुन सकते हो तो सुना, इन लहरांे का कोलाहल इस पहेली का उत्तर देते हुए स्वयं कह रहा हैं- ‘हम सागर का जल ऊंचाईयों की ओर जाने के लिए मचल रहे हैं।’ ये लहरें बेशक अनंत की ऊंचाई को नहीं छू सकती। लेकिन वाष्प बनकर बादल के रूप में धरती का सदभावना संदेश आसमान तक ले कर जाती हैं। लेकिन अनन्त क्षितिज भी इतना कृतघन नहीं कि धरती की इस सदभावना  को केवल अपने लिए सुरक्षित कर लें। वह इन बादलों को धरती माता की प्यास बुझाते हुए फिर से ताल और नदी से मिलने का आदेश देता है। तब समुंन्द्र की ये लहरे पर्वतों, मैदानों से होते हुए नदियों के रूप में फिर से अपने स्रोत में आ मिलती है। लहरें बिछड़ों से मिलन का खुशी है तो एक बार फिर से बिछड़ने की तैयारी भी है।   
ये लहर नदी से सागर तक, मन मस्तिष्क से लोक व्यवहार तक अपना काम करती हैं। जब ये लहर अपने साथ सकारात्मक ऊर्जा लेकर चलती है तो नाविक का रास्ता आसान हो जाता है। समुन्द्र के गर्भ में छिपे खजाने भी बाहर आने को मचलने लगते हैं। और दुर्भाग्य से यदि लहरें काम, वासना, अपराध, अनैतिकता, भ्रष्टाचार की हो तो नाविक को कई गुणा अधिक श्रम करने के बाद ही अपनी प्राण रक्षा में सफलता  मिलती है। क्योंकि नकारात्मक लहर प्रतिगामी बनकर रास्ता रोकती है। विपरीत हवा में साईकिल चलाना कठिन हो जाता है ठीक उसी प्रकार नकारात्मक लहरें रास्ता रोकती हैं। हवा, नदी, तालाब, सागर से संसार अर्थात् पृथ्वी, वाय,ु जल ही नहीं मन-मसिष्क तक। इन लहरों का चक्रवात सुनामी बनकर जन-जीवन को अशांत कर देता है तो कई बार प्रलय का वाहक बन जाता है।  
रात्रि में गंगा आरती देखने वाले जानते हैं कि लहरें दीपदान का सौंदर्य भी बन सकती है। अंधकार में टिमटिमाते दीये लहरों का संसर्ग पाकर बहुत सुंदर प्रतीत होते है। सात्विक स्पर्श प्रदान करने वाली लहरे भी दीपदान के सौंदर्य का आनंद देती हैं। अंधकार में टिमटिमाते जुगनुओं की तरह। दीपक की तरह अपनी रोशनी बिखेरती हैं। दीपदान की लहरों का नृत्य किसी भी हृदय को ेस्पर्श कर सकती हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से दार्शनिक स्पर्श। 
और हाँ............ दीपक और दार्शनिक दोनो बहुत निकट लगते हैं। जो हर लहर तूफान का सामने करने के लिए अपने साथ ऊर्जा और उष्मा लिए हो केवल वहीं दर्शनीय होता है। कुछ वे दीपक इस कसौटी पर खरे उतरते हैं। वे ही  प्रकाश स्तम्भ बन युगो-युगों से सभ्यता, संस्कृति को जीवन्त बनाये रखते हैं। उन्हीं की प्रतिभा और क्षमता के तेज के लिए ही कहा जाता है- दीप ज्योति नमोस्तुते!
विनोद बब्बर संपर्क-  09458514685, 0986821

1911
सात्विक लहरों की सवारी सात्विक लहरों की सवारी Reviewed by rashtra kinkar on 07:55 Rating: 5

No comments