राष्ट्र रक्षा भाषणों- जुमलों से नहीं शक्ति से ही संभव
भारत का मस्तक प्रदेश कश्मीर एक बार फिर चर्चा में है। हिजबुल कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद से कश्मीर में पत्थरबाजी घटनाओं में तेजी आ गई। सुरक्षा बलों और पुलिस पर ही नहीं अमरनाथ यात्रियों पर भी पत्थर फेंकने की घटनाएं हुई जिससे सुरक्षा बलों सहित हजारो लोग गंभीर रूप से घायल हुए। कश्मीर के एक विधायक तक को पत्थरों से बुरी तरह घायल कर दिया गया। जनजीवन पूरी तरह ठप्प हो गया। ऐसे में सरकार के पास सख्ती करने के अतिरिक्त कोई विकल्प ही कहां था। आसंूगैस के बेअसर होने पर दुनिया भर में गाली ही चलाई जाती है लेकिन हमारी सुरक्षा बलों ने घातक हथियारों का प्रयोग न करते हुए पैलेट गन का उपयोग किया जो चोट तो पहुंचाता है लेकिन जानलेवा नहीं है।
इतिहास साक्षी है कि केवल आज ही नहीं सदा, केवल हमारे यहां ही नहीं, पूरी दुनिया में देशद्रोह को सख्ती से कुचला जाता है। जो देश को तोड़ने के बात करता हो उसे पहले प्यार से समझाने का प्रयास किया जाता है। यदि वह एकता- अखण्डता का सम्मसन नहीं करता तो राज्य को हर सीमा तक जाकर अपनी शक्ति का उपयोग करने का अधिकार है। यह कटु सत्य है कि स्वतंत्र भारत में देशद्रोहियों के साथ पर्याप्त सख्ती नहीं की गई। अनेक तो उनके साथ ‘तुष्टीकरण’ हुआ जिससे उनका मनोबल बढ़ता रहा। दुर्भाग्य से ऐसे संकट के समय जब सभी को एकजुट होेकर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की कमर तोड़ी चाहिए, हमारे राजनैतिक दल अपने-अपने राजनैतिक हितों को ध्यान में रखकर व्यवहार कर रहे हैं।
संसद में चर्चा के दौरान विपक्ष आतंकवाद की बजाय सरकार को कोसने में काफी आक्रामक रहा। वामपंथी अलगाववादियों से बात करने और एफ्स्पा हटाने का उपदेश दे रहे हैं। लेकिन वे इस बात पर चुप्पी साध जाते हैं कि यदि हजारों प्रदर्शनकारी सुरक्षकर्मियों पर हमला करे तो सरकार की प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए।
कांग्रेस नेता गुलामनबी आजाद ने राज्यसभा में अपने भाषण जहां पाकिस्तान को कालादिवस मनाने के लिए लताड़ा वहीं उससे भारत के मुसलमानो के हित में बाज आने की चेतावनी भी नहीं। उन्होंने वर्तमान संकट को अभूतपूर्व बताते हुए कहा कि कांग्रेस ने भी वहाँ सत्ता चलाई पर ऐसे कभी हालात नहीं हुए जैसे आज हुए हैं.। ऐसा कहते वे भूल गए कि सितम्बर, 1991 में स्वयं उनके अपने साले को अपहरण कर्ताओं से आजाद कराने के लिए 21 आतंकियों की रिहा किया गया था। आश्चर्य है कि आजाद साहब पैलेट गन के इस्तेमाल पर सवाल उठाते हैं लेकिन वे देश के वीर सिपाहियों पर जानलेवा हमले करने वाले आतंकवादियों से निपटने का इसके अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं सुझाते। सरकार का यह कथन सही है जिसके अनुसार- जब हजारों की संख्या में लोग पुलिस चौकियों को जलाने लगे, स्वाभाविक है कि ऐसी कार्यवाही होगी ही। कोई देश यह अनुमति नहीं दे सकता कि देश की एकता के ऊपर प्रहार होता रहे और देश देखता रह जाए।
केवल संसद ही नहीं देश के हर जिम्मेवार नागरिक के मन- मस्तिष्क में कश्मीर की चिंता है। बेशक आज पाकिस्तान उसे मजहबी रंग देकर कश्मीर को अपना बताने का दुस्साहस कर रहा है लेकिन कश्मीर सदियों से भारत भूमि रही है। स्वतंत्रता के पश्चात भी ब्रिटिश संसद द्वारा पारित कानून के प्रावधानों के अनुसार भी कश्मीर विधिवत भारत में विलिन हुआ है। उस अधिनियम के अनुसार स्वतंत्र रियासते (जिसमें कश्मीर भी शामिल थां) भारत अथवा पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय ले सकती हैं। कश्मीर के महाराजा हरिंिसह ने तमाम परिस्थितियों का अध्ययन करने के बाद भारत के साथ विलय स्वीकार किया। उनके द्वारा विलय परपत्र पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया। लेकिन पाकिस्तान अपनी भारत विरोध की ग्रन्थी के कारण मजहब के आधार पर कश्मीर को अपना बताता है। भारत की बढ़ती शक्ति और प्रभाव से भयभीत चीन भी इस मामले में पाकिस्तान को अपना समर्थन देता है।

यह सुखद है कि कश्मीर का बुद्धिजीवी वर्ग जो अब तक आतंक से भयभीत होकर उनका समर्थन करता था या मौन रहता था, अब मुखर हो रहा है। एक अलगाववादी नेता के पुत्र जुनैद ने ठीक ही तो कहा है कि गगन कल्चर आपको कहीं नहीं ले जायेगा आपको तर्कों के साथ सामने आना होगा उसने कश्मीर के लिए जंग लड़ रहे आतंकियों से पूछा है कि क्यों वहाँ के गरीब हाथो में बंदूके उठा रहे हैं, नेताओं के पुत्र विदेशो में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं और नेता अपने बंगलो में कश्मीर की लड़ाई लड़ रहे हैं और हर बार वह इन्तजार करते हैं कि किसी गरीब का बेटा आतंकी हो कर मरे और वह उसे मसीहा बना दें।
निसंदेह देश के शेष भागों की तरह कश्मीर के लोगों की भी कुछ समस्याएं हो सकती है। संवाद हर समस्या का समाधान है। अशोक ने शिलालेखों को आपस में मिलाकर अपने लोगों के साथ संवाद करने की कला को दिखाया। मुगल काल में भी दीवान-ए-आम की व्यवस्था थी। हर सच्चे और अच्छे धार्मिक विश्वास में सत्य, धैर्य और दृढ़ता से संवाद स्थापित करने को प्रमुखता दी जाती है। उन्हें पूर्वोत्तर भारत के अलगाववादी नेताओं से प्रेरणा लेनी चाहिए जिन्होंने लम्बे हिंसक संघर्ष के बाद संवाद का रास्ता अपनाया। कश्मीरियों को भी इसी दिशा में प्रयासरत होना चाहिए। लेकिन वे अपनी समस्याओं से कश्मीरी पंडितों को अलग नहीं कर सकते। यदि कोई हजारो कश्मीरी पंडितों की हत्या और उन्हें भागने पर मजबूर करने को उचित मानता है तो वह पैलेट गन के छर्रों का नहीं, सीो सीने में गोली का हकदार है। आखिर कोई भी विवेकशील व्यक्ति समझ सकता है कि अपना घर-जमीन, व्यापार छिनने। यहां तक अपने परिवार की हत्या होने के बाद भी किसी कश्मीरी पंडित ने आतंकवाद की ओर देखा तक नहीं। क्या हम यह नहीं समझ सकते कि अपना सब कुछ खो देने के बाद भी वह कश्मीर सहित पूरे भारत को अपना देश और यहाँ के समस्त नागरिको को अपना मानता है।
जैसाकि राज्यसभा में कांग्रेस के नेता भी मानते हैं, मीडिया की भूमिका भी उचित नहीं रही। देशहित को राजनैतिक हित अथवा किसी के व्यवसायिक हितों के लिए कुर्बान नहीं किया जा सकता। हां, देशहित में बड़े से बड़े व्यक्तिगत और राजनैतिक हितों की बलि बिना झिझक, बिना देरी दी जा सकती है। कश्मीर में शांति ही कश्मीर की सभी समस्याओं का समाधान है। क्या यह सत्य नहीं कि ‘नापाक’’ पड़ोसी के इशारे पर उसके चंद भाड़े के टट्टू पुरसुकून माहौल को खराब करने के बहाने में तलाशते रहते है। ऐसे में अगली सुबह कुछ और बेहतर करने के सपने देखते हुए सुख की नींद सोया आम कश्मीरी जब जागता है तो वह स्वयं को कर्फ्यू के कारण घर में नजरबंद पाता है। हर घटना हजारों पर्यटकों को रोक देती है। जिससे सैंकड़ो होटल, डल झील के शिकारें छटपटाकर रह जाते हैं। कश्मीर के हर नागरिक को यह समझना होगा कि आखिर वे कौन लोग है जो कश्मीर के लोगों की रोजी-रोटी, खुशहाली छीनते हैं। उन लोगों को पहचानना जरूरी है जो धरती के स्वर्ग कश्मीर की ठण्डी हवाओं को असहय भाप बनाते हैं। वे लोग निश्चित रूप से कश्मीर के शुभचिंतक नहीं हो साकते तो कश्मीरी खून को गुमराह कर आत्मघाती बनने की राह पर धकेलते हैं। जिस दिन कश्मीरी नौजवान इस सच्चाई को समझेगा, कश्मीर दुनिया का सबसे खुशहाल प्रदेश होगा। कश्मीर को बचाना है तो उसे पाकिस्तान द्वारा मजहबी कट्टरता की राह पर धकेलने से बचाना होगा। लेकिन यह तभी संभव है जब हमारे राजनैतिक नेता अपने तुच्छ राजनैतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर यह समझने को तैयार हहो जाये कि कश्मीर राजनैतिक खेल का मैदान नहीं बनना चाहिए। ऋषियों, मुनियों, पीर-पैगम्बरों की इस धरती को रक्त से लाल होने से बचाने की जिम्मेवारी हर भारतीय की है। सरकार को भी ‘पाकिस्तानी हस्तक्षेप’ का राग अलापते रहने की बजाय इस हस्तक्षेप को रोकने और मुंहतोड़ जवाब देने का साहस दिखाना चाहिए। सत्ता बेशक सम्मान और संतुष्टि देती है लेकिन उसे समझना चाहिए कि केवल तर्क, मुहावरों और जुमलों से सत्ता पाई या बचाई तो जा सकती है लेकिन राष्ट्र को उसकी शक्ति ही बचा सकती है।
राष्ट्र रक्षा भाषणों- जुमलों से नहीं शक्ति से ही संभव
Reviewed by rashtra kinkar
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