शक्ति पूजा- ‘न भय काहू को देत, न भय मानत आन’
शरदीय नवरात्र के बाद विजयादशमी यानि देवी पूजा के बाद शस्त्र पूजा। कहा जाता है कि रावण से युद्ध से पूर्व राम ने शक्ति की देवी दुर्गा की पूजा कर रावण पर विजय प्राप्त की थी। महाकवि निराला जी ने ‘राम की शक्ति पूजा’ में भी इसका विस्तृत उल्लेख किया है। आश्विन शुक्ल दशमी अर्थात् विजयादशमी को केवल राम की रावण पर विजय तक सीमित नहीं है। कहा जाता है कि अर्जुन ने धनुर्विद्या की निपुणता के आधार पर, इसी दिन स्वयंवर में द्रोपदी का वरण किया था। महाभारत का युद्ध भी इसी दिन प्रारंभ होने की किवदंति भी है। राजा विक्रमादित्य ने इसी दिन देवी हरसिद्धि की आराधना, पूजा की थी। छत्रपति शिवाजी ने भी इसी दिन देवी दुर्गा को प्रसन्न कर तलवार प्राप्त की थी। तभी से मराठा अपने शत्रु पर आक्रमण की शुरुआत दशहरे से ही करते थे। दक्षिण के प्रसिद्ध विजयनगर साम्राज्य के कृष्णदेव राय के दशहरे एवं जुलूस का वर्णन तत्कालीन पुर्तगाली यात्री पेई ने भी किया है। इस दिन कुश्ती, मुक्केबाजी एवं हाथी दंगल आदि कार्यक्रमों का आयोजन भी होता था। मैसूर में तो आज भी दशहरे पर विशेष शोभायात्रा आतिशबाजी आदि होती है। केवल यही नहीं ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें शस्त्र पूजा-शक्ति पूजा का उल्लेख है।
शक्ति पूजा आज भी जारी है। हाँ, अब इसका स्वरूप और समय जरूर निश्चिित नहीं रहा। हर वर्ष 26 जनवरी यानि अपने गणतंत्र दिवस पर हम अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर आखिर क्या करते हैं? यह भी सम्पूर्ण राष्ट्र की ओर से उसके सर्वोच्च सेनापति राष्ट्रपति द्वारा शक्ति पूजा ही है। इससे भी न केवल हमारे सैनिकों बल्कि समस्त देशवासियों में आत्मविश्वास का संचार करने वाली शक्ति जागृत होती है।
हमारा दर्शन है- ‘न भय काहू को देत, न भय मानत आन।’ हमारे लिए शांति और शक्ति एक दूसरे के प्रतिगामी नहीं परस्पर सहयोगी हैं। शांति के लिए शक्ति जरूरी है। क्षमा भी वीरों की ही शोभा पाती है। संास्कृतिक और संसाधनोें से सशक्त व्यक्ति और समाज ही शक्तिशाली माना जाता है। दीन-हीन द्वारा किसी को क्षमा करना उपहास का पात्र संमझा जाता है। स्मरण रहे- शक्ति केवल शस्त्र में ही नहीं होती बल्कि हमारे मन-मस्तिष्क में भी होती है जो सजगता और तत्काल प्रतिक्रिया के अभ्यास से अपनी तेजस्विता कायम रखती है वरना उसका निस्तेज होना तय है।
इन दिनों ‘सर्जिकल आपरेशन’ की चर्चा है। आखिर इसे आप शक्ति पूजा से पृथक कैसे कर सकते हैं? हाँ, कुछ लोगों के लिए यह बेकार की कवायद हो सकती है लेकिन दुश्मन के घर में जिस तरह का मातम छाया हुआ है वह इस शक्ति पूजा का प्रभाव है। बहुत संभव है एक आपरेशन काफी न हो लेकिन शांति की कामना करने वाले लगातार साधना करने का संकल्प और सामर्थ्य भी रखते हैं।
.....और हाँ, शक्ति के लगातार विस्तार पाते स्वरूपों से हमारा लगातार सम्पक्र भी आवश्यक है। आज ज्ञान-विज्ञान सबसे बड़ी शक्ति है। शस्त्र का ज्ञान बेशक कुछ लोगों को होना ही पर्याप्त है लेकिन ज्ञान का मार्ग तो प्रत्येक नागरिक के लिए आवश्यक है। ज्ञान के बिना मनुष्य को ‘ते मृत्युुलोके भूविभार भूता, मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति’ की संज्ञा दी गई है। आज जिस तेजी से हमारा जीवन बदल रहा है वह विज्ञान का ही चमत्कार है। अतः वैज्ञानिक, विचारक भी बदलते दौर के सैनिक हैं।
अर्थ के बिना जीवन के व्यर्थ होने की बात न स्वीकारना सैद्धांतिक रूप से प्रशंसा पा सकता है पर व्यवहारिक रूप से अर्थ ही न केवल हमारे जीवन को बल्कि हमारे समाज और राष्ट्र को अर्थवान बनाता है। आज अपनी अर्थप्रधानता के कारण ही तो कुछ देश पूरी दुनिया पर थानेदारी कर रहे हें। केवल आज से ही बल्कि आदिकाल से लक्ष्मी पूजन होना अर्थ के महत्व के अतिरिक्त आखिर क्या है? विद्या ददाति विनयं, विनयादयाति पात्रतां। पात्रत्वाद धनमाप्नोती, धनाद धर्मस्ततः सुखं।। अर्थात् विद्या से विनय - विनय से पात्रता, पात्रता या योग्यता से धन, धन से धर्म एवं धर्म के पालन से सुख की प्राप्ति होती है। स्पष्ट है कि अर्थ अर्थवान ही है। हाँ, साधन शुद्धि जरूरी है। गलत रास्ते से आया धन शक्ति नहीं, संदेह बढ़ाता है जो अंततः पतन की ओर ले जाता है।
भारतीय संस्कृति हमारी शक्ति है। भारतीय भाषाएं हमारी शक्ति है। हमारे किसान, हमारे मजदूर भाई शक्ति के स्रोत हैं। जाति, धर्म, क्षेत्र के भेदभाव से ऊपर उठकर एकजुट, सशक्त भारत के निर्माण का संकल्प भी शक्ति पूजा की प्रथम अवस्था है। इस देश के आखिर जन को साथ लिए बिना शक्तिशाली भारत की कल्पना अधूरी है। शक्ति का पूजन व्यर्थ है। हमें स्वीकारना ही होगा कि सबका साथ, सबका विकास शक्तिपूजा की आरती है। अरदास है। नमाज है। मंगलमंत्र है।
आज विजयदशमी, दशहरा, शस्त्रपूजन के अवसर पर गुरु गोविंद सिंह जी की चर्चा भी जरूरी है क्योंकि इन दिनों हम उनकी 350वीं जयन्ती मना रहे हैं। गुरुजी ने शस्त्र नाम माला नामक ग्रन्थ में शताधिक शस्त्रों का उल्लेख करते हुए उन्हें अध्यात्मिक गरीमा प्रदान की है। आपने कहा है-
नमस्कार सी खड्ग कउ करौ सुहित चित लाई।
पूरन करौ गिर थ इह तुम मोहि करहु सहाई।
जाप साहब में शक्तिशाली होने और शस्त्र का महत्व बताते हुए कलगीधर दशमेश पिता उद्घोष करते हैं- नमो शस्त्र पाणे, नमो अस्त्र माणे.
नमो परम ज्ञाता, नमो लोकमाता।
गरब गंजन, सरब भंजन,
नमो जुद्ध जुद्ध, नमो कलह कर्ता. नमो नित नारायणे क्रूर कर्ता।
----विनोद बब्बर 9868211911
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