गाँठ गाँठ रस होय Karva Chouth Specail



इधर दो दिन से सर्वत्र हास-परिहास, व्यंग्य, वक्रोक्तियां बिखरी हुई है। सच ही है जितनी कविताएं, व्यंग्य, चुटकुले पति-पत्नी की नोंक झोंक पर है उतनी शायद ही किसी अन्य विषय पर हो। कारण हजार हो सकते हैं लेकिन मुख्य कारण है इस रिश्ते जैसी जीवान्तता शायद ही किसी अन्य रिश्ते में हो। लगभग हर पत्नी कहती है- ‘ये तो मैं ही हूं जो आपके जैसे के साथ निभा लिया। अगर कोई दूसरी होती तो .......!’
पति भी कहां कम है- ‘रहने दे, तेरी जैसी छत्तीस मिलेगी।’
ध्यान से देखिये। अगर दूसरी की जरूरत पड़े तो पति को उसी जैसी ही चाहिए।  एक विदूषी से हमने हर पत्नी की उपरोक्त गर्वाेक्ति  के बारे में जानना चाहा तो उनका कहना था, ‘दूसरी होती तो.... तो... तो .. !’ में कुछ गलत कहां है। एक बार एक शरीफ पुलिस अधिकारी ने एक डाकू को कहा, ‘खबरदार! एक कदम भी आगे बढाया तो.. तो..!’  डाकू ने पूछा, ‘तो.. तो.. क्या?’ शरीफ का जवाब था, ‘तो.. तो.. मैं दो कदम पीछे हो जाऊंगा।’ अरे भाई भारतीय नारी है। दूसरी होती तो वह भी इन्हीं संस्कारों से युक्त होती। वह भी निभाती लेकिन कहती जरूर, ‘अगर कोई दूसरी होती तो.....!’ आप कम से कम इस मामले में हम महिलाओं के अधिकार पर प्रश्न चिन्ह न ही लगाये तो ठीक वरना..... वरना.....!’
मामला फिर धमकी पर आकर अटक गया तो अपुन ने चुप्पी साधने में ही भलाई समझी। सुना है उनके पास सर्जिकल आपरेशन के लिए चिमटा, बेलन जैसे इसे अमोघ अस्त्र-शस्त्र होते हैं।
हमारे एक मित्र विदेश गये तो पत्नी को साथ ले गये। पत्नी दिनभर में कई बार दुलारती, ‘ध्यान से खाना नहीं खा सकते क्या? देखो कपड़ों पर सब्जी लग गई है।’ तो कभी ‘देखो कपड़े गंदे कर लिए। आपको तो बैठने तक की तमीज नहीं, बिन देखे बैठ जाते हो।’ इसे संयोग कहिये या दुर्याेग कि उस यात्रा में में भी साथ था। एक दिन हमारे मित्र ने बाजार से डरते-डरते कुछ खरीद लिया। लेकिन रास्ते में मुझे बोले- आज भी जाते ही सुनना पड़ेगा- ‘आपकी तो पसंद ही इतनी घटिया है कि बस ...! बिना सोचे समझे जो मिले घर ले आते हो! ’ मैंने उन्हें उन्हें एक गुरु मंत्र दिया। यकीन मानिये, उस दिन के बाद उन्हें ‘आपकी तो पसंद ही..........!’ वाला जुमला फिर कभी नहीं सुनने को नहीं मिला।  आपके दिल की धड़कन बता रही है कि आप भी वही ‘गुरुमंत्र’ लेना चाहते हो जिसने हमारे मित्र की पसंद को घटिया बताने से बढ़िया में बदला। वैसे बता दू मुफ्त की दवा असर नहीं करती इसीलिए तो आजकल बाबाओं के रेट है। पहले से ऑनलाइन, अप्वाइंटमेंट, पेमैंट लेकर मिलने का प्रचलन है। लेकिन अपुन फिलहाल इतने व्यापारी नहीं है। मुफ्त में भी कोई नहीं पूछता तो... तो......! खैर छोडिए। मतलब की बात पर आते हें। मैंने उन्हें समझाया- अब जब भी आपकी देवीजी कहे, ‘आपकी तो पसंद ही..........!’ तो आप फौरन कहना, ‘ठीक ही कह रही हो। मुझे बढ़िया की ही आदत होती तो सोच लो आप भी यहां न होती।’ मंत्र मारक था। उस दिन तो काम कर गया। आप इसका उपयोग अपने रिस्क पर चाहे तो कर सकते हैं। बिना कुछ लिए-दिए  गारंटी- वारंटी का कोई प्रावधान नहीं है।
इधर एक भुगतभोगी ने पूछा, ‘चौथ शब्द को परिभाषित करें। अक्सर सुनने में आता है कि फलां चौथ वसूली में धर लिया गया। क्या चौथ वसूली और करवाचौथ में कोई संबंध है?’ प्रश्न भयंकर था। उत्तर देने पर दक्षिण की ओर मुंह करने की नौबत भी आ सकती थी इसलिए कया जरूरी है दक्षिणायण को आमंत्रित किया जाय। अपुन इस मामले में बिल्कुल अनाड़ी है। अगर शब्दावली चयन आयोग से कुछ संबंध रखते है तो इस अंतर पर प्रकाश डाल सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे उत्तर आपके अंतरतम से ही आना चाहिए।
एक साहब का दर्द छलका, ‘बाजार तो महिलाओं के कारण ही चल रहे है। फैशन के नाम पर कीमती डैस, कास्मैटिक, जेवर, ब्यूटर पार्लर और न जाने क्या-क्या। कभी खरीददारी का जरूरत से संबंध हुआ करता था। आज का खरीददारी जरूरत का नहीं, जुर्रत का मामला बन गया है। जवानी से बुढ़ापे तक अपुन की वही पेंट कमीज। लेकिन उनका तो हर दिन नया फैशन। हे राम! कुछ करो!’
अनचाहे ही मुंह से निकला, ‘आपने रांॅग नम्बर डायल कर दिया है। रामजी क्या करेंगे? जवानी में वनवास में रहे। लौटे तो उसे वनवास दे दिया। उन्हें तो शायद फरमाईशों और जरूरतों का अनुभव भी नहीं हुआ होगा।’
खैर चलते-चलते इतना और बताना चाहता हूं कि हमारे एक परिचित के दूसरा पुत्र हुआ तो पहले पुत्र के जन्म से भी अधिक प्रसन्न दिखाई दिये। हमने पूछा तो गहुत गहरी बात कही, ‘बंधु, बेशक कहने को सभी जिंदगी भर प्यार, मोहब्बत मांगते हैं लेकिन जिंदगी सिर्फ प्यार के सहारे नहीं चल सकती। भोजन की थाली में सिर्फ मीठा नहीं होता। कुछ चटपटा भी चाहिए। कुछ मिर्च भी होनी चाहिए।  आदमी आदमी है। न जाने कब, दिमाग घूम जाये और बिना बात सिर पर सवार होने की सोच ले। एक बेटा आखिर झगड़ता भी तो किससे झगड़ता। पड़ोसी से नांेक-झोंक करे तो हाथ पाव टुड़वाने से जेल जाने तक का खतरा है। अब दो भाई हो गये- एक दूसरे का सहारा बनेंगे और कभी मन हुआ तो आपस में.......!’
अपने मित्र की स्मृति को प्रणाम करते हुए आज करवाचौथ पर समस्त मातृशक्ति का अभिनन्दन करता हूं जो हमारे ‘जैसे-तैसे’ भाईयों, बेटों और उनकी इज्जत को ‘जैसे-तैसे’ बचाये हुई है। आप ही हमारी संस्कृति का प्राणाधार हैं। हमारी शक्ति है। हम सबकी प्रेरणा है। दुनिया की हर कविता आपके त्याग, समर्पण की प्रतिछाया है। हर संगीत आपकी भावनाओं का प्रकटीकरण है। ये ऋतुएं आपके पराक्रम ही कारण पूरे परिवार का बल और श्रृंगार बनती हैं। कोई माने या न माने लेकिन आदिमानव को ‘सुसंस्कृत’ इंसान केवल और केवल आपकी ममता और विश्वास ने बनाया है। समस्त मातृशक्ति के श्रीचरणो में नमन करते हुए रहीम को भी स्मरण करना चाहता हूं जिन्होंने कहा है-
जहाँ गाँठ तहँ रस नहीं, यह रहीम जग जोय।
मँड़ए तर की गाँठ में, गाँठ गाँठ रस होय।। -विनोद बब्बर (राष्ट्र-किंकर)
 कार्तिक कृष्ण चतुर्थी 2073 तदानुसार 19 अक्टूबर, 2016

जिन्हें करवाचौथ और चाँद के संबंध में जानना हो वे सुन लें। चाँद तो एक बहाना है असली मकसद तो यह बताना है कि बेशक घटते- बढ़ते रहो लेकिन अपनी चमक, अपनी शीतलता बरकरार रखे।  अपकार आकर्षण रहेगा तभी ईद से करवाचौथ तक पूछे जाओगे- पूजे जाओंगे। तुकबंदी होठों तक आ पहुंची है इसलिए-
चाँद जब निकलेगा तो मुलाकात होगी

तेरी रोशनी और मेरी शीतलता की बात होगी


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