बच्चों को नशे के गर्त में धकेलने वाले
हमारे देश के कर्णधार एक-दूसरे की टांग खिचाई में लगे है। उनकी ‘महान’ हरकतों को देखकर कहा जा सकता है कि उनके लिए राष्ट्र की सुरक्षा का अर्थ केवल अपनी कुर्सी की सलामती है तो राष्ट्र के भविष्य की उनकी परिभाषा अपने बच्चों अथवा खास चमचों के भविष्य तक ही सीमित है। ऐसे में देश के भावी कर्णधार कहे जाने वाले बच्चों का हित चिंतन न तो उनके एजेंडे में है और न ही उनके पास ऐसे ‘फालतू’ कामों के लिए समय वरना ‘बुर्के’ को ‘बंकर’ बताने वाले फेंकू और उसे नकारा घोषित करने वाली ‘पप्पू मंडली’ गुड़गांव की उस शर्मनाक घटना पर जरूर कुछ कहती जिसके अनुसार डीएलएफ सिटी सेंटर स्थित एक बार में शराब और हुक्का पी रहे लगभग एक सौ नाबालिग लड़के-लड़कियां पकड़े गए है। अपने बच्चों को इस स्थिति में देखकर हतप्रभ अभिभावकों के अनुसार बच्चे टयूशन अथवा फिल्म के बहाने घर से गए थे। पुलिस ने बार संचालक को तो गिरफ्तार कर लिया लेकिन सभी बच्चों को चेतावनी देकर उनके परिजनों को सौंप दिया। बताया जाता है ‘बज्ज इन बार’ में हर रोज ही ऐसी ‘सेक्स एंड स्मोक’ पार्टी आयोजित की जाती है। प्रस्तुत घटना एक छात्र द्वारा अपने जन्मदिन पर आयोजित पार्टी की है जहाँ फेसबुक के जरिए सभी को निमंत्रित किया गया था। पार्टी में सभी को तंबाकू, शराब और कबाब परोसा गया। बार से आधा दर्जन हुक्का बरामद होने का समाचार भी हैं।
जहाँ तक कानूनों का सवाल है हर पनवाड़ी की दुकान पर लटकी तख्ती बताती है कि 2003 से लागू कानून के अनुसार 18 साल या उससे कम उम्र के बच्चे के तम्बाकू खरीदने, बेचने पर प्रतिबंध हैं। गुटखा की बिक्री पर भी प्रतिबंध है। शराब, सिगरेट की हर डिब्बी से गुटखे के हर पैकट पर चेतावनी अंकित है- ‘....का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ लेकिन क़ानून की सरेआम धज्जियां उठाई जाती है। देश के दूर-दराज के पिछड़े क्षेत्रों में ही नहीं, राजधानी दिल्ली में भी न केवल गुटखा बिकता है बल्कि बच्चे भी गुटखा खरीदते, खाते देखे जा सकते हैं। यदि कानून पालन की यह दशा है तो अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि हमारी अगली पीढ़ी की दशा कैसी होगी। आखिर युवा वर्ग में यह जागरूकता कौन भरेगा कि नशा रहित जीवन ही स्वस्थ जीवन है।
कटु सत्य है कि समाज का तथाकथित आधुनिक वर्ग शराब को समृद्धि और फैशन का प्रतीक समझता है। हर उत्सव, पार्टी में शराब की उपस्थिति अनिवार्य है। आज घर के ड्राइंगरूम में ‘बार’ का होना संपन्नता की निशानी मानी जाती है। लाखों की विदेशी शराब से घर को सजाने वाले नहीं जानना चाहते कि उनके अपने बच्चों पर इसका क्या प्रभाव होगा। वे कब समझेगे कि आधुनिकता का अर्थ अपनी सभ्यता संस्कृति का हनन नही हो सकता। चलो नवधनाढ़य लोगों का तो जो होगा, सो होगा- मध्यवर्ग का युवा भी चकाचोंध के इस दलदल में घसीटते हुए इसका शिकार हो जाता है। यह रास्ता उन्हें आर्थिक तंगी से बर्बादी के मार्ग पर ले जाता है जहाँ से वापसी असेभव नहीं तो कठिन जरूर है। अफसोस की बात तो यह है कि वहीं दूसरी और हम देखते हैं कि विद्यालय से महाविद्यालय तक हर जगह नशा माफिया का जाल बिछा है जो मासूमों को अपनी जाल में फंसा उन्हें नशाखोर बनाते हैं और वहीं से शुरू होती है बर्बादी की दास्तान।
हमेशा जोश और जुनून से सराबोर रहने वाली युवा पीढ़ी ही हमारा भविष्य है। आखिर किसी देश की युवा शक्ति ही उसकी सबसे बहुमूल्य सम्पति है। हरदम कुछ नया कर गुजरने की चाह रखना। नित नई-नई चुनौतियों का सामना करने को तैयार रहना और संकल्प शक्ति ऐसी कि जो एक बार ठान लें लाख मुश्किलें भी उसे बदल न पाएं। अगर वह चाहे तो समाज की रूप-रेखा बदल सकती है। यह सत्य है कि युवावस्था जीवन की वास्तविकताओं से अनजान होती है। क्षणिक आनन्द की चाहत, फिसलन भरे रास्तों की भुलभूलैया, भटकन उन्हें विनाश की ओर ले जाती है। यह सर्वविदित है कि नशा समाज को दीमक की तरह चटकर जाता है। मादक द्रव्यों का सेवन शरीर को निष्क्रिय एवं अशक्त बना देता है। नशेड़ी परिवार और समाज के लिए बोझ बन जाता है, जिस पीढ़ी के कंधों पर देश की जिम्मेवारी होनी है यदि वह इन दुर्व्यसनों की शिकार हो गई तो समाज एवं राष्ट्र के लिये उसकी उपादेयता शून्य हो जाती है। वह अपराध की ओर अग्रसर होकर अभिशाप बन जाता है।
आज रईसजादों का एक बड़ा वर्ग ‘रेव पार्टियों’ में मस्ती ढूंढ रहा है, जहां नशीली दवांए, अर्धनग्न बालाएं और मदमस्त संगीत की धुनें बिगड़े रईसजादों को परी लोक का झूठा अहसास कराती हैं। राजधानी अथवा आसपास के नगरों तथा महानगरों में अवैध तरीके से नशे का कारोबार कोई नया नहीं है लेकिन अब यह कारोबार ‘रेव पार्टियों’ के जरिए होने लगा है। फार्म हाऊसों या फिर गुप्त स्थानों पर होने वाली ये पार्टियां इस धंधे में लगे माफियाओं द्वारा आयोजित की जाती हैं जहाँ अर्धनग्न बालाएं हाथ में सजी आकर्षक ट्रे में नशीली दवांए परोसती हैं। युवा लड़के ही नहीं बल्कि लड़कियां भी कालेज व होस्टल से ही भयंकर नशे के शिकार बन रहे हैं। कोकीन की कीमत 3 से 6 हजार रुपये प्रति ग्राम बताई जाती है। जो युवा हर रोज इतना खर्चा नहीं कर सकते वे अनेक प्रकार के रसायनों से अपने शरीर को खोखला बना रहे है या फिर अपराध की ओर अग्रसर होकर अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की आशाओं पर तुषारपात कर रहे हैं। इनमें अधिकतर नशीले पदार्थ विदेशाों से तस्करी के जरिए आते हैं। अब यह तथ्य कोई रहस्य नहीं रहा कि आतंकवाद से नक्सलवाद तक देश में व्याप्त हर मुसीबत को नशे से प्राप्त धन से बल मिलता है। ..और यह भी सभी जानते हैं कि नशे की तस्करी में अब तक पकड़े जाने वाले विदेशियों में नाइजीरिया के नागरिक ज्यादा हैं लेकिन उसके बावजूद दिल्ली में इनकी संख्या लगातार तेजी से बढ़ रही है।
नशा मात्र एक समस्या नहीं बल्कि अनेक समस्याओं का समूह है। हमारे मनीषियों ने नशे को क्रोध ,बुद्धिनाश, यश का नाश, स्त्री एवं बच्चों के साथ अत्याचार और अन्याय ,चोरी , असत्य, दुराचार, पुण्य का नाश, और स्वास्थ्य का नाश जैसे आठ प्रकार के पापों का उत्पत्तिकर्ता घोषित किया है। आये दिन होने वाली सड़क दुर्घटनाओं का मुख्य कारण नशे का प्रचलन है तो नित्य समाचारपत्रों में कथित आधुनिक मोहल्लों में कालगर्ल के रूप में कम उम्र छात्राओं की गिरफ्तारी भी कुछ ऐसा ही संकेत है। जो लोग इसे स्वतंत्रता घोषित करते हैं उन्हें ही तय करना चाहिए कि फिर स्वच्छन्दता किसे कहा जाए।
आज देशभर में नशे का बढ़ता ग्राफ चोरी -लूटपाट की घटनाओं में तेजी से वृद्धि का कारण बन रहा है तो 16 दिसम्बर को दिल्ली में हुआ शर्मनाक ‘निर्भया’ कांड भी चीख-चीख कर यही कह रहा है- ंनशे में डूबकर युवा पीढ़ी अपराधी बन रही है, उसे बचाओं। आज ऐसे प्रसंग किसी एक नगर विशेष तक सीमित नहीं रह गए है। हाँ यह बात अलग है कि हम अपने मुंह पर ताले लगाये मूकदर्शक बने स्वयं तक सीमित है- ‘हमें दूसरों से क्या लेना-देना?’ लगता है जैसे ‘जो हुआ उसे भूल जाओ, अपने काम से काम रखों’ की प्रवृति समाज को पनुंसक बना रही है। विडम्बना यह है कि छोटे-छोटे नकारात्मक मुद्दों पर हमारी सरकारंे व सामाजिक संगठन बहुत जोर शोर से आवाज उठाते हैंं लेकिन इस तरह की घटनाओ पर कभी भी प्रभावी ढ़ंग से आवाज तक नहीं उठाते। कुछ जागरुक लोग स्थानीय स्तर पर कहीं-कहीं जरूर कुछ थोड़े प्रयास दिखाई पड़ते है लेकिन इस बुराई को जड़ से मिटाने के लिए हम सभी को जागना होगा।
अफसोस कि गुड़गांव की अति घृणित घटना पर कहीं से कोई विरोध का स्वर सुनाई नहीं दिया। कहीं कोई कैंडल मार्च नहीं हुआ। कोई प्रदर्शन नहीं हुआ। इण्डियागेट पर सामान्य चहल-पहल देखकर लगता है कि सोशल मीडिया भी ‘चुनकर’ मुद्दे उछालने में विश्वास रखता है। क्या सर्वशक्तिमान कहे जाने वाली हमारी गुप्तचर व्यवस्था की सारी शक्ति राजनीति के गलियारे तक सिमटकर रह गई है? क्या हर छोटी-बड़ी गली तक वसूली के लिए पहुंचने वाली हमारी पुलिस नहीं जानती कि नशे का व्यापार कहाँ-कहाँ होता है? कहीं ऐसा तो नहीं- पाप की इस कमाई में उनका हिस्सा उनकी आंखों पर पट्टी बांधे रखता हो। क्या सत्ता के नशे में मद-मस्त हमारे शब्दवीर नेता नहीं जानते कि अंाखों पर पट्टी बांधने वाली गांधारी के अपने परिवार का क्या हस्र हुआ थां?
नेता तो नेता है। उससे ज्यादा आशाएं नहीं लगाई जा सकती पर आखिर हमारी संवेदनाओं को क्या हुआ? आखिर ‘मुझे इससे क्या’ के नपुंसक बंकर में हम स्वयं को कब तक सुरक्षित अनुभव करते रहेगे? हमें समझना ही होगा- गुड़गांव में पकड़े गये बच्चों में से बेशक आज हमारा अपना कोई न हो लेकिन कल निश्चित रूप से हमारा- आपका बच्चा भी इसका शिकार हो सकता है। क्या तब भी हम शतुरमुर्ग की तरह रेत में अपनी गर्दन घुसेड़े बैठे रहेंगे? हमें जागना ही होगा वरना बहुत देर हो जाएगी। क्या आचार्य चाणक्य ने ठीक नहीं कहा था- इस राष्ट्र को आक्रांतों की दुर्जनता से उतनी हानि नहीं हुई जितनी स्वजनों की निक्रियता से हुई है।’ (लेखक - डा. विनोद बब्बर साहित्यकार एवं पूर्व प्रधानाचार्य हैं)
बच्चों को नशे के गर्त में धकेलने वाले
Reviewed by rashtra kinkar
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