औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया --डॉ. विनोद बब्बर
पिछले दिनों फ्रांस की महिला अधिकार मंत्री का यह वक्तव्य था कि वह यूरोप से वेश्यावृत्ति मिटाने और मानव तस्करी समाप्त करने के उपाय खोजने के लिए विशेषज्ञों का एक सम्मेलन बुलाना चाहती हैं। ज्ञातव्य है फ्रांस में वेश्यावृत्ति अवैध नहीं थी लेकिन 1946 में वेश्यालय को गैर कानूनी करार दिया गया था। 2003 के एक कानून के अनुसार वेश्यावृत्ति का अड्डा समझे जाने स्थान पर खड़ा होना अथवा भड़काऊ कपड़े पहनने को अवैध करार दिया गया था। यह जानना दिलचस्प होगा कि स्वीडन, नॉर्वे और आइसलैंड जैसे कई यूरोपीय देशों में वेश्या के ग्राहक को जेल की सजा का प्रावधान है जबकि जर्मनी में वेश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा प्राप्त है। वहाँ नगरपालिका द्वारा इसका नियमन किया जाता है।
जब फ्रांस की मंत्री वेश्यावृति समाप्त करने की योजना बना रही है ठीक उसी समय स्पेन की एक कंपनी ने वेश्यावृत्ति के लिए कोर्स आरंभ कर दुनिया को चौका दिया। वेलेनिका की यह कंपनी वेश्यावृत्ति के लिए प्रोफेशनल कोर्स और उसके बाद जॉब की गारंटी का दावा भी कर रही है। डेली मेल के अनुसार 100 यूरो फीस में वेश्यावृति का इतिहास, कामसूत्र के बेहतरीन उपयोग आदि के बारे में शिक्षा दी जाएगी। प्रतिदिन दो घंटे दिये जाने वाले इस एक सप्ताह के कोर्स के लिए 19 से 45 साल के 95 लोगों ने पहले ही सप्ताह दाखिला लिया। कंपनी सुरक्षित और कानूनी तरीके से काम करने वाले सेक्स वर्करों को तैयार करने का दावा कर रही है।
वेश्यावृत्ति एक ऐसा विषय है जिसपर लोग बात करने से संकुचाते हैं जबकि यह आदिकाल से सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ-साथ तेजी से पनपी एक बुराई है जो आज भी लगभग सारे विश्व में जारी है। हाँ यह बात अलग है कि आधुनिक समाज मंे वेश्यावृत्ति को अलग-अलग नामों और रूपों में जाना जाता है। यह विश्व के प्राचीनतम धंधों में से एक है। भारत में इन्हें ‘गणिका’ के नाम से पुकारा जाता था। हमारे प्राचीन भारतीय साहित्य में इसका विस्तृत वर्णन मौजूद है। बेबीलोन के मंदिरों से हमारे यहाँ मौजूद देवदासी प्रथा और सामंती युग में गुलामों के रूप में खरीद-फरोख़्त तक वेश्यावृति का प्रचलन रहा था। एक युग में वेश्याओं को संपदा और शक्ति की प्रतीक माना जाने लगा। ‘वैशाली की नगर वधु’ की दास्तान हमारे इतिहास का हिस्सा है तो मुगलों के हरम में ढ़ेरों ‘लोंडियां’ रहती थीं। यह वह दौर था जब नारी को विलासिता की वस्तु मानकर और कामुकता की कठपुतली समझकर अपनी अंगुलियों से जब जैसे चाहा नचाया, रस निचोड़ा और झूठन समझकर फेंक दिया। अंग्रेजों के भारत में आगमन के बाद इस कुप्रथा ने धंधे का स्वरूप धारण किया और वेश्यालय बनने लगे। आज कोठों से निकल कर देह व्यापार मसाज पार्लरों, इन्टरनेट के माध्यम से एस्कार्ट सर्विस तक खूब फल-फूल रहा है। गरीब देशों जिनमें थाइलैंड, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि शामिल है सेक्स पर्यटन के लिए जाने जाते हैं। आज अनेक देशों की युवतियां वेश्यावृत्ति के जरिए कमाई करने के लिए भारत की ओर रूख कर रही हैं।
वेश्यावृति की चर्चा आगे बढ़ाने से पहले मैं अपने स्वर्गीय मित्र को स्मरण करना चाहूंगा जो दुनिया से बुराईयां मिटाने का जनून को लिए जीये और इसी जनून के खातिर इस संसार से चले गए। अपनी जवानी में ही राजेन्द्र भाई एक ऐसी संस्था से जुड़े जो वेश्यावृति को जड़ से मिटाना चाहती थी। वह छुट्टी के दिन रेडलाईट क्षेत्रों में जाकर वेश्याओं से राखी बंधवाते और उनसे यह कार्य छोड़ने का संकल्प करवाते। यह 1977 की बात है, राजेन्द्र जी की एक विशेषता था कि वह अपनी दिनचर्या की जानकारी हर शाम मुझे दिया करते थे। मैं कई बार उसका मजाक भी उड़ाता लेकिन वह अपने काम में लगे रहे। संयोग से एक दिन मुझे पुरानी दिल्ली जाना था। रास्ते में राजेन्द्र जी से मुलाकात हो गई तो वे उस दिन मुझे भी अपने साथ उस बदनाम बस्ती में ले गए। मन में लोकलाज का डर लिए मैं उनके साथ उनकी ‘वेश्या बहन’ के पास चला तो गया लेकिन वहाँ पहुंचते ही जो हुआ उसकी याद भी रोंगते खड़े कर देती है। वह ‘बहन’ अपनी दास्तान सुना ही रही थी कि गुंडो ने मला कर दिया। वह लहूलुहान हो गई लेकिन हमें बचाने की जुगत लड़ाती रही। उसने ‘खुदा’ का वास्ता देकर हमें वहाँ से भगाया और फिर कभी न आने की कसम भी दी। मैं तो दुबारा वहाँ जाने का साहस न कर सका पर मेरा मित्र किसी दूसरी मिट्टी का बना था। एक दिन सड़क दुर्घटना ने हमसे उस जनूनी मित्र को छीन लिया। लोग कहते रहे कि यह सब गुंडों का किया धरा था। सत्य ईश्वर जाने लेकिन मैं उस सत्य की बात अवश्य करना चाहूंगा जिसकी खोज के लिए उसने प्राण न्यौछावर तक कर दिये।
मेरा अनुभव है कि नियमित रूप से ‘वहाँ’ जाने वाले भी ‘वहाँ’ की चर्चा करने से बचते हैं लेकिन आज जब ‘समाज कल्याण’ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका इस विषय पर विशेषांक निकाल रही है मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ कि समाज के इस कलंक पर अपनी लेखनी चलाऊं। इस संबंध में एक और अनुभव भी रहा है। वर्षों पूर्व राजस्थान के एक हाई-वे से गुजरते हुए एक सुनसान स्थान पर रास्ता लगभग जाम देखकर हमे भी अपना वाहन रोकना पड़ा। कारों को घेरे कुछ युवक खड़े थे। हमने सोचा शायद कोई दुर्घटना हो गई है लेकिन जो जानकारी प्राप्त हुई वह चौंकाने वाली थी। बताया गया कि पास ही एक गांव है जो वेश्यावृति के लिए जाना जाता है। यहाँ सड़क से ही ग्राहकों पर अधिकार की जद्दोजेहद शुरु हो जाती है। वे युवक भी ‘ग्राहक’ को अपने संग के लिए आपस में उलझ रहे थे। इस संबंध में मैं मानसिक पीड़ा और द्वंद्व में था कि अनेक रूढ़ियों के बारे में पता चला।
मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में “बाछड़ा” नाम की जाति के लगभग 150 गांवो में लड़की को उसके जवान होने से पहले ही खुद उसकी मां द्वरा ही वेश्यावृत्ति के लिए प्रेरित किया जाता है। प्रथम रात्रि के लिये बोली लगती है। और इस प्रकार लगभग हर लड़की इस दलदल में फंसकर रह जाती। इसी प्रकार गुजरात के बनासकांठा जिला की थराद तहसील के अंतर्गत आने वाले वाडिया गांव के सराणिया समुदाय के लोग लड़की के पैदा होने पर जमकर खुशियां मनाते हैं क्योंकि लड़की के जवान होने पर स्वयं उसके परिजन ही उससे वेश्यावृति करवाते हैं। कहा जाता है कि रजवाड़ों के समय सराणिया युवतियां युद्ध में सैनिकों और सेनापतियों के लिए मनोरंजन का माध्यम हुआ करती थीं। नाच-गाने के अतिरिक्त सेनापतियों और मुख्य सैनिकों की कामक्षुधा शांत करने के लिए वे स्वयं को प्रस्तुत करती थी। आश्चर्य है कि आज न रजवाड़े रहे और न ही अराजकता लेकिन यह समुदाय इस दलदल से निकल नहीं सका है। बताया जाता है कि देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरकार ने इन्हें भूमि उपलब्ध करायी ताकि वे खेती आदि करके अपना जीवन यापन कर सके लेकिन आसानी से पैसा कमाने की प्रवृत्ति कुछ लोगों में घर कर गई उसी का परिणाम है कि यह कुप्रथा आज भी जारी है। हाँ सरकार और सामाजिक संस्थाएं की सजगता के कारण अब यह सब खुलेआम नहीं होता। ऐसे भी मामले देखने में आए हैं जिसमें झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तरांचल में 12 से 15 वर्ष की कम उम्र की लड़कियों को भी वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से सटा दक्षिण 24 परगना जिले के मधुसूदन गांव में तो वेश्यावृत्ति को जिंदगी का हिस्सा माना जाता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि वहां के लोग इसे कोई बदनामी नहीं मानते। उनके अनुसार यह सब उनकी जीवनशैली का हिस्सा है और उन्हें इस पर कोई शर्मिन्दगी नहीं है। इस पूरे गावं की अर्थव्यवस्था इसी धंधें पर टिकी है।
यहाँ यह उल्लेख करना सामयिक होगा कि पिछले दिनों जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने अपनी एक तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि सरकार महिलाओं की तस्करी और सेक्स व्यापार पर लगाम लगाने में असक्षम हैं तो इसे क़ानूनी मान्यता क्यों नहीं दे देती। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ओलेगा तेलिस बनाम बंबई नगर निगम मामले (1985 एसएससी-3ए 535) में फैसला सुना चुका है कि कोई भी व्यक्ति जीविका के साधन के रूप में जुआ या वेश्यावृत्ति जैसे अवैध व अनैतिक पेशे का सहारा नहीं ले सकता।
भारत में अनैतिक व्यापार (निषेध) कानून 1956 में आया। इस कानून के अनुसार, वेश्यावृत्ति का अर्थ व्यावसायिक धंधे के लिए लोगों का यौन शोषण है। एक परिभाषा के अनुसार है- ‘किसी महिला द्वारा किराया लेकर, चाहे वह पैसे के रूप में लिया गया हो या मूल्यवान वस्तु के रूप में और चाहे फौरन वसूला गया हो या किसी अवधि के बाद, स्वछंद यौन-संबंध के लिए किसी पुरूष को अपना शरीर सौंपना ‘वेश्यावृत्ति’ है और ऐसा करने वाली महिला को ‘वेश्या’ कहा जाएगा।’ अन्य शब्दों में कहे तो ‘अर्थलाभ के लिए स्थापित संकर यौनसंबंध वेश्यावृत्ति कहलाता है। इसमें उस भावनात्मक तत्व का अभाव होता है जो अधिकांश यौन संबंधों का एक प्रमुख अंग है।’
वेश्यालय चलाने वाले, सहायता करने वाले व्यक्ति को पहले अपराध पर एक से तीन वर्ष तो दूसरे अपराध पर 2 वर्ष से 5 वर्ष तक की सजा व जुर्माना 2 हजार तक का प्रावधान है। वेश्यालय के लिए मकान किराये पर या किसी और तरह से देने वाले को भी दो वर्ष तक की सजा का प्रावधान है तथा 2000 रुपये रखने जुर्माना, दूसरी बार यही अपराध करने पर पांच वर्षाे तक की सजा व जुर्माना है। किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति के लिए खरीदना, लाना, लालच देना और उसको वेश्यावृत्ति के लिए ले जाना अपराध है और इसकी सजा 3 से 7 वर्ष है तो किसी को वेश्यावृत्ति में जबर्दस्ती धकेलने पर आजीवन कारावास का प्रावधान है। बच्चे(16 वर्ष से कम उम्र) की खरीद-बहलाकर लाने तथा वेश्यावृत्ति की सजा आजीवन कारावास तक है। नाबालिग जो 16 से 18 वर्ष के बीच की आयु का है तो उसके बारे में कम से कम सात वर्ष तथा ज्यादा से ज्यादा 14 वर्ष की सजा है। वेश्यावृत्ति के लिए आम जगहों पर ग्राहकों को तलाशना, फुसलाना, प्रदर्शन करना भी अपराध है, जिसकी सजा 6 महीने तक तथा जुर्माना 500 रुपये तक है या दोनों है।
कानून बनाने और कानून का उल्लंघन करने वालों को सजा देना पर्याप्त नहीं है। सरकार और समाज को सोचना होगा कि घोर निर्धनता तथा सामाजिक सरोकार और सुरक्षा का न होना ही दलालों को यह अवसर प्रदान करता है कि वे छोटे-छोटे लड़के-लड़कियों को शारीरिक दुरुपयोग में धकेल देते हैं। इन्हें रोक पाने पर ही लोगों का शोषण, क्रूरता बंद होगी और वे एक सही और उचित जिंदगी जी पाएंगे। कोई नहीं चाहता कि अपरिपक्व शरीर रोज तिल-तिल कर मरे और परिपक्व शरीर अपना अत्यधिक शोषण करवा कर अकाल ही काल का ग्रास बने। सचमुच इन लोगों की जिंदगी बड़ी छोटी और दुखदायी होती है। यह बार-बार के शोध अध्ययनों से सिद्ध हो चुका है कि गरीबी और घरेलू हिंसा का शिकार बच्चे और स्त्रियां आसानी से इस धंधे के दलदल में आसानी से फंस जााते हैं। राजस्थान तथा पश्चिम बंगाल के कुछ गांवों में घर का खर्च चलाने के लिए बच्चों और स्त्रियों को स्वेच्छा से वेश्यावृत्ति करते पाया गया है। वे भीख मांगते हैं लेकिन मौका लगते ही चुपके-चुपके शरीर भी बेचने की कोशिश करते हैं। कुछ कहते हैं कि इस काम को करने में कोई बुराई नहीं है। वे अपनी मजबूरी को ढकना चाहते हैं।
1970 में गुरु नारायण स्वामी ने केरल में पाया था कि घरेलू हिंसा ही स्त्रियों और बच्चों को घर से बाहर कर दर-दर भटकने तथा वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर करती थी। महाराष्ट्र में आत्महत्या करने वाले अनेक किसानों के बच्चे तथा स्त्रियां भी गरीबी की शिकार होकर मजबूरी में यह सब करने को विवश हुए। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 68 प्रतिशत लड़कियों को रोजगार के झांसे में फंसाकर वेश्यालयों तक पहुंचाया जाता है। 17 प्रतिशत शादी के वायदे में फंसकर आती हैं।
जहाँ तक व्यवस्था की क्षमता का प्रश्न है, कानून वेश्यावृत्ति को मिटाने के प्रयास नहीं करता, बल्कि सिर्फ वेश्यालय चलाने या उसके लिए घर किराए पर देने या वेश्या के लिए दलाली करने को जुर्म की संज्ञा दे देता है। फलस्वरूप, कोई भी कानून न तो स्वेच्छा से या अकेले वेश्यावृत्ति करने पर कोई पाबंदी लगा पाता था और न ही इस व्यापार की जड़ यानी खरीददार पर। मुंबई पुलिस के एक प्रकोष्ठ शाखा के सूत्रों के अनुसार पिछले वर्षों में 469 वेश्यालयों के मालिक पकड़े गए, पर उनमें से कुल दो दंडित हुए। इनमें से एक भी दलाल या गृहस्वामी नहीं था। दूसरी तरफ इसी दौरान पकड़ी गईवेश्यावृत्ति निरोधक कानून (सीता) के खंड 8(बी) के अंतर्गत पकड़ी गई 4,139 वेश्याएं में से हर एक को दंडित किया गया। इसी तरह से मसाज क्लबों या हेल्स स्पा के नाम से की जा रही अनैतिक गतिविधियां या संगठित देह व्यापार अपराध है। लेकिन इसके लिए लगाई जाने वाली कानूनी धाराओं में कई छेद हैं और अधिकतर धाराएं जमानती है।
मुझे नहीं लगता कि कोई भी नारी स्वेच्छा से इस धंधे में कदम रखती है। उसे कुछ लोग वेश्यावृत्ति करने को मजबूर करते हैं। यह तथ्य निर्विवाद है कि एक बार इस दुनिया में कदम रखने के बाद इससे बाहर निकलने के सभी रास्ते लगभग बंद नज़र आते हैं। इसके लिए हम और हमारा समाज नहीं तो कौन जिम्मेवार है। शायद यही वजह है कि ये सेक्स-वर्कर इसी नर्क में रहते हुए एडस जैसे भयंकर रोग का शिकार बनने को अभिशप्त है। वे यह भी जानते हैं कि एक आयु के बाद उन्हें पूछने वाला कोई नहीं होगा। ढ़लती उम्र उसपर रोग उन्हें जीते जी मौत सी यातनाएं झेलने के लिए विवश करता है। अगर इस धंधे में फंसी औरतों को जीविका के वैकल्पिक संसाधन उपलब्ध कराये जाए और उनके बच्चों की परवरिश और शिक्षा की व्यवस्था की जाए तो बहुत संभव है कुछ सुधार की आस जगे।
अफसोस की बात तो यह है कि उनकी मदद करने वालों को भी समाज लांछित करने से पीछे नहीं रहता जबकि उनके प्रति सम्मान का भाव होना चाहिए। वेश्यावृत्ति में फंसी औरतों को पूर्वाग्रह ग्रसित समाज स्वीकार नहीं करता ऐसे में वेे स्टॉक होम सिंड्रोम (जब पीड़ित यह मानने लगता है कि उत्पीड़क बुरा नहीं था) का शिकार होकर आत्महीनता की स्थिति में किसी तरह दिन काटने को विवश हो जाती है। वे मानने लगती हैं कि अब कुछ बदलाव नहीं सकता। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि जोें बचपन में यौन उत्पीडऩ का शिकार हुई हो यदि उनका मानसिक उपचार न करवाया जाए अथवा उन्हें उस दुःस्वप्न से मुक्त करने के सहानुभूति पूर्वक प्रयास न किये जाए तो उनके लिए कोई जीवन-मूल्य शेष नहीं रहता। आज जरूरत है हम नारी को भोग की वस्तु मानने की अपनी निकृष्ट सोच को हमेशा के लिए तिलांजलि देकर समाज से इस बुराई को मिटाने में अपना योगदान दे। क्या यह उचित नहीं होगा कि फिल्मों और विभिन्न टीवी चैनलों के भडकाऊ दृश्यों और विज्ञापनों को नैतिकता की ‘खुराक’ दी जाए। निश्चित रूप से इसका प्रभाव समाज के चरित्र पर पड़े बिना नहीं रहेगा।
और अंत में 1958 में बनी फिल्म साधना का यह गीत जिसके बोल साहिर लुधियानवी के हैं और स्वर दिया है कोकिल कंठी लता मंगेशकर ने। वास्तव में यह गीत ‘वेश्या बहन’ से सुनी उसकी दास्तां का चित्रण हैैः-
औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला, जब जी चाहा दुत्कार दिया
तुलती है कहीं दीनारों में, बिकती है कहीं बाज़ारों में
नंगी नचवाई जाती है, ऐय्याशों के दरबारों में
ये वो बेइज्ज़त चीज़ है जो, बंट जाती है इज्ज़तदारों में
औरत ने जनम दिया मर्दों को...
मर्दों के लिये हर ज़ुल्म रवाँ, औरत के लिये रोना भी खता
मर्दों के लिये लाखों सेजें, औरत के लिये बस एक चिता
मर्दों के लिये हर ऐश का हक़, औरत के लिये जीना भी सज़ा
औरत ने जनम दिया मर्दों को...
जिन होठों ने इनको प्यार किया, उन होठों का व्यापार किया
जिस कोख में इनका जिस्म ढला, उस कोख का कारोबार किया
जिस तन से उगे कोपल बन कर, उस तन को ज़लील-ओ-खार किया
औरत ने जनम दिया मर्दों को...
मर्दों ने बनायी जो रस्में, उनको हक़ का फ़रमान कहा
औरत के ज़िन्दा जलने को, कुर्बानी और बलिदान कहा
इस्मत के बदले रोटी दी, और उसको भी एहसान कहा
औरत ने जनम दिया मर्दों को...
संसार की हर एक बेशर्मी, गुर्बत की गोद में पलती है
चकलों ही में आ के रुकती है, फ़ाकों से जो राह निकलती है
मर्दों की हवस है जो अक्सर, औरत के पाप में ढलती है
औरत ने जनम दिया मर्दों को...
औरत संसार की क़िस्मत है, फ़िर भी तक़दीर की हेटी है
अवतार पैगम्बर जनती है, फिर भी शैतान की बेटी है
ये वो बदक़िस्मत माँ है जो, बेटों की सेज़ पे लेटी है
औरत ने जनम दिया मर्दों को...
औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया --डॉ. विनोद बब्बर
Reviewed by rashtra kinkar
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