रक्षाबंधनः इतिहास के झरोखे से आज तक
सावन का हर दिन त्यौहार होता है लेकिन सावन पूर्णिमा अर्थातृ इस माह का अंतिम दिन तो जैसे त्यौहारों की अनंत श्रृंखला का अनमोल मोती है। राखी संस्कृत शब्द ‘रक्षिका‘ का अपभ्रंश हैं। इसका अर्थ है- रक्षा करना, रक्षा करने को तत्पर रहना या रक्षा करने का वचन देना। बेशक भाई-बहन का प्रेम और बहन के प्रति भाई का कर्तव्य इसी एक दिन तक सीमित नहीं है परंतु श्रावणी, रक्षाबंधन, राखी, सलूनो, पहंुची जैसे नामों से जाने जाने वाले इस त्यौहार के साथ प्रेम, सद्भावना, साम्प्रदायिक एकता, सामाजिक सौहार्द की जितनी कथाएं जुड़ी हुई शायद ही कोई अन्य त्यौहार रक्षासूत्र के इस पर्व की बराबरी भी कर सकता हो।
वैदिक काल में श्रावणी पर्व का महत्व अत्यधिक था। इसी दिन गुरुकुल में विद्यार्थियों का विद्यारंभ संस्कार होता था, आचार्य विद्यारंभ दिवस के दिन ब्रह्मचारियों को रक्षा सूत्र के रुप में विद्याध्ययन पूर्ण करने का संकल्प सूत्र बांधते थे तथा पुराना यज्ञोपवीत उतार कर नवीन धारण किया जाता था। बेशक बदलते दौर में बहुत कुछ बदला है लेकिन जिन त्यौहारों ने हमारी संस्कृति को बचाए रखा है उनमें रक्षाबंधन प्रमुख है। सदियों चले आ रहे भाई बहनों के पवित्र प्रेम का साक्षी यह त्यौहार सारे भारत में समान उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता हैं।
इस पर्व के विषय में प्रचलित कथाओं के अनुसार देवताओं व दानवों के युद्ध के समय देवराज की पत्नी शची के अपने पति इंद्र को पहला रक्षासूत्र बांधा था। शची ने अपने पति की विजय कामना के लिए उसके दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र और चांवल-सरसों को बांधकर उनकी सुरक्षा और विजय की कामना की थी जिससे वे असुरों पर विजय प्राप्त कर सके थे।
एक अन्य किंवदंती के अनुसार शकुंतला को राजा दुष्यंत ने श्राप वश पहचानने से इंकार कर दिया। कण्व ऋषि के आश्रम में ‘भरत’ का जन्म हुआ तो ऋषि उसके हाथ में रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद दिया था, ‘मां-बाप और गुरू के अलावा तुम्हें स्पर्श करने वाले को यह रक्षा सूत्र सर्प बनकर डस लेगा‘। ज्ञातव्य हो बालक भरत शेर, चीते संग खेला करता था। एक दिन दुष्यंत वहां पहुंचा तो उसने बालक के नीचे गिरा हाथ से रक्षा कवच को पुनः बांध दिया। इस तरह बिछड़े दुष्यंत, शकुंतला और भरत के मिलन का कारण रक्षाकवच बना।
महाभारतकाल में द्रोपदी के श्रीकृष्ण की अंगुली पर पट्टी बांधने की कथा भी इस पर्व से जुड़ी हैं। कहा जाता है कि अंगुली पर बांधी पट्टी से कृतज्ञ श्रीकृष्ण ने बहन द्रोपदी का चीर इतना बढ़ाया कि दुःशासन परास्त हो गया। यही नहीं राजा बलि से भी इसका संबंध जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि विष्णु राजा बलि से भूमि दान में पाकर वामन रूपी में तीन पगों में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप ली। राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न विष्णु को उसकी इच्छा का सम्मान करते हुए दिन-रात उसके सामने रहना पड़ा। विष्णु के वापस न आने से परेशान लक्ष्मी ने नारद की सलाह पर बलि को रक्षासूत्र बाँधा और उपहार में विष्णु को पाकर अपने साथ ले जाती हैं। आज भी सभी धार्मिक अनुष्ठानों में यजमान को ब्राह्मण एक मंत्र (येन बधो बलि राजा दानवेन्द्र महाबलः तेन त्याम प्रतिबध्नामी माचल मचल) पढकर रक्षासूत्र बाँधते हैं जिसका अर्थ होता है, ‘जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली राजा बली को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं आपको बाँध रहा हुँ, आप अपने वचन से कभी विचलित न होना।’
युनान से विश्वविजेता बनने निकले सिकंदर से जुड़ा एक प्रसंग भारत और राखी की महत्ता बताता है। सिकंदर की प्रेमिका ने उससे पहले भारत पहुंचकर यहां के हिंदू राजा पोरस को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और सिकंदर को न मारने का वचन लिया। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया ही था कि रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रूक गए। अनेक पौराणिक प्रसंगों की तरह राखी के साथ महारानी कर्मवती द्वारा हुमायूँ को राखी भेजकर रक्षा को कहने का एक और ऐतिहासिक प्रसंग भी जुड़ा है। तो चन्द्रशेखर आजाद द्वारा एक मुंहबोली बहन की मदद के लिए अपनी गिरफ्तारी के लिए तैयार होने की मार्मिक कथा देशभक्त क्रांतिकारियों के उच्च चरित्र की बानगी है।
बरसात में हमारे शरीर में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं। कुछ रोग भी लग सकते हैं। अतः किसी समय राखी का अर्थ था छोटी-छोटी पोटलियों में जड़ी -बूटियों को धागे में पिरोकर हाथ में बांधा जाता था। इससे अनेक प्रकार की व्याधियों से बचाव संभव था। इसलिए कहा भी गया है-
सर्व रोगो ऋशमनं सर्व शुभ विनाशकम। सक्रिय क्रिते नान्देकम पाशमनं रक्षा कृता भवेत।
आज समय, काल, परिस्थितियों ने देश से परिवेश तक बहुत कुछ बदला है लेकिन राखी के प्रति उत्साह बरकरार है। हाँ परम्परागत सूत का धागा आज शानदार डिजाइनर राखियों में बदल चुका है। रेशम के धागाों से सोने, चांदी के तारों तक, हीरे जड़ित ब्रास्लेट से राडो घड़ियों तक बहुत कुछ बाजार में है। भौतिकता के प्रभाव ने बहनों की आपेक्षाओं को भी बढ़ाया है। जहां आर्थिक दबाब राखी की पवित्रता पर हावी होने लगते हैं वहां प्यार कम और प्रदर्शन ज्यादा हो जाता है ।
आपसी सौहार्द तथा भाई-चारे की भावना से ओतप्रोत रक्षाबंधन का त्योहार हिन्दुस्तान में अनेक रूपों में दिखाई देता है। महाराष्ट्र में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से जाना जाता है तो तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उङीसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इसे अवनी अवित्तम कहते हैं। कई स्थानो पर इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। नारियल और पुष्प चढ़ाये जाते हैं। माना जाता है कि नारियल में तीन आंखें होती हैं जो भगवान शिव के प्रतीक हैं। यह विशेष उल्लेखनीय है रक्षाबंधन के पवित्र दिन ही विश्व प्रसिद्ध अमरनाथ यात्रा छड़ी मुबारक के साथ संपन्न होती है। इस तरह सावन (श्रावण) माह का हर दिन अपने साथ एक इतिहास और परम्परा की धरोहर लिए न केवल भारतीय जनमानस अपितु नेपाल, भुटान सहित दुनिया के अनेक देशों के लोगों में उत्साह का संचार करता है।
रक्षाबंधन पर जब बहन हमारी कलाई पर राखी बांध रही तो उस क्षण हमें चिंतन करना चाहिए कि बेटियों को गर्भ में ही मार कर आखिर हम उनकी रक्षा का किस तरह का वचन देते हैं? हमारे अपने पाप के कारण लिंग अनुपात बिगड़ा हैं। ऐसे में कई भाइयों की कलाई सूनी रही क्योंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता ने इस दुनिया में आने से पहले ही मार दिया था। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे अक्षम्य अपराध के कारण हमारे बच्चों का त्यौहार भी सूना रहेगा? कहीं मेरा कन्या-पूजन धोखा तो नहीं? नहीं, नहीं, मैं कन्या-भ्रूण हत्या किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करूंगा। क्योंकि मैं जानता हूं कि केवल सरकार द्वारा सख्त कानून बनाने से नहीं बल्कि समाज के जागने से रक्षाबंधन का उल्लास हमेशा बना रहेगा। आपके, हमारे द्वारा किया गया यह संकल्प रक्षाबंधन को स्थायित्व और पवित्रता प्रदान करेगा
रक्षाबंधन पर जब बहन हमारी कलाई पर राखी बांध रही तो उस क्षण हमें चिंतन करना चाहिए कि बेटियों को गर्भ में ही मार कर आखिर हम उनकी रक्षा का किस तरह का वचन देते हैं? हमारे अपने पाप के कारण लिंग अनुपात बिगड़ा हैं। ऐसे में कई भाइयों की कलाई सूनी रही क्योंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता ने इस दुनिया में आने से पहले ही मार दिया था। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे अक्षम्य अपराध के कारण हमारे बच्चों का त्यौहार भी सूना रहेगा? कहीं मेरा कन्या-पूजन धोखा तो नहीं? नहीं, नहीं, मैं कन्या-भ्रूण हत्या किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करूंगा। क्योंकि मैं जानता हूं कि केवल सरकार द्वारा सख्त कानून बनाने से नहीं बल्कि समाज के जागने से रक्षाबंधन का उल्लास हमेशा बना रहेगा। आपके, हमारे द्वारा किया गया यह संकल्प रक्षाबंधन को स्थायित्व और पवित्रता प्रदान करेगा
विनोद बब्बर संपर्क-09868211911
रक्षाबंधनः इतिहास के झरोखे से आज तक
Reviewed by rashtra kinkar
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