पाकिस्तानः क्या अब भी कोई सबूत चाहिए?
आखिर सच्चाई होंठो पर आ ही गई। पाकिस्तान का पाप सिर चढ़ बोल रहा है। भारत वर्षों से पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने और आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर लगाने के आरोप नहीं सबूत प्रस्तुत करता रहा है लेकिन नापाकी शासक हर बार इसे नकारते रहे हैं। दुनिया का थानेदार अमेरिका भी भारत को लगातार संयम की सीख देता रहा है। लेकिन अब जबकि कारगिल के खलनायक और लम्बे समय तक पाकिस्तानी राष्ट्रपति रहे जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तानी चैनल को दिये एक इंटरव्यू में वे तमाम बाते सीधे-सीधे स्वीकार कर ली है तो क्या अब भी संयुक्त राष्ट्र संघ और अमेरीका को पाकिस्तान के विरूद्ध कार्यवाही करने के लिए कुछ ओर चाहिए?
कुछ समय पूर्व ‘हमने परमाणु बम शब-ए-बारात जैसे मौकों के लिए नहीं बनाए हैं’ का दम्भ भरने वाले मुशर्रफ ने सार्वजनिक रूप से स्वीकारा है कि पाकिस्तान आतंकवादियों को पैसा और ट्रेनिंग देता है, जिससे वे जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा दें। उन्होंने ही लश्कर- ए-तैयबा और हक्कानी बनाए तथा मुंबई हमलें के अपराधी हाफिज सईद को हीरो जैसा सम्मान दिया। लादेन, जवाहरी आदि को हीरो बताने वाला मानवता का दुश्मन मुशर्रफ साफ-साफ स्वीकारता है कि सोवियत संघ से लड़ने के लिए उन्होंने मुजाहिदीन तैयार किए। धार्मिक आतंकवाद को पाला-पोसा क्योंकि यह पाकिस्तान के लिए बहुत फायदेमंद था। इसे दुनिया को धोखा देने की पाकिस्तानी नीति कहें या विवशता मुशर्रफ ने यह भी कहा है कि अब समय बदल गया है। अब ये लोग (उनके पाले सांप) पाकिस्तान में ही हमले कर रहे हैं और पाकिस्तान खुद भुगतभोगी हैं।
ऐसा भी नहीं है कि जो मुशर्रफ ने अब कहा है उसे दुनिया पहले से न जानती हो। दुनिया की पल-पल की खबर रखने वाला अमेरिका जानकर भी अनजासन बना रहा। लेकिन दुनिया का हर बुद्धिजीवी सत्य को जानता है। यूरोप प्रवास के दौरान पाकिस्तानी मूल के एक लेखक को बहुत क्षुब्ध देखा। उन्होंने यहां तक कहा, ‘पाकिस्तान राष्ट्र है या धृतराष्ट्र? उसके कोई स्वीकृत आदर्श है या केवल विकृत मानसिकता ही उसे लगातार गर्त में ले जा रही है? दुनिया आगे बढ़ रही है मगर जमीन का यह बदनसीब टुकड़ा पीछे की ओर लौट रहा है। यदि सब कुछ अस्त- व्यस्त ही रहना है तो कोई वजह नहीं कि उसे पाकिस्तानं कहा जाए। आखिर है हालात तो नापाकिस्तान होने के हैं। रहनुमाओं की हरकतों के वज़ह से हम खुद को पाकिस्तानी बताते हुए शर्मसार होते है। शायद यही वज़ह है कि हमारे अपने लोग भी इज्जत बचाने के लिए खुुद को हिन्दुस्तानी बताते हैं।’ आखिर सच ही तो है जिन्ना के जन्नत के दावे पर यकीन करके जो लोग अपनी जन्मभूमि छोड़कर पाकिस्तान गए थे वे भी मुहाजिर बने पछता रहे है क्योंकि उनका अनुभव है कि जहन्नुम भी शायद इससे बेहतर होता हो।
हमारे नेता बार-बार दोहराते रहे हैं कि हम इतिहास तो बदल सकते हैं पर भूगोल नहीं बदल सकते। इसलिए पाकिस्तान को अच्छा पड़ोसी बनकर रहना चाहिए। हमने उसके हर दर्द को अपना समझा। उसके प्रति सहानुभूति रखी लेकिन वह तो एक अजूबा है। न कोई दिशा, न दशा। न कोई नीति, न रीत। जनता चुनती किसी भुद्दो या शरीफ को है पर राज करते हैं जिया या मुशर्रफ है। कहने को लोकतंत्र है पर वास्तव में वहां है क्या ये खुद उन्हें भी नहीं मालूम जो उसे ढ़ो रहे है। आज भी नवाज शरीफ की हैसियत सरकार के प्रवक्ता से भी गई गुजरी है। वह अपने चहेते को सेनाध्यक्ष नियुक्त करके भी उसी का हुक्म बजाने को विवश है। अब मुशर्रफ की स्वीकरोति के बाद किसी के लिए भी दिखावे का खंडन करने की संभावनाएं तक नहीं कि पाकिस्तान की पहचान आतंकवाद की एक नर्सरी के रूप में है जिसने कभी खाद पानी देने वाले अमेरिका तक को आतंकवाद का स्वाद चखाया। अगर अमेरिका अब भी शक्ति संतुलन के खेल में उलझा रहकर अथवा उसे सही राह पर लाने के नाम पर मदद देता रहा तो यह उसका ढ़ोंग ही समझा जाएगा। इसे मजबूरी से ज्यादा उसकी छल नीति भी कहा जा सकता है जो एक तरफ आतंकवाद के समूल नाश का संकल्प दोहराती है तो दूसरी ओर घोषित आतंकी राष्ट्र को मदद भी देती है। किसे याद नहीं जब ओबामा राष्ट्रपति बने तो प्रथम इन्टरव्यू में उनसे पूछा गया था कि कौन-सी चीज उनकी नींद उड़ाती है? उन्होंने कहा था, ‘जो भी काम मेरे सामने आता है, वह सब नींद उड़ानेवाला होता है।’ यह पूछने पर, ‘कोई एक ऐसा काम बताइए जिसने आपकी नींद उड़ा दी है?’ ओबामा का उत्तर था- ‘पाकिस्तान’।
क्या यह सत्य नहीं कि पाकिस्तान को लेकर जो भ्रम अमेरिका का है, वही लगातार हमारा भी रहा है। हम जानते हैं कि पाकिस्तान एक ऐसी मानसिकता का नाम है जो भारत विरोध के बिना जिन्दा नहीं रह सकती परंतु फिर भी उससे दोस्ती की कभी न पूरी होने वाली उम्मीद करते हैं। कई जंग हारने के बाद भी जिस देश के हुक्मरानों ने अपनी जंग लगी मानसिकता पर फिर से विचार तक करने की नहीं सोची। वे कभी पंजाब तो कश्मीर में अपने गुर्गंे भेजते हैं। आतंकवाद की ट्रेनिंग के कैम्प लगाता है। मुंबई पर हमले के लिए कसाब जैसो को भेजता है तो दुनिया के सबसे बड़े अपराधी दाउद को शरण देते हैं। बार- बार जख़्म खाने के बावजूद हम कभी बस लेकर तो कभी बैट बल्ला लेकर अमन का दीया जलाने निकलते हैं पर उसपार से हमेशा नश्तर ही भेजा गया। इसमें कोई हैरानी की वजह भी नहीं है क्योंकि जो मानसिकता अपने मासूम बच्चों तक का खून बहा सकती है उसके लिए पड़ोसी के मायने क्या हो सकते हैं।
असफल राष्ट्र पाकिस्तान को नियति ने एक नहीं, अनेक धृतराष्ट्र दिए। वहां न पारदर्शिता है न औद्योगिकीकरण। जहां युवाओं को रोजगार न मिलने के कारण उनका गलत हाथों में जाने का खतरा काफी ज्यादा है। उसपर रही सही कसर आधुनिकता पर मजहबी मानसिकता और भारत विरोध का मुलम्मा पूरी कर देता है। पिछले एक वर्ष में उसने सीमा पर अकारण जारी गोलाबारी करते हुए कितनी बार युद्धविराम का उल्ल्ंघन किया उसे खुद भी मालूम नहीं। यह संतोष की बात है कि वर्तमान सरकार गलत हरकत का मुंहतोड़ जबाव देने की नीति अपना रही है।
कुछ दिन पूर्व पाकिस्तानी विदेश सचिव एजाज चौधरी ने संवाददाताओं से बातचीत करते हुए लगभग धमकी के अंदाज में कहा कि हमारे परमाणु कार्यक्रम का एकमात्र आयाम है- भारत। इससे उनके रक्षा मंत्री भी शेखी दिखाते हुए कह चुके है कि ‘पाकिस्तान के परमाणु हथियार सजावट के लिए नहीं हैं, हम हथियारों का भारत के खिलाफ इस्तेमाल करेंगे।’ ऐसे में उनसे बातचीत का मतलब है समय की बर्बादी। केवल औपचारिकता पूरी करने की नीति से कुछ होने वाला नहीं है। बातचीत से ज्यादा जोर अलगाववादियों से मुलाकात पर जोर और अस्वीकार्य शर्ते थोपने के बाद गत सप्ताह संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में भाग लेने गए उनके रहनुमा उल्टे भारत पर ही पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा देने के हास्यास्पद आरोप लगाते नजर आए। इससे एक बार फिर साबित हुआ कि बेशक कुत्ते की दुम सीधी हो जाए पर पाकिस्तान अपनी हिन्दुस्तान विरोधी मानसिकता छोड़ ही नहीं सकता।
भारत को विश्व जनमत को पाकिस्तान की हरकतों के बारे में लगातार जागरूक करते रहना चाहिए। हमें अमेरिका को यह स्पष्ट करना होगा कि - पाकिस्तान को सहन करना उनकी मजबूरी हो सकता है लेकिन यह सब भारत के लिए असहनीय है। हम युद्ध नहीं चाहते परंतु आत्मसम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस अंतिम विकल्प से भागने वाले भी नहीं हैं। हम पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए अघोषित युद्ध का मुंह तोड़ जवाब देने को विवश हैं। अटल जी ने ठीक ही कहा हैं-
हमे मिटाने की कोशिश करने वालो से कह दो, चिन्गारी का खेल खेल बुरा होता है।
दूसरों के घर आग लगाने का सपना, सदा अपने घर ही खड़ा होता है।।
विनोद बब्बर संपर्क-09868211911
पाकिस्तानः क्या अब भी कोई सबूत चाहिए?
Reviewed by rashtra kinkar
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