खेल सुलगने-सुलगाने का Fire Game

राजनीति से समाज तक, शिक्षा संस्थानों से व्यवसाय तक आज देश में सबसे बड़ा संकट है- ‘केवल मैं ही ठीक हूं। केवल मुझे ही अनुभव है। केवल मुझे ही अधिकार है कुछ भी कहने का। कुछ भी करने का। शेष सभी को चुपचाप सहना अथवा सुगलते रहना चाहिए।’ दुखद आश्चर्य यह है कि सुुलगने- सुलगाने के इस खेल में ही सभी अपने-अपने हित तलाश रहे है। यह सब क्या है? जिसमें कोई न जीता, मगर सब हारें। आरक्षण की जरूरत अथवा मांग को गलत या सही साबित करने के हजार नहीं, लाख तर्क हो सकते हैं लेकिन इस बात से शायद ही किसी की असहमति हो कि स्वतंत्रता के पश्चात जिस तेजी से शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ। पढ़े-लिखें, व्यवसायिक प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं की संख्या बढ़ी उस अनुपात में रोजगार नहीं बढ़ें। ‘एक अनार, सौ बीमार’ सिद्धांत के अनुसार सीमित नौकरियों को पाने की होड़ बढ़ी। इस होड़ में उचित-अनुचित की औपचारिकता भी लगभग समाप्त हो गई। रिश्वत का बोलबाला बढ़ा तो दूसरी ओर नेता शरणम् भी। आज एक पूर्व मुख्यमंत्री अपने पुत्र सहित भर्ती में भ्रष्टाचार के लिए सजा काट रहे हैं। ऐसे अनेकों और भी हैं जो फिलहाल कानून के फंदे से दूर हैं। अपने और अपनों को ‘सैट’ करने की परिपाटी समाप्त होने की दूर-दूर तक कोई संभावना देखकर कुछ लोगों के लिए आरक्षण की मांग अथवा आरक्षण का विरोध ही आशा की आखिरी किरण नजर आती है। सुलगते असंतोष को और अधिक सुलगाने-भड़काने के पीएचडी धारकों की ‘स्किल’ काम कर रही है लेकिन हमारे ‘नासमझ’ युवाओं को समझना होगा कि तोड़-फोड़, हिंसा, अराजकता इसका समाधान नहीं हो सकता।
‘हर हाथ को काम, हर पेट को रोटी, हर सिर को छत्त’ के बिना जीवन जीने का कोई अर्थ नहीं हो सकता। यह जरूरत हर जाति, धर्म, सम्प्रदाय के युवा की है। स्पष्ट है कि रोजगार के अवसर बढ़ाना ही एकमात्र समाधान है। कृषि में रोजगार के सीमित अवसर है अतः अधिक से अधिक उद्योग स्थापित किये बिना बात बनने वाली नहीं है। लेकिन जो लोग रेल की पटरियां उखाड़कर अथवा हाई-वे को खोदकर या नहर तोड़कर या फिर आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई बाधित कर रोजगार ढ़ूंढ रहे हैं वे गुमराह किये गये अर्थत् सुलगाए गए युवा हैं। विदेशी निवेश तो दूर की बात, अशांत प्रदेश में देशी उद्योगपति भी निवेश करने से बचते है। शायद ये युवा नहीं जानते कि कुछ वर्ष पूर्व ही बंगाल में टाटा द्वारा जमीन खरीद लिए जाने के बाद भी कारखाने नहीं लगे। तब उस कारखाने का बढ़-चढ़कर विरोध करने वाली ममता ने भी बाद में अपनी इस ‘भूल’ को स्वीकारा था।
हमें आत्मचिंतन करना चाहिए कि रोजगार के अवसर न बढ़े तो हमारी जाति को आरक्षण वाली सूची में शामिल करने कोे बावजूद मिलने वाला कुछ नहीं है। क्या यह सत्य नहीं है कि आजादी के 70 वर्ष बाद भी लगातार आरक्षण सूची में शामिल सभी को उच्च शिक्षा और रोजगार प्राप्त हुआ? हां, यह अवश्य हुआ है कि अपने हित की कामना में जिन्होंने रेल व सड़क मार्ग बाधित किया उन्हें तो सिवाय लानत और आत्मग्लानि के शायद ही कुछ मिला हो लेकिन मजबूरी का लाभ विमान कम्पनियों ने उठाया जिन्होंने दिल्ली से चंडीगढ़ की बहुत कम दूरी का किराया 70 हजार वसूला। अनेक वाहन और दुकाने जलाने से हजारों की रोजी-रोटी भी छीन गई।

किसी भी शिक्षा संस्थान में देशद्रोही नारे लगाने वालों ने न केवल अपनी बल्कि अपने संस्थान की प्रतिष्ठा को कम करने का कार्य किया है। ऐसे युवाओं को समझना चाहिए कि उनकेे लिए यह समय भविष्य निर्माण के लिए प्रशिक्षित होने का है। उन्हें देशविरोधी आग सुलगाने से परहेज करते हुए देशद्रोही रास्ते पर जाने वालों के हस्र से भी प्रेरणा लेनी चाहिए। इसके लिए बहुत दूर जाने की आवश्यकता भी नहीं है। आन्ध्र में आतंकी गतिविधियों में शामिल रहे अब्दुल अजीज उर्फ गिद्दाह जो बम बलास्ट में 10 वर्ष सऊदी की जेल में रह चुका है उसके ताजा बयान के अनुसार- भारतीय मुस्लिम बहुत अच्छी हालत में है।
सुलगने- सुलगाने के इस खेल में सरकारों को भी अपनी भूमिका की समीक्षा करनी चाहिए। यह क्यों जरूरी है कि स्थिति के पूरी तरह बेकाबू हो जाने के बाद ही सरकार हरकत में आयें? क्या आरक्षण जैसे विषयों पर विचार के लिए स्थाई आयोग नहीं बनाया जा सकता जो लगातार समीक्षा करते हुए उचित निर्णय ले सके। दंगा भड़काने, आगजनी करने वालों से पहले सख्ती और बाद में उन्हें मुआवजा देने को आखिर किस तरह उचित ठहराया जा सकता है? मेक इन इण्डिया और छेद इन इण्डिया में अंतर रहना चाहिए। युवाओं से सरकार का सतत सम्पर्क रहना चाहिए ताकि उन्हें सुगलने और सुलगाने वालों से बचाया जा सके। उन्हें समझना होगा- केवल नारे लगाने वाले ही नहीं रेल की पटरियां उखाड़ने वाले भी आत्मघाती होने के कारण देशद्रोही है।

क्या अपने ही देश के परिवेश को दूषित में लगे युवा अपने साथी के इन परिपक्व विचारों से प्रेरणा लेकर अपनी मानसिकता पर फिर से विचार करने के लिए तैयार हैं? आज हमारे सामने दो ही रास्ते हैं- दीपक से प्रकाश अथवा विनाश की लपटों में ख्ुाद को स्वाह कर ‘जंग चलेगी, खुद ........की बर्बादी तक!’ या ‘जंग चलेगी, गरीबी, बेकारी की बर्बादी तक!’
--विनोद बब्बर संपर्क- 09458514685, 09868211911
खेल सुलगने-सुलगाने का Fire Game
Reviewed by rashtra kinkar
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