पत्रकारिता की बुनियाद पर लोकतंत्र का महल

उस युवक की भावनाओं को सराहते हुए उसे यथासंभव धैर्य धारण करने की सलाह दी। यह सत्य है कि पत्रकार लोकतंत्र का प्रहरी है। सैनिक अगर देश की सीमाओं पर तैनात रहता है तो पत्रकार को समाज के हर मोर्चे पर तैनात रहना पड़ता है। कई बार सैनिक को अपने मोर्चे पर लड़ते हुए सर्वोच्च बलिदान तक देना पड़ता है यदाकदा पत्रकार भी देशद्रोही माफिया की आंखों की किरकिरी बन जाता है। उसे डराने, अलग- थलग करने से प्रताड़ित करने तक ही नहीं कभी-कभी शारीरिक चोट भी पहुंचाई जाती है। ऐसे तत्व अपने निहित स्वार्थों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते है। अनेक बार प्रशासन इस समानान्तर प्रशासन का सहयोगी अथवा मूक समर्थक भी होता है। लेकिन इन सबसे भयभीत होकर कोई स्वाभिमानी अपना रास्ता तो नहीं बदल सकता। क्या किसी कवि ने अकारण कहा है-
उस पथ की पथिक कुशलता क्या, जिस पथ पर बिखरे शूल ना हों।
उस नाविक की धैर्य परीक्षा क्या, जब धाराएँ प्रतिकूल न हों।।

इसे वर्तमान की विड़म्बना ही कहा जाएगा कि पत्रकारों से निष्पक्षता की आशा तो सभी करते है,लेकिन स्वतंत्र और सक्रिय मीडिया को दुम हिलाने वाला पालतू बनाने के प्रयासें अथवा असहमति को मिटाने के समय साथ खड़े होना तो गलत को गलत कहने का नैतिक बल भी बहुत कम दिखाई सुनाई पड़ता है। देशभक्ति कहीं दलभक्ति तो कहीं जेबभक्ति का रूप धारण कर मुंह फेर लेती है। आश्चर्य है कि जिस देश में आतंकवादियों तक के मानवाधिकारों के पक्षधर मौजूद हों वहां लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर हो रहे हमलों पर विरोध के स्वर अन्य क्षेत्रों से सुनाई ही नहीं दिये। बेशक पत्रकार की जान लेने वालों का सत्ता और दबंगता से निकट का नाता है लेकिन स्वम्भू बुद्धिजीवियों का मौन किसी भी समाज के दोहरे चरित्र का प्रमाण है।
महाभारत की बहुत सी विसंगतियों और धृतराष्ट्र के पुत्रमोह की चर्चा तो बहुत होती है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि धृतराष्ट्र विदुर का प्रशंसक था। वह सत्य को प्रिय वचनों के साथ प्रस्तुत करने की उनकी शैली का कायल था। सच के प्रति सचेत करना पत्रकारिता का सबसे प्रथम कर्तव्य है क्योंकि सत्ता किसी भी दल की हो, चाटुकारों से घिर ही जाती है। ये चाटुकार नेतृत्व को दिवास्वप्न दिखाकर भ्रमित करने में काफी हद तक सफल रहते है। ऐसे में विदुर की भूमिका का निर्वहन पत्रकारिता की जिम्मेवारी होनी चाहिए। मीडिया को लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने की अपनी जिम्मेवारी का अहसास होना चाहिए। अतः उसे समालोचना करते हुए कठोर अथवा भड़काऊ शब्दों के उपयोग से बचना चाहिए। यह समझना जरूरी है कि लोकतंत्र में जहां मजबूत विपक्ष चाहिए वहीं विवेकी मीडिया भी अति आवश्यक है। जागृत और सक्रिय विकल्प तैयार करने में मीडिया की भूमिका हो सकती है। सनसनी फैलाने वाले हैडिंग अथवा चटकारेदार समाचार प्रस्तुत कर जनमत को प्रभावित करना सजग मीडिया का धर्म नही है। वह पक्ष-विपक्ष के मल्ल युद्ध में बिना किसी उत्तेजना के भाग लेते हुए दोनो पक्षों के व्यवहार को केवल दृष्टाभाव से देख ही नही देखे बल्कि उस पर अपना निष्पक्ष मंतव्य भी प्रस्तुत करें। उसका कार्य उत्तेजित होकर अपनी- अपनी बात पर अडे़ पक्षों को विवेकपूर्ण समाधान खोजने में अपनी सेवाएं प्रस्तुत करना भी है। यदि पत्रकारिता सजग है तो जनहित से जुड़े मुद्दों पर चर्चा में कोई बच नहीं सकता। आज की आचरणहीन चारण राजनीति के दौर में लोकतंत्र की बुनियाद लगातार मजबूत बनाने के लिए मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। बेशक इलैक्ट्रोनिक मीडिया सनसनी फैलाने में लगा है तो सोशल मीडिया आत्मकेन्द्रित प्रवाह में बह रहा है। ऐसे में एक अच्छे और सच्चे रैफरी की भूमिका का निर्वाह करने की जिम्मेवारी प्रिंट मीडिया की है। उसे बिना किसी राजनैतिक लिप्सा अथवा पक्षपात के कार्य दक्षता से करना चाहिए।
लोकतंत्र की बुनियाद को और सुदृढ़ करने तथा उस पर वैभवशाली प्रासाद खड़ा करने के लिए लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों को जागरूक और साहसी होना चाहिए। यदि वह समाज के शेष वर्गों को भी अपने सुसंगठित और सुचिंतित अभियान का हिस्सा बनाने में सफल रहा है तो उसका अच्छा प्रभाव पड़ना सुनिश्चित होता है। उसकी नीतियां और नीयत दोनों ही आम पाठक के उत्साह और विश्वास को सहस्र गुणित करती है। उसेे केवल राजनैतिक मुद्दे ही नहीं बल्कि े विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त महिला सशक्तिकरण, नागरिक समस्याओं, महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों को भी प्रमुखता से स्थान देना चाहिए। अर्थ संकट के इस दौर में जब भटकाव सहज संभव है, लेकिन जो यह मन, वचन और कर्म से मानते हैं कि मीडिया मिशन है, व्यवसाय हैं केवल वे ही आज के इस भटक, फिसलन वाले दौर में पत्रकारिता के उच्च आदर्शों, मानकों तथा संकल्पों के साथ अपने मिशन की ध्वजा पताका को झुकने से बचा सकते है। खुशी की बात यह है कि यदि कुछ दलाल पत्रकारों को अपवाद मान ले तो बहुसंख्यक पत्रकार अपने कर्तव्य का शुद्ध अंतकरण से निर्वहन कर रहे है। लोकतंत्र के इस चौथे और सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्तम्भ की सुरक्षा, स्वतंत्रता की कामना करता हूं ताकि पत्रकारिता के टिमटिमाते नये दीपक अपना विवास कायम रख सके। पत्रकारिता चकाचौंध और आतंक के दो समानान्तर ध्रुवों से हटकर लोकहित में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सके।
मील का पत्थर कह सकूं, हो लोकतंत्र बुनियाद।
जनहित सजग संवाहिका, पत्रकारिता प्रसाद।।
विनोद बब्बर संपर्क- 09458514685, 09868211 911
पत्रकारिता की बुनियाद पर लोकतंत्र का महल
Reviewed by rashtra kinkar
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