उग्र राजनैतिक विभाजन और नोटबंदी का औचित्य Sharp Poltical Division & Black Money


आज हम दो अतिवादी विचारों के दौर से गुजर रहे हैं। एक ओर वे लोग हैं जो वर्तमान सरकार और उसके मुखिया के हर  कदम को गलत घोषित कर उस ेनकारा साबित करने पर तुले हैं और दूसरी ओर ऐसे लोग हैं जो सरकार को महिमामंडित करते हुए उसे ‘महानतम’ साबित करने पर आमादा है। दोनो पक्षो के बीच राजनैतिक खेमेबंदी सभी को मजबूर करती है कि समर्थन अथवा विरोध के अतिरिक्त मौन का विकल्प धारण करें। क्योंकि किसी निष्पक्ष विचार के लिए कहीं कोई स्थान ही दिखाई नहीं देता। 
इतने तीखे विरोध के बावजूद शायद ही कोई इस बात से असहमत होगा कि मानव इतिहास में आज तक ऐसा कोई भी शासक नहीं आया जिससे सभी लोग पसंद करते हो। हां, यह जरूर संभव है कि भारत ने 1975 के आपातकाल तथा दुनिया के कुछ देशो ने तानाशाही के दौर में डर की वजह से विरोध के स्वर न उठे हो। लेकिन लोकतंत्र में असहमति का महत्वपूर्ण स्थान होता है। जो हर हालत में बरकरार रहना भी चाहिए। अन्यथा लोकतंत्र का कोई अर्थ शेष नहीं रहेगा। आज जब सोशल मीडिया  बहुत सक्रिय और मुखर हैं, बिना बात के भी विवाद खड़े किये जाने का प्रचलन चल निकला है। ऐसे में किसी भी मामले में सर्वसम्मति की संभावना तक नहीं हो सकती लेकिन जहां सवाल देश की सुरक्षा अथवा प्रतिष्ठा का हो आम सहमति होनी चाहिए।
जहां तक प्रश्न देश की अर्थव्यवस्था का है। उसे पटरी पर लाने के लिए कालेधन की समानान्तर व्यवस्था से मुक्ति दिलाना आवश्यक है। हर दल की सरकार अपने- अपने दौर में इसके लिए प्रयासरत रही। 2012 में यूपीए सरकार ने काले धन पर एक श्वेत पत्र जारी किया था जिसके अनुसार काले धन को ज्यादातर जमीन-जायदाद और सोने में निवेश किया हुआ पाया गया था। वर्तमान मोदी सरकार ने भी कालेधन पर काबू पाने के लिए जुलाई 2016 में एसआईटी का गठन किया था तथा एक मौका देते हुए 30 सितंबर, 2016 तक अपनी छिपी आय घोषित करने का अवसर दिया। इस योजना का तहत   65,258 करोड़ रुपए का छिपा धन बाहर आया। लेकिन जिन्होंने इस अवसर की परवाह नहीं की उन्हें उस समय गहरा आघात लगा जब  9नवम्बर की रात सरकार ने कालाधन बाहर लाने के लिए 500 और 1000 के नोट को तत्काल प्रभाव से बंद करने की घोषणा की।  इस साहसिक निर्णय का आमतौर पर स्वागत हो रहा है लेकिन वे लोग जिनकी चर्चा आरम्भ में की गई हैं, वे अपनी आदत के अनुरूप सरकार के इस निर्णय को अमानवीय तक बताने से नहीं चूक रहे हैं।
सरकार ने 30 दिसम्बर तक बैंको के माध्यम से ईमानदारी की पाई-पाई बदलने का आश्वासन दिया है लेकिन अगली ही सुबह जरूरत के लिए नोट बदलने के लिए जिस तरह से हर बैंक और एटीएम के बाहर भारी भीड़ एकत्र हो गई उससे शेष कामकाज ठप्प हो गया। बाजारों में जबरदस्त मंदी छा गई क्योंकि खरीददारी के लिए नई मुद्रा उपलब्ध नहीं थी।
सरकार के इस फैसले को आमतौर पर समर्थन मिल रहा है। लेकिन मीडिया की अति सक्रिय वाचालता कहीं लम्बी लाईने तो कहीं नदी में बहते नोटों को बढ़ा चढ़कर दिखा रही है उससे हर सामान्य आदमी के मन में अनेक प्रकार की आशंकाएं घर करने लगी हैं। मोदीजी के कट्टर समर्थक जो कालेधन के विरूद्ध किये गये इस सर्जिकल स्ट्राइक के पक्ष में लगातार सोशल मीडिया में सक्रिय है वे भी इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि एक अच्छी योजना को यदि अच्छी तैयारी और चिंतन के साथ प्रस्तुत न किया जाए तो उसके आरम्भिक प्रतिक्रिया असंतोष हो सकती है। बेशक यह तर्क दिया जा रहा है कि नोटबंदी पहली बार नहीं हुई है। 1978 में भी जनता पार्टी सरकार ने दस, पांच और एक हजार तथा पांच सौ के नोट बंद कर दिये थे। लेकिन तब से आज तक पैसे का फैलव बहुत बढ़ा है। विशेष यप से बढ़े नोटो का जो उस समय कुल नोटो का मात्र पांच प्रतिशत ही थे जबकि आज ये 86 प्रतिशत पर पहुंच चुके है। उसपर भी आज पांच सौ और एक हजार के नोट के स्थान पर कुछ दिन तक मात्र दो हजार का नया नोट ही उपलब्ध होना योजनाकारों की व्यवहारिक बुद्धि पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। जब कोई सामान्य व्यक्ति सब्जी, दूध या घर का छुटपुट सामान ले या रिक्शावाले को किराया देगा तो दो हजार के नोट से काम नहीं चलता। अच्छा होता कि योजना में इस ओर ध्यान दिया जाता। नोट बदलने के लिए उमड़ी भीड़ में अनेक दिहाड़ी मजदूरों की नियमित उपस्थित के समाचार के बाद अंगुली पर निशान का विकल्प अपनाया गया तो उससे भीड़ में तत्काल कमी आई।   
हमारे माननीय वित्तमंत्री जी जो बहुत अच्छे वकील और तर्कशास्त्री हैं। उन्होंने नोटो की अनुपलब्धता पर चर्चा का जबाव देते हुए कहा, ‘किस शास्त्र में लिखा है कि शादी विवाह में शगुन केवल नकदी के रूप में दिया जाएगा। यह चेक और ड्राफ्ट के रूप में भी दिया जा सकता है।’ वित्त मंत्री जी के कर्तव्यों के उचित निर्वहन की दृष्टि से उनका यह वक्तव्य उचित हो सकता है लेकिन व्यवहार की दृष्टि से यह कितना उचित है वे स्वयं भी जानते हैं। शादी विवाह में मेहंदी लगाने वाले से लेकर अनेक प्रकार के रीति रिवाजों के लिए नकदी चाहिए। यहां तक कि देहाती क्षेत्रों में प्रति बाराती को कुछ दिया जाता है। अब सौ बारातियों को चैक देना अथवा उनके खाते में ट्रान्सफर कितना व्यवहारिक है? बहुत संभव है बदलते दौर में इस प्रकार के कर्मकान्डों के औचित्य पर भी सवाल उठे लेकिन इन्हें एकाएक उखाड़ फेंका नहीं जा सकता।
माननीय वित्त मंत्री जी इस देश को कैशलेस ट्रांजेक्शन की ओर ले जाना चाहते ह। जो सर्वथा उचित हैैं लेकिन उसके लिए आयकर की वर्तमान सीमा को औचित्य को भी समझना चाहिए जो पूरी तरह से अव्यवहारिक है। मात्र 2लाख रुपये में किसी नगर अथवा महानगर में किराए का फ्लैट, दो बच्चों की पढ़ाई, दवाई, घर का खर्चा चलाना टेढ़ी खीर है। उस पर जब गांव में रहने वाले अभिभावकों को कुछ भेजना संभव न हो ,बचत का प्रश्न ही कहां उठता है। अच्छा होता इस सर्जिकल स्ट्राइक में आयकर की सीमा कम से कम पांच लाख करने तथा पांच हजार से अधिक के हर लेनदेन के नकद देने पर रोक भी शामिल होती तो आज उठने वाले प्रश्न उठने से पहले ही दम तोड़ देते। आखिर सरकार का उद्देश्य एक ऐसा माहौल उत्पन्न बनाना है जो एक मेहनतकश  ईमानदार आदमी को बेईमान बनने के लिए मजबूर न करें।
वैसे यह इस सर्जिकल आपरेशन की सफलता का प्रमाण है कि कश्मीर में आतंकियों और देश के विभिन्न राज्यों में फैले माओवादी नक्सली समूह जिन्होंने अवैध तरीको और हवाला के माध्यम से मोटी रकम जमा कर रखी थी, लेकिन नोटबंदी के बाद से स्वयं को विवश पा रहे हैं। यदि पांच हजार से अधिक के हर लेनदेन के नकद देने पर रोक लग जाये तो उनकी कमर टटने से कोई नहीं रोक सकता। सरकार को भली भांति मालूम है कि हमारी चुनावी व्यवस्था कालेधन की सबसे बड़ी पोषक है। टिकटों के लेनदेन में ही करोड़ो का कालेधन इधर से उधर हो जाता है। चुनावी खर्च की सीमा मजाक के अतिरिक्त कुछ नहीं है। नेता खुलेआम न स्वीकारे पर सत्य सही है कि मतदान के दिन का खर्च ही अधिकतम सीमा से अधिक होता है। कुछ नेंताओं की अति छटपटाहट भी बता रही है कि कालेधन के इस प्रवाह को बंद किये बिना ईमानदारी और आर्थिक बदलाव की बाते कोरा आदर्शवाद है।  
जहां तक लम्बी लाईनों पर विपक्षी नेताओं के कटाक्ष का प्रश्न है, उन्हें यह भूल रहा है कि हम लाईनों में लग कर कभी गैस सिलिंडर, तो कभी राशन, कभी रेल टिकट तो कभी मतदान के अभ्यस्त है। आज भी देश की राजधानी सहित अनेक क्षेत्रों में पानी तक के लिए प्रतिदिन घंटो लाईने लगती हैं। अभी कुछ दिन पूर्व जिओ चिप के लिए लम्बी लाईने थी। जो युवा अपने मनोरंजन के लिए सिनेमा में लाईन लगा सकता है, उसे अपने देश से कालेघन से मुक्त कराने के लिए लाईन लगाने से भला इंकार कैसे हो सकता है।     --- विनोद बब्बर  संपर्क-   09868211911, 7892170421
 


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