शादीः जनता से पाई-पाई का हिसाब, जनार्दन उड़ाये 500 करोड़ Marriage Party Or Circus? Lines for New notes Why there is No new IDEA



इन दिनों सारा देश कालेधन को काबू करने के लिए अचानक की गई नोटबंदी और उसके परिणामों से जूझ रहा है। लोग दिनभर लाईन लगाकर अपने ही बैंक खाते से मात्र दो हजार रुपये प्राप्त कर पा रहे है। जिसके यहां शादी है उनकी परेशानी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने उन्हें ढ़ाई लाख बैंक से निकालने की अनुमति तो दे दी लेकिन इतनी तरह की शर्त रख दी थी कि सारी कवायद हास्यास्पद लगने लगी। शदी वालों से कहा गया कि ‘यह पैसा सिर्फ उन्हें नकद भुगतान किया जा सकेगा जिनके बैंक अकाउंट नहीं है। भुगतान करने से लिखित घोषणापत्र लेना होगा कि उनका बैंक खाता नहीं है।’  आश्चर्य है कि वे नहीं जानते कि शादी में अनेक तरह के खर्चे होते है। दस बार पंडित रखवाता है। कहीं लाग, कहीं नेग। कहीं मेहंदी वाला, कहीं माली, नाई, कहीं ढोल वाला, कहीं नाचने वालो पर वार-फेर, कहीं साली को जूता छिपाने का शुल्क। आखिर किस-किस से एफिडेफिट लेंगे कि उनका बैंक खाता नहीं है। खैर  जनता की तीव्र प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए अब इसमें संशोधन कर अब इसे दस हजार से अधिक के भुगतान पर सीमित कर दिया गया है। खैर एक तरफे शादी वाले घर में असुविधा और दुविधा तो दूसरी ओर 500 करोड़ की शादी का समाचार जैसे ईमानदार लोगोें को मुंह चिढ़ा रहा है।
कर्नाटक के खनन माफिया जर्नादन रेड्डी द्वारा हजारो लोगों को भेजे बेटी की शादी के निमंत्रण पत्र भी अनोखे हैं। सोने के परत वाले इस निमंत्रण कार्ड में  एलसीडी स्क्रीन है जिसमें रेड्डी परिवार का वीडियो है। बेंगलुरु के पैलेस ग्राउंड में हुई इस शादी में अतिथियों को गेट से अंदर तक लाने के लिए 40 लग्जरी बैलगाड़ियों थी। बॉलीवुड के आठ डायरेक्टरों ने दुल्हन और दूल्हे के घर जैसे सेट्स बनाए गए। डायनिंग एरिया को बेल्लारी गांव जैसा डिजाइन लुक दिया गया।  3000 सुरक्षाकर्मी, खोजी कुत्ते और बम निरोधक दस्ते तैनात थे। 50,000 अतिथियों ने सैंकड़ो प्रकार के व्यंजनों का रसास्वादन किया। दुल्हन ने 17 करोड़ की साड़ी और 90 करोड़ के आभूषण पहने। दूल्हें और दोनो परिवारों की शाही पोशाकों की कीमत भी करोड़ों में थी। ईमानदार नागरिक के दिनभर लाईन में लगने के बाद मात्र दो हजार रुपये बदलने वाली व्यवस्था ने धन के इस भौंडे प्रदर्शन पर बेशक बाद में सीबीाई ने छापा मारा लेकिन जब सब सब पहले से ही मीडिया चर्चा में था तो कार्यवाही पहले ही होनी चाहिए थी। अगर  ढ़ाई लाख बैंक से लेने वालों पर पूर्व शर्ते रखी जा सकती है तो यहां पहले कार्यवाही क्यों नहीं?
भारतीय  संस्कृति में शादी को एक पवित्र संस्कार के रुप में मान्यता दी जाती है। परन्तु, आज शादी समारोह वैभव प्रदर्शन का माध्यम बनते जा रहे हैं। धन-कुबेर तो फार्म हाऊसों, शानदार पंडालों, सैकड़ों किस्म के व्यजनों की दावत, अनूठी आतिशबाजी और लेज़र लाइट की व्यवस्था कर सकते हैं। परन्तु, मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग इस अंधी दौड़ में खुद को कैसे बचाये? आखिर, विकृत प्रदर्शन से समाज का कौन-सा हित होने वाला है? आश्चर्य है कि राजनीति की हर छोटी-बड़ी बात पर मुखर रहने वाला बुद्धिजीवी इस पर मौन है।
पिछले दिनों, दिल्ली गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी ने दिन में शादी करने का फरमान जारी करते हुए सभी से इस पवित्र कार्य को सादगी से करने की अपील की थी। हालांकि इससे पूर्व भी इस दिशा में छुटपुट प्रयास हुए हैं। परंतु, भारत जैसे अध्यात्म प्रधान देश में भी मिथ्या प्रदर्शन का भाव क्लगातार बढ़ता ही जा रहा है? आश्चर्य होता है कि यहाँ धर्म गुरूओं का अच्छा खासा प्रभाव है। परंतु, इन गुरूओं ने भी भौंडे आडम्बरों के बहिष्कार का आह्वान क्यों नहीं किया? इस सम्बंध में जब हमने एक जाने-माने धर्म गुरू से सम्पर्क करना चाहा तो उन्होंने शादी-समारोह को व्यक्तिगत मामला कह कर बात करने से भी इन्कार कर दिया। बेशक कानून इस दिशा में बहुत कारगर साबित नहीं होते; पर नैतिक कानून और दूरदर्शनी संत खामोश क्यों हैं?  एक जाने माने धर्मगुरू की बेटी की शादी एक फार्म हाउस की चकाचौंध में हुई, ऐसे में उनके शिष्यों से किसी सादगी की आशा ही व्यर्थ है। नेताओं से तो वैसे भी आदर्श की उम्मीद पालना गलत है। गाय का दूध बेच कर गुजारा करने का दावा करने वाले एक नेता की बेटियों की शादी ही नहीं अनेक पंचसितारा स्वागत समारोह भी  आयोजित किये।
एक प्रवासी भारतीय लेखक जो एक लंबे अर्से बाद अपने किसी परिजन के विवाह समारोह में भग लेने आया तो वह वैभव के विकृत प्रदर्शन और अपसंस्कृति का  नजारा देखकर बहुत आहत हुआ।उसके अनुसार, ‘मेजबान अपने गरीब और सामान्य सगे-संबंधियों की उपेक्षा कर महिमामय नेताओं के स्वागत और अभिनंदन में दीवाने हो रहे थे। जबकि भारत में हर अतिथि को नारायण का रुप मानने की  परंपरा  रही है। लोग बुफे शैली के भोज में खाद्य पदार्थों पर गिद्धों की तरह टूट रहे थे। मिथ्या प्रदर्शन, अन्न और धन की बर्बादी तथा दहेज और भेंट-पूजा के दृश्य थे जो नैतिक मूल्यों और समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को अंगूठा दिखा रहे थे।’
प्रायः सभी शादियां रात्रि में होती हैं। बारातों की शोभायात्राओं में जिस प्रकार जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों में निर्बल वर्गों के युवक ध्वनि प्रदूषण फैलाते जेनरेटरों से प्रदीप्त विशालकाय रोशनी के हंडों को अपने सिरों पर ढोते हुए बैंडबाजों के साथ फिल्मी ध्ाुनों के बीच वध्ाू पक्ष के द्वार तक पहुँचते हैं और किस प्रकार उन्हें बिना जलपान कराए ही लौटा दिया जाता है, वह हमारी संवेदन शून्यता का दिग्दर्शन कराने के लिए काफी है। जर्नादन रेड्डी जैसे लोग जो चाहे कर सकते हैं परंतु सामर्थ्य न होते हुए भी मध्यमवर्गीयों द्वारा  झूठी शान के लिए ऐसा करना अब आम बात है। वे भी हरसंभव प्रयास करते हैं कि कोई-न-कोई महत्वपूर्ण व्यक्तित्व उनके आयोजन में पधार कर  अपनी चरण-रज के स्पर्श से उन्हें उपकृत करे।
वैवाहिक समारोहोें में जो साधारण मेहमान आते हैं, उन्हें दुआ-सलाम करने के बाद भोजन-स्थल का रास्ता कुछ इस अंदाज में दिखा दिया जाता है जैसे गांवोें में खेत से लौटने वाले बैलों या अन्य पशुओं को चारा रखने की जगह पर भेज दिया जाता है। जर्नादन रेड्डी महंगे निमंत्रण पत्र वाला अकेला नहीं है। आज असाधारण लोग भी उनके अनुसरण में लगे हैं। कहना मुश्किल है कि सादगी और पवित्रता में रचे-बसे हमारे वे जीवन-मूल्य कहां गये जब परिवार का मुखिया पीले चावल हाथ में देकर अपने स्नेही लोगों को विवाह का निमंत्रण दे देता था। गत वर्ष इन पंक्तियों के लेखक ने एक समारोह में सादगी और सिद्धांतवादिता को व्यावहारिक रूप प्रदान करते हुए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शीतल पेय वाले स्टॉल पर बैनर लगवाया, ‘कोला स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, यदि फिर भी चाहें तो हाजिर है।’ सुखद आश्चर्य कि किसी ने भी बोतलबंद शीतल पेय को छूआ तक भी नहीं।
जो सामर्थ्यवान है उन्हें समझना चाहिए कि समाज और राष्ट्र के प्रति भी उनका कोई दायित्व है। अनावश्यक तड़क -भड़क में कुछ कमी कर उस धन से अभावों में रहने वाले अपने भाइयों के जीवनपथ पर बिछे कुछ काँटे तो कम कर ही सकते हैं।  अनाथ बच्चों और बेसहारा वृद्धों का सहारा बन सकते है। यदि हम उनके लिए अपना समय नहीं दे सकते हैं, तो इन संसाधनों का सहयोग कर ही सकते हैं। उन्हें यह भी समझना चाहिए कि ऐसी महंगी शादियों के कारण ही कन्या का जन्म बोझ समझा जाता है। यदि सुनने का साहस हो तो कहा जा सकता है कि यह सब होते देख खामोश रहने वाले हमारे धर्मगुरु और समाजशास्त्री भी अप्रत्यक्ष रूप से कन्या भ्रूणहत्या के दोषी हैं।
ऐसे में एक साधारण हैसियत वाला पिता आखिर क्या करें? किस चौखट पर जाकर आवाज़ दे कि शादी जैसे पवित्र बंधन को काले धन से पतित करना बंद करो, तभी बचेंगी बेटियां और तभी बचेगी हमारी संस्कृति। क्या काले धन से लड़ने की बात करने वाले सुन रहे है ऐसे लाखों पिताओं का दर्द? क्या  दहेज विरोधी कानून बनाकर मस्त हमारे कर्णधार अपनी आंखों से बंधी गांधरी की पट्टी खोलेंगे या शादी जैसा पवित्र अनुष्ठान एक तरफ ईमानदार मजबूरी और  भ्रष्टाचारी की तडक-भड़क के अंतर को लगातार बढ़ाता रहेगा?

- विनोद बब्बर 9868211911 rashtrakinkar@gmail.com



शादीः जनता से पाई-पाई का हिसाब, जनार्दन उड़ाये 500 करोड़ Marriage Party Or Circus? Lines for New notes Why there is No new IDEA शादीः जनता से पाई-पाई का हिसाब, जनार्दन उड़ाये 500 करोड़   Marriage Party Or Circus? Lines for  New notes Why  there is No new IDEA Reviewed by rashtra kinkar on 21:59 Rating: 5

No comments