कालाधन नहीं, काली कमाई कहिये हजूर! Not Black Money, But Black source
8 नवम्बर की रात 12 बजे से 500 और 1000 के नोट बंद करने के निर्णय के बाद से देशभर में गहम-गहमी है। सत्तापक्ष इसे अचूक बाण बता रहा है तो विपक्ष की दृष्टि में यह जनविरोधी है। देशभर के बैंकों के बाहर चलन से बाहर हो चुके अपने 500 और 1000 के नोट जमा कराने और नये नोट लेने वालों की लम्बी लाईने हैं। जमा तो स्वीकार किये जा रहे हैं परंतु निकासी पर फिलहाल कुछ नियंत्रण है। बचत खाते में एक सप्ताह में 24 हजार ही निकाले जा सकते हैं। जिनके घर में शादी है वे अपने खाते में 8 नवम्बर से पूर्व जमा राशि में से ढ़ाई लाख निकाल सकते हैं लेकिन इसे अनेक कठिन शर्तो से जोड़ा गया है। जैसे कहां खर्च करना है उसका ब्यौरा अग्रिम दिया जाये। एक शर्त यह भी है कि नकदी केवल उन्हें ही दी जाये जिनका बैंक खाता न हो। उससे इस संबंध में घोषणा पत्र भी हासिल करना है। चूंकि विवाह में अनेक प्रकार के रीति-रिवाज और अनुष्ठान होते हैं। इसलिए ऐसी शर्ते स्वीकार करना कठन ही नहीं असंभव है अतः अपने ही खाते से शादी जैसे अवसर के लिए बचाकर जमा कराये गये धन में से ढ़ाई लाख निकलवाने के साथ इतनी औपचारिकताओं को जोड़े जाने वाला नियम अलोेकप्रिय हो रहा है।
नोटबंदी ने आपस में बंटे विपक्ष को एकजुट होने का अवसर प्रदान किया। उन्होंने जनता को होने वाली कठिनाईयों की तरफ ‘ध्यान आकर्षित करने’ के नाम पर कई दिन संसद को नहीं चलने दिया। आखिर प्रधानमंत्री की राज्यसभा में उपस्थिति के बाद आरोप- प्रत्यारोप से बहस शुरु हुई। पूर्व प्रधानमंत्री स. मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को उचित ठहराया लेकिन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए अनेक खामियां गिनाई जिसका वित्त मंत्री ने प्रतिवाद किया। बहस जारी है लेकिन आश्चर्य कि कालाधन की कोई स्वीकार्य परिभाषा सामने नहीं आ पा रही है।
विशेषज्ञों का मत है कि कालाधन हमारी अर्थव्यवस्था में उसी तरह से रच-बच गया है जैसे समुद्र के जल में नमक। चूंकि नोटबंदी का उद्देश्य कालेधन पर अंकुश लगाना बताया जाता है इसलिए व्यवस्था और आम व्यक्ति के लिए यह जानना परम आवश्यक है कि आखिर काला धन है क्या और इसकी उत्पत्ति कैसे होती है।
इस संबंध पर एक उदाहरण। एक व्यक्ति जो व्यापार करता है या नौकरी करता है और आयकर चुका़ता है। उसका धन सफेद होता है। वह अपनी आय को विभिन्न मदो पर खर्च करता है। जब वह पड़ोस की दुकान से घरेलू जरूरत का कुछ सामान खरीदता हैं। यदि वह दुकानदार उसे बिल नहीं देता है यानी कर न तो चुकाता है और न ही वसूलता है तो वहां पहुंचकर सफेद धन काला हो जाता है। अब उस आय से वह दुकानदार फिर से सामान खरीदता है। कुछ सामान बिल से लिया गया तो वह धन एक बार फिर से सफेद हो गया। जो सामान बिना बिल के लिया गया तो वह धन काला ही रहा। वह छोटा दुकानदार थोक बाजार से सामान खरीदकर रिक्शा से लाया। रिक्शे वाले की खून पसीने की कमाई पर फिलहाल कोई कर देय नहीं है अतः इसे काले-सफेद में कैसे बांटे। लेकिन उसने कुछ पैसे जोड़े जिसे वह दूर गांव में रहने वाले अपने परिजनों को भेजता है। मनीआर्डर में अक्सर होने वाली देरी के कारण उसने अपनी खून पसीने के कमाई को अपने क्षेत्र के हवाला डीलर के माध्यम से भिजवाया। हवाला गैर कानूनी है इसलिए वे पैसे फिर काले हो गये। उस पैसे से परिवार वालों ने जो सामान खरीदा वह भी बिल और नानबिल के चक्कर में कुछ काला, तो कुछ सफेद होता रहा। बहुत संभव है उसकी पत्नी जरूरी खर्चे में भी कछ कटौती करके उन पैसों में से बच्चों के भविष्य के लिए अपने पति से भी छिपाकर रखती हो। वित्त विशेषज्ञों की दृष्टि में वे भी एक सीमा के बाद वह भी कालाान हो जाता है।
यह लेन-देन की एक छोटा सी श्रृंखला है। वास्तव में धन न तो कभी काला होता है और न ही सफेद होता है। काला या सफेद तो व्यवस्था है। इसलिए व्यवस्था को कभी काली तो कभी सफेद होने से रोकने की जरूरत है। यह काम काले-सफेद की चक्की में पिस रही जनता का नहीं, व्यवस्था का है। यदि ईमानदारी से कहें तो ें जिसे बार-बार काला धन, कालाधन कहकर आरोपित किया जाता है। वह कालाधन नहीं, काली कमाई है। इसे भी एक नजर से नहीं देखा जा सकता। क्योंकि चुनावी टिकटे बेचकर, भ्रष्टाचार, तस्करी, चोरी, डकैती, देशद्रोह के लिए विदेशों से प्राप्त चंदे से प्राप्त धन तथा आयकर की सीमा एक परिवार के सामान्य खर्च चलाने लायक न होने के कारण बोले गये झूठ में अंतर होता है। एक अपराध है तो दूसरा मजबूरी। वर्तमान वित्त वर्ष में आयकर की सीमा मात्र दो लाख होना किसी महानगर में किराये के मकान लेकर दो बच्चे और परिवार के साथ रहने वाले व्यक्ति के साथ ज्यादती सरीखा है। जो नौकरी पेशा हैं वे तो बंधे हुए हैं लेकिन छोटा-मोटा व्यापार करने वाले अपनी आय को कम करके बताते ही है। अगर यह अपराध है तो ठीक वैसा जैसे किसी बच्चे को अपने ही घर में चुराकर रोटी खाता हुआ पकड़ा जाये। इसके लिए कानूनों का सरलीकरण, टैक्स दर नाममात्र की, आयकर की सीमा कई गुना बढ़ाना। यदि संभव हो तो आय की बजाय खर्च पर टैक्स का प्रवधान हो। बड़े और विलासता के खर्चों पर बड़े टैक्स। नामी स्कूलों, इंजीनियरिंग कालेजो, मेडिकल कालेजों में दाखिले में चलने वाली ‘कैपिटेशन फीस’ बनाम ‘डोनेशन’ जैसी प्रथाओं का कोई समाधान किया जाये। इसे केवल कानून बनाकर नहीं रोका जा सकता। स्पष्ट है कि रिश्वत अथवा अवैध अनैतिक रूप से धन का प्रचलन वहीं होता है जहां उपलब्धता सीमित होती है। जब तक ‘एक अनार, सौ बीमार होगे’ होड़ रहेगी। भ्रष्टाचार रहेगा। उसे कम तो शायद किया जा सकता है लेकिन राजनैतिक व्यवस्था का शुद्धिकरण किये बिना समाप्त हर्गिज नहीं जा सकता।
क्या यह सत्य नहीं कि चुनाव कालेधन को खपाने और बढ़ाने का सबसे बड़ा स्रोत है। यह जानते हुए भी कि चुनाव खर्च की सीमा से कई गुणा अधिक तो केवल चुनाव वाले दिन ही एजेन्ट और कार्यकर्ताओं के दिनभर के खर्च होते हैं? और फिर आखिरी रात बांटे जाने वाली शराब और नोटों का खर्च आजतक किस उम्मीदवार ने अपने चुनावी खर्च में शामिल किया है। जबकि कटु सत्य यह है कि आज कोई भी दल इस कोढ़ से अछूता नहीं है। किसी को टिकट देने से पहले उसकी खर्च करने की क्षमता का आकंलन अवश्य किया जाता है। सभी राजनैतिक दल चंदे के रूप में जिस धन को प्राप्त करते हैं वह कितना सफेद कमाई का होता है यह सर्वविदित है। इसलिए सबसे पहले कालेधन के इस प्रवाह को रोकना जरूरी है। सभी दल और एनजीओ के लिए केवल चैक से चंदा लेने और उसे पारदशी्र ढ़ंग से आनलाइन दर्ज करने को बाय किये जाये। उन्हें आरटीआई के अधीन लाया जाये। न केवल आर्थिक लेन-देन बल्कि उसके सदस्यों की सूची भी सार्वजनिक हो। उनमें लोकतंत्र कायम रखने की व्यवस्था हो तभी वहां धन का प्रभाव नियंत्रित किया जा सकता है।
केवल इतना ही नहीं अनेक अन्य उपाय भी करने होंगे। अप्रैल 2017 से लागू होने वाले जीएसटी कानून में टैक्स दर कम से कम रखी जाये। तभी हर लेन-देन दर्ज हिो सकता है। यदिे 25 हजार से अधिक के हर लेन-देन के नकद देने पर शिकंजा कसा जाये तो काफी हद तक काले-सफेद को नियंत्रित किया जा सकता है। रेलयात्रा को महंगी और हवाई यात्रा सस्ती करने जैसी असमानता को बढ़ावा देने वाली नीतियों की समीक्षा भी आवश्यक है।
जमीनों का धन्धा, बिल्डर्स, बेनामी सम्पति काली कमाईयों को ठिकाने लगाने के सबसे बड़े माध्यम हैं। एक विशेष विभाग बनाकर उसे हर सम्पत्ति का कम्प्यूटरिकृत रिकार्ड बनाने का काम सौंपा जाये जो आधार नम्बर, पैन नम्बर, हर सम्पति का युनिक कोड नम्बर भी दर्ज करें। एक बड़ा मकान अथवा दो छोटे मकान से अधिक होने पर वार्षिक कर का प्रावधान हो। फार्म हाउसों के नाम पर हो रहे खेल को रोके बिना काले धन से लड़ाई नकारा साबित होगी।
यह विशेष रूप से समझना होगा कि कालेधन को निकलवाने के लिए ऐसे बांड जारी करते जिसे बिना किसी जुर्माना 10 वर्ष ब्याज रहित फिक्स रखा जाता है। इस माध्यम से भी सरकार के पास ब्याज न चुकाने के रूप में कम से कम आधा रकम आ जाती। इससे अफरा-तफरी से बचाव होता। अगर आप किसी को सही रास्ते पर लाना चाहते हो तो धमकियों की भाषा छोड़नी पड़ेगी। मौका दो, जो न माने तो धमक पड़ों उसके घर और किसी भी तरह के दबावों से मुक्त रहते हुए कठोर कार्यवाही की जाये। (प्रधानमंत्री कार्यालय को प्रेषित है। प्राप्त संदर्भ संख्या- PMOPG/E/2016/0511571)
कालाधन नहीं, काली कमाई कहिये हजूर! Not Black Money, But Black source
Reviewed by rashtra kinkar
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