भ्रष्टाचारः सवाल तो साधन शुद्धि का भी!
भ्रष्टाचारः सवाल तो साधन शुद्धि का भी!
भ्रष्टाचार आजादी के बाद से लगातार आजाद होते-होते इतना शक्तिशाली बन चुका है कि कोई भी व्यक्ति ईमानदारी से अपने दिल पर हाथ रखकर यह नहीं कह सकता कि उसने कभी रिश्वत नहीं दी। बच्चे के जन्म से सरकारी या प्राईवेट अस्पताल में ‘बकशीश’ मांगने (छीनने) से शुरू हुआ यह क्रम उसका जन्म प्रमाण-पत्र, स्कूल में दाखिले के समय डोनेशन, कुछ जवान हुए तो किसी प्रोफेशनल कोर्स में दाखिले से होता हुआ नौकरी, प्रमोशन, ट्रांसफर और न जाने कितने सोपानो तक पहुंचता है। भ्रष्टाचार की यह रथ यात्रा हमारे दैनिक जीवन में बिजली कनेक्शन, पानी का बिल ठीक करवाने, राशन कार्ड बनवाने, नाम जुड़वाने-हटवाने, मतदाता पहचान-पत्र बनाने के बाद अब ‘आधार’ कार्ड बनवाने में फार्मों की बिक्री से जमा करने-करवाने में लेन-देन की बातों तक पहुंचता है, जिसे सभी जानते हैं। इसी कारण से भ्रष्टाचार के विरूद्ध देश की जनता में जबरदस्त आक्रोश है, अब यह बात सरकार और भ्रष्टाचारियों को भी मान लेनी चाहिए। वर्तमान आन्दोलन मात्र एक अन्ना का आक्रोश नही है बल्कि करोड़ों लोगों की अभिव्यक्ति है इसलिए इसे अन्ना टीम बनाम सरकार घोषित करने वालों को अपनी गलती सुधारते हुए इसे संपूर्ण देश बनाम व्यवस्था मानना चाहिए।
यह सत्य है कि दिलों में आक्रोश का ज्वालामुखी मौजूद है। रामदेव हो या अन्ना, ये तो एक चिंगारी भर हैं। इसलिए इस लड़ाई को लोकपाल बनाम जन लोकपाल तक सीमित करने की कोशिशों एक ऐसा षड्यंत्र है जिससे सावधान रहने की जरूरत है। इस लड़ाई को एक मुद्दे तक सीमित कर उस मुद्दे पर लिपापोती कर शेष मामले को रफा-दफा करने वालों की ओर से आम जनता को भ्रमित किया जा रहा है। जो लोग एक कानून बनने से भ्रष्टाचार जैसी विकराल समस्या के समाधान का ख्वाब देख रखे हैं, उन्हें समझाना आसान नहीं है कि यदि कानूनों से ही अपराध समाप्त होते तो सदियों से हत्या पर फांसी- उम्रकैद का प्रावधान है। कुछ देशों में तो चोरों के हाथ काटने जैसे सख्त प्रावधान हैं। लेकिन वहाँ भी अपराध पूरी तरह से समाप्त नहीं हुए हैं। यदि ईमानदारी से विश्लेषण किया जाए तो अमानवीय सजाएं देने वाले समाज में अपराध की दर आपेक्षाकृत ज्यादा है। .....लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि सख्त कानून समाप्त कर दिए जाए। अदालतों और जेलों की कोई जरूरत नहीं है। है, जरूर है लेकिन सख्त कानूनों के साथ-साथ गली-सड़ी व्यवस्था में व्याप्त सुधार भी होने चाहिए। उनके बिना कानूनों की कोई सार्थकता नही है। कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है।
क्या हमारे नेताओं, अफसरों और सिविल सोसाइटी के मित्रों को समझाना पड़ेगा कि भ्रष्टाचार के पनपने के कारणों को समाप्त किये बिना यह समस्या हल होने वाली नहीं है। भ्रष्टाचार के दो मुख्य कारण- आम व्यक्ति की दशा और राजनैतिक प्रणाली है। आम आदमी की आर्थिक, शैक्षिक, मानसिक, सामाजिक स्थिति परिस्थितियों से लड़ने अथवा उनके समक्ष घुटने टेकने का कारण बनती है। उदाहरण के तौर पर- एक व्यक्ति रेहड़ी लगाकर कुछ बेचता है। कुछ काम चल निकला तो उस क्षेत्र का बीट अफसर उसे वहाँ से हटने को कहते हुए गाली-गलौच करता है तो उस व्यक्ति के पास क्या विकल्प है? सिविल सोसाइटी वालों ने शायद ऐसी स्थितियों को स्वयं नहीं भोगा इसलिए वे जन-लोकपाल बन जाने मात्र से सम्पूर्ण भ्रष्टाचार की समाप्ति मान रहे हैं। उनका दावा है कि जन लोकपाल ऐसे मामलों को देखेगा और दोषियों को दंडित करेगा लेकिन उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या गरीब-बेबस लोकपाल तक पहुंचने का दुस्साहस कर सकता है? पटरी वाले और पुलिस वाले की घटना कहानी नहीं, सत्य है। मैं साक्षी हूँ कि कुछ लोगों ने उस गरीब को निडर बनने को कहा लेकिन उसे पुलिस वाले को ले- देकर मामला निपटाने के अतिरिक्त कुछ सूझा ही नहीं। हाँ, सत्ता के दलालों ने उसे इतना डराया कि वह गरीब उन भले लोगों को ही अपना दुश्मन समझने लगा क्योंकि उसकी स्थिति उसे रोजी-रोटी से आगे सोचने से रोकती है।
यदि राजनैतिक व्यवस्था पर विचार करें तो महंगे चुनाव, शराब-नोट बांटने का प्रचलन किसी ईमानदार व्यक्ति को राजनैतिक व्यवस्था का अंग बनकर सुधार करने से रोकता है। विश्वविख्यात मोटिवेटर शिव खेड़ा की दिल्ली जैसे स्थान पर जमानत जब्त होना इसका एक सबूत है। क्या यह आश्चर्य नहीं कि जिस शिव खेड़ा को हम महंगी किताबे खरीद कर बहुत चाव से पढ़ने के लिए हैं, जब वह स्वयं आए तो हमने उनकी परवाह ही नहीं की। वर्तमान परिस्थितियाँ में हमारी राजनैतिक प्रणाली योग्यतम व्यक्ति को भी नकारा बना देने के लिए काफी है। मोदी और नितिश सफल हैं तो अपने दृढ़ संकल्प और कुछ कर गुजरने के लक्ष्य के कारण हैं। इसके अतिरिक्त उनके पास पूर्ण बहुमत है तो जनता का भी जबरदस्त समर्थन भी है लेकिन विश्वविख्यात अर्थशास्त्री मनमोहन जी बेबस हैं क्योंकि सांझा सरकार है और उससे भी बड़ी बात यह है कि सरकार बटाई पर चल रही है योग्य, ईमानदार, मेहनती किसान अपनी मर्जी से न तो कुछ बो सकता है और न ही दवाई छिड़क सकता है। सभी जानते हैं गांवों में खेत इसलिए बटाई पर दिया जाता है कि खेत मालिकों के यहाँ जब कोई खेती करने वाला नहीं है। क्या ठीक यही दशा हमारी सरकार की नहीं है?
इस बात स्वयं सिद्ध है कि कि वर्तमान आंदोलन ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनजागरण में जबरदस्त योगदान दिया है। जहाँ मीडिया ने इसके प्रसार में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है, वहीं देश के युवा की सक्रियता काबिले-तारीफ है। वह युवा जिस पर आत्मकेन्द्रित होने का आरोप लगता था। मोबाइल, इंटरनेट और अपनी आधुनिक जीवन शैली में सिमटे रहने वाला कहा जाता था, उसने अपने जोश और आक्रोश से कांग्रेस सरकार को ही नहीं, विपक्षी दलों को भी हिलाकर रख दिया है। युवावर्ग ने स्वयं को इस देश का भावी शासक, जागरूक नागरिक और संवेदनशील इंसान सिद्ध किया है, उसके लिए वह निश्चित रूप से अभिनंदन के पात्र हैं। दूसरी ओर कुछ प्रतिष्ठित, स्थापित व्यक्तित्व फिसलते नजर आये। विशेष रूप से भ्रष्टाचार का साम्प्रदायिकरण, जातिकरण से उनकी प्रतिष्ठा को आघात पहुँचाता है जो भविष्य के खतरों का संकेत भी है। उदाहरण कई हो सकते हैं लेकिन देश की प्रथम महिला आईपीएस किरन बेदी की चर्चा अवश्य की जानी चाहिए। किरन बेदी ने अपने सेवाकाल से अब तक बेहतरीन कार्यों से सुयश प्राप्त किया है। मैं स्वयं उनका प्रशंसक हूँ लेकिन इमाम से समर्थन मांगने जाना, उनके द्वारा भारत माता और वंदेमातरम् जैसे नारों का विरोध तथा अन्य बातें सुनकर खामोश रह जाना उन जैसी शख्सियत के लिए उचित नहीं माना जा सकता है। उन्हें भ्रष्टाचार का साम्प्रदयिकरण करने वालों को करारा जवाब देना चाहिए था। यदि वे अपनी इस भूल को स्वीकार नहीं करती तो उनके आचरण केा भ्रष्टाचार के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है? सिविल सोसाइटी के मुख्य प्रवक्ता के बारे में चर्चा है कि वे उच्च पद छोड़कर आये है लेकिन आज तक उनके द्वारा अपने सेवाकाल में बदलाव की किसी कोशिश की जानकारी कम से कम मुझे तो नहीं मिली। किरन बेदी अफसर रहने हुए बदलाव के लिए लगी रही तो वे साहिब भी बतायें कि उन्होंने क्या किया? यदि उनके पास कहने को कुछ नहीं है तो एक बहुत बड़ा प्रश्न हमारी व्यवस्था के सम्मुख है ‘यदि उच्चाधिकारी ही विवश था तो छोटे कर्मचारियों की क्या औकात जो भ्रष्ट व्यवस्था से भिड़े सकें।’
यह लड़ाई लम्बी चलने वाली है इसलिए जरूरत है व्यवस्था सुधार की। मानसिकता के शुद्धिकरण की। साधनों की शुद्धता की। यह नहीं कि भ्रष्ट से भ्रष्टतम व्यक्ति का भी समर्थन स्वीकार्य। चरित्रहीन ‘मैं अन्ना हूँ’ टोपी लगाए तिरंगा हाथ में लिए भ्रष्टाचार से जंग नहीं लड़ सकते। ऐसे तत्व महान उद्देश्यों के लिए चल रहे आंदोलन को पहले बदनाम, फिर कमजोर और नष्ट करते हैं। मैं यह जानकर बहुत पीड़ा अनुभव कर रहा हूँ कि हमारे क्षेत्र का एक व्यक्ति जिससे उससे पड़ोसी परेशान है। परिजन परेशान है क्योंकि वह हर तरह की गंदगी से सना है लेकिन आंदोलनकारियों के बीच पूड़ियां बांटता है। तीन दिन तिहाड़ जेल के सम्मुख अपनी दानवीरता की धाक जमाता रहा तो उसके बाद रामलीला मैदान में लगा रहा। मैंने उससे फोन पर कहा कि वह स्वयं सुधर जाता तो शायद ऐसे आंदोलनों की जरुरत ही नहीं पड़ती।
जो लोग गंदगी से गंदगी को साफ करना चाहते हैं, उन्हें समझना होगा -यज्ञ में शुद्ध घी, पवित्र समिधा व जड़ी-बूटियों की आहूति से ही वातावरण सुखकर होता है। गंदगी और अपवित्र वस्तुए वातावरण को पहले से भी अधिक बिगाड़ती है इसलिए जरूरत है साधन शुद्धि की। यक्ष प्रश्न यह है कि क्या हम आत्मशुद्धि के लिए तैयार हैं? विनोद बब्बर
With best compiments from Vinod Babbar Mob 09868211911
भ्रष्टाचार आजादी के बाद से लगातार आजाद होते-होते इतना शक्तिशाली बन चुका है कि कोई भी व्यक्ति ईमानदारी से अपने दिल पर हाथ रखकर यह नहीं कह सकता कि उसने कभी रिश्वत नहीं दी। बच्चे के जन्म से सरकारी या प्राईवेट अस्पताल में ‘बकशीश’ मांगने (छीनने) से शुरू हुआ यह क्रम उसका जन्म प्रमाण-पत्र, स्कूल में दाखिले के समय डोनेशन, कुछ जवान हुए तो किसी प्रोफेशनल कोर्स में दाखिले से होता हुआ नौकरी, प्रमोशन, ट्रांसफर और न जाने कितने सोपानो तक पहुंचता है। भ्रष्टाचार की यह रथ यात्रा हमारे दैनिक जीवन में बिजली कनेक्शन, पानी का बिल ठीक करवाने, राशन कार्ड बनवाने, नाम जुड़वाने-हटवाने, मतदाता पहचान-पत्र बनाने के बाद अब ‘आधार’ कार्ड बनवाने में फार्मों की बिक्री से जमा करने-करवाने में लेन-देन की बातों तक पहुंचता है, जिसे सभी जानते हैं। इसी कारण से भ्रष्टाचार के विरूद्ध देश की जनता में जबरदस्त आक्रोश है, अब यह बात सरकार और भ्रष्टाचारियों को भी मान लेनी चाहिए। वर्तमान आन्दोलन मात्र एक अन्ना का आक्रोश नही है बल्कि करोड़ों लोगों की अभिव्यक्ति है इसलिए इसे अन्ना टीम बनाम सरकार घोषित करने वालों को अपनी गलती सुधारते हुए इसे संपूर्ण देश बनाम व्यवस्था मानना चाहिए।
यह सत्य है कि दिलों में आक्रोश का ज्वालामुखी मौजूद है। रामदेव हो या अन्ना, ये तो एक चिंगारी भर हैं। इसलिए इस लड़ाई को लोकपाल बनाम जन लोकपाल तक सीमित करने की कोशिशों एक ऐसा षड्यंत्र है जिससे सावधान रहने की जरूरत है। इस लड़ाई को एक मुद्दे तक सीमित कर उस मुद्दे पर लिपापोती कर शेष मामले को रफा-दफा करने वालों की ओर से आम जनता को भ्रमित किया जा रहा है। जो लोग एक कानून बनने से भ्रष्टाचार जैसी विकराल समस्या के समाधान का ख्वाब देख रखे हैं, उन्हें समझाना आसान नहीं है कि यदि कानूनों से ही अपराध समाप्त होते तो सदियों से हत्या पर फांसी- उम्रकैद का प्रावधान है। कुछ देशों में तो चोरों के हाथ काटने जैसे सख्त प्रावधान हैं। लेकिन वहाँ भी अपराध पूरी तरह से समाप्त नहीं हुए हैं। यदि ईमानदारी से विश्लेषण किया जाए तो अमानवीय सजाएं देने वाले समाज में अपराध की दर आपेक्षाकृत ज्यादा है। .....लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि सख्त कानून समाप्त कर दिए जाए। अदालतों और जेलों की कोई जरूरत नहीं है। है, जरूर है लेकिन सख्त कानूनों के साथ-साथ गली-सड़ी व्यवस्था में व्याप्त सुधार भी होने चाहिए। उनके बिना कानूनों की कोई सार्थकता नही है। कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है।
क्या हमारे नेताओं, अफसरों और सिविल सोसाइटी के मित्रों को समझाना पड़ेगा कि भ्रष्टाचार के पनपने के कारणों को समाप्त किये बिना यह समस्या हल होने वाली नहीं है। भ्रष्टाचार के दो मुख्य कारण- आम व्यक्ति की दशा और राजनैतिक प्रणाली है। आम आदमी की आर्थिक, शैक्षिक, मानसिक, सामाजिक स्थिति परिस्थितियों से लड़ने अथवा उनके समक्ष घुटने टेकने का कारण बनती है। उदाहरण के तौर पर- एक व्यक्ति रेहड़ी लगाकर कुछ बेचता है। कुछ काम चल निकला तो उस क्षेत्र का बीट अफसर उसे वहाँ से हटने को कहते हुए गाली-गलौच करता है तो उस व्यक्ति के पास क्या विकल्प है? सिविल सोसाइटी वालों ने शायद ऐसी स्थितियों को स्वयं नहीं भोगा इसलिए वे जन-लोकपाल बन जाने मात्र से सम्पूर्ण भ्रष्टाचार की समाप्ति मान रहे हैं। उनका दावा है कि जन लोकपाल ऐसे मामलों को देखेगा और दोषियों को दंडित करेगा लेकिन उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या गरीब-बेबस लोकपाल तक पहुंचने का दुस्साहस कर सकता है? पटरी वाले और पुलिस वाले की घटना कहानी नहीं, सत्य है। मैं साक्षी हूँ कि कुछ लोगों ने उस गरीब को निडर बनने को कहा लेकिन उसे पुलिस वाले को ले- देकर मामला निपटाने के अतिरिक्त कुछ सूझा ही नहीं। हाँ, सत्ता के दलालों ने उसे इतना डराया कि वह गरीब उन भले लोगों को ही अपना दुश्मन समझने लगा क्योंकि उसकी स्थिति उसे रोजी-रोटी से आगे सोचने से रोकती है।
यदि राजनैतिक व्यवस्था पर विचार करें तो महंगे चुनाव, शराब-नोट बांटने का प्रचलन किसी ईमानदार व्यक्ति को राजनैतिक व्यवस्था का अंग बनकर सुधार करने से रोकता है। विश्वविख्यात मोटिवेटर शिव खेड़ा की दिल्ली जैसे स्थान पर जमानत जब्त होना इसका एक सबूत है। क्या यह आश्चर्य नहीं कि जिस शिव खेड़ा को हम महंगी किताबे खरीद कर बहुत चाव से पढ़ने के लिए हैं, जब वह स्वयं आए तो हमने उनकी परवाह ही नहीं की। वर्तमान परिस्थितियाँ में हमारी राजनैतिक प्रणाली योग्यतम व्यक्ति को भी नकारा बना देने के लिए काफी है। मोदी और नितिश सफल हैं तो अपने दृढ़ संकल्प और कुछ कर गुजरने के लक्ष्य के कारण हैं। इसके अतिरिक्त उनके पास पूर्ण बहुमत है तो जनता का भी जबरदस्त समर्थन भी है लेकिन विश्वविख्यात अर्थशास्त्री मनमोहन जी बेबस हैं क्योंकि सांझा सरकार है और उससे भी बड़ी बात यह है कि सरकार बटाई पर चल रही है योग्य, ईमानदार, मेहनती किसान अपनी मर्जी से न तो कुछ बो सकता है और न ही दवाई छिड़क सकता है। सभी जानते हैं गांवों में खेत इसलिए बटाई पर दिया जाता है कि खेत मालिकों के यहाँ जब कोई खेती करने वाला नहीं है। क्या ठीक यही दशा हमारी सरकार की नहीं है?
इस बात स्वयं सिद्ध है कि कि वर्तमान आंदोलन ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनजागरण में जबरदस्त योगदान दिया है। जहाँ मीडिया ने इसके प्रसार में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है, वहीं देश के युवा की सक्रियता काबिले-तारीफ है। वह युवा जिस पर आत्मकेन्द्रित होने का आरोप लगता था। मोबाइल, इंटरनेट और अपनी आधुनिक जीवन शैली में सिमटे रहने वाला कहा जाता था, उसने अपने जोश और आक्रोश से कांग्रेस सरकार को ही नहीं, विपक्षी दलों को भी हिलाकर रख दिया है। युवावर्ग ने स्वयं को इस देश का भावी शासक, जागरूक नागरिक और संवेदनशील इंसान सिद्ध किया है, उसके लिए वह निश्चित रूप से अभिनंदन के पात्र हैं। दूसरी ओर कुछ प्रतिष्ठित, स्थापित व्यक्तित्व फिसलते नजर आये। विशेष रूप से भ्रष्टाचार का साम्प्रदायिकरण, जातिकरण से उनकी प्रतिष्ठा को आघात पहुँचाता है जो भविष्य के खतरों का संकेत भी है। उदाहरण कई हो सकते हैं लेकिन देश की प्रथम महिला आईपीएस किरन बेदी की चर्चा अवश्य की जानी चाहिए। किरन बेदी ने अपने सेवाकाल से अब तक बेहतरीन कार्यों से सुयश प्राप्त किया है। मैं स्वयं उनका प्रशंसक हूँ लेकिन इमाम से समर्थन मांगने जाना, उनके द्वारा भारत माता और वंदेमातरम् जैसे नारों का विरोध तथा अन्य बातें सुनकर खामोश रह जाना उन जैसी शख्सियत के लिए उचित नहीं माना जा सकता है। उन्हें भ्रष्टाचार का साम्प्रदयिकरण करने वालों को करारा जवाब देना चाहिए था। यदि वे अपनी इस भूल को स्वीकार नहीं करती तो उनके आचरण केा भ्रष्टाचार के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है? सिविल सोसाइटी के मुख्य प्रवक्ता के बारे में चर्चा है कि वे उच्च पद छोड़कर आये है लेकिन आज तक उनके द्वारा अपने सेवाकाल में बदलाव की किसी कोशिश की जानकारी कम से कम मुझे तो नहीं मिली। किरन बेदी अफसर रहने हुए बदलाव के लिए लगी रही तो वे साहिब भी बतायें कि उन्होंने क्या किया? यदि उनके पास कहने को कुछ नहीं है तो एक बहुत बड़ा प्रश्न हमारी व्यवस्था के सम्मुख है ‘यदि उच्चाधिकारी ही विवश था तो छोटे कर्मचारियों की क्या औकात जो भ्रष्ट व्यवस्था से भिड़े सकें।’
यह लड़ाई लम्बी चलने वाली है इसलिए जरूरत है व्यवस्था सुधार की। मानसिकता के शुद्धिकरण की। साधनों की शुद्धता की। यह नहीं कि भ्रष्ट से भ्रष्टतम व्यक्ति का भी समर्थन स्वीकार्य। चरित्रहीन ‘मैं अन्ना हूँ’ टोपी लगाए तिरंगा हाथ में लिए भ्रष्टाचार से जंग नहीं लड़ सकते। ऐसे तत्व महान उद्देश्यों के लिए चल रहे आंदोलन को पहले बदनाम, फिर कमजोर और नष्ट करते हैं। मैं यह जानकर बहुत पीड़ा अनुभव कर रहा हूँ कि हमारे क्षेत्र का एक व्यक्ति जिससे उससे पड़ोसी परेशान है। परिजन परेशान है क्योंकि वह हर तरह की गंदगी से सना है लेकिन आंदोलनकारियों के बीच पूड़ियां बांटता है। तीन दिन तिहाड़ जेल के सम्मुख अपनी दानवीरता की धाक जमाता रहा तो उसके बाद रामलीला मैदान में लगा रहा। मैंने उससे फोन पर कहा कि वह स्वयं सुधर जाता तो शायद ऐसे आंदोलनों की जरुरत ही नहीं पड़ती।
जो लोग गंदगी से गंदगी को साफ करना चाहते हैं, उन्हें समझना होगा -यज्ञ में शुद्ध घी, पवित्र समिधा व जड़ी-बूटियों की आहूति से ही वातावरण सुखकर होता है। गंदगी और अपवित्र वस्तुए वातावरण को पहले से भी अधिक बिगाड़ती है इसलिए जरूरत है साधन शुद्धि की। यक्ष प्रश्न यह है कि क्या हम आत्मशुद्धि के लिए तैयार हैं? विनोद बब्बर
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भ्रष्टाचारः सवाल तो साधन शुद्धि का भी!
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श्री विनोद बब्बर जी, आज मैं अपने डाटा(ईमेल) के हिसाब से दोस्तों को फेसबुक पर खोज रहा था और अचानक आपके ब्लॉग पर फेसबुक द्वारा पहुंचा. आपके अब तक सभी लेखों का अवलोकन किया. बहुत अच्छा है. आपने कभी लिंक नहीं भेजा. मैंने आपने ब्लोगों के कई बार लिंक भेजे थें. मगर आपने एक बार भी प्रतिक्रिया नहीं दी. तब मैंने आपको लिंक भेजने बंद कर दिए थें. आप अपने ब्लॉग के प्रचार-प्रसार के लिए दूसरों के ब्लॉग पढ़ें. उनका अनुसरण करें और अच्छी या बुरी टिप्पणियाँ भी करें. इससे लोग आपके ब्लॉग पर आकर आपके विचार भी पढ़ेंगे और अपनी टिप्पणी करने के साथ ही आपके ब्लॉग का अनुसरणकर्त्ता भी बनेंगे.
ReplyDeleteमेरे "सिरफिरा-आजाद पंछी"http://sirfiraa.blogspot.com "रमेश कुमार सिरफिरा"http://rksirfiraa.blogspot.com सच्चा दोस्त http://sachchadost.blogspot.com आपकी शायरी http://aap-ki-shayari.blogspot.com मुबारकबाद http://mubarakbad.blogspot.com आपको मुबारक हो http://aapkomubarakho.blogspot.com शकुन्तला प्रेस ऑफ इंडिया प्रकाशन http://shakuntalapress.blogspot.com सच का सामना(आत्मकथा)http://sach-ka-saamana.blogspot.com तीर्थंकर महावीर स्वामी जी http://tirthnkarmahavir.blogspot.com शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय http://laibreri.blogspot.com और (जिनपर कार्य चल रहा है,अगले दो महीने में पूरा होने की संभवाना है>>>शकुन्तला महिला कल्याण कोष http://shakuntala-mkk.blogspot.com मानव सेवा एकता मंच http://manawsewa.blogspot.com एवं चुनाव चिन्ह पर आधरित कैमरा-तीसरी आँख http://kaimra.blogspot.com) ब्लोगों का अवलोकन करें. कैमरा-तीसरी आँख वाला ब्लॉग एक-आध महीना लेट हो सकता लेकिन उस पर अपने लड़े दोनों चुनाव की प्रक्रिया और अनुभव डालने का प्रयास कर रहा हूँ.जिससे मार्च 2012 में दिल्ली नगर निगम के चुनाव होने है और मेरी दिली इच्छा है कि इस बार पहले ज्यादा निर्दलीय लोगों को चुनाव में खड़ा करने के लिए प्रेरित कर सकूँ. पिछली बार 11 लोगों की मदद की थी. जब आम-आदमी और अच्छे लोग राजनीती में नहीं आयेंगे. तब तक देश के बारें में अच्छा सोचना बेकार है. मेरे ब्लॉग से अगर लोगों को जानकारी मिल गई. तब शायद कुछ अन्य भी हौंसला दिखा सकें. मेरे अनुभव और संपत्ति की जानकारी देने से लोगों में एक नया संदेश भी जाएगा.
दोस्तों,"क्या आपको "रसगुल्ले" खाने हैं?" अगर आपका उत्तर हाँ, है तब मैंने रोका कब है? क्लिक करो और खाओ
ReplyDeleteदोस्तों ! एक है रमेश कुमार जैन, जिनका दुनिया की हकीक़त देखकर सिर-फिर गया http://akhtarkhanakela.blogspot.com/2011/08/blog-post_4576.html
सभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें. जरुर देखे "सच लिखने का ब्लॉग जगत में सबसे बड़ा ढोंग-सबसे बड़ी और सबसे खतनाक पोस्ट"
प्रचार सामग्री:-दोस्तों/पाठकों, http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/SIRFIRAA-AAJAD-PANCHHI/ यह मेरा नवभारत टाइम्स पर ब्लॉग. इस को खूब पढ़ो और टिप्पणियों में आलोचना करने के साथ ही अपनी वोट जरुर दो.जिससे मुझे पता लगता रहे कि आपकी पसंद क्या है और किन विषयों पर पढ़ने के इच्छुक है. नवभारत टाइम्स पर आप भी अपना ब्लॉग बनाये.मैंने भी बनाया है. एक बार जरुर पढ़ें.
ReplyDelete"सवाल-जवाब प्रतियोगिता-कसाब आतंकी या मेहमान" मैं विचार व्यक्त करने का सुअवसर मिला.
यहाँ चलता हैं बड़े-बड़े सूरमों का एक छत्र राज और अंधा कानून"व्यक्तिगत हित के स्थान पर सामूहिक हित को महत्त्व" http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html
"रमेश कुमार जैन ने 'सिर-फिरा' दिया"नाम के लिए कुर्सी का कोई फायदा नहीं http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html
जरुर देखे."हम कहाँ से आरंभ कर सकते हैं?" http://anvarat.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html
सभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें. जरुर देखे."प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया को आईना दिखाती एक पोस्ट" http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_20.html
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html कौन होता है सच्चा जैन?
http://hbfint.blogspot.com/2011/07/blog-post_9796.html आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
जरुर देखे."लड़कियों की पीड़ा दर्शाती दो पोस्ट" http://hbfint.blogspot.com/2011/07/blog-post_23.html
सभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें. जरुर देखे "शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय" ब्लॉग की मूल भावना"
दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
ReplyDeleteश्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?
पति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझावअपने अनुभवों से तैयार पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में दंड संबंधी भा.दं.संहिता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव विधि आयोग में भेज रहा हूँ.जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के दुरुपयोग और उसे रोके जाने और प्रभावी बनाए जाने के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए हैं. अगर आपने भी अपने आस-पास देखा हो या आप या आपने अपने किसी रिश्तेदार को महिलाओं के हितों में बनाये कानूनों के दुरूपयोग पर परेशान देखकर कोई मन में इन कानून लेकर बदलाव हेतु कोई सुझाव आया हो तब आप भी बताये.
लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है
मैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.
मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैंथोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.
ReplyDeleteमेरा बिना पानी पिए आज का उपवास है आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया है.
दिल्ली पुलिस का कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो.आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक?
मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए.ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा.
मैंने अपनी पत्नी व उसके परिजनों के साथ ही दिल्ली पुलिस और न्याय व्यवस्था के अत्याचारों के विरोध में 20 मई 2011 से अन्न का त्याग किया हुआ है और 20 जून 2011 से केवल जल पीकर 28 जुलाई तक जैन धर्म की तपस्या करूँगा.जिसके कारण मोबाईल और लैंडलाइन फोन भी बंद रहेंगे. 23 जून से मौन व्रत भी शुरू होगा. आप दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो
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ReplyDeleteसभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें. जरुर देखे"मूर्ख सम्मेलन संपन्न हुआ
ReplyDeletehttp://sirfiraa.blogspot.com/2011/03/blog-post_24.html