एक और रथयात्रा का औचित्य

एक और रथयात्रा का औचित्य
एक बार फिर से भाजपा नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध रथयात्रा निकालने की घोषणा की है। रथयात्राओं की शुरूआत कब हुई, क्यों हुई इस पर अलग-अलग मत हो सकते हैं वर्तमान में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा सर्वाधिक चर्चित है। जगन्नाथपुरी तथा देश के विभिन्न भागों में इस रथयात्रा के प्रति जबरदस्त श्रद्धा और उत्साह देखने को मिलता है। भगवान की शोभायात्रा के अतिरिक्त रईस दूल्हे की बारात भी सफेद घोड़ों की बग्गी सहित निकलती देखी जा सकती है। इसे भी कुछ लोग रथयात्रा ही घोषित करते हैं लेकिन अब राजनैतिक लोगों की प्रचार-यात्राएं पदयात्रा से रथयात्रा की ओर बढ़ रही है। कभी आन्ध्र प्रदेश में तेलुगू देशम् के सुप्रीमों श्री एन.टी.रामाराव ने रथयात्रा निकालकर ऐसा राजनैतिक वातावरण बनाया कि कांग्रेस की दशकों से जमी सत्ता उखड़ गई। बस तभी से रथयात्राओं का सिलसिला चल निकली। रामरथ यात्रा, कश्मीर यात्रा, किसान-यात्रा, सद्भावना यात्रा जैसे अनेक राजनैतिक यात्राएं इतिहास में दर्ज हैं। आडवाणी के अतिरिक्त मुलायम सिंह, मुरली मनोहर जोशी, भैरो सिंह शेखावत की यात्राएं भी खासी चर्चित रही। राजनैतिक विश्लेषकों का दावा है कि रथयात्रा से नेताओं को प्रचार और न्यूनाधिक राजनैतिक लाभ मिलता रहा है। कभी गांधीजी का दाड़ी मार्च, सुनीलदत्त की सद्भावना पदयात्रा, चन्द्रशेखर की भारत यात्रा हुई लेकिन बदलते परिवेश में जब सब कुछ बहुत तेजी से बदल रहा है। सैंकड़ों में सूचना विश्वव्यापी प्रसार प्राप्त कर लेती है इसलिए राजनैतिक सम्पर्क अभियान भी फर्श से अर्श, पथ से रथ यानि पद्यात्रा से रथयात्रा के नाम पर चलाया जाना आवश्यक हो चुका हैं।
आमजन माने या न माने, राजनैतिक पंडितों का दावा है कि भाजपा का लोकसभा की दो सीटों से लगभग दो सौ पर पहुँचना आडवाणी जी की रथयात्रा से उत्पन्न वातावरण के कारण ही हुआ। भारतीय जनता पार्टी के कैडर आधारित संगठन ने इस वातावरण को मजबूत जनाधार में बदलकर स्वयं को सत्ता की दौड़ में ला खड़ा किया। आज केन्द्र मंे भाजपा मुख्य विपक्षी दल है तो अनेक राज्यों में उसकी सरकारें हैं। कुछ में सत्ता की मुख्य दावेदार भी है भारतीय जनता पार्टी।
इधर देश का राजनैतिक परिदृश्य पिछले एक दशक से लगातार धंुधला है। ‘गुड़ फील’ के बावजूद अटल जी की सरकार उलट गई। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी तो कुछ दलों के समर्थन से सोनिया जी ने मनमोहन सिंह को सत्ता की बागड़ोर सौंप दी और स्वयं रिमोट कंट्रोल पाकर पी.एम. की बजाय एस.पी.एम. बन गई। वह दौर ऐसा था जब मनमोहन सिंह जी की विश्वसनीयता शिखर पर थी। सभी को विश्वास था कि मनमोहन के रहते कुछ भी गलत नहीं होगा। इसी विश्वास ने लगातार दूसरी बार कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में आई।
दूसरी पारी में मनमोहन बुरी तरह असफल रहे। यह कहना मुश्किल है कि यह उनकी अक्षमता रही या अपनों की राजनैतिक कलाकारी। कुछ लोगों का मत तो यह भी है कि अपनों ने ही मनमोहन का खेल बिगाड़ा ताकि ‘युवा’ नेतृत्व का सहज राज्याभिषेक किया जा सके। वह मनमोहन जिनके रहते सब ठीक होने की लोक धारणा था, उसमें ऐसा परिवर्तन आया कि आज कहा जा रहा है कि मनमोहन के रहते कुछ भी ठीक होने वाला नहीं है। कुछ बड़बोले माहौल बिगाड़ रहे हैं। जिसका खामियाजा मनमोहन जी को चुकाना पड़ रहा है।
भ्रष्टाचार चरम पर है, महंगाई बेकाबू है, प्रशासन मनमानी कर रहा है, आतंकवाद अपना फन उठा रहा है। ऐसे में जनता की निराशा लगातार बढ़ती जा रही है। अन्ना और रामदेव को मिला जबरदस्त जनसमर्थन उसी निराशा की अभिव्यक्ति है। सत्य तो यह है कि कांग्रेस नेतृत्व से नाराज जनता की भावनाऐं ही अन्ना की सफलता का कारण बनी। जनाक्रोश चरम पर होते हुए भी सरकार की कार्यशैली नहीं बदली। कोई भी क्रांति व्यवस्था परिवर्तन के लिए सत्ता परिवर्तन के बिना सफल नहीं मानी जा सकती अतः देश के प्रमुख विपक्षी दल के समक्ष यह जिम्मेवारी स्वीकारने की चुनौती थी लेकिन उसके अपने दामन पर भी भ्रष्टाचार के काले निशान मौजूद रहते उसकी पहल राजनैतिक विदू्रपता ही साबित होती। यह शुभ लक्षण है कि भाजपा ने अपने भ्रष्ट मुख्यमंत्री येदुरप्पा से जान छुड़ाई और अब उत्तराखंड में भी निशंक की सरकार को चलता कर राजनैतिक माहौल को बेहतर बनाने की शुरूआत की है।
भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व फिलहाल अपनी प्रभावी उपस्थित दर्ज नहीं करवा पा रहा है। दूसरी पीढ़ी में आपसी खिंचतान काफी ज्यादा हैं घूम-घाम कर बात नरेन्द्र मोदी पर आती है लेकिन उन्हें लपेटने की कोशिश लगातार जारी हैं। यह सिलसिला रूकने वाला नहीं है। कल कब कोई कानूनी उलझन खड़ी कर दी जाए, कहना मुश्किल है। ऐसे में जनाक्रोश को जनसमर्थन में बदलने के लिए एक बार फिर पुराने चावल तैयार है। पुराने चावल अपनी विशेष आकर्षण और सुगंध के लिए जाने जाते हैं तो 86 वर्षीय लालकृष्ण आडवानी पर भी व्यक्तिगत रूप से भ्रष्टाचार का कोई आरोप तक नहीं है। उच्चतम पद के करीब होते हुए भी उन्होंने अपनी संतति को अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी बनाने का कोई प्रयास नहीं किया। हवाला मामले में आरोप लगते ही उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा देकर बेदाग होकर ही संसद में आने का नैतिक साहस दिखलाया। आज भी उनका दामन पाक-साफ है। हाँ, कांग्रेस जरूर उन्हें अयोध्या मामले का दोषी घोषित करती है।
आडवानी जी आगामी 11 अक्टूबर को लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयन्ती के अवसर पर लौहपुरूष सरदार पटेल के गांव से रथयात्रा आरम्भ करेंगे जो विभिन्न राज्यों में अपना राजनैतिक प्रभाव दिखाते हुए 20 नवम्बर को संसद के शीत सत्र से ठीक पूर्व समाप्त होगी। घोषित तौर पर इस रथयात्रा को भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा कहा जा रहा है इसलिए भारतीय जनता पार्टी को सबसे पहले अपने दामन को साफ करना चाहिए। उन दागी-बागी नेताओं के विरूद्ध कार्यवाही का साहस दिखाना चाहिए जिनकी जन्मपत्री सभी को मालूम है। भाजपा को स्पष्ट रूप से घोषणा करनी चाहिए कि जिस किसी पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप होगा, उसे आगामी चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाया जाएगा। अतः जो केवल टिकट की इंतजार में बैठे हैं और ऐन वक्त पर धोखा देने वाले हैं, वे आज ही किनारा कर जाए।
दिल्ली नगर निगम के चुनावों में भी भ्रष्ट पार्षदों के प्रति जरा भी उदारता न दिखाने का निर्णय लिया जाए। कार्यकर्ताओं के बीच भ्रष्ट और निकम्मे पार्षद की छवि रखने वाले को चाहे वह कितना बड़ा क्यों न हो, टिकट देने की भूल नहीं करनी चाहिए वरना भ्रष्टाचार के विरूद्ध यह रथयात्रा उपहास के अतिरिक्त कुछ नहीं होगी। पार्टी नेतृत्व को निष्पक्ष जाँच करवा कर केवल स्वच्छ छवि वालों के ही उम्मीदवार बनाना चाहिए। गुटबाजी और सिफारिश को अस्वीकार किये बिना ‘पथ’ से ‘रथ’ पर सवार नहीं हुआ जा सकता।
आडवाणी जी को भी इस कुप्रचार कि- नेतृत्व की दौड़ में बने रहने के लिए वे फिर से रथ पर सवार हुए है, स्वयं आगे बढ़कर गलत घोषित करना चाहिए। उन्हें स्पष्ट घोषणा करनी चाहिए कि वे सत्ता की दौड़ में नहीं है बल्कि उस पार्टी को सत्ता की दौड़ में प्रथम स्थान पर लाने के लिए निकले हैं, जिसे उन्होंने अपने खून-पसीने से सींचा है। जिस प्रकार अपनी कड़ी मेहनत के बावजूद उन्होंने अटल जी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया था, इस बार भी इतिहास ने आडवाणी जी को वहीं जिम्मेवारी दी है। वे किंग बनने की बजाय किंगमेकर बनने का संकल्प ले। चन्द्रगुप्त की बजाय चाणक्य बनने के लिए आडवाणी जी को पहल करनी ही होगी। तभी इस रथयात्रा का औचित्य सिद्ध होगा, वरना किसी क्रांतिकारी परिवर्तन की आशा पालना व्यर्थ होगा। आडवाणी जी आज की राजनीति के सबसे वरिष्ठ सक्रिय नेता हैं। उन्हें अपनी सक्रियता और अनुभव से देश की काया-कल्प करने की पहल करनी चाहिए। फिलहाल रथ तैयार हो रहा हैं पार्टी तैयारी हो रही है। मीडिया छिद्रान्वेषण कर रही है। जनता खामोश है, शान्त है क्योंकि लगातार बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार का रथ उन्हें और उनके अरमानों को कुचल रहा है। सत्ता के दलाल हावी हैं। मनमोहन मन नहीं ‘मोह’ पा रहे हैं। युवराज लिखा हुआ ही पढ़ रहे हैं। सोनिया जी स्वास्थ्य लाभ कर रही हैं लेकिन अपनी सफलता से गद्गद् अन्ना टीम अगले संसद सत्र के परिणामों के बाद की रणनीति बना रही है। .... और इसी के साथ एक बार फिर से तैयार है 86 वर्ष का युवा रथयात्री।
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