श्रद्धा का केन्द्र है सचखंड श्रीहजूर साहिब गुरुद्वारा, नांदेड


श्रद्धा का केन्द्र है सचखंड श्रीहजूर साहिब गुरुद्वारा, नांदेड
गत नवम्बर में महाराष्ट्र के ऐतिहासिक सचखण्ड हजूर साहिब, नांदेड़ में अहिन्दीभाषी हिन्दी लेखक संघ एवं दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी के संयुक्त जज्वावधान में आयोजित लेखक सम्मेलन का निमंत्रण मिला तो मैंने तत्काल हाँ कर दी। नांदेड़ में गुरु गोबिंदसिंह की अंतिम कर्मस्थली जिसे सिख पंथ के पाँच तख्त साहिबान में से शुमार किया गया है, के दर्शनों की चाह बहुत समय से थी। नांदेड़ निवासी श्री राजेन्द्र शुक्ल और उनकी विदुषी धर्मपत्नी डॉ. अरुणा शुक्ल अनेक बार नांदेड़ आने के लिए कह चुके थे। दुर्भाग्य से वह कार्यक्रम स्थगित हो गया जो बाद में फरवरी में आयोजित किया गया। हिन्दी अकादमी ने हमारे आने-जाने की व्यवस्था की थी। 9 फरवरी को संचखण्ड एक्सप्रेस से हमारा आरक्षण हुआ लेकिन स्मरण हुआ कि एक ठग द्वारा चैक के माध्यम से की गई धोखेबाजी के एक मामले में 10 फरवरी को तारीख है। शिकायत मैंने ही दर्ज की थी अतः मेरा रोहिणी कोर्ट में उपस्थित होना अनिवार्य था इसलिए हमने अपनी टिकट 10 फरवरी की रात्रि गंगानगर-नांदेड़ एक्सप्रेस से करवायी। मेरे साथ हम सब साथ-साथ के यशस्वी संपादक किशोर श्रीवास्तव, यथासंभव के संपादक मुनीष गोयल तथा हिन्दीसेवी खुशालचंद खुराना को भी जाना था।
हम नियत समय से पूर्व ही दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गए लेकिन गाड़ी एक घंटा देरी से अर्धरात्रि के बाद ही रवाना हुई। गाड़ी की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती क्योंकि साफ-सफाई का अभाव था। गाड़ी में अधिकांश पंजाब तथा अन्य स्थानों से आये तीर्थयात्री ही थे इसलिए सब कुछ सहज रहा। हम चारों का आरक्षण प्रतिक्षा सूची में होने के कारण जो तनाव था उसे श्री कैलाश गंभीर ने दूर कर दिया। समाजसेवी कैलाशजी रेलवे बोर्ड में अधिकारी हैं। उनके प्रयासों से चार में से तीन की सीट सुनिश्चित हो गई। अतः रात्रि में मुनीष अपना बिस्तर पास ही लगा लिया। रास्ते भर हमारी आपेक्षा के विपरित काफी सर्दी थी। सुबह तड़के झांसी में किशोर जी का भतीजा स्टेशन पर गर्मागर्म समोसों और चाय के साथ उपस्थित था तो भोपाल में एक अन्य मित्र ने स्वादिष्ट मिठाईयों से नवाजा। इटारसी में सिक्ख संगत की ओर से लंगर की व्यवस्था थी। स्वादिष्ट पालक और चावल ही नहीं, नरम-गर्म रोटियां भी दी गई। इस तरह हमारा दोपहर का भोजन बेहतरीन रहा।
दिनभर की यात्रा उबाऊ हो सकती थी यदि हम अकेले होते। हमारे ही साथ राजस्थान मूल के वासिम निवासी चार युवक भी थे जो अपने व्यापार के सिलसिले में दिल्ली आज भी आये थे। वे सुसंस्कारित युवक भी हमारे सहयोगी बने रहे। अकोला में भी रात्रि लंगर की व्यवस्था स्थानीय सिक्ख संगत द्वारा स्टेशन पर ही की गई थी। हम उनकी श्रद्धा के सम्मुख नतमस्तक थे। यह सिक्ख गुरुओं के पुण्य प्रताप का परिणाम है कि उनकी अनुयायी दुनिया भर में संगत और पंगत अर्थात् लंगर की परम्परा को जिंदा रखे हैं।
गाड़ी कों नांदेड़ रात्रि लगभग बारह बजे पहुंँचना था लेकिन दो घंटे देरी से प्लेटफार्म पर पहुँचे तो प्रिय राजेन्द्र अपनी कार लिए तैयार मिले। उन्होंने हमें अपने साथ घर चलने का आग्रह तो किया लेकिन हमने अपने शेष साथियों संग गुरु रामदास सराय में ही रहना स्वीकार किया।
अतिविशाल यात्री निवास काम्प्लेक्स जहाँ साधारण ही नहीं, एन.आर.आई. निवास, पंजाब सरकार का यात्री निवास सहित एक साथ हजारों लोगों के रहने की व्यवस्था थी। मेरा अनुमान है कि यहाँ के विशाल परिसर और सुविधाओं ने अमृतसर के विश्व प्रसिद्ध स्वणमंदिर परिसर की सुविधाओं को भी पीछे छोड़ दिया है।
अगली सुबह स्नान-ध्यान के पश्चात हमने सबसे पहले गुरुद्वारा साहिब के दर्शन किये। इसे तखत सचखंड श्रीहजूर अबचलनगर साहिब कहा जाता है। इसकी प्रसिद्धि भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में है। हर सुबह यहाँ के शब्द कीर्तन का सीधे प्रसारण किया जाता है।
कहा जाता है कि जब गुरु गोबिंदसिंह जी के अपने पिता और चारों बेटे देशधर्म के लिए शहीद हो गए, तब वे लोकहित में गोदावरी नदी के किनारे बसे नगर नांदेड़ पहुँचे। नांदेड़ में गुरुजी ने लीलाएँ रची। यहाँ आपने गुरुद्वारा नगीना घाट से तीर चलाकर पूर्व गुरुओं के समय का तप-स्थान प्रगट किया। तीर एक मस्जिद में जा लगा, जहाँ ढाई हाथ जमीन खोदकर सतयुगी आसन, करमंडल, खड़ाऊ और माला निकाली और वह स्थान प्रगट किया। बदले में उस जमीन के मालिक मुस्लिम को उस स्थान पर सोने की मोहरें बिछाकर दी गई।
इस स्थान के प्रगट होने पर यहाँ गुरुजी रोज नई-नई लीलाएँ करने लगे। सुबह-शाम दीवान सजने लगे। चारों तरफ आनंदमयी रौनक बढ़ गई। कुछ ही समय बाद सूबा सरहद के नवाब वजीर खान के भेजे कातिलों के हमले के बाद आपने सचखंड गमन की तैयारी की तो अति व्याकुल संगत के पूछने पर आपने विक्रमी संवत 1765 कार्तिक सुदी दूज (4 अक्टूबर 1708) के दिन पाँच पैसे और नारियल श्रीगुरु ग्रंथ साहिब जी के सम्मुख रख, माथा टेककर श्रद्धा सहित परिक्रमा की और इस पावन दिन समूह सिख संगत को साहिब श्रीगुरु ग्रंथ साहिब जी से जोड़कर और युग-युगों तक अटल गुरुता गद्दी अर्पण की। इस तरह श्रीगुरु ग्रंथ साहिब को गुरु गद्दी देकर दीवान में बैठी संगत को फरमाया -
आगिआ भई अकाल की तवी चलाओ पंथ।।
सब सिखन को हुकम है गुरू मानियो ग्रंथ।।
गुरू ग्रंथ जी मानियो प्रगट गुरां की देह।।
जो प्रभ को मिलबो चहै खोज शब्द में लेह।।
इसके बाद गुरु साहिब ने सर्वत्र खालसा सिख संगत को भविष्य का मार्ग दिखाया। युगों युग की इस पावन पवित्र हुई धरती का नाम श्री अबचलनगर हुआ। इस तरह जगत तमाशा देखने के बाद विचित्र नाटक खेलते हुए संवत 1765 कार्तिक सुदी पंचमी के दिन आप परम पुरख परमात्मा में अभेद हो गए।
नांदेड़ दक्कन के पठार में गोदावरी नदी के तट पर बसा महाराष्ट्र का एक प्रमुख शहर है। नंदा तट के कारण इस शहर का नाम नांदेड़ पड़ा। सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व में नंदा तट मगध साम्राज्य की सीमा थी। प्राचीन काल में यहां सातवाहन, बादामी के चालुक्यों, राष्ट्रकूटों और देवगिरी के यादवों का शासन था। मध्यकाल में बहमनी, निजामशाही, मुगल और मराठों ने यहां शासन किया। जबकि आधुनिक काल में यहां हैदराबाद के निजामों का अधिकार था जिसे विरूद्ध स्वामी रामानंद तीर्थ ने सत्याग्रह कर इसें मुक्त करवाया। इस तरह इस स्थान को आजादी 1947 के पश्चात ही मिली। प्राचीन काल में यह शहर वेदांत की शिक्षा, शास्त्रीय संगीत, नाटक, साहित्य और कला का प्रमुख केन्द्र था।
इस गुरुस्थान में अपार जनसमूह की श्रद्धा देखते ही बनती है। भारी भीड़ लेकिन पूरी तरह अनुशासन। कहीं कोई अफरा-तफरी नहीं। हमने प्रातः प्रसाद वहीं ग्रहण किया। वहाँ एक समान वर्दी पहने स्थानीय महिलाएं सेवा कर रही थी। काम मनुष्य ही नहीं, मशीनों से भी हो रहा था। सब यंत्रवत, बहुत सुंदर दृश्य था, श्री संचखंड हजूर गुरुद्वारे का। एक स्थान पर लगे बोर्ड पर लिखा था- इस स्थान को पंजाब के शासक महाराजा रंजीत सिंह द्वारा 1830 से 1839 के दौरान बनवाया गया था। गुरुजी का आदेश था कि उनके नाम पर कोई स्थान न बनाया जाए। जो भी ऐसा करेगा, उसका वंश समाप्त हो जाएगा। महाराजा रंजीत सिंह ने यह जानकर भी गुरु स्थान बनवाया। उनका कहना था, ‘गुरु सिक्ख होने के नाते यह मेरा फर्ज है कि मैं अपने गुरु की स्मृति को स्थायी बनाने का कार्य करूं। बेशक मेरा वंश नष्ट हो जाए लेकिन मेरे गुरु का नाम अमर रहना चाहिए।’ धन्य है वह भारत भूमि जहाँ सर्ववंशदानी गुरु गोविंद सिंह जी ने अवतार लिया और उनके अनुयायी रंजीत सिंह भी खुशी से अपना सर्वस्व समर्पित करने को तत्पर थे।
बताया गया कि प्रतिदिन अमृत बेले गोदावरी नदी से जल की गागर भरकर सचखंड में लाई जाती है। सुखमणि साहिब जी के पाठ की समाप्ति के पश्चात गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया जाता है। अरदास के पश्चात संपूर्ण दिवस गुरुद्वारा पाठ और कीर्तन से गूंजता रहता है। संध्या में रहिरास साहिब का पाठ और आरती के बाद गुरु गोबिंदसिंह, महाराजा रणजीतसिंह और अकाली फूलासिंह के प्रमुख शस्त्रों के दर्शन करवाए जाते हैं।
गुरुद्वारे के मुख्यद्वार पर भीड़ देखकर हम वहाँ पहुँचे तो देखा गुरु साहिब के समय के घोड़ों के वंशज सजे हुए घोड़े अपने करतब दिखा रहे थे। विशाल कद काठी के इन घोड़े की नस्ल सिक्खों द्वारा संरक्षित विशेष रूप से संरक्षित करने के लिए अति विशाल स्थान भी बनाया गया है। श्रद्धालु गुरुजी के प्रिय दिलबाग के वंशज इन घोड़ों को स्पर्श कर उनके पूर्वजों द्वारा गुरु गोविंद सिंह जी की सेवा के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर रहे थे। हमने इस दृश्य को अपने कैमरे में कैद भी किया।
चूंकि हिन्दी सम्मेलन शाम को आरंभ होने वाला था इसलिए अपने से पूर्व पधारे साथियों से मिलने -जुलने और उनके अनुभवों को जानने के पश्चात हम औंधा नागनाथ गए जहाँ प्रसिद्ध नागेश्वर ज्योर्तिलिंग है। ऐतिहासिक मंदिर प्रांगण में प्रवेश करते ही लंबी लाइन नजर आयी। हमें शाम से पहले वापस भी पहुँचना था इसलिए दक्षिणावाली लाइन से प्रवेश किया। विष्णु की अति प्राचीन मूर्ति के दर्शनों के पश्चात नीचे बेसमेंट में ज्योर्तिलिंग के दर्शन होते हैं। बहुत तंग सीढ़ियां, उसपर भी खड़े होने लायक स्थान नहीं। बैठकर पहुँचे तो देखा अनेक पुजारी दर्शन करवाने के लिए मौजूद थे।
मंदिर परिसर में भोजन प्रसाद की विशेष व्यवस्था थी। मात्र दस रूपये में थाली जिसमें दाल, चावल, सब्जी, चटनी, चपाती और न जाने क्या -क्या। सचमुच आनंद आ गया। मंदिर में हमारे चारों संग लखनऊ के डॉ. कृष्ण नारायण पाण्डेय और कर्नाटक के सुनील पारिट भी थे। मंदिर के बाहर का दृश्य बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। सरकार को इस स्थान पर साफ-सफाई और सुविधाएं जुटानी चाहिए। आश्चर्य कि देश के ग्यारह ज्योर्तिलिंगों में शामिल इस स्थान से नांदेड़ तक की कोई सीधी व्यवस्था भी नहीं है। यदि इस दिशा में ध्यान दिया जाए तो यह स्थान प्रमुख पर्यटक स्थल के रूप विकसित हो कर स्थानीय जनता की आय में वृद्धि कर सकता है। हमें जल्दी थी इसलिए कई गुना अधिक किराया देकर वहाँ से एक जीप लेकर नांदेड पहुँचे। इस सफर में हमारे साथ विकासपुरी आए श्री राजेन्द्र गुप्ता और उनकी सहधर्मिणी भी थे जो नजदीक रहकर तो कभी नहीं मिले लेकिन सैंकड़ों मील दूर यहाँ मिलकर मित्र बन गए। रास्ते भर संस्कृत प्रेमी डॉ.पाण्डेय से धर्म चर्चा होती रही जिसका आनंद सभी सहयात्रियों ने भी लिया।
शाम को हम नांदेड़ के साइन्स कालेज पहुँचे जहाँ की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. अरुणा राजेन्द्र शुक्ल के सौजन्य से समस्त व्यवस्थाएं की गई थी। केन्द्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सम्मानित सदस्य स. हंसपाल संग संचखंड हजूर साहिब के मुख्यग्रन्थी भी देशभर से पधारे हिन्दी लेखकों का उत्साह बढ़ाने के लिए उपस्थित थे। गुरु की नगरी है तो स्वाभाविक रूप से गुरु गोविन्द सिंह के साहित्य पर खूब चर्चा हुई। अनेक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आये। अमृतसर के गुरुनानक देव विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष रहे डॉ. हरमहेन्दर सिंह बेदी जोकि सिक्ख इतिहास और साहित्य के मर्मज्ञ हैं, के व्याख्यान ने सभी को प्रभावित किया। सम्मेलन के अन्य दिनों भी सार्थक संवाद हुआ। संगोष्ठी, चर्चा, कवि सम्मेलन में पूरे देश का प्रतिनिधित्व रहा। देवबंद के डॉ. महेन्द्रपाल काम्बोज द्वारा गुरु की नगरी पर विशेष रूप से लिखी गई कविता को स्वयं हैडग्रन्थी प्रतापसिंह जी ने सराहा और उन्हें सरोपा भेंटकर सम्मानित भी किया। हिन्दी अकादमी के उपसचिव डॉ. हरिसुमन बिष्ठ स्वयं पूरे समय सभागार में उपस्थित रहकर सम्मेलन को गंभीरता प्रदान करते रहे। अंतिम दिन स्थानीय विधायक श्री ओमप्रकाश पोकर्णा ने पधार कर सभी का अभिनंदन किया। समारोह की समाप्ति के पश्चात स्थानीय संयोजिका डा. अरुणा राजेन्द्र शुक्ल द्वारा आयोजित प्रीतिभोज में सभी प्रतिभागियों के अतिरिक्त स्थानीय अधिकारियों, गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे। इस विदाई समारोह मंे सभी ने सुंदर आयोजन, श्रेष्ठ आतिथ्य एवं स्नेहिल व्यवहार से सभी का दिल जीतने वाली डा. अरुणा राजेन्द्र शुक्ल तथा उनके प्राचार्य डा. कलमसे की कण्ठमुक्त प्रशंसा की।
नांदेड़ में सचखंड गुरूद्वारे के अलावा सात अन्य गुरूद्वारे भी हैं जो की धार्मिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण हैं। गुरुद्वारा नगीना घाट, गुरुद्वारा बंदा घाट, गुरुद्वारा शिकार घाट, गुरुद्वारा हीरा घाट, गुरुद्वारा माता साहिब, गुरुद्वारा माल टेकडी, तथा गुरुद्वारा संगत साहिब। सचखंड गुरूद्वारे के नजदीक ही एक बड़ा ही सुन्दर उद्यान गोविन्द बाग़ है जहाँ प्रतिदिन शाम सात से आठ बजे तक सिखों के दसों गुरुओं का परिचय तथा खालसा का इतिहास लेज़र शो के द्वारा दिखाया जाता है।. सचखंड गुरूद्वारे से ही गुरुद्वारा बोर्ड के द्वारा बसें उपलब्ध हैं जो की यात्रियों को नांदेड़ के सारे गुरूद्वारे तथा अन्य दर्शनीय स्थानों के दर्शन कराती है. यहाँ की पूरी व्यवस्था तथा देखरेख के लिए गुरुद्वारा बोर्ड तथा मेनेजिंग कमिटी करती है।
सिक्ख धर्म से जुड़े संग्रहालय, गुरुद्वारा लंगर साहिब के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थानों में पहाड़ी पर बना रेणुका देवी का मंदिर हैज ो चारों तरफ घने जंगल से धिरा हैं। नांदेड़ का किला है तीन ओर से गोदावरी नदी से घिरा हुआ है। किले के भीतर एक खूबसूरत बगीचा और सुंदर फव्वारा हैं जो इसकी सुंदरता में बढोतरी करता हैं। पेनगंगा नदी के तट पर स्थित उन्केश्वर में गर्म पानी का झरना है। सचमुच यादगार रही हमार यह साहित्यिक जमा ध ार्मिक यात्रा।
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1 comment

  1. अद्भुत वर्णन किया बब्बर जी आपने . लगा की आपके साथ साथ हम भी चल रहे हैं.आपने हमे बैठे बैठे ही नांदेड़ की यात्रा करवा दी , साधुवाद

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