छोटे व्यापारी की बर्बादी की तैयारी-----डा. विनोद बब्बर


पिछले दिनों स्कूल की जमीन पर बनी हमारे क्षेत्र की सब्जी मंडी को हटाने और बचाने पर जमकर राजनीति हुई। जाहिर है गरीब सब्जी विक्रेता अपनी रोजी-रोटी छिनने की आशंका से परेशान थे। वह मामला तो फिलहाल टल गया लेकिन देश भर में रिटेल व्यापार पर विदेशी कम्पनियों को अनुमति दिये जाने से देश में रिटेल का व्यापार करने वाले करोड़ों छोटे व्यापारियों की बर्बादी का रोड़मैप तैयार हो गया है। फिलहाल लगभग सभी नगरों में ऐसे बड़े-बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर खोले गए हैं, जहाँ एक ही छत के नीचे घर का सारा सामान मिलता है। कुछ लोगों विशेष रूप से युवा पीढ़ी और नवधनिक वर्ग में इनके प्रति आकर्षण है अतः वे ऐसे वातानुकुलित केंद्रों पर पहुंच रहे हैं, जहाँ सब कुछ पैक किया हुआ मिलता है और सेल्फ सर्विस है। अब तो इनसे भी व्यापार छीनने की तैयारी है। सरकार दावा कर रही है कि विदेशी पूंजी को रिटेल व्यापार करने की अनुमति देने से देश में रोजगार बढ़ेगा। किसानों का माल सीधे ये कम्पनियां खरीदेगी जिससे उन्हें लाभ होगा। सरकार के अनुसार फिलहाल बिचौलियों का दबदबा है और ग्राहक उत्पाद के लिए जो कीमत अदा करता है उसका केवल एक तिहाई ही किसान को मिलता है और बाकी फायदा बिचौलिये कमाते हैं। जब बिचौलियों की बात उठी है तो यह भी जानना जरूरी हो जाता है कि ये कौन लोग हैं। बैलगाड़ी चलाने वाले, ट्रांसपोर्टर, एजेंट और छोटे कारोबारी ये बिचौलिये हैं। दूसरी ओर वैश्विक दिग्गज कंपनियों के लिए महंगे विज्ञापनों में ब्रांड एंबेसडर बिचौलियों का काम करते हैं जो कंपनियों से करोड़ों रुपये लेते हैं। इसके अलावा बिजली खपत, गोदाम और ट्रांसपोर्ट के उनके खर्चे भी बहुत ज्यादा होते हैं। हमारे बिचौलिये अर्थव्यवस्था को मजबूती देते है। छोटे कारोबारियों पर जो दो-तिहाई मुनाफा बनाने का आरोप लगाया जा रहा है वह पूरी तरह गलत है। यह सर्वविदित है कि पिछले सात वर्षों से बड़े कारोबारी घराने खुदरा कारोबार में शामिल हैं। यदि हम तुलना करें तो स्पष्ट होता है कि उनके भाव बाजारं के बराबर या उनसे ज्यादा हैं। अतः ज्यादा मुनाफा कमाने का आरोप केवल बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इस बाजार में उतारने का एक जरिया मात्र है। सरकार को खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी निवेश को मंजूरी देने के बजाय छोटे एवं मझोले व्यवसासियों की सुरक्षा और संरक्षा पर जोर देना चाहिए है। गांधीजी जिस कुटीर उद्योग और गांव के विकास की कल्पना करते थे क्या वह रिटेल व्यापार में विदेशी पूंजी की अनुमति देकर पूरा होगा? जहाँ तक रोजगार वृद्धि का प्रश्न है अगर वालमार्ट रोजगारी पैदा कर सकता है तो उसे बताना चाहिए कि अमेरिका जहां वह अपना धंधा कर रहा है,वहां की जनता क्यों बेरोजगार है ?2011 के आकड़ो के मुताबिक पूरी दुनिया में उनके 9970 स्टोर मोजूद है। इनके कर्मचारियों की कुल संख्या 2012 के अकड़े के मुताबिक 22 लाख है अर्थात् 245 व्यक्ति प्रति स्टोर को उसने काम दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार वे भारत में 1000 स्टोर भी खोले तो मात्र ढाई लाख से ज्यादा लोगो को नोकरी नहीं मिल सकती जबकि बेरोजगार होंगे 22 करोड़। वालमार्ट स्टोर के बारे में कहा जाता है कि वे जहाँ व्यवसाय शुरु करते हैं उनका सबसे पहला काम उस क्षेत्र में कार्यरत प्रतिद्वंदियों को ख़तम करता है। खुद अमेरिका की आज की स्थिति यह है कि वहां की छोटे रिटेल चेन ख़तम हो गई है। खुद राष्ट्रपति ओबामा लोगो को छोटे स्टोर से चीज़े खरीदने की अपील कर रहे है.तो क्या भारत को क्या हासिल होने वाला है? वालमार्ट ज्यादातर चीज़े चीन से खरीदता है। चीनी माल की क्वालिटी के बारे में सभी जानते हैं। ये विदेशी कम्पनियां घटिया माल बेचकर भारी मुनाफा अपने देश में ले जाना चाहते हे.और दूसरी ओर भारत के करोडो लोगो को बेरोजगार और दरिद्र बनाना चाहते है। यह कदम कृषि और लघु उद्योग क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। पारंपरिक किराना स्टोरों को भी मुश्किलों का सामना करना होगा क्योंकि ग्राहकों को फायदा पहुंचाने के मामले में ये हमेशा पीछे रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण है कि हमारे देश त के ढीले मानको का उल्लंघन कर बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य उत्पाद धकेले जा सकते हैं। भारतीयों में विदेशी उत्पादों की ललक हमेशा से रही है। उन पर आंख मूंद कर विश्वास करने की मानसिकता रही है। भारत में स्वास्थ्य, सुरक्षा और दूसरे गुणवत्ता मानकों की धज्जियां उड़ती रही हैं। ऐसी स्थिति में सैकड़ों लोगों का रोजगार छिन जाता है और इससे सामाजिक तानेबाने को नुकसान पहुंचता है। रिटेल से जुड़े लोग ज्यादातर लोग युवा होते हैं और जब रोजगार छिनता है तो ये छोटे-मोटे अपराधों की ओर मुड़ सकते हैं। कुल मिलाकर यह देसी खुदरा कारोबारियों के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर देगा, इसको देखते हुए कारोबारी तबका हर संभव तरीके से इसका कड़ा विरोध करेगा। यह केवल कारोबारियों को ही नुकसान नहीं पहुंचाएगा बल्कि किसानों, ट्रांसपोर्टर, कामगारों और खुदरा कारोबार से जुड़े कई अन्य पक्षों के लिए घातक साबित होगा। अगर भारत में बहुब्रांड खुदरा को मंजूरी दे दी जा जाती है तो वैश्विक रिटेलरों का मकसद बाजार में उतरते ही ज्यादा से ज्यादा बाजार हिस्सेदारी हासिल करना होगा। उनकी क्षमताओं तथा सरकार सेे नजदीकी को देखते हुए ऐसा करना मुश्किल भी नहीं होगा। और जब एक बार वे बाजार पर काबिज हो जाएंगी तो फिर मनमाने तरीके से बाजार को चलाएंगी और लोगों से मनमाने दाम वसूलेंगी। पिछले दिनों हमने दिल्ली की अनेक कालोनियों का सर्वेक्षण किया ताकि रिटेल सैक्टर में पहले से मौजूद बड़ी कम्पनियों के प्रभावों का अध्ययन कर सके। परिणाम बताते हैं कि पॉश कालोनियां ही नहीं बल्कि स्लम अथवा अनाधिकृत बस्तियों के छोटे दुकानदारों की बिक्री भी प्रभावित हुई है। पश्चिम दिल्ली व्यापार संघ के प्रवक्ता ने बताया कि सीलिंग के विरूद्ध सारी दिल्ली एकजुट थी, सरकार को गलत नीतियों पर पुःर्विचार करने पर मजबूर होना पड़ा पर अब छोटे दुकानदार पर फिर से खतरे के बादल मंडरा रहे हैं, कहीं कोई हलचल नहीं है, लगता है जैसे राजनीति के सारे धुरंधरों ने भी हमारी बर्बादी को अपनी स्वीकृति दे दी हो। इन विदेशी कम्पनियों के पास अपार धन है। वे वर्षों के घाटे की सहन करने की तैयारी है। लेकिन छोटे व्यापारी ज्यादा दिन तक घाटा बर्दाश्त नहीं कर सकते ऐसे में धीरे -धीरे इन कम्पनियों का एकाधिकार हो जाएगा और जो लोग आज खुश हो रहे हैं उन्हें भी एक दिन पछताना पड़ेगा। यदि इस सिलसिले को रोका नहीं गया, तो देश के खुदरा दुकानदारों की बर्बादी तय है। देश में लगभग 8 करोड़ छोटे व्यापारी हैं। यदि एक दुकान से यदि 5 व्यक्तियों के परिवार की रोजी रोटी को निर्भर मान लिया जाए, तो देश के लगभग 40 करोड़ लोग खुदरा व्यापार से अपना जीवन चलाते हैं। देश की इतनी बड़ी जनसंख्या को रामभरोसे छोड़ देना किसी भी जिम्मेदार सरकार के एजेंडे में नहीं हो सकता। फल, सब्जी बेचने वाले हो या किरयाने जैसा छोटा-मोटा काम करने वाले, यह जैसे-तैसे अपना गुजारा करने वाला वर्ग है यदि इनकी रोजी रोटी छीन ली गई तो उनके भटकने का भी खतरा है, जिससे समाज की शांति भंग होगी। सरकार को हर पहलु पर विचार करने के बाद ही इस बारे में फैसला करना चाहिए। उन्होंने रोष प्रकट करते हुए कहा, ‘विडम्बना है कि गाँधी का नाम लेने वाले ही गाँधी के दर्शन से दूर भाग रहे हैं।’ देश का विकास तभी सार्थक माना जा सकता है, जब समाज के आखिरी आदमी का जीवन स्तर भी सुधरे। एक ओर सरकारी नौकरियाँ घट रही है, निजीकरण के कारण छटनी बढ़ रही है, रोजगार के अवसर दिन प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं। ऐसे में स्वरोजगार ही एक मात्र विकल्प बचता है पर छोटा मोटा व्यापार करने वालों पर इन बड़ी कम्पनियों का प्रभाव पड़ता लाजिम है इसलिए नेताओं को दोहरा आचरण छोड़कर बहुजन हिताय काम करना चाहिए। -डा. विनोद बब्बर
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3 comments

  1. Bahoot badhiya Subject hai, bhai sahab !!

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  2. सटीक जानकारी है आपके लेख में,.... पर यह भी उतना ही सत्य है कि आज हम इन प्रक्रियाओं को भले ही रोक लें, पर कल हमें यह सारी प्रक्रियाएं अपनानी ही पड़ेंगी. क्योंकि हमारे देश की भी तमाम कंपनिया बाहर कार्य कर रही हैं. विशेषकर सूचना प्रोद्योगिकी में तो ९० फीसदी तक हम बाहरी कार्यों पर निर्भर हैं. आप इस तथ्य से भी इंकार नहीं करेंगे कि चाहे बाहर की कम्पनियां आये या न आये, इस से न किसानो को फायदा होगा, न किसी और को. पर इस से आम उपभोक्ता को प्रतियोगी दर पर सामान और गुणवत्ता जरूर मिलेगी. ... जरूरत इस बात की है कि हम किसानो और अपने देशवासियों को विकसित और आत्म- निर्भर बनाने की कला सीखाएं, उनको वैज्ञानिक सुविधाएं दे.. जैसे अमेरिका इत्यादि अन्य विकसित देशों में है, न कि दूसरों को आने से रोकें ... क्योंकि यह सिद्धांत विकास के विरुद्ध है. यदि कोई आएगा ही नहीं तो विकास होगा ही नहीं, वैसे भी आशा भोंषले जी कहती है कि "अतिथि देवो भवः |

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    1. प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद, आपके विचार अच्छे है लेकिन विदेशी निर्भरता / प्रतियोगिता की जरूरत का अनावश्यक समर्थन करते है. आपका कथन .... हमारे देश की भी तमाम कंपनिया बाहर कार्य कर रही हैं. विशेषकर सूचना प्रोद्योगिकी में तो ९० फीसदी तक हम बाहरी कार्यों पर निर्भर हैं ....अतिश्योक्ति है. सचाई इससे उलट है. सूचना प्रोद्योगिकी में हमारी स्थिति को दुनिया स्वीकार करती है, अगर आप hardware की बात कर रहे है तो जानले हमारा जो धन लगातार घोटालो में बर्बाद हो रहा है या विदेशी खातो में है यदि उसे ही हम अपने देश में निवेश करदे तो बिल्ल्गेट्स से बेहतर व्यवस्था R &D कर सकते है. लेकिन हमारा ध्यान उस तरफ नहीं है हम तो विदेशी श्रेष्ठता की ग्रंथि से स्वयं को मुक्त करना ही नहीं चाहते . जब आप जैसा राष्ट्र वादी भी मानने लगा है कि... इस से आम उपभोक्ता को प्रतियोगी दर पर सामान और गुणवत्ता जरूर मिलेगी .... तो इस देश का आम आदमी इन बातो के भ्रम जाल में आसानी से आ ही जाएगा. प्रियवर प्रतियोगिता का पूरी दुनिया में एक ही अर्थ होता है दो सामान शक्ति, गुणों, व्यवहार वाले प्रतियोगियों का मुकाबला, न कि चींटी और चतुर लोमड़ी का मुकाबला.
      आपका यह कहना ... जरूरत इस बात की है कि हम किसानो और अपने देशवासियों को विकसित और आत्म- निर्भर बनाने की कला सीखाएं, उनको वैज्ञानिक सुविधाएं दे.. जैसे अमेरिका इत्यादि अन्य विकसित देशों में है.... ही समाधान है लेकिन बताये कि इसके लिए आपके पास क्या तैयारी है? यह कहना कि प्रतियोगिता सब सीखा देगी ठीक उसी प्रकार से है जैसे कहा जाता है... भूख मनुष्य को अपने आप कुछ करना सीखा दी देती है.. जबकि सत्य यह है जब तक सही परिस्थितिया न मिला, आशा यही होती है कि युवा भटक जाते है, भिखारी से अपराधी तक बन जाते है. पहले परिस्थितियों का निर्माण करो फिर प्रतियोगिता का एलान करो.
      आपका यह कथन ........ न कि दूसरों को आने से रोकें ... क्योंकि यह सिद्धांत विकास के विरुद्ध है. यदि कोई आएगा ही नहीं तो विकास होगा ही नहीं, वैसे भी आशा भोंषले जी कहती है कि "अतिथि देवो भवः.... घोर आपतिजनक है. अतिथि का स्वागत है, लूटेरो का नहीं, wallmart का इतिहास और रिकोर्ड आप जाँच ले उत्तर मिल जायेगा. आश्चर्य यह भी है कि आपने महान संस्कृति के सूत्र को प्रस्तुत करने के लिए उसका सहारा लिया जो पैसा लेकर कुछ भी गाने को तैयार हो, शायद कल लूटेरो कि प्रसस्ति में भी कोई विज्ञापन आ जाये ... और तब तो दर है कि आप भी पूरी तरह से विदेशी राज्य के समर्थक हो जाये, वैसे इससे मेरा व्यक्तिगत कुछ नुकसान नहीं होने वाला क्योकि मै पका हुआ आम हूँ. जल्द झड ही जाऊँगा, भुक्तना आपको ही पड़ेगा क्योकि अभी आप राजनैतिक गुलामी और आर्थिक गुलामी के अंतर को समझ नहीं पा रहे है ....जब समझेगे तब तक बहुत देर हो चुकी होगी और........

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