नाबालिग को पुनःपरिभाषा करने की आवश्यकता--डा विनोद बब्बर Need to redifine Minor---Vinod Babbar

आश्चर्यजनक है कि दिल्ली सामूहिक बलात्कार कांड की शिकार उस युवती को मरणोपरान्त अन्तर्राष्ट्रीय साहसिक महिला पुरस्कार देने की घोषणा की गई है जिसके एक आरोपी को नाबालिग होने के कारण जल्द ही जेल से मुक्ति मिल सकती है। यह कटू सत्य है कि संचार और आधुनिक सुविधाओं के अंधाधुंध प्रसार का एक दुष्प्रभाव है कि अपराधों में युवाओं  की संख्या खतरनाक रफ्तार से लगातार बढ़ती जा रही है। स्थिति यह है कि बालिग और नाबालिग का अंतर भी  तेजी से मिट रहा है क्योंकि नई पीढ़ी समय से पहले जवान हो रही है। वर्तमान कानून के अनुसार 18 वर्ष तक के युवा को नाबालिग माना गया है पर जिस तरह से आज समाज में बदलाव आ रहा है और विकृत मानसिकता अपना रूप दिखाने लगी है उस स्थिति में इस तरह के कानूनों से किसी भी अपराधी को संरक्षण दिए जाने को सभ्य समाज में स्वीकार नहीं जा सकता है। अतः नाबालिग की परिभाषा को निर्धारित करने की आवश्यकता है। ऐसे में जघन्य घटनाओं के खि़लाफ़ समाज के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए बहस किसी निर्णय तक पहुँचनी ही चाहिए। 
इस चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले यह जानना सामयिक होगा कि सऊदी अरब में सात नाबालिग दोषियों को सिर कलम कर मौत की सजा दी जा रही है। हालाँकि जब इन्होंने एक बैंक को लूटा था, उस समय उनकी उम्र 18 वर्ष से भी कम थी। उनकी सजा को लेकर काफी बहस भी हुई। लेकिन सऊदी अरब के शासकों ने न्याय के हित में उनकी  सजा बरकरार रखी। विदेशी की छोड़ अपने देश में देखे तो नए संशोधन विधेयक में सहमति से सेक्स की उम्र 18 से 16 साल किए जाने का प्रस्ताव है। इसके अतिरिक्त दुनिया भर के एग्रीमेन्ट एक्ट नाबालिंग एजेन्ट द्वारा किये गये किसी भी अनुबंध को उसके मालिक के लिए बाध्यकारी घोषित करते हैं। स्वयं भारत सरकार द्वारा चौदह वर्ष तक आयु के बच्चों की शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया है। हमारे यहाँ बाल मजदूरी कानून के अनुसार 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम करवाना अपराध है। जबकि उससे अधिक आयु होने पर कोई मामला नहीं बनता। 
हमारे देश के कानून के अनुसार विवाह की आयु अठारह और इक्कीस वर्ष है लेकिन हमारी अदालतें अनेक मामलों में इससे कम आयु के जोड़ों के विवाह को भी मान्यता दे चुकी हैं। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि दिल्ली में हुई सामूहिक बलात्कार की शर्मनाक घटना में शामिल सर्वाधिक क्रूर अपराधी नाबालिग होने के कारण किसी प्रकार की छूट का अधिकारी क्यों हो?  क्या यह उचित नहीं होगा कि बालिग होने की उम्र 18 से घटाकर 16 कर देनी चाहिए। उस कथित नाबालिग ने जिस तरह से दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी, उससे वह किसी छूट की पात्रता ही नहीं रखता। जिस दिन अपराध हुआ था वह बालिग होने से मात्र पाँच महीने उन्नीस दिन कम था। जिसके कारनामें  वहशी वाले हो तो उसे उम्र के आधार पर नादान नहीं ठहराया जा सकता। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है बलात्कार तीन साल की बच्ची से हो या तीस साल की महिला से। जब सामान्य अपराधी को एक जैसी सजा दी जाती है अर्थात् कानून के लिए पीड़ित की उम्र कोई मायने नहीं रहती तो पापी की उम्र की चर्चा न्यायपूर्ण कैसे कही जा सकती है? 
किसी भी बाल अपराधी को इस तरह के जघन्यतम अपराध करने के बाद किस तरह से बाल अपराधी माना जा सकता है जब उसका अपराध अन्य बालिगों से भी अधिक बड़ा है ? इसलिए इस मसले को कोर्ट द्वारा मानवीयता के आधार पर सुना जाना चाहिए और भले ही देश का कानून उसे किसी भी तरह का संरक्षण उसकी आयु के कारण प्रदान करता हो पर उस जैसी मानसिकता के बच्चे का समाज में खुले आम घूमना भी अपने आप में पूरे न्याय तंत्र और समाज की विफलता को ही प्रदर्शित करेगा। दुर्लभतम मामलों में कोर्ट के पास इस तरह के अधिकार पहले से कानून द्वारा दिए गए हैं तो इस मसले में उसकी उम्र का बहाना बनाकर उसे छोड़ा नहीं जाना चाहिए क्योंकि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 82 के तहत वह 12 साल से ऊपर हो चुका है जिस उम्र में उसे कोई सज़ा नहीं दी जा सकती है और धारा 83 के तहत यह अधिकार न्यायाधीश पर छोड़ दिया गया है कि वह उसके कृत्य के लिए अपने विवेक के अनुसार विचार करके या सुनिश्चित करे कि वह नाबालिग अपने कृत्य के दुष्परिणामों पर विचार कर सकने लायक है या नहीं और उसे उसके अनुसार ही सज़ा दे सके। इसलिए इस मामले में यह कथित नाबालिग किसी भी कानून के तहत किसी रियायत को नहीं पा सकता है यदि न्यायाधीश द्वारा उस पर भी केस चलाने का निर्णय लिया जाये।
बालिग होने का निर्धारण केवल  उम्र के आधार पर नहीं किया जा सकता। जब एक  पागल को उसकी मानसिक स्थिति के कारण रियायत दी जाती है तो यह समझना और स्वीकार करना जरूरी है कि आजकल बच्चों को जिस तरह का खुला माहौल मिल रहा है, उससे उनमें मानसिक परिपक्वता उम्र से पहले आ रही है। यह तर्क कि शारीरिक रूप से सक्षम लोग जुर्म करते हैं, तो समझना पड़ेगा कि दिल्ली रेप कांड का अपराधी  शारीरिक रूप से असक्षम नहीं माना जा सकता। वैसे भी आजकल सारे नहीं तो शहरी बच्चों में पन्द्रह वर्ष की आयु में व्यस्कता आ जाती है।  लड़के-लड़कियों के शरीर में बारह- तेरह वर्ष की उम्र से यौवन में प्रवेश के परिवर्तन लक्षित होने शुरू हो जाते हैं। जब पूरी सभ्यता-संस्कृति परिवर्तित हो रही है तो नए कानून अपेक्षित हैं।
वैसे यह प्रश्न अपनी जगह सही है कि उस नाबालिग कहे जाने वाले लड़के के दिमाग में इतनी क्रूरता आखिर आई तो आखिर कहाँ से? यदि हम अपने चारों ओर नजर दौड़ाये तो पाएंगे कि एक वर्ग के बच्चों का असामाजिक कृत्यों में संलिप्त होना एक सामान्य सी बात बन गई है। इनका बसों में पॉकेट मारना, लड़कियों पर कमेंट पास करना, अश्लील हरकतें करना, नशाखोरी आदि सर्वत्र दिखाई देता है। निश्चित ही यह उम्र भटकने वाली होती है जिसके परिणामस्वरूप  इसी उम्र में किशोर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण खोकर समाज के लिए खतरा साबित हो रहे हैं। पुलिस और परिवार वाले अक्सर इन्हें नाबालिग और बच्चा समझकर छोड़ देते हैं जिसकी वजह से इनकी दुष्टता और अधिक बढ़ जाती है। 
आज अधिकतर परिवारों का अपने युवा होते बच्चों पर कोई नियन्त्रण ही नहीं रह गया है। कई परिवारों को तो पता ही नही होता कि उनका बच्चा क्या कर रहा है? यदि कभी कोई लड़का अगर कोई गलती करते हुए पकड़ा जाए तो किसी तरह से मामला रफा-दफा करवा दिया जाता है। जिसका नतीजा हमें आज देखने को मिल रहा है। हमारे नाबालिग बच्चे  बड़ी-बड़ी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। नैतिक शिक्षा से वंचित आज की इस पीढ़ी को आखिर कानून के अतिरिक्त कौन काबू कर सकता है। इन्हें सही और उपयुक्त सजा का प्रावधान हो तो शायद समाज में कुछ सुधार की गुजांइश है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो पिछले दिनों हुए देश-व्यापी प्रदर्शन और आंदोलनों का औचित्य क्या रह जाएगा?  यह मांग उठनी ही चाहिए कि ऐसा कानून बदलना चाहिए वरना इससे नाबालिग अपराधियों के हौंसले बुलंद होंगे। आँकड़े गवाह है कि पिछले कुछ वर्षों में नाबालिग अपराधियों की संख्या खतरनाक ढ़ंग से बढ़ी  है। 
यह संतोष की बात है कि  दिल्ली के उपराज्यपाल ने मांग की है कि जिस तरह से बाल अपराध लगातार बढ़ रहा है उसे देखते हुए ये जरूरी हो गया है कि नाबालिगों की उम्र 18 से कम की जानी चाहिए। बिहार के मुख्यमंत्री भी इसी राय के हैं। इससे पूर्व भी अनेक राज्य सरकारों और सामाजिक संगठनों ने ऐसे मामलों से संबंधित  अधिनियम में संशोधन करके किशोर की आयु को घटाकर 16 साल किए जाने की मांग की है। यदि कानून में वर्तमान प्रावधान जारी रहे तो बहुत संभव है कि पेशेवर अपराधी गिरोह नाबालिगों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर उन्हें जघन्यतम अपराधों की ओर धकेले। ऐसे नाबालिग आरोप सिद्ध हो जाने के बाद भी दंड से बचे रहेंगे तो समाज में स्वयं निर्णय लेने की प्रवृति बढ़ सकती है जो किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक होगा। आवश्यक है कि किसी भी हैवान को कानूनी  छिद्रों का लाभ लेने की अनुमति हर्गिज नहीं दी जानी चाहिए।

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