महंगाई के फायदे-- डा. विनोद बब्बर

महंगाई शब्द कब अस्तित्व में आया, इसका कोई  निश्चित प्रमाण तो नहीं मिलता। पर महंगाई के इतिहास-भूगोल पर नजर डालने के बाद एक बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि रूपये-पैसे के चलन से पूर्व भी इसका अस्तित्व था। मह और गाई शब्दों को उलट-पुलट कर देखने से इनमें भैंस और गाय की सूरत नजर आती है। ऐसा लगता है कि जब गाय की कीमत भैंस के बराबर हुई होगी, तो पहली बार इस शब्द का  प्रयोग किया गया होगा।
महंगाई को कोई नहीं चाहता। पर मंहगाई भत्ते का इंतजार हर बाबू को रहता है। डी.ए. के प्रति डियरनैस जगजाहिर है। डी.ए.  राजनीति का दाव है  क्यांेकि इसे वोट खींचू मंत्र भी माना जाता है। गोदाम माल से भरे हों तो महंगाई व्यापारी के लिए देवता है पर सब्सिड़ी, अनुदान, सहायता का रूप धरे, यह नेता-अफसरों की गरीबी दूर करने का शर्तिया नुस्खा भी है।  महंगाई संसाधनांे के दुरुपयोग की घोर शत्रु है। इसलिए, सस्ते दौर में अच्छे-अच्छे, टमाटरों पर पिल पड़ने वाले टमाटर के आंखें दिखाते ही पिल-पिलो पर भी फिदा होने लगते हैं। महंगाई मनुष्य को प्रतिष्ठा दिलाती है, घर में महंगी वस्तुएं रखने से मनुष्य का भाव बढ़ता है। जब वी.सी.आर. मंहगे थे, तब उन्हें ड्राइंग रूम में रखना संपन्नता का प्रतीक माना जाता था। मगर दाम गिरते ही आज वी.सी.आर. की क्या दशा है, सभी जानते हैं। वी.सी.आर. के ड्राइंग रूम से कूड़ेदान तक के सफर का एकमात्र कारण उसका ‘चीप‘ हो जाना है (चीप का कोई भी अर्थ लगाने के लिए आप स्वतंत्र हैं)।
जब मैं महंगाई-महंगाई का शोर सुनता हूॅ, तो मुझे लोगांे की नासमझी पर हंसी आती है। एक तरफ तो सारा भारत इस देश को विश्वशक्ति बनाने पर तुला है, मगर वर्तमान विश्व थानेदार से कीमतों में जरा-सी बराबरी होते ही चिल्लाना शुरू कर देता है। आज भी भारत में अनाज, दालें, सब्जियाँ, जमीनें, मकान अमेरिकी कीमतांे के आगे कहीं नहीं टिकते। जिस खर्चे में वहां के लोग एक वक्त का खाना पाते हैं, उतने में तो भारत के अधिकांश लोग महीनांे गुज़ार देते हैं। क्या यह हमारे लिए चिंता का विषय नहीं होना चाहिए कि हम अमेरिका ही क्यों, इंगलैंड, जर्मनी, फ्रांस तो क्या जापान, सिंगापुर, थाईलैंड जैसे देशों से भी काफी ‘सस्ते‘ (चीप) हैं।
यह सच है कि विकास अपने साथ अनेक समस्याएं भी लेकर आता है। लोगो में मोटापा बढ़ता है, तो दिलों में दरार भी बढ़ती है। महंगाई इन दोनांे समस्याओं पर काफी हद तक कंट्रोल करती है।ं अब सोचो, यदि खान -पान सस्ता होगा, तो लोग ज्यादा खाएँगंे, इससे उनका वजन बढे़गा। ज्यादा वजन अनेक बीमारियों की जड़ है, इन बीमारियों में से अनेक तो जान लेवा भी हो सकती हैं। मेरा निश्चित मत है कि महंगाई स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है और मनुष्य को दीर्घजीवी बनाती है। महंगाई बिना डायटिंग के ही डायटिंग के सम्पूर्ण लाभ प्रदान करती है।
खर्चे से बहुत ज्यादा आय मनुष्य को आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी बनाती है, दिलांे में दरार डालती है। पर आय से ज्यादा खर्चा होते ही मनुष्य समाजकेंद्रित हो जाता है। उस में मिलजुल कर रहने की प्रवृत्ति बढ़ती है। धार्मिक स्थलों पर आना- जाना बढ़ता है और सामूहिक भोज ( जिसे आप भंडारा, लंगर या खैरात जो भी कहें ) के प्रति श्रद्धा बढ़ती है।
मैं जब भी सुनता हूँ कि यहांँ प्याज की बढ़ी हुई कीमतों ने सरकारें पलट दीं, तो मेरा मन  हीनभावना से भर जाता है। दुनिया कहां से कहां पहुँच गई, मगर हम अब भी प्याज पर अटके हैं। सबसे ज्यादा आश्चर्य तो तब होता है जब एक तरफ तो हम प्याज को तामसी भोजन कह कर त्याज्य घोषित करते हैं, पर ज्योंही कीमतें इसे त्याज्य बनाती हैं, हम हाय-तौबा शुरू कर देते हैं। आज जब प्याज के रेट पर विदेशी मोबाइल, घड़ियां, इलैक्ट्रोनिक्स वस्तुएं मिल रही हांे, तो प्याज के लिए आंसू बहाना राष्ट्रीय संसाधनांे का दुरुपयोग है। मेरे इस कथन को दुनिया का कोई विवेकशील व्यक्ति गलत साबित करने का दुस्साहस नहीं कर सकता कि चीनी की कीमतों में वृद्धि ने देश के करोड़ांे लोगांे को मधुमेह से बचाया है। सारी दुनिया जानती है कि मधुमेह अनेक रोगो का कारक और कारण है। मेरा सुझाव नहीं, जोरदार मांग है कि देश को ‘शुगर‘ से बचाने के लिए शुगर की कीमतों में चार गुना वृद्धि होनी चाहिए। इसी तरह से खाद्य तेलांे और देशी घी की बढ़ती कीमतों से तिलमिलाते लोगांे से मेरा अनुरोध है कि महंगाई को कोलेस्ट्रोल घटाने का वरदान मानते हुए थोड़ी सकारात्मक सोच रखंे।
मेरा यह मानना है कि महंगाई का सबसे ज्यादा लाभ गरीबों को होता है। मैं स्वयं महंगाई के कारण हर महीने घर बैठे हजारांे रूपयों की बचत करता हूँ। ‘ऊर्जा बचाना कमाने के समान है‘ के जगह-जगह टंगे हुए वाक्य के अनुसार, मेरी बचत मेरी आय है। अब आप कहंेगे, न हजारों की बचत का फार्मूला हमंे भी बताओ तो सुनिए हमारी खुशहाली का राज़।
जब देशी घी के दाम 200 रूपये प्रति किलो ग्राम से बढ़कर 450 रू. हो गए, तो मुझे 1250रू. प्रति माह की अधिक बचत होने लगी। आप पूछेंगे कैसे? अरे, सीधी सच्ची बात यह है कि पहले मैं हर महीने 5 किलो ग्राम देशी घी न खा कर मात्र 1000 रूपये बचाता था। पर अब यह बचत 2250 रू. हो गई। इसी तरह से, हवाई यात्रा महंगी होने से भी मुझे भारी लाभ हुआ है क्यांेकि पहले हवाई जहाज में सफर न करने से होने वाली बचत अब बहुत अधिक बढ़ गई है। ये तो मात्र कुछ उदाहरण हैं, महंगाई ने बचत का पिटारा खोल दिया है।
मेरे पड़ोसी शर्मा जी की समस्या तो महंगाई शब्द से ही दूर हो गई। हुआ यूं कि उनकी 5 वर्ष की बेटी का कद नहीं बढ़ रहा था। वे बेचारे हर उपाय करके हार गए, तो एक अनुभवी ने उन्हें बेटी का नाम महंगाई रखने का आइडिया दिया। आप मानें, न मानें, पर इस आइडिये ने कमाल कर दिया, लड़की की लम्बाई- चौड़ाई में बढ़ोतरी ने शर्मा जी की समस्या हल कर दी। सुना है, अब वही शर्मा जी बेटी के बढ़ते खर्चांे से परेशान हो कर विपक्षी नेता की तरह ‘महंगाई‘ को कोस रहे हैं। है न कृतघ्नता?
मैं तो बलिहारी हूं महंगे प्याज का जिसने मेरा घर बर्बाद होने से बचा लिया। मेरे  निखट्टू बेटे की उम्र बिना सेहरा बांधे ही बीतती जा रही थी। पर भला हो प्याज की आसमान छूती कीमतांे का। उसने सुबह से प्याज की लाइन में लगी एक युवती को दो की बजाय चार किलो प्याज क्या दिलवाये, लड़कीे के दिल में कोई  वायरस घर कर गया और इस तरह मुझ गरीब के बेटे का घर बस गया। 
मनुष्य की मानसिकता भी बहुत अजीब है। शादी में महंगा बैंड बजवायंेगे, नोट लुटायंेेगे, दावत में 56 भोग नहीं, 256 व्यंजन परोसेगे। फार्म हाउस के तामझाम पर लाखों लुटाकर अपने आप पर फूले नहीं समायंेगे। पर सरकार की कृपा से होने वाली महंगाई को बर्दाश्त करने को जरा भी तैयार नहीं। खूब छाती पीटंेगे, धरने प्रदर्शन की शोभा बनेंगे, किसी टी.वी. चैनल पर ‘हाय हाय‘ के नारों के साथ अपना मुखड़ा देखकर मचलने वालो, महंगाई एक चुनौती है, तो अवसर भी। यदि आपके पास काली- पीली दौलत है, तो फिर देर किस बात की, छपा डालो अपने फोटो वाले रंगीन पोस्टर और चस्पा दो, हर दरो-दीवार पर। बड़े-बडेेे़ होर्डिंग आपकी शौहरत में चार चांद लगा सकते हैं, तुम्हें आदमी से नेता बना सकते है। कुछ बेरोजगारांे को साथ लेकर हर रोज कहीं न कहीं झण्डा गाड़ दो और कर दो क्रांति का ऐलान -
‘महंगाई जो रोक न सके, वह सरकार निकम्मी है।‘
’जो सरकार निकम्मी है, वह सरकार बदलनी है।‘
यकीन मानिये, आपका भी भाव बढ़ जाएगा। महंगाई आपको राजनीति में ‘फिट‘ कर सकती है। फिर टिकट.... विधायक.......... मंत्री और न जाने, क्या-क्या कर सकती है मंहगाई। यदि आप भी चाहते हैं महंगाई से लाभ उठाना, तो मत चूको चौहान। ‘इंकलाब जिंदाबाद‘ ‘महंगाई हाय !हाय!‘ लगाते रहो नारे, लगे रहो मुन्ना भाई।
ओह! ये क्या....? मेरे पैन की स्याही समाप्त? लगता है, इसमें विरोधियों की कोई चाल है जो महंगाई के सभी फायदों का खुलासा नहीं होने देना चाहते। इसलिये, निवेदन है कि मैं जो कुछ नहीं लिख सका, उसे भी लिखा हुुआ मान लिया जाए।  Contact-09868211911
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