आखिर क्यों होता है धन काला डा. विनोद बब्बर

पिछले दिनों मुंबई में एक स्थान पर कमराभर नोट पकड़े जाने का समाचार था तो उससे पहले एक राज्य की ‘लोकप्रिय मुख्यमंत्री को आय से अधिक सम्पति रखने के मामले में दोषी ठहराते हुए जेल भेजा गया। परंतु आजकलइन दिनों विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वालों के नामों पर बहुत गहमागहमी है। कभी कांग्रेस सरकार विदेशी समझौतों के नाम पर इन नामों को सार्वजनिक करने से बचती थी  तो अब भाजपा सरकार भी उसी तर्क की आड़ लेती नजर आई। सरकार द्वारा मात्र 3 नाम बताने से खिन्न उच्चतम न्य्ााय्ाालय्ा ने सारे नाम कोर्ट में बताने का निर्देश दिया तो  सरकार के पास कोई चारा नहीं था। नाम फिलहाल सार्वजनिक नहीं हुए है इसलिए सभी अपनेे विरोधियों के नाम ले रहे हैं। कोई विकिलिक्स के सूत्रों की बात कर रहा है तो कोई अपने ढ़ंग से अटकले लगा रहा है। इसलिए यह आवश्यक है कि भ्रम का अंधेरा छंटना चाहिए। बिना किसी भेदभाव के जो भी दोषी हो उसके विरुद्ध कठोरतम कार्यवाही की जानी चाहिए। साथ ही साथ ऐसे उपाय होने चाहिए जिससे कालेधन की उत्पति पर ही रोक लगे।  
 विदेशों में जमा धन पर  बड़े-बड़े दावें-प्रतिदावे किए जा रहे हैं।  दूसरी ओर हम जब-तब भारत को सोने की चिड़िया घोषित करते हैं लेकिन अपनी गरीबी का रोना भी रोते हैं। गरीबी दूर करने की योजनाएं बनाते हैं और विदेशी सहायता लेते हैं। तो क्या यह माना जाए कि सोने की चिड़िया वाला हमारा दावा काल्पनिक है? कटु सत्य यह है कि हमारे नेताओं की मिलीभगत से इस सोने चिड़िया को भारत भूमि से दूर,विदेशी बैंकों की तिजोरियों में कैद कर लिया गया है। स्विस बैंकों के संगठन की 2006 की रपट के अनुसार वहाँ के बैंकों में भारतीयों के 1456 अरब डॉलर जमा हैं। जबकि विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान आंकड़ा 10 से 20 खरब डॉलर होने की अटकले है। इस राशि का सालाना ब्याज ही केन्द्र सरकार के बजट से ज्यादा होगा। यदि इस राशि को वापस लाकर देश के विकास कार्यों में लगाया जाए तो काया-कल्प हो सकती है। अनेक समस्याएं तो ढ़ूढे नहीं मिलेगी। यह स्पष्ट है कि यह वह काला धन है जो इस देश के लूटकर बेईमान उद्योगपतियों, दलालों, भ्रष्ट नेताओं, भ्रष्ट अफसरों, फिल्मी सितारों, क्रिकेट खिलाड़ियों आदि ने स्विस बैंकों में जमा किया है। इन बदनाम बैंकों में पूरी दुनिया का काला पैसा जमा होता है, क्योंकि यहाँ टैक्स नहीं लगता है और जमाकर्ताओं के नाम व खातों की जानकारी गोपनीय रखी जाती है। 
 अब प्रश्न यह है कि काले धन की उत्पति कैसे और क्यों होती है? जिस आय पर समुचित आयकर का भुगतान नहीं होता है, वह धन काला धन कहलाता है। काला धन वैध तथा अवैध दोनों स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है। चूंकि आय के अधिकांश वैध स्रोत राज्य को ज्ञात होते हैं,  इस कारण कालेधन के मुख्य स्रोत अवैध आय के स्रोत होते हैं। भारत में काला धन अवैध आय स्रोतों से प्राप्त होता है। व्यवसायियों के पास उपलब्ध काला धन उनके व्यवसाय में लगा रहता है इसलिए उसका उत्पादक उपयोग होता है, जबकि अवैध आय स्रोतों से प्राप्त काला धन बहुधा किसी उत्पादक उपयोग में न लगाकर किसी अन्य काले धंधे में लगाया जता है। इस तरह का काला धन देश की राजनीति, सामाजिक व्यवस्था और अर्थव्यवस्था के लिए घातक सिद्ध होता है। 
शुरुआती दौर में नेता राजनैतिक गतिविधियों  के लिए व्यवसायियों के काले धन में से धन प्राप्त करते थे, प्रशासकों को इसमें सम्मिलित नहीं किया जाता था और अधिकांश राजनेता भी इसमें व्यक्तिगत भागीदारी नहीं रखते थे। अतः यह काला धन केवल राजनैतिक दलों का होता था। इस कारण से राजनेता राज्यकर्मियों पर अपना नियंत्रण बनाये रखते थे जिससे उनका भ्रष्ट होना कठिन था। व्यवसायियों के पास के काले धन का लाभ कुछ अफसरशाहों ने भी उठाया जिससे वे भी उसके हिस्सेदार बनने लगे और कालांतर में इसके हिस्सेदार हो गए। वे इस काले धन को उपयोग अपने वैभव भोगों के लिए किया करते थे। 
सत्तर के दशक में राजनेताओं ने प्रशासकों को काला धन कमाने और उन्हें हिस्सा देने के लिए विवश करना आरंभ कर दिया जिससे वे परस्पर भागीदार बन गए और  नेताओं के नियंत्रण से मुक्त होकर भ्रष्टतम होकर निर्विघ्न रूप से जनता का शोषण करने लगे जो लगातार जारी है। यद्यपि व्यवसायी  धन कमाने के लिए जाने जातेे हैं परंतु अधिकांश भाग अफसरशाहों के पास पहुँचता है।
देश में काले धन के अर्थ -व्यवस्था पर नियंत्रण के लिए अनेक वैधानिक प्रावधान किये गए हैं जो केवल आम नागरिकों जिनमें नौकरीपेशा कर्मचारी और छोटे व्यवसायी प्रमुख हैं, पर ही सख्ती से लागू किए जाते हैं। जबकि काले धन के मुख्य वाहक नेता और अफसरशाह तमाम वैधानिक बंधनों से मुक्त ही रहतेहैं क्योंकि वे इन प्रावधानों इतनी चतुराई से बनवाते हैं कि वे स्वयं बच निकलें।  व्यवसायियों के काले धन का उत्पादक उपयोग होता है। किन्तु नेताओं और अफसरशाहों के काले धन का बड़ा भाग विदेशी बैंकों में जमा किया जा रहा है। अतः इसका लाभ देश को न होकर विदेशों को हो रहा है। सब जानते हैं कि राजनीति आज कितना महंगा व्यसन बन चुका है जो कालेधन की बिना पर ही फल-फूल रहा है। 
जहाँ तक काले धन की उत्पति का प्रश्न है, छोटे व्यवसायी का काला धन सरकार की गलत आर्थिक नीतियों और दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण ही होता है वरना जो व्यक्ति ढंग से जी नहीं पा रहा, अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने में असमर्थ है, उसके पास घोषित से अधिक धन क्यों है? सच्चाई यह है कि आज भी आयकर की छूट सीमा इतनी कम है कि उससे दो जून की रोटी खाकर, बच्चों की परवरिश,, मकान का किराया या किश्त भरना आसान नहीं है। यह तो ऐसा हुआ जैसे किसी बच्चे को अपने ही घर पर चुराकर रोटी खाते पकड़ा जाए। स्पष्ट है कि खाने की कमी नहीं है पर भूखे रखे जाने के कारण ही वह बच्चे (दूसरे के घर से नहीं) ें चोरी को मजबूर किया गया। ऐसे में दोषी बच्चा है या अभिभावक? इससे स्पष्ट है कि व्यवस्था भी काले धन को खत्म नहीं करना चाहती। यह धन हेराफेरी का कमाया हुआ नहीं है। मेहनत के कमाये धन को अपनी जरूरतें पूरी किये बिना सरकार को देना संभव नहीं है।
अर्थशास्त्री कौटिल्य (चाणक्य) ने भी कहा है कि कर आटे में नमक से कम होना चाहिए। काले धन से लड़ाई को कारगर बनाने के लिए अवैध स्रोतों से प्राप्त धन और मेहनत की कमाई में अन्तर करना पड़ेगा। मेहनतकश लोगों को छूट दिये बिना अर्थात आयकर छूट सीमा वर्तमान में पाँच लाख तक बढ़ाये बिना सारे प्रयास नकारा और निष्प्रभावी साबित होंगे। चुनावी खर्च को अनियंत्रित होना भी काले धन की उत्पति और संरक्षण का बहुत बड़ा कारण है। जरूरत है इस भस्मासुर को काबू में किया जाए। देश को मोदी सरकार से बहुत आशाएं हैं। उनका सफाई अभियान यदि इस गंदगी तो पहुंच सका तो इतिहास उन्हें श्रद्धा से स्मरण करेगा। ...और यदि दुर्भाग्य से वे भी राजनीति के दांवपेच में उलझकर असफल रहे तो इतिहास का कोई कूड़ेदान उनके लिए भी सुरक्षित रहेगा।
डा. विनोद बब्बर संपर्क-09868211911निवास- ए-2/9ए, हस्तसाल  रोड,  उत्तम नगर नई दिल्ली-110059  
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