व्यंग्य---- आपकी श्रद्धांजलि कहां है? - डा. विनोद बब्बर

मित्रो के मन में मेेरे प्रति सदा से ही बहुत स्नेह रहा है। समय- समय पर वे इतना इजहार भी करते ही रहते हैं। जिन्हें विश्वास न हो वे ताजा प्रमाण से मेरे दावे की पुष्टि कर सकते हैं।
इधर एक सप्ताह के लिए प्राकृतिक चिकित्सालय जाते ही एक घनिष्ठ मित्र को मेरी चिंता सताने लगी। वह चिंता भी क्या जो अकेले तक सीमित रहे। समझदारी इसी में है कि अपनी चिंता में दूसरो को भी शामिल करो और मौका लगते ही चिंता के फलने- फूलने का जश्न मनाया जाए। 
तो साहिब हमारे उस प्रिय से अधिक समझदार मित्र को खाली बैठे हुए अचानक हमारे स्वास्थ्य की चिंता हुई तो उन्होंने तत्काल कुछ दूसरे ‘घनिष्ठ’ मित्रों को फोन पर अपनी चिंता से जोड़ते हुए खुसपुसाया, ‘कुछ सुना तुमने? ‘उसे’े कुछ हो गया है।’  इतने भर से देशभर में हमारे प्रशसंक मित्रों के फोन घनघनाने लगे और चिंता दूर-दूर तक पहुंच गई। 
‘कुछ हुआ’ की खुसपुसाहट से शुरु हुई चिंता की यह यात्रा ‘कुछ शेष नहीं रहा’ तक जा पहुंची। हमारे प्रति सद्धभावनाएं दिखाने की होड़ शुरु होते ही एक अमित्र से जब खुशी थामे नहीं थमी तो उन्होंने  लम्बे आंसू बहाते हुए अपनी आत्मीयता दिखाते हुए कहा, ‘पिछले हफ्ते जब मैं उससे मिला तो उसने ताजा कविता  ‘मैं निर्झर सा पात, इस अब झर जाने दो’ सुनाई थी। शायद उसे अपनी मृत्यु का अहसास हो गया था।’ 
चिंता लगातार विस्तार पाती रही। इसी बीच एक मित्र ने मेरे ही फोन पर बिना किसी औपचारिकता के सीधे-सीधे पूछ लिया, ‘अरे भाई बाबाजी की बाड़ी दिल्ली लाई जाएगी या....?’ मैंेने भी तपाक से कहा, ‘जैसे आप कहो? अगर आपने पुष्प चक्र खरीद लिया हो......!’ वे झेंप गए और फोन काट दिया। 
उसके बाद तो लगातार मित्रों ने अपना प्यार उड़ेलना शुरु किया। उस शुभचिंतक मित्र के श्रीमुख से आरंभ हुई चिंता ने इधर मेरे फोन का अपनी चिंता की लपेट में ले लिया। फोन रोमिंग पर था। लगातार चिंता के स्पर्श से उसकी बैट्री तो गरम हुई ही फोन कम्पनी की तरफ से भी एक चिंताजनक संदेश आ गया, ‘डियर कस्टमर, आपका बैलैंस समाप्त हो चुका है, कृपया रिचार्ज करवाये।’ इस चिंताजनक संदेश के बाद चिंताओं का प्रवाह कुछ देर रूका रहा। मैं अभी  अपनी शवयात्रा के बारे में सोच ही रहा था कि  उस चिकित्सालय के व्यवस्थापक का सम्पर्क पता लगाकर चिंता ने उन्हें भी धर दबोचा। ऐसे में मेरे पास तत्काल रिचार्ज करवाने के अलावा कोई चारा न था। मैंने खुद सभी मित्रो को फोन करके उनकी चिंता ‘फिलहाल’ गलत होने की जानकारी दी।
मेरे फेसबुकी, ठिवटरी वाटसअपी, अखबारी मित्रो! मुझे बहुत दुःख है कि इस महत्वपूर्ण समाचार से आप सभी वंचित रहे वरना अब तक तो आपने भी अपनेे आंसूओं से बाढ़ ला दी होती। यदि मैं स्वयं को ज्यादा महत्वपूर्ण आंक रहा हूं तो भी कम से कम एक दरी तो अवश्य गीली हो चुकी होती। दिन भर अनाप-शनाप चित्रों, भल्ले, जलेबी, हसिनों या अपनी गलतियों के चित्रों पर रिझने वाले भारी भरकम मित्रों की ओर से भी मुझे महान घोषित करने वाला ‘अधिकृत’ बयान जारी हो गया होता। 
पर हाय री किस्मत! हम हुए! पर हमारे न होने की खबर हर जगह न हुई!! मुझे बेहद अफसोस है कि मैं जीते-जी अपनी ‘महानता’ के चर्चे देख-पढ़ नहीं सका। इसके लिए मुझे अब सचमुच मरना ही पड़ेगा। 
क्या विडम्बना है- ‘उसने’ प्राकृतिक चिकित्सालय से लौटने के बाद अपने प्रिय मित्रों को बाहर का रास्ता दिखाया लेकिन मेरे मित्र उसके मित्रों से अधिक होशियार हैं। उन्होंने तो मेरे वापस लौटने से पहले ही मुझे इस दुनिया के बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी का रोड मैप तैयार कर लिया। प्राकृतिक चिकित्सा गई भाड़ में मेरे मित्र तो मुझे प्राकृतिक मौत से भी मिलने नहीं देना चाहते। 
खैर जो भी हो, मुझे गर्व है अपने सभी घनिष्ठ-गरिष्ठ मित्रो पर लेकिन आप जैसे कुछ कंजूस मित्रो से शिकायत भी है जिन्होंने मेरे सम्मान में घड़ियाली आंसूओं से अपनी आंखो को अब तक दूर रखा है और न ही अपनी ‘अधिकृत’ श्रद्धांजलि जारी नहीं की है। 
इस मंच के माध्यम से मैं अपने तमाम परिचित- अपरिचित मित्रों, शत्रुओं को बाअदब- बामुलाहिजा होशियार करता हूं- इससे पहले कि मैं अपने रंग में वापस आऊ, आप भी अपनी खुशी, मेरा मतलब है अपनी चिंता को कुछ शब्दो का आकार देकर फिलहाल रिहर्सल तो कर ही सकते है।
व्यंग्य---- आपकी श्रद्धांजलि कहां है? - डा. विनोद बब्बर व्यंग्य---- आपकी श्रद्धांजलि कहां है?  - डा. विनोद बब्बर Reviewed by rashtra kinkar on 23:10 Rating: 5

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