न योग, न सहयोग केवल ‘वियोग’ ही क्यों?
जून, 2012 विश्व फैशन नगरी मिलान (इटली) के पुराने किले कास्टेलो के निकट एक फव्वारे के पास बैठा अपने एक मित्र की प्रतीक्षा कर रहा था कि अचानक ‘नमो नमः’ सुनकर चौका। पलटकर देखा, हाथ जोड़े एक व्यक्ति कह रहा था, ‘मेरे गुरुदेश भारत से पधारे बंधु! आपको प्रणाम!’ उसका अभिवादन करते हुए मैंने उसका परिचय जानना चाहा। सुसंस्कृत हिन्दी में उसने मुझे गदगद कर दिया। उसके अनुसार, ‘मैं इस्राइल का मूल निवासी हूं। मेरे माता-पिता ने मेरा नाम स्टोव रखा लेकिन मेरे गुरु ने मुझे शिव नाम दिया। अब मैं शिव ही हूं। भारत मेरा गुरु है। मैंने वहां से योग सीखा। योग ने मेरे जीवन को बदल दिया। इटली में योग सीखाता हूं। जब भी मौका मिलता है अपने गुरुदेश जाता रहता हूं। हर बार कुछ नया सीखकर लौटता हूं। आपको यहां देख मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। आपको प्रणाम!’
सात समुंद्र पार, अपने देश से हजारो मील दूर परदेश में प्राप्त ऐसी श्रद्धा पर किसे गर्व न होगा। एक अनजान व्यक्ति से अपने रिश्ते को लेकर मन में मन्थन जारी था। अचानक 21 जून को संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा की जानकारी मिलते ही मन एक बार फिर मिलान के उस पार्क में ले गया। योग के माध्यम से शेष दुनिया की भारत के प्रति बेहतर धारणा बनाने के इस सुनहरे अवसर पर केवल मेरा ही नहीं हर भारतीय का प्रसन्न होना स्वाभाविक था। लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब कुछ लोगों को राष्ट्रीय गर्व के इस अवसर पर भी विरोध ही सूझ रहा है। कोई योग विरोध को धार्मिक रंग देने में लगा है तो कोई राजनीतिक दांवपेच चल रहे है।
स्वयं को सबसे बड़ा मुस्लिम हितैषी साबित करते हुए भारतीय संस्कृति के हर गुण में दुर्गुण देखने वाले ओवैसी को सूर्य नमस्कार मुस्लिम विरोधी दिखाई देता है। क्योेंकि उसे भारत से योग का प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले शमशाद हैदर के बारे में जानकारी नहीं है जो पाकिस्तान के लोगों को योग सीखा रहे हैं। शमशाद योग को विज्ञान मानते हुए उसे किसी मजहब से जोड़ने के विरोधी है। शमशाद और उनके साथियों के प्रयासों से इस्लामाबाद, लाहौर, कराची सहित पाकिस्तान के अनेक शहरों में योग के प्रति रूचि बहुत तेजी से बड़ी है क्योंकि इससे उन्हें अस्थमा और सांस के रोगो सहित अनेक कई गंभीर बीमारियों से राहत मिल रही है। खास बात यह है कि वहां इसे रोजगार के नए अवसर के रूप में भी देखा जा रहा है। कुछ पाकिस्तानी युवा दूसरे देशों में योग के प्रचार- प्रसार करने की तैयारी में हैं। इतना ही क्यों, अमरीकी मुस्लिम फ़रीदा हमज़ा जो वर्षों से योग कर रही हैं, के अनुसार- ‘नमाज की हर अवस्था यौगिक मुद्रा है. जो योग से घृणा करते हैं, उन्हें योग के बारे में पता नहीं है। नमाज के समय अपनी बीच वाली उंगली और अंगूठे को मिलाना योग मुद्रा की तरह है। ये अल्लाह की मेहरबानी है कि मैं योग करती हूं।’
स्पष्ट है कि आज सारी दुनिया योग के महत्व को समझते हुए उसे अपनी दिनचर्या का अंग बना रही है परंतु दूसरी ओर भारत में कुछ सिरफिरे लोग अपनी परंपराओं, उपलब्धियों और विरासत पर गर्व करने की बजाय शर्मिंदा है। क्या दुनिया के वे 175 देश ईरान, अफगानिस्तान, इराक, बांग्लादेश, यमन, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, सीरिया सहित 40 मुस्लिम देश भी शामिल है, नासमझ माना जाये जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मंजूरी दी? सूर्य नमस्कार के समय बोले जाने वाले मंत्रों के कारण उसे हिन्दू दर्शन से जोड़ने वाले लोगों को संतुष्ट करने के लिए सरकार ने 21 जून को होने वाले आयोजन में ओम का उच्चारण और सूर्य नमस्कार न करने का फैसला किया है। लेकिन जिन्हें विरोध करना है, वे बाज नहीं आ रहे हैं। क्या ऐसे लोग इस बात से इंकार कर सकते हैं कि सूर्य केवल हिन्दुओं के नहीं है। सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड़ उनसे ऊर्जा लेता है। यदि यहां जीवन है तो सूर्य के कारण ही तो है। ‘धर्मनिरपेक्षता’ के नाम पर ‘बुद्धिनिरपेक्षता’ का यह कर्मकांड प्रकृतिद्रोह ही नहीं, मानवता द्रोह, अपने ही उन पूर्वजो की परम्पराओं का भी अपमान है जिन्हें किसी कारण अपनी पूजा पद्धति बदलनी पड़ी। एक सामान्य भारतीय का अपने परिवेश में रहने वाले अन्य धर्माे के मानने वालों से सम्पर्क, सहयोग रहता है। यदि कोई मुस्लिम मुझे ‘अस्लाम वालेकुम’ कह कर अभिवादन करे तो उसे ‘नमस्कार’ कहने से मुझे मेरा धर्म रोकता नहीं है। यदि किसी को योग संग संस्कृत मंत्र बोलने से कष्ट हो तो वह मन ही मन हिन्दी, अरबी, फारसी, गुरुमुखी, तमिल किसी भी जुबान में अपने ईष्ट से अपने अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना कर सकता है।
योग कोई धार्मिक कर्मकांड न नहीं है इसीलिए तो ‘योगः कर्मषु कौशलम्’ कहा गया है। गीता ‘योग क्षेम वहाम्यहम्’ का उद्घोष करती है जिसका अर्थ है- अप्राप्त कोे प्राप्त करना और प्राप्त की रक्षा करना। दुनिया में ऐसा कौन है जो अच्छा स्वास्थ्य, मन की शांति प्राप्त न करना चाहते हो। यह कामना रखना अथवा इसके लिए प्रयास करना किसी एक धर्म के लोगों के लिए आरक्षित नहीं हो सकता। सद्गुण को बांटना और दुर्गुण को नष्ट करना भारतीय संस्कृति की मूल है। वैसे भी योग के बारे में कहा गया है-
नास्ति माया समं पाशो नास्ति योगात्परंबलम्ं।
नास्ति ज्ञानत्मरो बन्धु न अहंकारात्परोरिपुः।। अर्थात् माया से बढ़कर कोई बंधन नहीं होता और ज्ञान से बढ़कर कोई बंधु नहीं होता। अहंकार से बढ़कर कोई शत्रु नीरं होता और योग से बढ़कर कोई बल नहीं होता। एक सामान्य अर्थ में भी योग का अर्थ ‘जोड़ना’ होता है। भारतीय मनीषा तो सम्पूर्ण विश्व को परिवार घोषित करती है। यह अवसर हमें दुनिया को करीब से समझने- समझाने में मदद कर सकता है।
ऐसे समय जब दुनिभा भर के 190 देशों के 250 शहर में योग दिवस मनाये जाने की तैयारियां हो रही है लेकिन कुछ विघ्न संतोषी लोग न तो ‘योग’ करना चाहते है और न ही ‘सहयोग’। विरोध के अन्य हजारों अवसर हो सकते हैं। ऐसे अवसरों पर जमकर राजनैतिक विरोध किया जा सकता है। किा जाना भी चाहिए लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि यह उपलब्धि किसी एक व्यक्ति अथवा पार्टी की नहीं अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र की है। स्वयं को इस स्वर्णिम अवसर से विमुख करना न केवल स्वयं को छोटा करना है बल्कि जानबूझ कर सारा श्रेय दूसरो को देना है। अन्यथा नकारात्मकता के घोड़े पर सवार ‘युवराज’ का यह कथन, ‘लोग रोजगार मांग रहे हैं और सरकार को योग दिवस की सूझी है’ क्या है? क्या ऐसे कड़वे वचन स्वयं उन्हें हास्यास्पद नहीं बनाते हैं? उनकी सरकार ने तो योग दिवस नहीं मनाया तो फिर उन्हें बताना चाहिए कि वे बेरोजगारी की समस्या को हल क्यों नहीं कर सके? विरोध के नाम पर विरोध देश की सबसे पुरानी पार्टी को ओछे औवैसी के समकक्ष होने का प्रयास नहीं करना चाहिए। उसे कभी अपने नेता रहे वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बात जरूर सुननी, समझनी चाहिए जिनके अुनसार, ‘योग कला, विज्ञान और दर्शन है, जो जनता को आत्मानुभूति कराने में मदद करता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने पुष्टि की है कि योग से न सिर्फ तनाव कम होता है बल्कि दीर्घकाल तक कई फायदे होते हैं। प्राचीन भारतीय पद्धतियां शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों की जरूरतों का संपूर्ण उत्तर हैं। संयुक्त राष्ट्र की ओर से इस संबंध में लिया गया फैसला वैश्विक स्तर पर योग को लोकप्रिय करेगा और इस ‘अमूल्य भारतीय धरोहर’ से लोग लाभ पा सकेंगे।’
यह प्रसन्नता की बात है कि विदेश ही नहीं देशभर से योग के प्रति लोगो की रूचि बढ़ रही है। हजारों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने मानवता के हित में विश्व को यह योग विद्या दी थी। लेकिन इसे जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करने वाले भी अभिनंदन के पात्र है। बाबा रामदेव के विरोधी भी इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि उन्होंने योग को फिर से लोकप्रिय बनाया। आज यदि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है तो इसका श्रेय हर भारतीय को है क्योंकि योग प्रवर्तक ऋषि हर भारतीय के पूर्वज थे। अपनी उपासना पद्धति बदलने वाले यह न भूले कि सब कुछ बदला जा सकता है पर अपने पूर्वज नहीं। महर्षि पंतजलि के अनुसार, ‘योगश्चित्त वृत्तिनिरोधः’’ अर्थात् चित्त की वृत्तियों को रोकने का नाम योग है। हम सभी को भी अपने चित्त से योग के विरोध की वृत्ति का त्याग कर स्वस्थ,सुदीर्घ जीवन के लिए प्रयास करने चाहिए।--डा. विनोद बब्बर 9868211911
सात समुंद्र पार, अपने देश से हजारो मील दूर परदेश में प्राप्त ऐसी श्रद्धा पर किसे गर्व न होगा। एक अनजान व्यक्ति से अपने रिश्ते को लेकर मन में मन्थन जारी था। अचानक 21 जून को संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा की जानकारी मिलते ही मन एक बार फिर मिलान के उस पार्क में ले गया। योग के माध्यम से शेष दुनिया की भारत के प्रति बेहतर धारणा बनाने के इस सुनहरे अवसर पर केवल मेरा ही नहीं हर भारतीय का प्रसन्न होना स्वाभाविक था। लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब कुछ लोगों को राष्ट्रीय गर्व के इस अवसर पर भी विरोध ही सूझ रहा है। कोई योग विरोध को धार्मिक रंग देने में लगा है तो कोई राजनीतिक दांवपेच चल रहे है।
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इस्लामाबाद के एक पार्क में योग |
स्पष्ट है कि आज सारी दुनिया योग के महत्व को समझते हुए उसे अपनी दिनचर्या का अंग बना रही है परंतु दूसरी ओर भारत में कुछ सिरफिरे लोग अपनी परंपराओं, उपलब्धियों और विरासत पर गर्व करने की बजाय शर्मिंदा है। क्या दुनिया के वे 175 देश ईरान, अफगानिस्तान, इराक, बांग्लादेश, यमन, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, सीरिया सहित 40 मुस्लिम देश भी शामिल है, नासमझ माना जाये जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मंजूरी दी? सूर्य नमस्कार के समय बोले जाने वाले मंत्रों के कारण उसे हिन्दू दर्शन से जोड़ने वाले लोगों को संतुष्ट करने के लिए सरकार ने 21 जून को होने वाले आयोजन में ओम का उच्चारण और सूर्य नमस्कार न करने का फैसला किया है। लेकिन जिन्हें विरोध करना है, वे बाज नहीं आ रहे हैं। क्या ऐसे लोग इस बात से इंकार कर सकते हैं कि सूर्य केवल हिन्दुओं के नहीं है। सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड़ उनसे ऊर्जा लेता है। यदि यहां जीवन है तो सूर्य के कारण ही तो है। ‘धर्मनिरपेक्षता’ के नाम पर ‘बुद्धिनिरपेक्षता’ का यह कर्मकांड प्रकृतिद्रोह ही नहीं, मानवता द्रोह, अपने ही उन पूर्वजो की परम्पराओं का भी अपमान है जिन्हें किसी कारण अपनी पूजा पद्धति बदलनी पड़ी। एक सामान्य भारतीय का अपने परिवेश में रहने वाले अन्य धर्माे के मानने वालों से सम्पर्क, सहयोग रहता है। यदि कोई मुस्लिम मुझे ‘अस्लाम वालेकुम’ कह कर अभिवादन करे तो उसे ‘नमस्कार’ कहने से मुझे मेरा धर्म रोकता नहीं है। यदि किसी को योग संग संस्कृत मंत्र बोलने से कष्ट हो तो वह मन ही मन हिन्दी, अरबी, फारसी, गुरुमुखी, तमिल किसी भी जुबान में अपने ईष्ट से अपने अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना कर सकता है।
योग कोई धार्मिक कर्मकांड न नहीं है इसीलिए तो ‘योगः कर्मषु कौशलम्’ कहा गया है। गीता ‘योग क्षेम वहाम्यहम्’ का उद्घोष करती है जिसका अर्थ है- अप्राप्त कोे प्राप्त करना और प्राप्त की रक्षा करना। दुनिया में ऐसा कौन है जो अच्छा स्वास्थ्य, मन की शांति प्राप्त न करना चाहते हो। यह कामना रखना अथवा इसके लिए प्रयास करना किसी एक धर्म के लोगों के लिए आरक्षित नहीं हो सकता। सद्गुण को बांटना और दुर्गुण को नष्ट करना भारतीय संस्कृति की मूल है। वैसे भी योग के बारे में कहा गया है-
नास्ति माया समं पाशो नास्ति योगात्परंबलम्ं।
नास्ति ज्ञानत्मरो बन्धु न अहंकारात्परोरिपुः।। अर्थात् माया से बढ़कर कोई बंधन नहीं होता और ज्ञान से बढ़कर कोई बंधु नहीं होता। अहंकार से बढ़कर कोई शत्रु नीरं होता और योग से बढ़कर कोई बल नहीं होता। एक सामान्य अर्थ में भी योग का अर्थ ‘जोड़ना’ होता है। भारतीय मनीषा तो सम्पूर्ण विश्व को परिवार घोषित करती है। यह अवसर हमें दुनिया को करीब से समझने- समझाने में मदद कर सकता है।
ऐसे समय जब दुनिभा भर के 190 देशों के 250 शहर में योग दिवस मनाये जाने की तैयारियां हो रही है लेकिन कुछ विघ्न संतोषी लोग न तो ‘योग’ करना चाहते है और न ही ‘सहयोग’। विरोध के अन्य हजारों अवसर हो सकते हैं। ऐसे अवसरों पर जमकर राजनैतिक विरोध किया जा सकता है। किा जाना भी चाहिए लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि यह उपलब्धि किसी एक व्यक्ति अथवा पार्टी की नहीं अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र की है। स्वयं को इस स्वर्णिम अवसर से विमुख करना न केवल स्वयं को छोटा करना है बल्कि जानबूझ कर सारा श्रेय दूसरो को देना है। अन्यथा नकारात्मकता के घोड़े पर सवार ‘युवराज’ का यह कथन, ‘लोग रोजगार मांग रहे हैं और सरकार को योग दिवस की सूझी है’ क्या है? क्या ऐसे कड़वे वचन स्वयं उन्हें हास्यास्पद नहीं बनाते हैं? उनकी सरकार ने तो योग दिवस नहीं मनाया तो फिर उन्हें बताना चाहिए कि वे बेरोजगारी की समस्या को हल क्यों नहीं कर सके? विरोध के नाम पर विरोध देश की सबसे पुरानी पार्टी को ओछे औवैसी के समकक्ष होने का प्रयास नहीं करना चाहिए। उसे कभी अपने नेता रहे वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बात जरूर सुननी, समझनी चाहिए जिनके अुनसार, ‘योग कला, विज्ञान और दर्शन है, जो जनता को आत्मानुभूति कराने में मदद करता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने पुष्टि की है कि योग से न सिर्फ तनाव कम होता है बल्कि दीर्घकाल तक कई फायदे होते हैं। प्राचीन भारतीय पद्धतियां शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों की जरूरतों का संपूर्ण उत्तर हैं। संयुक्त राष्ट्र की ओर से इस संबंध में लिया गया फैसला वैश्विक स्तर पर योग को लोकप्रिय करेगा और इस ‘अमूल्य भारतीय धरोहर’ से लोग लाभ पा सकेंगे।’
यह प्रसन्नता की बात है कि विदेश ही नहीं देशभर से योग के प्रति लोगो की रूचि बढ़ रही है। हजारों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने मानवता के हित में विश्व को यह योग विद्या दी थी। लेकिन इसे जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करने वाले भी अभिनंदन के पात्र है। बाबा रामदेव के विरोधी भी इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि उन्होंने योग को फिर से लोकप्रिय बनाया। आज यदि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है तो इसका श्रेय हर भारतीय को है क्योंकि योग प्रवर्तक ऋषि हर भारतीय के पूर्वज थे। अपनी उपासना पद्धति बदलने वाले यह न भूले कि सब कुछ बदला जा सकता है पर अपने पूर्वज नहीं। महर्षि पंतजलि के अनुसार, ‘योगश्चित्त वृत्तिनिरोधः’’ अर्थात् चित्त की वृत्तियों को रोकने का नाम योग है। हम सभी को भी अपने चित्त से योग के विरोध की वृत्ति का त्याग कर स्वस्थ,सुदीर्घ जीवन के लिए प्रयास करने चाहिए।--डा. विनोद बब्बर 9868211911
न योग, न सहयोग केवल ‘वियोग’ ही क्यों?
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