सुख के लिए दुख

‘दुनिया में धन का बहुत महत्व है। जन्म से मरण तक प्रतिदिन बहुत कुछ चाहिए। जन्म लेते ही नर्सिंग होम का बिल, दवा का खर्च, मित्रों की बधाईयां क्या बिन पैसे खर्चे ही होगी। पहले ही दिन से शुरू हुई धन की दौड. अंतिम दिन भी पीछा छोड़ने वाली नहीं है। हिन्दू हो तो लकड़ी, घी आदि का खर्च, मुस्लिम या ईसाई हो तो कब्र खोदने वाला यूं ही छोड़ने वाला नहीं। फिर कफन तो सभी को चाहिए। बाद के भी अनेक खर्च है। हम कह सकते हैं कि मरने के बाद कौन देखने आता है। सच ही है लेकिन जीते जी तो बहुत कुछ चाहिए। रोटी, कपड़ा मकान का मुहावरा तो बहुत पुराना पड़ चुका है। ये तो बहुत थोड़े धन से भी हो जाएगा। पर हमें तो सुख से जीना है। सुख से जीने के लिए धन चाहिए। थोड़े से काम नहीं चलेगा ज्यादा चाहिए। ज्यादा भी ऐसा-वैसा नहीं कम से कम कुबेर का खजाना चाहिए। अब क्यों यह प्रश्न बेकार है। चाहिए तो बस चाहिए। कहां से आएगा। किस माध्यम से आएगा। कैसे आएगा। हम क्या-क्या करना पड़ेगा। क्या-क्या खोना पड़ेगा यह सवाल उठाने वाले मूर्ख समझे जाते हैं। ये वे लोग हैं जो जो खुद कुछ करते हैं न दूसरों को करने देना चाहते हैं। ऐसे लोगों की बात बिल्कुल मत सुनना। अरे भाई दुःख-सुख में पैसा ही तो काम आता है। अरे भाई आप बीमार पड़ जाओं तो अस्पताल तक गाड़ी ही पहुंचायेगी न? दूसरों की गाड़ी के भरोसे रहोंगे तो पहुंच गए अस्पताल। हाँ, यह भी ध्यान रहे गाड़ी एक नहीं घर में जितने सदस्य है उतनी होनी चाहिए। नौकर ड्राईवर हर समय रहने चाहिए। सरकारी अस्पतालों की दशा तो आप जानते ही है। पैसा हो तो बड़े अस्पताल आपकी जान बचा लेंगे। जरूरत पड़ने पर ‘ट्रान्सप्लाट’ तक कर देंगे। पैसा हो तो ‘बाईपास’ तो बाएं हाथ का खेल है। मौत को धत्ता बता सकता है पैसा। महाराज, आप एक तरफ धन को लक्ष्मी यानि देवी बताते हो तो दूसरी ओर उसी से दूर रहने की सलाह देते हो। लगता है आपके लिए ‘अंगूर खट्टे हैं’ वाली स्थिति है। खुद धनपति बन नहीं सके, दूसरों को भी अपने जैसे रखना चाहते हो।’
हमारे एक मित्र अक्सर कुछ इसी तरह की बातंे किया करते थे। वहीं क्यों, बहुत संभव है आपका दिल भी यही कह रहा होगा। इसीलिए आप भी दिन रात धन की चिंता में लगे हो। लगे हो, लगे रहो पर मुझे इतना बता दो कि जिस सुख की परछाई के लिए आप अपने आज का सुख चैन गवां रहे हो उसकी क्या गारंटी है कि वह आपको मिल ही जाएगा। सबसे पहले तो यह बताओं कि आखिर सुख है क्या है। इसकी परिभाषा क्या है। क्या आपने किसी को पूर्ण सुखी-संतुष्ट देखा है? साधारण तो शायद मिल भी जाए लेकिन किसी धनपति के पास नौकर, बंगला, गाड़ी, बैंक बेलेंस तो शायद मिल भी जाए लेकिन उसका दर्द सुनने वाला शायद ही कोई अपना हो। 
अपने क्षेत्र की सबसे चौड़ी सड़क के किनारे रहता हूं। वैसे यह ‘सडक चौड़ी है’ अब यह गुजरे जमाने की बात हो चुकी है क्योंकि दिन भर में हजारो वाहन यहां से गुजरते हैं। इसलिए अब इसे ‘चौड़ी’ कहना गलत लगता है। कल शाम कुछ काम में लगा था कि बाहर से रोने और गंदी-गंदी गालियों की आवाजें आ रही थी। आवाज लगातार तेज होती जा रही थी। मन न माना तो ऊपर से झांक कर देखा। वाहनों का जाम लगा था। कुछ लोग जाम खुलवाने की कोशिश में लगे थे। लेकिन गालियां जारी थी। जानने के लिए कि मामला कया है नीचे उतरा तो देखा एक लम्बी कार से सिसकियां रही है। अचानक कार का दरवाजा खुला। ड्राईविंग सीट पर बैठा युवक मेजी से नीचे उतरा और अपने से अगली गाड़ी के ड्राईवर को एक घुंसा जमाते हुए बोला- ‘साले, हटा ले। अगर दो-चार मिनट में अस्पताल.....!’ और जोर-जोर से रोने लगा। अगली गाड़ी वाले का कोई कसूर नहीं था। वह भी फंसा था। कुछ लोगों ने कोशिश की। उस लम्बी कार को पहले निकलने दिया। दुर्भाग्य कि लम्बी कार भी छोटी सी दूरी तय न कर सकी और रास्ते में ही...! 
कार से मैंने पहचान लिया था कि यह मेरे उसी मित्र की है जिसकी चर्चा ऊपर की गई है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि उसके पास साधन थे। कई गाड़ियां थी। संयोग देखिये की नौकर नहीं बल्कि उनका  बेटा ही  स्वयं उन्हें किसी अच्छे अस्पताल में ले जा रहा था। लेकिन, लेकिन....! 
खैर छोड़िए। बहुत कुछ होते हुए भी कुछ नहीं हुआ। केवल उनके साथ ही नहीं, सभी के साथ ऐसा हो सकता है.  मेरे साथ भी किसी दिन ऐसा ही होगा। बस अंतर इतना हो सकता है कि शायद मैं इस झूठे भ्रम से बच जाऊं कि मेरा पैसा मुझे बचा लेगा क्योकि मेरे पास कुछ है ही नहीं । शायद किसी ‘जाम’ में नहीं ‘कम इन्तजाम’ में, शायद किसी अस्पताल की बजाय अपनी टूटी चारपाई पर देह छोड़ते हुए मुझे बहुत कष्ट, प्रायाश्चित नहीं होगा कि काल्पनिक सुख के लिए मैंने कईयों का सुख छीना।
डा. विनोद बब्बर संपर्क-  09458514685, 09868211911
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