चल खुसरो घर आपने, सांझ भयी चहु देस!

मेरे अग्रज श्री रमेश बब्बर जी के देहावसान पर आपके द्वारा प्रेषित सांत्वना संदेशों ने इन बेहद मानसिक कष्ट के क्षणों में सबल प्रदान किया। फेसबुक के अतिरिक्त भी अनेक मित्रों ने फोन, एसएमएस और व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर हमारे साथ होने का अहसास और विश्वास दिया। आप सभी का आभार!
इससे पूर्व भी मेरे माता-पिता सहित अनेक प्रियजन प्रकृति के इस अखंड विधान के अनुसार अनंत में विलीन हुए लेकिन भाई साहब का जाना बहुत विचलित कर गया। वे मुझसे लगभग 10 वर्ष बड़े होने से ही नहीं बल्कि अपने स्वभाव के कारण मेरे पितातुल्य थे। कठिनाई के उस दौर में जब आत्मकेन्द्रित हो जाना सामान्य व्यवहार हो सकता था, उनमें दूसरों के लिए कष्ट उठाने के संस्कार थे। हमारे पिताश्री बहुत सख्त अनुशासन वाले थे इसलिए हम सब उनसे बहुत डरते थे। ऐसे में भाईसाहब मेरा बहुत ध्यान रखते। भुलाये नहीं भुलता, बचपन में एक बार बहुत बीमार हुआ तो भाईसाहबे प्रतिदिन मुझे साईकिल पर मीलों दूर डाक्टर के पास ले जाते। रास्ते में मुझे फलों का जूस पिलाते लेकिन स्वयं नहीं लेते। मैं जिद्द करता तो कहते, ‘अच्छा अभी तू पी लेे। मैं बाद में पी लूंगा।’ मुझे याद नहीं कि वह ‘बाद में’ कभी आया हो।
उन दिनो फोटों खिंचवाना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। एक बार मैं किसी बात से रूठ गया। भूख हड़ताल कर दी। उन्होंने मुझे मानाने के लिए नये कपड़े, नए सेंडल दिलवाये। पहनाकर बाजार ले गये लेकिन मेरा रोना बंद नहीं हुआ तो मुझे मनाने के लिए फोटो खिंचवाने ले गये। नये कपड़े होते हुए भी आंख में आंसू पर होठों पर मुस्कान वाली बचपन की वह ब्लैक एण्ड वाईट फोटो आज भी मेरे सुरक्षित है।
समय बदला, एक परिवार के कई परिवार हो गए। तीन पीढ़ियां सामने है। लेकिन हर विपरीत परिस्थिति के बावजूद मैंने कभी उनकी बात काटी। सदैव सहमति। वे इस बात का बहुत ध्यान रखते कि किसी सैद्धान्तिक विषय पर उनके स्वयं के बजाय मेरा विचार मान्य हो। वे अपने बेटेे से कहा करते थे- ‘पप्पू (मेरे बचपन का नाम) बूढ़ा हो गया लेकिन कभी मेरी बात मानने से इंकार नहीं किया पर तुम.....!’  कभी-कभी बच्चे मजाक में कहते, ‘जो भी कहो लेकिन चाचा ने आपकी एक बात तो नहीं ही मानी।’ तो वे मुस्कुरा कर रह जाते। (क्या नहीं माना सभी जानते हैं। उसका मुझे प्रायश्चित भी नहीं है)
बहुत मेहनती और जीवट प्रकृति के इंसान थे। हृदयाघात हुआ। पक्षाघात हुआ। भारी शरीर के बावजूद उन्होंने स्वयं को फिर से खड़ा किया। घुटनो के कारण चलने में कठिनाई होती थे इसलिए छड़ी के मदद से स्कूटी पर बैठ यदाकदा मेरे पास पहुंच जाते। अनन्त की यात्रा पर निकलने से एक दिन पूर्व भी केंसर से पीड़ित बड़ी बहन के मिलने के बाद मेरे पास भी आये। चलते-चलते मुंह से निकला, ‘बस अब नहीं आऊंगा। तू अपना ध्यान रखा कर।’
अगली रात पंजाब से दिल्ली लौटते हुए अम्बाला के पास उन्हें संास लेने में कठिनाई हुई तो बेटा उन्हें अस्पताल ले गया। वे डाक्टर से बोले, ‘मैं ठीक हूं। मुझे अपने गांव जाना दो।’ डाक्टर के ‘आपका गांव कहा हैं’ के जवाब में उन्होंने उत्तर दिया, ‘जो सबका गांव है!’
...और उसके कुछ घंटों बाद ही वे ‘अपने’ गांव................ चले ...................गये। 
चल खुसरो घर आपने, सांझ भयी चहु देस! चल खुसरो घर आपने, सांझ भयी चहु देस! Reviewed by rashtra kinkar on 21:46 Rating: 5

1 comment

  1. शोकाकुल परिवार को पीड़ा सहने की शक्ति मिले, हनुमान जी से ऐसी विनती है. ॐ हरी!!

    ReplyDelete