आतंकवाद आखिर कब तक?-- डा विनोद बब्बर Atankvad Akhir kab Tak? Dr. Vinod Babbar
हैदराबाद की दर्दनाक स्थितियां बता रही है कि आतंकवाद केवल नारों या मोहक भाषकों से काबू में आने वाला नहीं है। आतंकियों को महिमा मंडित करना खतरनाक है क्योंकि ऐसा करना नागों को न केवल दूध पिलाना है बल्कि उनके जहर को और जहरीला बनाना है। इतिहास साक्षी है कि इस धरा पर जब भी, कहीं भी आतंक ने सिर उठाया है,तों सदैव फन कुचलना ही उसका एकमात्र समाधान रहा है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि आतंकवाद का कोई रंग, जाति या धर्म नहीं होता। ठीक इसी तरह से इंसाफ और कानून का भी कोई नरम पक्ष नहीं हो सकता। जब-जब किसी एक पक्ष के प्रति उदारता बरती जाती है तो समाधान और दूर हो जाता है। हमें यह स्वीकारना ही होगा कि आतंकवाद सभ्य समाज के लिये सबसे बड़ा खतरा है। इस आत्मघाती पाप से किसी भी सम्प्रदाय का अहित तो हो सकता है, हित नहीं। वरना कुछ नासमझों की हरकतों के कारण दुनिया के एक बहुत बड़े न्याय और शांति के समर्थक समाज पर क्यों अंगुली उठती।
भारत में आतंकवाद के कई पक्ष हैं लेकिन सर्वाधिक खतरनाक पक्ष है पाकिस्तान की हीनता ग्रन्थि। धर्म को राष्ट्रीयता का नाम देकर जन्मा पाकिस्तान जानता है कि वह भारत की धर्मनिरपेक्षता के समक्ष कहीं नहीं टिकता क्योंकि भारत की बहुसंख्यक जनता जिस धार्मिक विश्वास को मानती है वह सर्वधर्म समभाव की सीख देतीा है। ऐसा विश्वास पूरी दुनिया में न केवल प्रतिष्ठा करता है बल्कि विकास के हर सोपान पर सदा आगे रहता है। पाकिस्तान का सौभाग्य और हमारा दुर्भाग्य है कि आज हमारी धरती पर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो न्याय और कानून को समानता की बजाय धार्मिक भेदभाव की तंग गली में धकेलना चाहते हैं। वैश्विक सत्य यह है कि अपराधी कोई भी हो, वह सजा का हकदार है। यदि उसका अपराध मामूली है और अनजाने में हुआ है तो बेशक उसे रियायत दी जा सकती है लेकिन जानबूझ कर किये गये जघन्य अपराध के लिए माफी की मांग भी अपराध होती है। महाभारत के शान्ति पर्व में पितामह भीष्म युधिष्ठिर को किसी भी कीमत पर शान्ति बनाए रखने की सीख देते हैं लेकिन यह भी उनका स्पष्ट निर्देश था कि जब प्रश्न शान्ति और राष्ट्र की अस्मिता में एक को चुनने का हो तो हजार युद्ध भी स्वीकार करना। मानवद्रोह और राष्ट्रद्रोह के लिए नरमी सर्वथा अस्वीकार है। न केवल भारतीय दर्शन में बल्कि दुनिया की हर न्याय संहिता इस बात की अनुमति नहीं देती कि आतंकवाद को सहन किया जाए।
जो लोग हैदराबाद की घटना को अफजलया कसाब से जोड़कर देखते हैं वे न जाने किस दुनिया में विचरण कर रहे हैं। आतंकवादियों के आका अफजलों, कसाबों का केवल इस्तेमाल करते हैं। यदा-कदा उन्हें रिहा करवाने के लिए भी संचेष्ट रहते हैं तो उनकी चिंता बस इतनी होती है कि अपने संबंधों की पोल न खुले, सुराग न मिले, होता है। आतंकवाद प्रतिरोध का सबसे प्रभावी तरीका आतंकवादियों के साथ-साथ उन्हें प्रेरित करने वाले विचारं से लड़ना भी है। इस कार्य में सरकार, राजनीति, ही नहीं समाज के हर वर्ग को आगे आना चाहिए। जो लोग ‘पन्द्रह मिनट पुलिस हटा लेने’ की बात करते हैं वे ही सामाजिक विषमता बढ़ाकर आतंकवाद को खाद- पानी देते हैं। ऐसे लोग आतंकवादियों से भी पहले फांसी के हकदार हैं। आतंकवादियों के मानवाधिकारों के हनन की बातें करने वाले निर्दोष लोगों के मानवाधिकार की बात कब करेंगे? किसी देशद्रोही को मरने से पहले अपने परिजनों से मिलने का अधिकार होना चाहिए लेकिन हैदराबाद अथवा अन्यत्र मरने वाले निर्दोष लोगों के परिजनों के अधिकार के प्रति अपना कर्तव्य कब याद आएगा?
यह हमारा दुर्भाग्य है कि आतंकवाद की समस्या से निपटने के लिए हम हवा में हाथ-पैर मार रहे हैं। न्याय की बजाय संतुलन साधने में लगे लोगों से आतंकवाद को काबू करने की उम्मीद नहीं की जा सकती। वरना इतने आतंकवादी हमलों के बाद भी अभी यह तय ही नहीं कर पा रहे हैं कि हमें किस तरह के कानून की जरूरत है। कटू सत्य यह है कि नए कानूनों से ज्यादा जरूरत नई सोच की है जो हर देशद्रोही को बिना किसी भेदभाव के जल्द से जल्द सरेआम फांसी का रास्ता दिखाये। यह सच है कि केन्द्रीय सुरक्षा एजैंसियों ने हैदराबाद पुलिस को पाक स्थित आतंकवादी गुट द्वारा शहर में हमला करने की चेतावनी दी थी। बेंगलूर, कोयम्बटूर, महाराष्ट्र और गुजरात को भी सतर्क किया गया था। लेकिन क्या यह पर्याप्त है? क्या राज्यों को चेतावनी देने के साथ केन्द्र की भूमिका समाप्त हो जाती है? केन्द्र को रणनीति बनाकर रोकने के कदम उठाने चाहिएं। यह कहना कि सतर्कता बरतना राज्यों का काम है अपने दामन पर लगे दाग को धोने की कोशिश बेशक हो लेकिन हैं गलत। स्वयं कांग्रेसी नेता और आंध्र के मुख्यमंत्री किरण कुमार रैड्डी ने केन्द्रीय गृहमंत्री के बयान को नकार हुआ कीा था कि खुफिया जानकारी सामान्य थी न कि कोई विशिष्ट। कहा गया कि इंडियन मुजाहिद्दीन के एक आतंकवादी ने स्वीकार किया है कि दिलसुख नगर सहित हैदराबाद की रेकी की गई थी और इस सूचना को परिचालित भी किया गया था। फिर प्रश्न उठता है कि दिलसुख नगर में सुरक्षा क्यों नहीं बढ़ाई गई जबकि इस क्षेत्र को पहले भी एकाधिक बार निशाना बनाया जा चुका है।
इस मामले में माननीय गृहमंत्री का रवैर्या भी उचित नहीं कहा जा सकता। भगवा आतंक की बात कर वह राजनीतिक लाभ उठाने की आशा कर रहे थे। यह उन्हीं की ‘मेहरबानी’ है कि पाकिस्तान के बाद अमेरिका के मनोनीत रक्षा मंत्री चक हेगल ने आरोप लग रहे है कि पाकिस्तान की समस्याएं बढ़ाने के लिए भारत ने वित्तीय मदद दी है। गृह जैसे संवेदनशील मंत्रालय पर बैठने वाले को वाणी की बजाय व्यवहार के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज करानी चाहिए। उन्हें सिद्ध करना चाहिए हैदराबाद बम विस्फोटों के बाद वह सतर्क है। बेंगलूर, मुम्बई, दिल्ली सहित सभी शहर अब सुरक्षित है। उनके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा वोट बैंक की राजनीति से अलग है। उन्हें आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा क्योंकि अब यह भारतीय व्यवस्था के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गया है। राजनीतिक लाभों के लिए हर कदम उठाने वालो को यह समझ लेना चाहिये कि हमें आतंकवाद पर सशक्त प्रणाली की दरकार है। एन सी टी सी पर केंद्र और राज्यों को संवाद कर एक निष्पक्ष और मजबूत प्रणाली बनाने की दिशा में आगे आना चाहिए।
आतंकवाद का मुकाबला केवल सरकारे ही नहीं कर सकती। धर्म की गलत व्याख्या कर उसे बदनाम करने वालों पर स्वयं धर्माचार्यो को शिकंजा कसना चाहिए। जेहाद की मनमानी व्याख्या स्वीकार नहीं की जा सकती। व्यक्ति से बड़ा परिवार है, परिवार से बड़ा समाज लेकिन समाज से बड़ा राष्ट्र है। धर्म हमें मर्यादित करने का नाम है। समाज को शांतिपूर्वक आगे बढ़ने, समान रूप से फलने-फूलने का नाम है। यदि कोई व्यक्ति धर्म का नाम लेकर समाज में अशांति फैलाता है तो उसे तत्काल धर्म से पृथक घोषित करना हर धर्माचार्य का राष्ट्रधर्म है। आखिर राष्ट्र से बड़ा कोई धर्म नहीं हो ही सकता। किसी ने क्या खूब कहा है- न हिन्दू मरा है न मुसलमान मरा है। लाचार हुक्मरान हैं इंसान मरा है
चलते-चलते हैदराबाद कांड पर प्रसिद्ध साहित्यकार सुभाष चन्दर की प्रतिक्रिया से रूबरू होना आतंकवाद से लड़ाई को एक नया आयाम देगा। वे लिखते हैं- ‘हैदराबाद कांड के वीर योद्धाओं! मै सचमुच तुम्हारी बहादुरी का कायल हूँ। बेगुनाहों काए .निहत्थे लोगों का, मासूम बच्चो का, बूढ़ों का, औरतों का छिपकर कत्ल करने के लिए वाकई बहुत दिलेरी की जरूरत होती है। कितना बड़ा कलेजा होगा तुम्हारा जो तुम लोगो के कटे हुए अंग हवा में उड़ते हुए देख् लेते हो। उनका खून सड़क पर बहता देख लेते हो। तुम्हारे कानों की ताकत को दाद देता हूँ, जो मरते हुए, लुहुलुहान लोगों की चीख़ों ,उनकी कराहों पर भी शांत बने रहते हैं। तुम्हारी बहादुरी के शिकार लोगो के रिश्तेदारों के विलाप पर भी विचलित नही होते। सच तुम बहुत बहादुर हो। वाकई तुम जेहाद (धर्मयुद्ध) कर रहे हो। ऐसे जेहाद के लिए मासूमो का खून जरूर चाहिये। मै वाकई तुम्हारे आगे नतमस्तक हूँ। बस एक बात का जवाब देना, जब तुम अपनी इस बहादुरी के कारनामों के बाद आइना देखोगे तो क्या तुम्हे अपना अक्स एक शैतानी भेड़िये के रूप में नही दिखेगा जिसकी लाल आँखों में इंसानियत के खून का रंग होगा, जिसके पंजों में एक मासूम बच्चे की गर्दन होगी, जिसके बाहर निकले दाँत बेगुनाहों के लहू से सने होंगे।.सच तसव्वुर करके देखना। यही अक्स होगा तुम्हारा। मैं... मैं ...तो तुम्हारी इस बहादुरी पर केवल थूक सकता हूँ । असली इनाम तो तुम्हे ऊपरवाला ही देगा, खुदा हाफिज!’
आतंकवाद आखिर कब तक?-- डा विनोद बब्बर Atankvad Akhir kab Tak? Dr. Vinod Babbar
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