बहिष्कार ही है चीन की दादागिरी का जवाब --डा विनोद बब्बर Bycott Chines Goods is Only Solution
बेशक चीन का इतिहास मक्कारी और धूर्तता के अध्यायों से भरा है लेकिन जब हम अपने इतिहास की ओर दृष्टि दौड़ाते हैं तो यहाँ भी मूर्खता और लापरवाही के असंख्य काले पृष्ठ शर्मिंदा करते हैं। कटू सत्य तो यह है कि चीन के बारे में भारत की नीति हमेशा से ढुलमुल ही रही है। कभी ‘हिन्दी- चीनी भाई-भाई’ के नारे ने हमें छला तो आज ‘सस्ता सामान’ हमें बर्बाद कर रहा है लेकिन हमेशा की तरह हमारे नेता आज भी मस्त है। सारा दुनिया हैरान है कि लद्दाख की देपसांग घाटी में चीनी सैनिकों की घुसपैठ को दो सप्ताह से अधिक बीत चुके हैं लेकिन हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री जी इसे एक स्थानीय घटना बता रहे हैं। उनके अनुसार, ‘हम हालात को भड़काना नहीं चाहते। हमारे पास इससे निबटने की योजना है।’
आश्चर्य है कि जब अगले ही महीने चीन के प्रधानमंत्री भारत आ रहे हैं तब चीन ने यह कदम क्यों उठाया। क्या यह भारत के नेतृत्व को दबाव लेने की उनकी कोेई चाल है या कुछ और यह तो समय बतायेगा। ऐसे में जब चीन लगातार अपने पड़ोसियों पर हावी होने की कोशिश कर रहा हो तो क्या हमें उसकी समृद्धि और अपनी बर्बादी का रास्ता चुनना चाहिए? जी हाँ, अपनी बर्बादा का रास्ता हम स्वयं चुन रहे हैं। आज बाजार में जिस तरफ भी नज़रे घुमाइए हर तरफ चीनी सामान की भरमार है। घरेलु सामान से बच्चो के खिलौने, बर्तन, सजावट की चीजे, मोमबत्तियां देवताओ की मूर्तियाँ , इलैक्ट्रोनिक सामान, फोन, मोबाइल, जूते, टी शर्ट आखिर क्या नहीं है। यह सामान हमारे अपने घरेलू उद्योग द्वारा निर्मित वस्तुओं से कम कीमत पर मिलता है इसीलिए हमारे उद्योग चौपट हो रहे हैं। बाजार के लिए उत्पादन से सस्ता है चीन से आयात। स्वाभाविक है कि उनकी प्राथमिकता देशहित नहीं, निजहित है। लेकिन आपातकाल में निजहित से पहले देशहित होता है। वर्तमान परिस्थितियों में चिंतन करना होगा कि यह हमारे लघु उद्योगों को नष्ट कर हमें आर्थिक रूप से कमजोर करने की कोई कुटिल चाल तो नहीं है। क्या हमें याद नहीं कि अंग्रेजो ने भी इसी तरह से सस्ता माल उपलब्ध करवा पहले व्यापार और फिर देश की दुर्दशा की थी।
1962 में चीन ने ‘भाई-भाई’ का नारा देकर हमें भ्रमित किया और हमारे बहुत बड़े भूभाग पर कब्ज़ा कर लिया जो आज तक जारी है। इसी बीच तिब्बत को तो वह लगभग पचा चुका है जिसे दुर्भाग्य से हमारे नेता भी मान्यता दे चुके हैं। इसके बावजूद चीन हमारे असम और अरुणाचाल को अपना बताता है। कभी जम्मू-कश्मीर राज्य से चीन जाने वाले यात्रियों के वीसा अलग कागज पर नत्थी करना अथवा अरुणाचल में कार्यरत उच्च सेनाधिकारी का वीसा ठुकरना। पाकिस्तान को हथियार और आर्थिक सहायता देकर भारत के खिलाफ भड़काना क्या किसी से छिपा हुआ है? क्या हम इतने भुलक्कड़ है कि हमें याद तक नहीं कि तिब्बत को हडपने के बाद माओ ने कहा था कि ‘तिब्बत चीन की हथेली है तो नेफा, अरुणाचल, भूटान, नेपाल, सिक्किम, लद्दाख इसकी उंगलियां है, जिन्हें चीन लेकर रहेगा।’
1962 से लगातार चीन अपनी चिर पुरातन षड्यंत्रकारी युद्ध नीति ‘पहले मित्र बनाओ और फिर पीठ में छुरा घोंपकर अपने हित साधो’’ का अनुसरण कर रहा है। भारत के पड़ोस में स्थित सभी छोटे-बड़े देशों को आर्थिक एवं सैन्य सहायता देकर अपने पक्ष में एक प्रबल सैन्य शक्ति खड़ी करने में चीन ने सफलता प्राप्त की है। इसी रणनीति के अंतर्गत चीन पाकिस्तान को परमाणु ताकत बनने में मदद कर रहा है और उसकी मिसाइल क्षमता को मजबूत करने में जुटा है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीन का सैनिक हस्तक्षेप और इस सारे क्षेत्र को चीन की सीमा तक जोड़ने के लिए सड़कों का जाल बिछाकर चीन की पहुंच सीधे इस्लामाबाद तक हो गई है। पिछले कुछ वर्षों से चीन भारत को राजनयिक और सामरिक मोर्चे पर अस्थिर और असंतुलित रखने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ता। वह एक ऐसे चक्रव्यूह की रचना करना चाहता है जिससे निकलना भारत के लिए असंभव हो। दूसरी ओर वह अपने सस्ते मगर घटिया सामान से हमारे बाजारों को पाट देना चाहता है जिससे हमारी मानसिकता दूषित हो जाए अर्थात् हम उसपर निर्भर हो जाए ताकि वह मनमानी कर सके। आखिर हम क्यों भूलते हैं कि आर्थिक गुलामी का अगला पड़ाव राजनैतिक गुलामी ही होता है।
पाकिस्तान से लेकर श्रीलंका, म्यांमार और नेपाल तक चीन ने सामरिक महत्व के ऐसे अड्डों पर कब्जा कर लिया है जिसे भेदना बेहद कठिन है। इसके बावजूद चीन की वस्तुयें खरीद-खरीद कर हम चीन को आर्थिक मजबूती प्रदान कर रहे हैं और वह हमारे ही पैसे से अपनी सेना को मजबूत कर रहा है तभी तो उसका दुस्साहस इतना बढ़ रहा है। हमें चीन निर्मित वस्तुयें का बहिष्कार कर अपने राष्ट्रधर्म का पालन करना चाहिए। चीन निर्मित सामान खरीदने से पहले हमें यह अवश्य जानना चाहिए कि भारतीय उत्पादों की विश्वनीयता चीनी सामान से कहीं ज्यादा है वरना पाकिस्तान के ट्रक ड्राइवर भारतीय टायर लेना ही पसंद क्यों करते जबकि वह पाकिस्तान का सबसे बड़ा शुभचिंतक है।
भारत ने द्विपक्षीय समझौते के माध्यम से सार्क देशों को किफायती दरों पर व्यापार की सुविधाएं दी हैं पर चीनी निर्यातक भारत-नेपाल द्विपक्षीय व्यापार समझौते का उल्लंघन करके हमारे बाजारों को अपने सामान से पाट रहे हैं। भारत सरकार ने केवल सड़क द्वारा कोलकाता बंदरगाह से सामान आयात की जो सुविधा नेपाल को प्रदान की है, उसका दुरुपयोग करके चीनी निर्यातक अपना सारा माल गोरखपुर के रास्ते भारत में धकेल रहे हैं। भारतीय व्यापारी इस कारोबार को अवैध व्यापार ही मानते हैं। बिना वारंटी-गारंटी के सस्ते ये इलेक्ट्रानिक सामान हमारी पसंद बनते जा रहे हैं जो बेहद खतरनाक है। वाहन उद्योग में भी चीनी छा रहे है। उसने लुधियाना की साइकिल इंडस्ट्री को निगलना शुरू कर दिया है। जो पुर्जे देश में बनते थे वो अब चीन से मंगाए जा रहे हैं। हमारे बाजार से होने वाली कमाई से चीन मालामाल हो रहा है तो हमारी कंपनियां कंगाल। लाखों लोगों से रोजगार छिन रहे हैं। इसके बावजूद हम सस्ती चीजों पर झूम रहे हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार हमारा एक -चौथाई औद्योगिक उत्पादन चीन पर आश्रित हो चुका है जो अगले पांच साल में ये बढ़कर तीन-चौथाई अर्थात् 75 फीसदी तक पहुंच जाएगा।
चीन द्वारा विश्वासघात और दादागिरी का मुंह तोड़ जवाब देना होगा। यह फैसला हो ही जाना चाहिए कि क्या भारत माता की छाती पर पैर रखने के दुस्साहस के बाद भी चीन हमारा शुभचितक हो सकता है? क्या ‘चाइनीज माल’ खरीद हम उसकी मदद और स्वयं से छल नहीं कर रहे हैं? क्या हमें सारी दुनिया के सामने एकबार फिर साबित नहीं करना चाहिए कि हम भूखे रहकर भी देश की अस्मिता की रक्षा करने का अभ्यास नहीं भूले हैं। महंगा ही सही, स्वदेशी खरीदेगे।
जनता को सरकार पर यह दबाव बनाना चाहिए कि विदेशी सामान की तस्करी पर सख्ती से रोक लगाये तथा घरेलु जरुरत की वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाकर कुटीर उद्योगों की रक्षा करें। भारतीय करप्रणाली का पुनःनिरिक्षण हो ताकि अनावश्यक मूल्यवृद्धि से छुटकारा मिल सके। आज देश की राजनीति को ‘पप्पु बनाम फेकु’, ‘टोपी बनाम तिलक’ जैसे अनावश्यक मुद्दों से निकाल बाहर करने का समय आ गया है। यदि आज हम सक्रिय नहीं हुए तो कल बहुत देर हो चुकी होगी। इतिहास की भूलों को दोहराने की बजाय ऐसा इतिहास बनाने की दिशा में बढ़ना है तो ‘सस्ता सामान’ नहीं ‘सुरक्षा और सम्मान’ हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। देश की कोटिशः जनता चीन की दादागिरी का मुंह तोड़ जबाव देना जानती है इसलिए जरूरी है चीन निर्मित वस्तुओं का बहिष्कार! इस अति महत्वपूर्ण कार्य जिसे राष्ट्रधर्म भी कहा जा सकता है, की शुरुआत किसी दूसरों को नहीं बल्कि आपको और मुझे करनी है। आज और अभी दृढ़प्रतिज्ञ होने की बेला है। आइए हम संकल्प ले- चीन के बहिष्कार का! हम भारत माता की संतान है तो अपनी मातृभूमि का अपमान करने वालों को बर्दाश्त करने का विचार भी हमारे मन में नहीं आ सकता। स्वदेश प्रेम हमारे लिए केवल नारा नहीं व्यवहार है, भारतभू को कुदृष्टि से देखने वालों को सबक सिखाना हमारा अधिकार है। (लेखक पूर्व प्रधानाचार्य साहित्यकार है.आपने 16 देशो की यात्रा की, अब तक 14 पुस्तकें लिखी, जिनमे से कुछ अन्य भाषाओं में भी अनूदित है )
बहिष्कार ही है चीन की दादागिरी का जवाब --डा विनोद बब्बर Bycott Chines Goods is Only Solution
Reviewed by rashtra kinkar
on
03:39
Rating:
No comments