हिम्मतनगर में ‘मीरा शब्द-पर्व’ संपन्न Meera Shbd Parv In HimmatNagar Gujrat
हिम्मत नगर। प्रथम मई को गुजरात दिवस एवं पंचमुखी हनुमान मंदिर के पाटोत्सव के अवसर पर निम्बार्क शोध संस्थानम् के निदेशक डॉ. स्वामी गौरांगशरण देवाचार्य द्वारा प्रेमा भक्ति की प्रतीक कवियत्री मीराबाई की शब्द यात्रा पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजित किया गया। कार्यशाला का शुभारंभ मीरा के प्रसिद्ध पदों के सुमधुर गायन के बीच गुजरात परिवहन निगम की निदेशक श्रीमती कौशल्या कुंवरबा परमार,इस अवसर पर क्षेत्रिय सांसद डॉ. महेन्द्रसिंह चौहान, पूज्य संत महामंडलेश्वर श्री लालदास जी महाराज, मेड़ता राजपरिवार के श्री गिरधारी सिंह, विद्यानगरी संयोजक श्री डायाभाई पटेल, हिम्मतनगर नागरिक बैंक के चेयरमेन श्री संजयभाई पटेल, लायन्स क्लब ऑफ डिवाइन के प्रमुख श्री प्रवीणभाई प्रजापति, आल इण्डिया स्माल एण्ड मीडियम न्यूज पेपर्स एसोशिएशन के राष्ट्रीय महामंत्री श्री अशोक चतुर्वेदी ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इस कार्यक्रम में 1972 के भारत- पाक युद्ध में अपने दोनों पैर गवां कर भी शत्रु को मुंह तोड़ जवाब देने वाले वीरचक्र प्राप्त श्री बचुभाई बारांडा को ‘अरावली शौर्य सम्मान’ प्रदान कर अभिनंदन किया गया। अपने स्वागत भाषण में डॉ. स्वामी गौरांगशरण देवाचार्य नें मीरा को विश्व की प्रथम विद्रोही कवियत्री बताते हुए उन्हें गुजरात में नरसी मेहता के समान श्रद्धेय बताया। मीरा के पद पूरे भारत में समान रूप से प्रचलित हैं तो सम्पूर्ण विश्व में भी उनके साहित्य का अनुवाद और शोध कम नहीं हुए है।
मीरा शब्द पर्व पर चर्चा आरंभ करते हुए मीरा स्मृति संस्थान, चित्तौड़गढ़ के प्रो. सत्यनारायण समदानी ने मीरा के जन्म वर्ष और जन्म स्थान पर अनेक शोधकर्ताओं की मत भिन्नता को रेखांकित किया। उन्होंने मीरा को विद्रोही मानने से इंकार करते हुए उनके रैदास की शिष्या होने, गोस्वामी तुलसीदास को पत्र लिखने जैसी धटनाओं को काल्पनिक बताते हुए इनका खंडन किया। अपने शोधात्मक उद्बोधन में प्रो. समदानी ने मीरा के विषपान से संबंधित अनेक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्हें प्रेमाभक्ति की अद्वितीय प्रतिनिधि बताया। उन्होंने मीरा अध्ययन और शोध को और आगे बढ़ाने के लिए गुजरात के किसी विश्वविद्यालय में मीरापीठ की स्थापना की मांग की। चर्चा को आगे बढ़ाते हुए स्थानीय इडर महिला कालेज की हिन्दी विभागाध्यक्षा डॉ. मृदुला पारिख ने मीरा के राजस्थानी गुजराती मिश्रित पदों को प्रस्तुत किये। डॉ. पारिख के अनुसार ‘काव्य में अनेक प्रतीकों और बिम्बों का प्रयोग होता है। मीरा के पदों में विषपान को समकालीन शासकों और परिजनों के विरोध का प्रतीक भी माना जा सकता है। अपने एकेडमिक व्याख्यान में डॉ. मृदुला पारिख ने मीरा के वृंदावन से द्वारिका जाने के मार्ग, अपने इष्ट रणछोड़ में विलीन होने, समाज पर उनके प्रभाव तथा उनके जीवन से जुड़े अनेक पक्षों की चर्चा भी की।
इस महत्वपूर्ण चर्चा के तीसरे मुख्य वक्ता दिल्ली के डा विनोद बब्बर ने कार्यक्रम में उपस्थित संतों, प्रबुद्धजनों और गुजरात राज्य के लघु एवं मध्यम समाचारपत्रों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति को भक्ति, ज्ञान और सुचना की त्रिवेणी बताते हुए मीरा को इस देश की सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक घोषित किया। उनके अनुसार, ‘इस बात पर सर्व सहमति है कि मीरा ने समकालीन समाज की रूढ़ियों का डटकर विरोध किया, धार्मिक जड़ता को अस्वीकार किया, शासकों की परवाह नहीं की तो क्या यह सब उन्हें विद्रोही साबित नहीं करते? शोधकर्ताओं द्वारा मीरा के जन्म और जन्मस्थान पर अनेक मत प्रस्तुत करना महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि मीरा किसी शोध के कारण जिन्दा नहीं है बल्कि शोधकर्ता मीरा के कारण सम्मान पाते हैं। मीरा तो सदियों से जन-जन के हृदय में श्रद्धा से विराजित है।’ उन्होंने मीरा के अन्तिम स्थान की चर्चा करते हुए कहा, ‘मीरा ने इस नश्वर संसार को वृंदावन में त्यागा या द्वारिका में इसपर मत भिन्नता हो सकती है लेकिन वह द्वारिकाधीश के श्रीचरणों में विलीन हुई इसपर कोई असहमत हो ही नहीं सकता। ऐसे महामानव अपने कृत्य के कारण संसार में जाने जाते हैं जन्म, मरण, परिवार अथवा परिवेश के कारण नहीं। उन्होंने नई पीढ़ी को मीरा के बारे में बताये जाने की आवश्यकता बताते हुए कार्यक्रम संयोजक डॉ. स्वामी गौरांगशरण देवाचार्य को इस आयोजन के लिए साधुवाद दिया।
पूरे समय उपस्थित रहे सांसद डॉ. महेन्द्रसिंह चौहान ने मीरा पर्व से प्राप्त जानकारी को अपनी जीवन की उपलब्धि बताते हुए कहा, ‘मुझे मीरा के कुछ पदों की जानकारी अवश्य थी लेकिन आज पहली बार मीरा के बारे में इतना कुछ जानकर मुझे बहुत खुशी हुई। एक वीर का मीरा पर्व को अतिरिक्त गरिमा प्रदान करता है। एक संत द्वारा देशप्रेम और मीरा भक्ति पर यह आयोजन भारत की उस महान परम्परा का विस्तार है जो संत को देश और समाज का अभिभावक मानती है। मंच पर विराजित अन्य सभी विशिष्ट अतिथियों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। इस महत्वपूर्ण कार्यशाला में गायत्री परिवार के भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा प्रकोष्ठ दिल्ली के संयोजक श्री खैरातीलाल सचदेवा, विनायक विद्यापीठ भीलवाड़ा के निदेशक डॉ. देवेन्द्र कुमावत, श्री अशोक व्यास, सहित अनेक विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। महंत सुनीलदास द्वारा धन्यवाद ज्ञापन तथा सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट करने के बाद सुरूचि भोज की व्यवस्था थी जिसमें पाँच सौ से अधिक श्रोता भक्तों ने भाग लिया।
हिम्मतनगर में ‘मीरा शब्द-पर्व’ संपन्न Meera Shbd Parv In HimmatNagar Gujrat
Reviewed by rashtra kinkar
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