भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनाक्रोश है कर्नाटक परिणाम Bhrastachar
पिछले कुछ वर्षों में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम पहले से ही इतने स्पष्ट थे कि शायद ही किसी को इनसे कोई आश्चर्य हुआ हो। दीवार पर लिखा पढ़ने में माहिर मोदी ने प्रचार में ज्यादा रूचि नहीं ली तो सफलता की तलाश में भटक रहे राहुल ने जरुरत से ज्यादा समय यहाँ लगाया। स्पष्ट है कि यह सब अपनी-अपनी जरुरतों के हिसाब से दिखावा करना चाहते है और उनके समर्थकों द्वारा भी चुनाव परिणामों की मनमानी व्याख्या की जा रही है। येदुरप्पा के घोटाले से त्रस्त जनता द्वारा लगातार घोटालों से घिरी कांग्रेस को दी गई राहत मिलते ही वह इसे अपनी नीतियों की सफलता तो विपक्ष के विरुद्ध जनादेश बताकर तनाव से मुक्त होना चाहती है लेकिन अजीब संयोग है कि चुनाव परिणाम से प्राप्त संजीवनी और उच्चतम न्यायालय द्वारा फटकार एक ही साथ मिलना कांग्रेस का मजा किरकिरा करने के लिए पर्याप्त है।
वास्तव में ये परिणाम सभी के लिए महत्वपूर्ण संदेश है कि लोग भ्रष्टाचार से ऊब गये हैं. वे उसके भ्रष्टाचार को भी बरदाश्त करने को तैयार नहीं है। यह बेहद संतोष की बात है कि सम्पूर्ण देश की जनता अब पहले की आपेक्षा जागरुक है और भ्रष्टाचार के विरोध में भारी मतदान करती है। उसे किसी दल विशेष अथवा व्यक्ति विशेष से कोई लगाव नहीं है। वरना राहुल गांधी उत्तर प्रदेश, बिहार में दिन-रात एक करने के बावजूद असफल और कर्नाटक में सफल क्यों होते? इसी तरह नरेन्द्र मोदी गुजरात में लगातार सफलता प्राप्त करने के बावजूद उत्तराखंड, हिमाचल के बाद कर्नाटक में कोई विशेष प्रभाव प्रस्तुत करने में असफल क्यों रहते? ये चुनाव परिणाम सभी राजनीतिक दलों के लिए एक चेतावनी है कि वे संभल जाएँ अन्यथा परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे।
भाजपा का पिछला शासन कर्नाटक की जनता के लिए अच्छा अनुभव साबित नहीं हुआ क्योंकि उसकी छवि ‘पार्टी विद के डिफरेन्स’ से बदल कर ‘पार्टी विद डिफरेन्सेस’ हो गई। मूल्यों की राजनीति का दावा करने वाले दल को येदुरप्पा की महत्वाकांक्षा तुष्ट करने का मूल्य चुकाना पड़ा। यदि भाजपा हाईकमान समय पर सख्त कदम उठाता तो बेशक उसकी प्रदेश सरकार कुर्बान हो जाती लेकिन जनता के दिलों में उसकी छवि सलामत रहती। येदुरप्पा और रेड्डी बंधुओं का भ्रष्टाचार, प्राकृतिक संसाधनों की लूट, हटाने के बावजूद येदुरप्पा की इच्छानुसार बदलाव, उनकी अति महत्वाकांक्षा ने राष्ट्रीय मुद्दो को पीछे कर दिया लेकिन इससे चुनाव का राष्ट्रीय महत्व कम नहीं होता है। देश भर में कांग्रेस के भ्रष्टाचार की तस्वीर दिखाकर अपनी अक्षमता ढ़कने वाले समझ नहीं पाए कि लोगों ने दिल्ली के भ्रष्टाचार को दूर का मान कर पहले आसपास के कचरे को दूर करना चाहा है। जब मौका मिलेगा तो वे दिल्ली के वातावरण को स्वच्छ करने में भी किसी से पीछे रहने वाले नहीं है।
निश्चित तौर पर ये चुनाव परिणाम विपक्ष के बंटवारे से तो प्रभावित है ही लेकिन कर्नाटक जैसे राज्य में जातिवाद के प्रभावों की ओर भी संकेत करता है। येदुरप्पा की पार्टी को प्राप्त मतों प्रतिशत दो अकों में होना भ्रष्टाचार पर जातिवाद के हावी होने की पुष्टि भी करता है। वैसे कर्नाटक से पहले उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में भी जाति के आधार पर अपराध को अनदेखा करने अथवा उछालने की प्रवृति विद्यमान है। ऐसे प्रभाव और प्रवृति हमारे लोकतंत्र की परिपक्वता पर प्रश्नचिह लगाते हैं। देश को प्रगति के पथ पर तेजी से आगे बढ़ाने के लिए भ्रष्टाचार को अस्वीकार करना ही होगा। यह नहीं हो सकता कि अपनो का बड़े से बड़ा पाप भी माफ और गैरों की छोटी सी गलती भी फांसी लायक। आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम संकीर्णताओं से ऊपर उठकर ‘एक भारत’ की अवधारणा को स्वीकारे े। आखिर देश हर पार्टी अथवा जाति से बड़ा है। देश के लिए एक नहीं, हजार कांग्रेसं-भाजपा को कुर्बान किया जा सकता है लेकिन देशहित की बलि किसी कीमत पर नहीं होनी चाहिए।
पिछले एक सप्ताह में हुए कुछ अन्य चुनाव परिणामों को देखे तो उत्तराखंड में हुए स्थानीय चुनावों में पिछले ही वर्ष चुनाव जीतने कांग्रेस को जोरदार झटका लगा है। वहाँ अधिकांश नगरों में भाजपा विजयी रही तो देश की राजधानी दिल्ली में हुए दो उपचुनावों के परिणाम भी सत्तारुढ़ प्रदेश कांग्रेस सरकार के लिए खतरे की घंटी हैं। स्पष्ट है कि कर्नाटक सहित सारे देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध जबरदस्त जनाक्रोश है। यदि आज देश में आम चुनाव हो जाए तो तय है कि परिणाम चौकाने वाले होंगे। इसलिए सत्तारुढ़ कांग्रेस तथा भाजपा सहित विपक्ष को समय आने से पहले ही अपने-अपने आंगन का कूड़ा-करकट निकाल बाहर करना चाहिए। यदि ये दल स्वयं ऐसा करने में असफल रहते हैं तो यह तय है कि भ्रष्टाचारी के संगी-साथी भी इतिहास के कूड़ेदान की शोभा बढ़ाने का कार्य करेंगे।
कांग्रेस को राहुल राग और भाजपा को मोदी राग से बचने की आवश्यकता है। यदि इनमें योग्यता एवं क्षमता है तो समय इन्हें अवश्य स्वीकारेंगा। जनता को काम चाहिए आंकड़े नहीं। शायद ये आंकड़े मोदी समर्थकों को राहत दे सके हैं कि नरेन्द्र मोदी ने तीन जनसभाएं की जिनका प्रभाव 37 सीटों पर हो सकता था जिसमें 16 सीटें भाजपा ने जीतीं, अर्थात उनकी सफलता का प्रतिशत 43.24 रहा। उन्हें बूरी तरह असफल घोषित किया जा रहा है तो दूसरी ओर सफलता का श्रेय जिस राहुल गांधी को दिया जा रहा है, उन्होंने दर्जन भर चुनावी रैलियां की जिनका प्रभाव 60 सीटों पर था। कॉंग्रेस ने 25 सीटें जीतीं. अर्थात उनकी सफलता का प्रतिशत 41.66 रहा। वैसे ये सब गणितीय आंकड़े हैं जिनका धरातल से संबंध कम ही होता है। हार-जीत हवाई पैराशूट से उतरे फरिश्तों से ज्यादा जमीनी स्तर पर संगठन, कार्यकर्ताओं का मनोबल, जनता के बीच पार्टी की छवि को जाता है। राजनीति के लिए केवल अच्छी-अच्छी बाते करना ही काफी नहीं, उसे ईमानदार दिखना भी चाहिए। जो पार्टी पूरे पांच वर्ष आपसी खींचतान से ही नहीं उभर पाई, उसे अपनी असफलता के लिए बहाने तलाशने की बजाय सीधे -सीधे कड़वी सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। शाश्वत सत्य है कि बिना मर्ज को जाने निदान हो भी तो कैसे?
असफलता का अर्थ है उस दल का जनता से जुड़ाव कम हो रहा था। भ्रष्टाचार राजनेताओं का मिजाज खराब कर उन्हें जनता से दूर करने में अहम भूमिका निभाता है। उन्हें विश्वास होता है कि काली कमाई उनके सभी काले कारनामों को ढक लेगी। वे भूलते हैं कि जब किसी मांसाहारी कुत्ते का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है तो वह घास खाता है। घास से उसके अंदर शुद्धिकरण की प्रक्रिया आरंभ होती है जो उसे फिर से स्वस्थ बनाती है। पराजित दल को इससे सबक लेते हुए घास अर्थात् ‘ग्रास-रूट’ पर ध्यान देना चाहिए। यदि आप जनता की आपेक्षाओं पर खरे उतरते हुए अपनी छवि को स्वच्छ रख सकते हैं, अपने कार्यकर्ताओं को सम्मान दे सकते हैं तो आपका पद और उससे भी महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा बची रहेगी वरना ‘मूल्यों की राजनीति’ करने का दावा वालों का मूल्य दो कोढ़ी का बना रहेगा। फिलहाल शेष राज्यों की जनता अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति का इंतजार कर रही है। उसे न तो किसी ‘मामा’ से अतिरिक्त लगाव है और न ही ‘बाबा’ से। जनता का आक्रोश ‘आयरन लेडी’ को धूल चटा सकता है तो ‘मौनी बाबा’ को भी भ्रष्टाचार के प्रति सहिष्णु होने की कीमत चुकानी ही पड़ेगी। बस यही है इन परिणामों का संदेश।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनाक्रोश है कर्नाटक परिणाम Bhrastachar
Reviewed by rashtra kinkar
on
06:15
Rating:
No comments