वंदेमातरम् पर विवाद का औचित्य Vandematram!
ए. आर. रहमान वन्देमातरम गाते हुए |
यह पहली बार नहीं है कि वंदेमातरम् पर विवाद किया गया हो। वंदेमातरम् के शताब्दी वर्ष में पूरे देश के सभी शिक्षण संस्थाओं में इस राष्ट्रगीत के गायन के मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा जारी सर्कुलर पर मौलानाओं के बाद कुछ मुस्लिम संासदों और उनसे भी अधिक शोर तथाकथित सैकुलर बुद्धिजीवीयों द्वारा मचाया गया तो उस आदेश को वापस ले लिया गया था जिससे देशप्रेमियों को गहरा सदमा पहुँचाया था।वंदेमातरम् का विरोध देश की एकता अखंडता का विरोध है क्यांेकि इस गीत के एक-एक शब्द से हमारे मन में देश के लिए कुछ करने और मर मिटने का जज्बा पैदा होता है। बिस्मिल, आजाद, भगत सिंह, अशफाक उल्लाखां जैसे हजारों शहीदों ने इसी से प्रेरणा लेकर अपने प्राणों तक की परवाह न की।
यह सत्य है कि लोकतंत्र में किसी को भी किसी कार्य विशेष के लिए विवश नहीं किया जा सकता, लेकिन इसका यह अर्थ भी नहीं हैं कि राष्ट्रीय प्रतीको पर हमला हो और उसे सामान्य मामला करार दिया जाए। राष्ट्र महज समुदायों, धर्मो, लोगों का संकलन या भौगोलिक अवधारणा ही नहीं है, बल्कि राष्ट्र निर्माण एक सतत प्रक्रिया होती है जिसके अंतर्गत सृजनात्मकता, अखण्डता, न्यूनतम साझा मूल्य और विरासत का योगदान होता है। भारत जैसे देश में विभिन्न समुदायों के तुष्टिकरण के लिए न तो अलग-अलग कानून हो सकता है, न राष्ट्रगान हो सकता है और न ही राष्ट्रगीत। ये ऐसे प्रतीक होते हैं, जिन्हें अपनी सभी पहचानों से ऊपर माना गया है। कोई राष्ट्र इस्लामी हो या ईसाई, साम्यवादी हो या पूँजीवादी, धर्म सापेक्ष हो या धर्मनिरपेक्ष, वह अपनी राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीकों को सर्वोपरि मानता है। इन प्रतीकों पर प्रश्नचिन्ह लगाना कैसे उचित ठहराया जा सकता है। हर मुस्लिम देश का अपना झंडा है। तो क्या वे नाजायज़ काम कर रहे हैं? क्या वे देश के झंडे को सैलूट नहीं करते हैं? क्या इस्लाम में यह जायज़ है?
वंदेमातरम् में इस्लाम की आलोचना तो बहुत दूर की बात है, उनका जिक्र तक नहीं है। इसमें मातृभूमि की वंदना की बात कहीं गई है, पूजा की नहीं। अगर पूजा की बात भी की जाती, तो उसमें गलत क्या था? हर मनुष्य के लिए उसकी मातृभूमि पूज्य है, तो भगवान और अल्लाह परमपूज्य है। दोनों में कोई विरोध नहीं है। वंदेमातरम् के अंतिम पद में दुर्गा, कमला और सरस्वती का जिक्र आया है, लेकिन कहीं भी उनकी पूजा करने की बात नहीं गई है। सिर्फ यह कहा गया है कि हे मात्भूमि, ‘त्वं‘ हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी, कमला कमलदलविहारिणी, वाणी विद्यादायिनी‘ यानी कवि ने मात्भूमि की तुलना दुर्गा (शक्ति) कमला (संपदा), वाणी (ज्ञान) से की है। यदि राष्ट्रगीत में मातृभूमि को शक्ति, संपदा और ज्ञान का मूर्तिरूप कहा जाए, तो इसमें इस्लाम विरोधी कौन सी बात है? मातृभूमि की अराधना की बात तो बंाग्लादेेश और इंडोनेशिया जैसे लगभग सभी इस्लामी देशों के राष्ट्रगान में भी आई है। फिर भी वंदेमातरम् को इस्लामी विरोधी कहना कहाँ तक तर्कसंगत है?
1896 के कांग्रेस कलकत्ता अधिवेशन में रहमतुल्ला सायानी की अध्यक्षता मे पहली बार वन्देमातरम गाया गया। राष्ट्रगान चयन समिति में चार मुस्लिम विद्वान- मौलाना अबुल कलाम आज़ाद,जाकिर हुसैन, और रफी अहमद किदवई भी थे। असल में वंदेमातरम से मुसलमान नहीं अंग्रेज चिढ़ते थे जहाँ यह गाया जाता वहाँ भारतीय संगठित होकर उनके विरुद्ध हो जाते थे इससे परेशान होकर उन्होंने फूट डालों और राज करों की नीति अपनाते हुए उसे मुसलमानों की भावना से जोड़ा। यह एक साजिश के तहत हुआ। परंतु आज इसे जारी रखने का औचित्य क्या है?
जब पकिस्तान के जाने-माने गजलकार मेंहदी हसन अपने कार्यक्रम की शुरुआतं सरस्वती वंदना से कर सकते है, रसखान कृष्णभक्त हो सकते है, शहनाई वादक बिस्मिल्ला खां अपनी शहनाई से वंदेमातरम् गा सकते है तो क्या उनका निजधर्म समाप्त हुआ? अल्पसंख्यक होने का अर्थ अपनी परम्परा से कटना नहीं हैं क्योंकि सभी मुसलमान इसी धरती की संतान है जिन्हें कुछ सौ वर्ष पूर्व धर्मान्तरण करना पड़ा था। वास्तव में यह कुछ कट्टरपंथी शक्तियों का काम है जो इस प्रकार के विवाद उत्पन्न कर देश की फ़िजा में जहर घोलना चाहते है। जब हम जापान की उस घटना को याद करते हैं कि एक चोर को भागने से रोकने के लिए होटल के मैनेजर ने वहां का राष्ट्रगान बजा दिया इस पर चोर वहीं सावधान की मुदªा में खड़ा हो गया और इसी बीच पुलिस आ गई, चोर पकड़ा गया। उस देश में एक अपराधी भी अपने राष्ट्रगान का इतना सम्मान करता है तो दूसरी ओर हमारे देश में अपने आप को बुद्धिजीवी मानने वाले लोग वंदेमातरम् का विरोध करने में जरा भी शर्म नहीं करते। यह सचमुच पूरे राष्ट्र के लिए शर्म का विषय होना चाहिए।
जापान में छोटे बच्चों को भी यह शिक्षा दी जाती है कि उनका ईश्वर उनके माता-पिता, आचार्य तथा अन्य सभी से बढ़कर है परन्तु यदि वही ईश्वर उनके देश पर आक्रमण कर दे तो वे क्या करेंगे? हर बच्चें का एक ही जवाब होता है, ‘हम उस ईश्वर का भी वध कर देगें।‘ धन्य है वह देश और उसके नागरिक! अब जरा हम अपने आप पर नजर दौड़ा कर देखें कि क्या हम उन देशों से भी गए गुजरे है जिन्होंने उस धर्म को हमारी इसी भूमि से प्राप्त किया है?
जिसका हृदय और मस्तिष्क अपने राष्ट्र की वंदना करने की अनुमति न देता हो उसे राष्ट्र से किसी प्रकार के लाभ की कामना क्यों करनी चाहिए. वैसे भी वन्देमातरम गीत में भारत इंडिया आर्यावर्त हिंदुस्तान जैसे शब्द तो है ही नहीं. जब कोई पाकिस्तानी वन्देमातरम कहे तो उसका अर्थ है वह अपनी मादरे-वतन को सलाम कर रहा है और अमेरिकी अपने मदर लैंड को सैल्यूट करता है. राष्ट्र को धर्म से जोड़ने वाले बताये कि उनके धार्मिक ग्रंथो में कहाँ लिखा है आधुनिक साधन अपनाओ, अस्पतालो में आपरेशन करवाओ, ट्रेन या जहाज में सफ़र करो. चुनाव में हर तरीका अपनाने वाले नेताओ को धर्म के नाम पर इस तरह के विवाद उत्पन्न करने की छूट देना अधर्म है। जो नेता चुनाव में हर तरह के हथकंडे अपनाते हुए अपने धर्म को भूल जाता हो, बार-बार पार्टी बदलते हुए उसे लाज न आती हो उसके मुंह से धार्मिक विश्वास की बात धोखा है. अगर वह खुदा के अलावा किसी के सामने सर नहीं झुक सकता तो खामोश रह सकता है. लेकिन उसे राष्ट्र गीत के अपमान का अधिकार नहीं दिया जा सकता। देश तो नियम, कानून, मर्यादा से चलते है जिसका संविधान के प्रति आदर न हो, उसे संसद में क्यों होना चाहिए? जिस तरह एक मुसलमान होने के लिये नमाज, रोजा, जकात, हज जरूरी है। एक खुदा पर ईमान जरूरी है उसी प्रकार हिन्दुस्तानी होने के लिए अपने राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत, संविधान में आस्था जरूरी है। देश की एकता-अखंडता के प्रति समर्पण जरूरी है।
जाने-माने शायर मुनव्वर राना ने कहते हैं, ‘जब हम गंगा-यमुना के पानी से वजू कर सकते हैं तो फिर वन्देमातरम् से ऐतराज सिर्फ और सिर्फ सियासी जिद है।’ उन्होंने ऐसे फतवों की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए यहाँ तक कहा है कि वन्देमातरम् गाने से अगर इस्लाम खतरे में पड़ सकता है तो इसका मतलब हुआ कि इस्लाम बहुत कमजोर मजहब है। संविधानशिल्पी बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर ने ही वंदेमातरम् को राष्ट्रगीत की मान्यता दी थी। यदि बसपा जो बाबासाहब को अपना प्रेरणा स्रोत बताती है, को इस सांसद को बसपा से तत्काल निष्कासित कर चाहिए।
कवि नरेश कुमार शर्मा ने ठीक ही कहा हैं-
पूजे न शहीद गए तो फिर, यह पंथ कौन अपनाएगा?
तोपों के मुँह से कौन अकड़ अपनी छातियाँ अड़ाएगा?
चूमेगा फन्दे कौन, गोलियाँ कौन वक्ष पर खाएगा?
अपने हाथों अपने मस्तक फिर आगे कौन बढ़ाएगा?
पूजे न शहीद गए तो फिर आजादी कौन बचाएगा?
फिर कौन मौत की छाया में जीवन के रास रचाएगा?
पूजे न शहीद गए तो फिर यह बीज कहाँ से आएगा?
धरती को माँ कह कर, मिट्टी माथे से कौन लगाएगा?
वन्देमातरम्! वन्देमातरम्!! वन्देमातरम्!!!----- डा. विनोद बब्बर
वंदेमातरम् पर विवाद का औचित्य Vandematram!
Reviewed by rashtra kinkar
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