पहचान के लिए चाहिए कितने कार्ड--डा विनोद बब्बर
पिछले दिनो रेल में मेरे साथ वाली सीट पर बैठे एक सज्जन से जब टीटी ने पहचान-पत्र मांगा तो उसने बैग से निकाल एक मोटी डायरी उसकी तरफ बढ़ा दी। केवल टीटी ही नहीं सभी सहयात्री हैरान थे। ‘मैंने पहचान दिखाने के लिए कहा है, एलबम नहीं’ के जवाब में जब उस यात्री ने कहा-‘जनाब मैं भी अपने पहचान पत्र ही दिखा रहा हूँ न कि अपनी शादी की एलबम।’ तो अपनी पटरियों पर दौड़ रहे रेल के उस कम्पार्टमेंट में एक जोरदार ठहाका गूंजा।
सच ही तो है आज हमारे पास पहचान पत्रों की भरमार है। एक नजर अपने ही कार्डो पर-
वोटर पहचान पत्र
ड्राइविंग लाइसेंस,
पैन कार्ड
देहदान संकल्प कार्ड
ईपीएफ कार्ड
कर्मचारी आईडी कार्ड
राशन कार्ड, (अब यह मत पूछना मना है कि जब राशन मिलना ही नहीं है तो फिर राशन कार्ड का क्या औचित्य है?)
सीनियर सिटिज़न कार्ड,
बीपीएल कार्ड,
ईएसआई कार्ड,
सीजीएचएस कार्ड
मेडिक्लेम पहचानपत्र
नरेगा जॉब कार्ड
शैक्षिक संस्थान का फोटो आइर्डी, आर्म्स लाइसेंस,
बैंक पासबुक,
एटीएम कार्ड,
असंख्य क्रेडिट कार्ड,
पेंशनर कार्ड,
स्वतंत्रता सेनानी कार्ड,
किसान फोटो पासबुक
इसके अतिरक्त दिल्ली में रहते हो तो मेट्रो कार्ड, डीटीसी का पास, रेलवे एमएसटी, प्रैस कार्ड के लिए भी लगभग हर आदमी जुगाड़ लगाता है। इसके अतिरिक्त हर संस्था द्वारा जारी पहचान पत्र और न जाने क्या-क्या? हमारी पहचान को प्रमाणित करते इन पहचान पत्रों की भीड़ में बहुउद्देश्यीय राष्ट्रीय पहचान पत्र अर्थात् आधार कार्ड के बाद अब राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनपीआर) भी शामिल हो रहा है। बहुउद्देश्यीय राष्ट्रीय पहचान पत्र, आधार के लिये भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) का गठन किया गया। इस संबंध में सरकार का दावा था कि ‘यह प्राधिकरण भारतीय नागरिकता कानून के अनु़सार मतगणना के रजिस्ट्रार जनरल के जरिए गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के साथ तालमेल बिठा कर काम करेगा। यह न केवल सुरक्षा संबंधी मुद्दों से निपटेगा, बल्कि इसका लक्ष्य नागरिकता बोध विकसित करना, पहचान संबंधी धोखाधड़ी को कम करना और विभिन्न सरकारी योजनाओं में अपव्यय को रोकना भी है।’ लेकिन अब राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनपीआर) के मैदान में आ जाने के बाद स्पष्ट है कि प्रथम दावा धराशायी हो चुका ह वरना एक ही उद्देश्य के लिए एक ही साथ दो प्राधिकरण क्यों?वैसे भी नागरिकता अधिनियम के तहत देश की नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी नागरिकों की है। अतः विभिन्न प्रकार के कार्डों और सरकार के अपने विभागों के बीच समन्वय की कमी की वजह से जनता की पहचान गुम हो गई है। जहाँ तक कुछ समय पूर्व गली -गली बने आधार कार्डो का प्रश्न है वे आज तक सही लोगो तक नहीं पहुंच सके हैं। विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार आधार कार्डां के कूड़े के ढ़ेर से डाकघरों में बोरों में धूल चाट रहे हैं।
वास्तव में पिछली सरकार के समय जब बहुद्देशीय पहचान पत्र का प्रारूप तैयार किया गया उसमें अनेक पहचान पत्रों (ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर पहचान कार्ड, राशन कार्ड, पैन कार्ड आदि) को समाप्त कर भारत के नागरिक की संपूर्ण पहचान के लिए एकमात्र बहुउद्देश्यीय राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने की योजना थी। लेकिन आधार अथवा नागरिकता रजिस्टर जारी करने के ढ़ंग से कहीं ऐसा नहीं लगता कि ये कार्ड शेष कार्डो की आवश्यकता से ेमुक्ति दिला सकेगे। वैसे इन नए कार्डों में फिंगर प्रिंटस, आंखों की पहचान को तो शामिल किया जा रहा है लेकिन ब्लड ग्रूप, बैंक खाता नंबर व प्रमाणिक फोन नंबर आदि को इससे न जोड़ा जाना इसके महत्व को कम करता है। ऐसे में आखिर इसे बहुद्देशीय कहे भी तो कैसे? वास्तव में यह न तो अपने नाम के अनुरूप बहुद्देशीय है और न ही नागरिकता का सही और एकमात्र प्रमाण। वोट ब्ैंक बनाने अथवा वचाने के लिए नेताओं के हस्तक्षेप से इसे प्राप्त करना इतना आसान है कि घुसपैठियें भी इसे आसानी से प्राप्त कर सकते है। बिना किसी जांच के इसे जारी करना खतरनाक हो सकता है।
आज बैंक खाता खोलने से ड्राइविंग लाइसेंस लेते हुए सरकारी सेवाओं तक पहुंच बनाने के लिए आधार को अनिवार्य बनाया जा रहा है। देश के सभी बैंक अपने खातेदारों से आधार नम्बर की मांग कर रहे हैं ताकि आर्थिक लेन-देन सहित अन्य जानकारियां मिल सके परंतु आज की संचार क्रांति तथा दिन -प्रतिदिन आ रही उन्नत तकनीक के दौर में इस तरह के आधे -अधूरे, पहचान पत्र को राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी ही कहा जा सकता है। बर्बादी इसलिए भी कि एक ही साथ अनेक संस्थाओं द्वारा यह कार्य समानान्तर रूप से किया जा रहा है।
अब तक इन पहचान पत्रों को बनाने के लिए आंकड़े एकत्र करने आदि का कार्य अध्यापकों अथवा प्राईवेट संस्थाओं से करवाया जाता है। यह केवल हमारे देश में ही संभव है कि एक ओर शिक्षक को राष्ट्र निर्माता कहा जाता है तो दूसरी ओर उसे अपने मूल कार्य (अध्यापन) से ही रोका जाता है। क्या यह आज जरूरत नहीं है कि सरकार इन तमाम कार्यो के लिए एक अलग विभाग की स्थपना करे। यह विभाग अपने देश के हर नागरिक के जन्म, मतदाता बनने, विभाग, तलाक से मृत्यु तक के हर प्रकार के विवरण दर्ज करे। जिस शिशु का नाम जन्म के समय पंजीकृत हो जाए यह विभाग की जिम्मेवारी हो कि उसकी आयु 18 वर्ष होते ही उसका नाम मतदाता सूची में दर्ज करे। एक स्थान से दूसरे स्थान पर ट्रान्सफर होने की स्थिति में पुराने पते वाली जानकारी विभागीय स्तर पर एक आवेदन पर हंस्तांतरित की जानी चाहिए। बेशक पासपोर्ट बनाने का कार्य पूर्ववत विदेश मंत्रालय ही करता रहे लेकिन यदि एक ही स्थान पर हर प्रकार की जानकारी एकत्र हो जाए तो बार-बार का खर्च, समय ऊर्जा को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है तो दूसरे देश में अवैध रूप से रह रहे विदेशियों पर नजर रखना आसान हो सकता है।
अलग-अलग संस्थओं द्वारा पहचान पत्र बनाने के कारण अनेक बार नाम, जन्मतिथि तथा अन्य विवरण आपस में मेल नहीं खाते। यदि यह कार्य एक स्थल पर हो तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। इसी प्रकार से एससी/ एसटी, ओबीसी/ अधिवास प्रमाणपत्र आदि जारी करने का कार्य बेशक पहले ही की तरह संबंधित विभाग करे लेकिन वे सारे आंकड़ों इस विभाग को भेजना आवश्यक होना चाहिए। सम्पति हस्तातरण के लिए भी इसी विभाग द्वारा जारी नागरिकता कार्ड की अनिवार्यता होगी तो संपति विवादों पर भी अंकुश लगेगा। बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए इस विभाग के आंकड़ों को अपराध नियंत्रण व्यूरों से सांझा किया जा सकता है। किरायेदार को रखने से पहले उसके संबंध में जानकारी यहाँ देना कानूनन आवश्यक होना चाहिए। यदि ऐसा संभव हो सके तो छदम् नाम, वेश में रहने वालों के लिए अपनी पहचान छिपाये रखना आसान न होगा।
अन्यान्य सुविधाओं के लिए ‘सिंगल विंडों’ का राग अलापने वाली हमारी लोकप्रिय सरकारे अपने देश के असली मालिकों (जनता) की पहचान सुनिश्चित करने का कार्य ‘सिंगल विंडों’ की जरूरत पर ध्यान देंगी? क्या रेल यात्रा के दौरान अपनी पहचान के लिए एलबम अथवा डायरीनुमा पहचान पत्रों की श्रृंखला साथ लेकर चलने से मुक्ति मिल सकेगी? यदि हम छोटे-छोटे मामलों में भी सही समय पर सही फैसले नहीं पाये तो आर्थिक बर्बादी जारी रहेगी और जो संसाधन देश के विकास पर खर्च होने चाहिए वे इन अनावश्यक कार्यो पर खर्च होते रहेगे। यह वैश्विक सत्य है कि पिछड़ेपन के अभिशाप से मुक्ति पाने के स्वप्न को साकार करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है पिछड़ी हुई कार्यशैली से मुक्ति पाना। आज तकनीक का युग है। हमारे युवा सूचना प्रौद्यौगिकी के क्षेत्र में पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहे हैं तो फिर हम अपनी पहचान को इस आधुनिकतम तकनीक से जोड़ने में विलम्ब करे भी तो क्यों?
पहचान के लिए चाहिए कितने कार्ड--डा विनोद बब्बर
Reviewed by rashtra kinkar
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