क्रिकेट और राजनीति का घालमेल COCKTAIL OF Cricket & Polotics

भारत में अनेक खेल खेले जाते हैं लेकिन क्रिकेट को बहुत ज्यादा महत्व देना हर खेलप्रमी को अखरता रहा हैैैैै। इस खेल में जिस तरह से धन की प्रवाह बहुत तेजी से होता है जिसने इसे अतिरिक्त ग्लैमर्स प्रदान किया है वरना अन्य खेलो में जी तोड़ मेहनत कर पसीना बहाने वालों को रोटी के भी लाले जबकि क्रिकेट में रंगीन पार्टियों, खिलाड़ियों की बोली, विज्ञापन में प्राथमिकता से लाखों-करोड़ों की कमाई का क्या औचित्य है? यह सब वर्षों से जारी था। बीच-बीच में विरोध के स्वर भी उठे जिसे कुण्ठित लोगों का प्रलाप’ घोषित कर खामोश कर दिया गया। इधर कुछ वर्षों से  क्रिकेट के नाम पर नुमाइश यानि इंडियन प्रीमियर लीग (आई.पी.एल)का आयोजन, हर गेंद के बाद विशेष रूप से अनुबंधित अर्धनग्न लड़कियों का नृत्य तो जारी था ही उसमें हर गेंद पर सट्टे का प्रचलन शुरू हो गया। दुर्भाग्य से हर रोग देश के हर नगर में फैल गया। सट्टेवाजी के तार दाउद तक जुड़े होने की चर्चा भी हवा में थी। जिस तरह से कुछ मैचों के अनापेक्षित परिणाम आयें उससे सट्टेबाजी के साथ-साथ ‘मैच फिक्सिंग’ की भूमिका पर सुगबुगाहट भी शुरु हुई। दुर्भाग्य की बात यह है कि  सट्टेबाजी की तरह फिक्सिंग की भी सत्य साबित हुई। कुछ खिलाड़ियों की गिरफ्तारी ने मामले को सुखिऱ्यां प्रदान की। इस मामले में जिस तरह से हर दिन नए खुलासे हो रहे हैं और  क्रिकेट बोर्ड के मुखिया के निकट संबंधियों सहित कई मगरमच्छों की संलिप्तता की बात सामने आई उसने क्रिकेट को कलंकित कर दिया। सिद्ध हुआ कि अब तक की आशंकाएं निराधार नहीं थी।
 क्रिकेट के नये अवतार आई.पी.एल की चमक-दमक का असली कारण इसमें लगा कालाधन, सट्टेबाजी और माफिया गिरोहों का कमाल था।  क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड के मुखिया तक पहुंची इसकी आंच के बाद देश की जनता को विश्वास था कि असली खेल सामने आएगा और मुखिया जी को जाना ही पड़ेगा। पर सब शांत हो गया। कहा जा रहा है कि बैठक में न तो किसी ने श्रीनिवासन का इस्तीफा मांगा और न ही कोई हंगामा हुआ। श्रीनिवासन सुरक्षित रहे। बस पुराने अध्यक्ष डालमिया को कार्यकारी प्रमुख बना दिया गया। ऐसे में प्रश्न यह है कि यदि श्रीनिवासन संदेह के दायरे में नहीं थे  तो उन्हें हटाने का दबाव क्यों था? और यदि कुछ संदेहास्पद है तो उन्हें मनमानी करने की छूट क्यों दी गई?
क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड में राजनीति के कई दिग्गज भी मौजूद हैं। परस्पर विरोधी दलों के ये नेता इस मंच पर न केवल साथ बैठते हैं बल्कि हर मतभेद को भुलाकर सद्भावना से कार्य करते हैं तो आखिर इसका राज क्या है? इसपर से पर्दा हटना ही चाहिए क्योंकि क्रिकेट को कलंकित करने वाले तमाम ‘ब्लैक होल’ इसी पर्दे के हटने पर ही सामने आएगे। इसी से  सामने आएगा राजनीति का वह चेहरा जो दूसरों के भ्रष्टाचार पर तो खूब दहाड़ता है लेकिन अपनों के भ्रष्टाचार पर खामोश हो जाता है। यह भी सामने आना चाहिए कि श्रीनिवासन के सम्मुख ये राजनेता आखिर क्यों खामोश रहे? क्या क्रिकेट के मैदान की तरह मीटिंग में भी किसी तरह की फिक्सिंग थी?
महत्वपूर्ण सवाल यह है कि खेल संघों की लगाम नेताओं के हाथ में क्यों? जिन लोगों ने जीवन भर खिलाड़ी के रूप में अपनी पहचान कभी प्रदर्शित तक नहीं की, वे खिलाड़ियों का चयन करने वाली समितियों में क्यों? क्या यह कार्य पुराने खिलाड़ियों और अनुभवी लोगों पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए? नेता लोग अपनी पार्टी के पदाधिकारी अथवा चुनाव के समय उम्मीदवार तय करे इसपर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती पर खेल संघों की गतिविधियों से उनका क्या  संबंध हो सकता है, इसे परिभाषित करने की आवश्यकता है।
क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि जो नेता राजनीति में सरकार के भ्रष्टाचार के विरूद्ध आंदोलन खड़ा करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं, संसद तक को चलने नहीं देते, वे क्रिकेट बोर्ड की बैठक के बाद उसके फैसले पर संतोष जताते हैं। सट्टेबाज दामाद को बचाने के लिए झूठ बोलकर बचने की कोशिश करने वाले क्रिकेट बोर्ड के मुखिया के बच निकलने पर संतोष व्यक्त करने वाले विप़क्ष के स्वनाम धन्य नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि क्या वे ऐसी छूट सरकार के मुखिया अथवा  मंत्रियों और नौकरशाहों को देने को तैयार हैं? अगर इस्तीफा देने की बजाय उनका एक कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करना संतोषजनक है तो फिर वे यह भी स्पष्ट करें कि  रेलमंत्री को भानजे द्वारा रिश्वत लेने पर इस्तीफा देने के लिए क्यों बाय किया गया? यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि क्रिकेट बोर्ड के पास अकूत धन है क्या वह उनकी निजी जागीर है? यदि नहीं तो फिर उसे खर्च करने का एकाधिकार उनके पास क्यों? क्या इस धन को समस्त खेलो के विकास पर खर्च नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए? क्या यह सच नहीं कि राजनीति से लेकर अर्थव्यवस्था तक और खेलों से लेकर मीडिया तक हर जगह ‘फिक्सिंग’ और ‘फिक्सरों’ का बोलबाला है। 2-जी से एफ.डी.आई. तक क्या यह सिद्ध नहीं करता कि आज बड़ी देशी-विदेशी पूंजी के पक्ष में अर्थनीति तक ‘फिक्स’ की जा रही है? इन आरोपों को इस तथ्य से भी बल मिलता है कि बड़ी  कम्पनियाँ अपने अनुकूल नीतियों और फैसलों को प्रभावित करने के लिए राजनीति से नौकरशाही तक में अपने अनुकूल ‘फिक्सिंग’ करवा रही हैं। क्रिकेट की ही तरह इनके पक्ष में भी राजनीति का दलदल नहीं, सद्भावना है। देश की जनता को यह जानने का अधिकार होना चाहिए कि उनके पक्ष में इस तरह की ‘राजनैतिक सद्भावना’ वाली एकजुटता कब होगी? क्या राजनीति में हाथी की तरह खाने और दिखाने वाले दांत अलग-अलग होते हैं?
क्रिकेट और राजनीति का घालमेल COCKTAIL OF Cricket & Polotics क्रिकेट और राजनीति का घालमेल COCKTAIL OF Cricket & Polotics Reviewed by rashtra kinkar on 23:02 Rating: 5

No comments