संबंधों की कविता है बेटी
पोगलू। जैंट ग्रुप इन्टरनेशनल की ओर से गुजरात के हिमतनगर जिला के प्रातिज तहसील के पोगलू गांव में देश में कन्या भ्रूण हत्या के विरूद्ध जनजागरण की श्रृंखला के अंतर्गत बुद्धिजीवियों, राजनीतिज्ञों, संतों तथा आम आदमी को चिंतन के लिए विवश करता एक नया प्रयोग किया। इस अवसर पर महंत सुनीलदास जी द्वारा रचित गुजराती पुस्तिका ‘बिकरी- ऐटले संबंधों नी कविता’ (संबंधों की कविता है कविता) का लोकार्पण भी किया गया। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर देर रात्रि आयोजित इस कार्यक्रम में उन 50 दम्पत्ति को सम्मानित किया गया जिनके केवल पुत्रियां ही हैं। कार्यक्रम की दूसरी विशेषता थी एक दूसरे के राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी दिखाई देने वाले कांग्रेस और भाजपा के जनप्रतिनिधि न केवल साथ-साथ रहे बल्कि एक सुर में इस तरह के अभियानों की आवश्यकता पर बल देते हुए आयोजकों की भावना का समर्थन किया।
कलाप्रेमी श्री द्रुपद भाई जोशी की अध्यक्षता में आयोजित इस समारोह में सर्वप्रथम सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम संयोजक युवा संत सुनीलदास ने ‘बेटी बचाओं’ की बजाय ‘बेटी बढ़ाओं’ की एक नई सार्थक अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने अनेक उदाहरण देकर रोटी और बेटी को संसार का आधार बताया।
संस्कृत-गुजराती हिंदी विद्वान एवं प्रख्यात संत आचार्य गौरांगशरण देवाचार्य ने सैंकड़ों लोगों के साथ भाजपा सांसद डॉ. महेन्द्र सिंह चौहान और कांग्रेसी विधायक श्री महेन्द्र सिंह एडवोकेट की उपस्थिति को इस अभियान की सफलता का संकेत बताया। उन्होंने विमोचित ग्रन्थ की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए प्रातीज अध्यक्ष सुनीलदास को इस अद्वितीय आयोजन के लिए साधुवाद दिया। मुख्य वक्ता के रूप में दिल्ली से विशेष रूप में कार्यक्रम में भाग लेने गए राष्ट्र-किंकर संपादक श्री विनोद बब्बर ने ‘धी’ और ‘धरती’ के संबंधों की विवेचना करते हुए भगवान श्रीराम द्वारा ‘जननी और जन्मभूमि’ को स्वर्ग से बढ़कर बताने का उल्लेख भी किया। उनके अनुसार संसार के हर संबंध और इतिहास के हर स्वर्णिम अध्याय का मूल बेटी ही है इसलिए उसे न केवल जीने बल्कि पढ़ने, बढ़ने का अधिकार मिलना चाहिए। बेटियां ही सच्चे अर्थो में हमारी संस्कृति की वाहिनियां हैं।
आयोजकों ने गुरु-पूर्णिमा के अवसर पर माता-पिता का सम्मान किया तथा विनोद बब्बर को ‘माता-पिता प्रथम गुरु’ विषय पर बोलने के लिए कहा गया तो उन्होंने ‘गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः’ की व्याख्या करते हुए कहा- ब्र्रह्मा यानि उत्पन्न करने वाले, विष्णु पालन करने वाले और महेश जो सारा हलाहल स्वयं ग्रहण कर दूसरों को बचाये है। मेरे, आपके लिए ये कार्य किसने किये? हमारे माता -पिता ने जन्म दिया, उन्होंने ही पाला-पोसा, हर दुःख स्वयं सहकर हमे हर सुविधा उपलब्ध कराई तो क्या वे प्रथम गुरु और ‘साक्षात् परंब्रह्म’ नहीं हैं? जो अपने जनक -जननी को उपेक्षित कर तीर्थ जप आदि रखते हैं उनका जीवन निरर्थक है।
सांसद एवं विधायक महोदय न केवल पूरे समय कार्यक्रम में उपस्थित रहे बल्कि बेटियों को हर संभव सहयोग के लिए उत्सुक दिखाई दिये। अन्य वक्ताओं में डॉ. एन.के.केरिया, श्री प्रवेश भावसार, श्री हंसराज पटेल प्रमुख थे।
कलाप्रेमी श्री द्रुपद भाई जोशी की अध्यक्षता में आयोजित इस समारोह में सर्वप्रथम सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम संयोजक युवा संत सुनीलदास ने ‘बेटी बचाओं’ की बजाय ‘बेटी बढ़ाओं’ की एक नई सार्थक अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने अनेक उदाहरण देकर रोटी और बेटी को संसार का आधार बताया।
संस्कृत-गुजराती हिंदी विद्वान एवं प्रख्यात संत आचार्य गौरांगशरण देवाचार्य ने सैंकड़ों लोगों के साथ भाजपा सांसद डॉ. महेन्द्र सिंह चौहान और कांग्रेसी विधायक श्री महेन्द्र सिंह एडवोकेट की उपस्थिति को इस अभियान की सफलता का संकेत बताया। उन्होंने विमोचित ग्रन्थ की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए प्रातीज अध्यक्ष सुनीलदास को इस अद्वितीय आयोजन के लिए साधुवाद दिया। मुख्य वक्ता के रूप में दिल्ली से विशेष रूप में कार्यक्रम में भाग लेने गए राष्ट्र-किंकर संपादक श्री विनोद बब्बर ने ‘धी’ और ‘धरती’ के संबंधों की विवेचना करते हुए भगवान श्रीराम द्वारा ‘जननी और जन्मभूमि’ को स्वर्ग से बढ़कर बताने का उल्लेख भी किया। उनके अनुसार संसार के हर संबंध और इतिहास के हर स्वर्णिम अध्याय का मूल बेटी ही है इसलिए उसे न केवल जीने बल्कि पढ़ने, बढ़ने का अधिकार मिलना चाहिए। बेटियां ही सच्चे अर्थो में हमारी संस्कृति की वाहिनियां हैं।
आयोजकों ने गुरु-पूर्णिमा के अवसर पर माता-पिता का सम्मान किया तथा विनोद बब्बर को ‘माता-पिता प्रथम गुरु’ विषय पर बोलने के लिए कहा गया तो उन्होंने ‘गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः’ की व्याख्या करते हुए कहा- ब्र्रह्मा यानि उत्पन्न करने वाले, विष्णु पालन करने वाले और महेश जो सारा हलाहल स्वयं ग्रहण कर दूसरों को बचाये है। मेरे, आपके लिए ये कार्य किसने किये? हमारे माता -पिता ने जन्म दिया, उन्होंने ही पाला-पोसा, हर दुःख स्वयं सहकर हमे हर सुविधा उपलब्ध कराई तो क्या वे प्रथम गुरु और ‘साक्षात् परंब्रह्म’ नहीं हैं? जो अपने जनक -जननी को उपेक्षित कर तीर्थ जप आदि रखते हैं उनका जीवन निरर्थक है।
सांसद एवं विधायक महोदय न केवल पूरे समय कार्यक्रम में उपस्थित रहे बल्कि बेटियों को हर संभव सहयोग के लिए उत्सुक दिखाई दिये। अन्य वक्ताओं में डॉ. एन.के.केरिया, श्री प्रवेश भावसार, श्री हंसराज पटेल प्रमुख थे।
संबंधों की कविता है बेटी
Reviewed by rashtra kinkar
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20:33
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