लाइन की आजादी है ---डा विनोद बब्बर

चौपाल पर आजादी के जश्न की तैयारियां जोरो पर थी। जिसे देखे वही पूछ रहा था कि उसे क्या बोलना या क्या करना है? चौपाल पर ऐसी चकल्लस देख मन बाग-बाग हो रहा था। अचानक अपने घसीटाराम जी के विचारों का झरना बहने लगा- नीर आजाद है, नदी आजाद है, नारी आजाद है! पेड़ आजाद हैं, पहाड़ आजाद है,   धरती आजाद है!
हमने अपने दिमाग का ‘अखिलेशी’ इस्तेमाल करते जुरंत तुरप का इक्का फेंका- प्यारे घसीटाराम जी, , तुकबंदी के चक्कर में अक्लबंदी की क्या जरूरत है? क्या आपके जैसा अनुभवी व्यक्ति भी नहीं जानता कि नीर को बांध ने बांध दिया है तो नदी प्रदूषण की शिकार है और नारी? वह तो जन्म -जन्म से अंधेरे की है अधिकारी। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर है के गीत गाने वाले चार अक्षर पढ़ते ही जननी और जन्मभूमि से जान छुड़ाने का मौका तलाशने लगते हैं क्योंकि उनकी शिक्षा ने उन्हें सिखाया है कि इन दोनो से दूर रहने में ही आजादी है। ‘नारी बिन सूना संसार’  अब केवल नारों और प्रवचनों में ही शोभा पाता है इसीलिए तो ‘निर्भया’ के हस्र को देख मन कांप उठता है।
बाकि रहा पहाड़। वह भी कहां आजाद है। पहाड़ पर भीड़ है, मनमानी है क्योंकि वहां सैलानी है। सैलानी है तो बाजार का होना अनिवार्य है। बाजार और आजादी का पुराना बैर है। जहां बाजार होते हैं आजादी बेजार होती है। पहाड़ पर सैलानियों की भीड़ है इसलिए होटल हैं, मोटल हैं, ढ़ाबे हैं, झाबे हैं। दूषण है, प्रदूषण है, खरदूषण है यानि हर चीज की भरमार है। ऐसे में केदार ‘अनाथ’ नहीं होगा तो  फिर क्या होगा। वहां आजादी है तो  मौत को, तांडव को, विनाश को क्योंकि जिन्हें प्रकृति से छेड़छाड़ मनमानी रोकनी थी वे ‘माया’ को ही आजादी की सबसे बड़ी देवी मान बैठे। ऐसे में दूसरों के हिस्से की आजादी चन्द बिल्डरों के हाथो गिरवी रखकर निश्चिंत हो चुके है।
अपने घसीटाराम जी मौके की तांक में थे ज्यों ही हमारा स्वर मध्यम हुआ, वह बरस पड़े- ‘चलो पहाड़ की छोड़ो। अरे भाई टीवी आजाद है, मीडिया आजाद है, मिक्सिंग आजाद है, फिक्सिंग आजाद है! क्या इसे भी गलत कहने का साहस है? शायद नहीं। टीवी चैनल बात का बतंग बनाने की कला में माहिर है। अपनी टीआरपी के चक्कर में सभी को चक्कर में डालने वाले चैनलों को  बाल की खाल खींचने की आजादी है। उन्हें पर्दे पर बेपर्देगी दिखानेे की आजादी है, कुल्हें मटकाने की आजादी है, एकता का ‘कपूर’ घर-घर की एकता को पलीता लगाने की आजादी के साथ हाजिर है। उन्हें आजादी है घर- परिवार और समाज की शांति भंग करने की आजादी है।’
हम मौन रह घसीटाराम के तर्क की काट के लिए पत्ता तलाशते ही रह गए कि वह फिर शुरू हो गए- आजादी है मंहगाई को चूल्हा बूझाने की, थाली सरकाने की, दूध में पानी और दाल में कंकड़ मिलाने की। थैला भर पैसों के बदले मुट्ठी भर सामान दिलाने की। लेकिन आप परेशान न हो, सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक ला रही है। आपके हिस्से का अनाज पाकर नेताजी के चमचे यानि राशन डिपो वाले को थोड़ी और आर्थिक आजादी मिलने वाली है। पर आप चिंता क्यों करते हो? जब सड़े अनाज से गोदामों को आजादी दिलाना जरूरी समझा जाएगा तो सस्ते अनाज को आप तक पहुंचाने के हर रास्ते को आजाद करा दिया जाएगा।
घसीटाराम जी -नॉन स्टाप’ व्याख्यान जारी था। हमने उनका हौसला अफजाई करते हुए कहा- आपने बिल्कुल सही कहा जनाब। अब हमारी भी सुन लो- सरकार आजाद है, नेता आजाद हैं, माफिया आजाद हैं, धर्मान्ध आजाद हैं!
तारीफ से गद्गद् घसीटाराम दहाड़े- अरे जब सरकार ही आजाद नहीं होगी तो आजादी का अर्थ ही क्या रह जाएगा। अब आप देखो हमारी मोतियों वाली सरकार आजाद है कड़े कदम उठाने की चेतावनी देने के लिए, बढ़े कदम वापस खींच लाने के लिए, चढ़े कदम को और चढ़ाने के लिए। कहीं भी कोई घटना- दुर्घटना हो सरकार जनता की आजादी की रक्षा करने के अपने कर्तव्य का पालन करने तथा अपनी आजादी का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए फौरन कड़े कदम उठाने की चेतावनी जारी करती है। देशभर में रेड अर्लट कर दिया जाता है। देश के दुश्मनों के इरादों को सख्ती से कुचलने के आदेश सुरक्षा बलों को दे दिये जाते हैं लेकिन सनद रहे जरूरत पड़ने पर इन आदेशों को  पिछले दरवाजे से वापस लेने का प्रावधान के बिना सरकार की आजादी पर प्रश्न चिन्ह इलग सकता है इसलिए ‘डॉन्ट माईंड!’
सरकार आजाद है तो इसका मतलब यह भी नहीं कि जनता की आजादी पर कहीं कोई प्रतिबंध है।  जनता को भी आजादी है आजादी के नारे लगाने की, तराने गाने की, इस या उस नेता को अपना उद्धारक समझने का ख्वाब देखने की। आपकी बस्ती को स्वर्ग बनाने का दावा करते नेताओं की तकरीर पर तालियां बजाने की। सावधान! अधिक आजादी जनता को भटका सकती है, उसकी उन्नति में बाधा उत्पन्न कर सकती है। इसलिए उसे यह पाठ पढ़ाना जरूरी है कि नेताओं की जोरदार तकरीरों के बावजूद यदि उनकी परेशानियां कम नहीं हो रही तो इसका कारण उनकी अपनी तकदीर है।
मजदूर, रेहड़ी पटरी वाला, रिक्शावाला, साहब की कोठी में काम करने वाले रामू को आजादी के दिन खुला छोड़ना खतरनाक हो सकता है। आजाद देश की आजाद सड़क पर कोई आजाद बाईकर इन्हें कुचले या न कुचले पर इनकी अपनी मजबूरियां इन्हें  आजादी से जीने नहीे देगी इसलिए  वे खूब मेहनत कर आजादी का जश्न मनाने के लिए आजाद है। हो सकता है साहब मेहरबान हो जाए और हंसते-हंसते तुम्हें कोई झुंझुना ही थमा दे।
स्कूल में बच्चे ‘सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्ता हमारा’ गायेगे तो आप क्यों मुंह बनाकर बैठे हो। ऐसे शुभ अवसर पर रोनी सूरत बनाकर बैठे रहने का अधिकार आपको नहीं दिया जा सकता। खुशियां मनाओं। कम ऑन, आजादी पर नो गम! आप गम क्यों करते हैं। गम भुलाने से गम कम करने तक के लिए सरकार ने अनेक इंतजाम किये हैं।
प्यारे मोहन, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि- नवाब आजाद हैं, खराब आजाद हैं, शराब आजाद हैं! जी हाँ, सरकार नियम कानूनों से बंधी हुई है। आजादी के दिन अद्धा, पऊवा नहीं मिलेगा। मजबूरी है। समझा करो, नियम ही कुछ ऐसे हैं। बेचारे नेता उस दिन कुछ नहीं कर सकते। इसीलिए आप चाहो तो अद्धा, पऊवा छोड़ों, सीधे, बोतल, दो बोतल क्या पूरी पेटी ले सकते हैं। आप निश्चिंत रहे- आपकी सेवा के लिए दुकाने देर तक ख्ुाली रहेगी। आखिर हमारे नेता इतने गए-गुजरे भी नहीं जो आजादी के अवसर पर दो घूंट लगाने की आपकी आजादी में खलल डाले।’ इतना कहकर घसीटाराम जी तेजी से कदम बढ़ाते हुए चौपाल से बाहर हो लिए। हमने रोकने से अधिक टोकने वाले अंदाज में कुछ कहना चाहा लेकिन उससे पहले ही प्रातः स्मरणीय घसीटाराम जी धीरे से फुसफुसाये- माफ करना,  फिलहाल जल्दी में हूँ। आजादी का जश्न जरा जोर से होना चाहिए इसलिए मैं तो चला लाइन लगाने। जय आजादी!’
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