विनोद बब्बर की दो पुस्तकों का लोकार्पण

नई दिल्ली।19 August 2013



‘यात्रा वृत्त सांस्कृतिक आदान-प्रदान में सहायक होते हैं लेकिन आजकल कविता कहानी तो बहुत लिखी जा रही है परंतु इस विधा की उपेक्षा हो रही है। यह संतोष की बात है कि विनोद बब्बर की बहुचर्चित पुस्तक ‘इब्सन के देश में’ के बाद ‘इन्द्रप्रस्थ से रोम’ हमारे बीच है’ यह कथन था तमिलनाडू हिन्दी अकादमी के अध्यक्ष एवं प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केन्द्रीय हिन्दी समिति के सदस्य डॉ. बालशौरि रेड्डी का जो भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद एवं राष्ट्र-किंकर के संयुक्त तत्वावधान में आजाद भवन में आयोजित समारोह में बोल रहे थे।
विनोद बब्बर की सद्य प्रकाशित दो पुस्तकों इन्द्रप्रस्थ से रोम (यात्रा वृत) तथा लक्ष्मणरेखा (निबन्ध संग्रह) का लोकार्पण समारोह में डॉ. कमल किशोर गोयनका ने लक्ष्मणरेखा की मीमांसा करते हुए विश्व की श्रेष्ठ संस्कृति की के सम्मान की रक्षा को वर्तमान की आवश्यकता बताया तो  दूसरी ओर देश के समक्ष चुनौतियों  को लक्ष्मणरेखा के उल्लंघन का परिणाम बताया। डॉ.गोयनका ने लेखक को बधाई देते हुए उनके प्रयासों की सराहना की।
दिल्ली हिन्दी अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. विमलेश कांति वर्मा ने ‘लक्ष्मणरेखा’ के विचार प्रधान निबन्धों की सराहना करते इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का सुझाव दिया।
भावनगर विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. सुंदरलाल कथूरिया ने लेखक के यायावरी चरित्र और रोचक वर्णन शैली की सराहना करते हुए कहा कि विनोद जी विश्व में कहीं भी रहे लेकिन उनके दिल में भारत रहता है इसीलिए परिस्थितियों से भारत की तुलना करना नहीं भूलते। प्रैस कौंसिल ऑफ इण्डिया के सदस्य रहे श्री के.डी.चन्दोला ने
दो पुस्तकों के प्रकाशन को महत्वपूर्ण घटना बताते हुए देश के सांस्कृतिक पर्यावरण सहित हर तरह के पर्यावरण के लेखक के संदेश की सराहना की।
राष्ट्रपति के पूर्व भाषा अधिकारी व वर्तमान में नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ. परमानंद पांचाल ने विनोद बब्बर की लेखनी को समय काल परिस्थिति का रक्षक बताया। उन्होंने हिन्दी को बांटनें की कोशिशों पर क्षोभ व्यक्त करते हुए इसके अधिकाधिक प्रयोग पर बल दिया।
आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी एवं लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. हरि सिंह पाल ने ‘लक्ष्मणरेखा’ पर विस्तार से चर्चा की। डॉ. पाल के अनुसार देश की समस्याओं पर लेखक का नजरिया दल, पंथ, सम्प्रदाय निरपेक्ष है।
सांसद डॉ. महेन्द्र सिंह चौहान ने साहित्य को इतिहास का दर्पण तो भविष्य का मार्गदर्शक बताते हुए विषय वस्तु की सराहना की।
गुजराती-हिंदी- संस्कृत विद्वान डॉ. गौरांगशरण देवाचार्य के अनुसार यदि विदेशी यात्रियों द्वारा अपनी भारत यात्रा के अनुभवों को न लिखा गया होता तो शायद हम अपने पूर्वजों के गुणों और उनकी संस्कृति को जानने से वंचित रहते। वर्तमान में राहुल सांकृतायन से विनोद बब्बर तक की श्रृंखला के यात्रा संस्मरण हम देश काल से जोड़ते हैं जो देश की भावी पीढ़ी के लिए महत्वपूर्ण होंगे।
देवबंद कालेज के पूर्व प्रधानाचार्य एवं साहित्यकार डॉ. महेन्द्रपाल काम्बोज द्वारा संचालित इस समारोह में भारत सरकार कें समाज कल्याण मंत्रालय की पत्रिका ‘समाज कल्याण’ के संपादक श्री किशोर श्रीवास्तव, प्रख्यात चिकित्सक डॉ. एम.डी.शर्मा, लेखिका  डॉ. निर्मल वालिया, जींद के डॉ. केवल कृष्ण पाठक, खटीमा के डॉ. राज सक्सेना, आगरा के राजेन्द्र परदेसी, रेलवे सलोहकार बोर्ड के श्री राकेश कुमार, न्यू आब्जर्वर पोस्ट के संपादक आरिफ जमाल, अंजूरि के संपादक बी.के.शर्मा, पंचवटी लोकसेवा समिति के संरक्षक अम्बरीश कुमार, गायत्री परिवार के भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के संयोजक खैराती लाल सचदेवा, गज़ल़कार  जितेन्द्र कुमार सिंह, व्यंग्यकार डॉ. सी.बी.शर्मा, कवि इरफान राही, सूचना प्रौद्य़ोगिकी विशेषज्ञ मिथलेश कुमार, लघुकथाकार हरनाम शर्मा, अनिल शूर आजाद, शिक्षाविद डी.पी.गर्ग,रामसुमेर यादव, मुरलीधर, दिल्ली विश्वविद्यालय में अधिकारी रहे साहित्यकार नत्थी सिंह बघेल, योगाचार्य कृष्ण गगे दीपक गोयल, धीरेन्द्र कुमार संजीव चावला, श्रीमती ज्योति सेतिया, शोध छात्र मनीष एवं सौरभ  तथा रचित यात्रा वृतांत में लेखक संग रहे के.सी.खुराना सहित अनेक गणमान्य अतिथि, साहित्यकार एवं शोधार्थी भी उपस्थित थे। लेखक विनोद बब्बर ने सभी विद्वानों का उनके अभिमत के लिए  आभार व्यक्त करते हुए पुस्तक के पृष्ठ भूमि पर प्रकाश डाला।
विनोद बब्बर की दो पुस्तकों का लोकार्पण विनोद बब्बर की दो पुस्तकों का लोकार्पण Reviewed by rashtra kinkar on 00:56 Rating: 5

No comments