अब अजेय भारत की जंग की तैयारी

चुनाव लोकतंत्र का महत्वपूर्ण कर्मकांड है। जनता की, जनता से, जनता के लिए सरकार चुनने जैसी औपचारिक परिभाषा बताती है कि चुनाव हमें अपनी पसंद के प्रतिनिधि चुनने का अवसर उपलब्ध करते  हैं। इस बार के चुनाव अभियान ने बेशक तकनीक के शिखरों को छूआ हो लेकिन तमीज के निम्मतम स्तर के भी आसपास रहा। आक्रमकता के कारण चुनाव और युद्ध में अंतर समाप्त हो रहा था। लेकिन
अब जब चुनावी नतीजे भी आ चुके है।  विजेता सरकार बनाने की तैयारी में है तो पराजित अपनी रणनीति के छेद तलाश रहे हैं। उत्साह और अवसाद का यह दौर जल्द से जल्द पीछे छूट जाना चाहिए ताकि असली जंग लड़ी जा सके। इस जंग में न कोई पक्ष है और न ही विपक्ष।  कल तक ‘हम पांच और वे सौ’ का नारा देने वालो को जनता के सपनों को साकार करने के लिए ‘वयं पंचाधिक शतं’ का सूत्र स्मरण करते हुए भ्रष्टाचार, अव्यवस्था, पिछड़ापन, गरीबी, असमानता, साम्प्रदायिकता, तुष्टीकरण, आतंकवाद, नक्सलवाद बढ़ती महंगाई, बेलगाम जनसंख्या अशिक्षा, बेकारी, बीमारी, प्रदूषण जैसे शत्रुओं से केवल और केवल जीत के लिए लड़ना है। यह जीत किसी एक दल, या एक व्यक्ति की नहीं, भारत की होगी। अजेय भारत की रथयात्रा के शुभारंभ का शंखनाद  राष्ट्रीय महायज्ञ है। सौ करोड़ से भी अधिक भारतीय की इस पुण्य धरा को हर भारतीय के सपनों का भारत बनाने के लिए आवश्यक है कि यह कार्य कर्मकांड मात्र बनकर नहीं रह जाए। इसके लिए जरूरी है सर्वप्रथम सरकार के मुखिया और विपक्ष के नेता वाकप्रहार को चुनावी दौर के लिए सुरक्षित रखने और मिलकर कार्य करने का संकल्प लें। हमारी सभ्यता-संस्कृति फले-फूले इसके लिए जरूरी है कि हमारे मन में नकारात्मकता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए क्योंकि किसी भी देश, समाज का सबसे बड़ा शत्रु नकारात्मकता है।
पिछले कुछ दशकों से यह आम प्रचलन हो गया है कि चुनाव से पहले बड़े-बड़े वादे करने वाले    सत्ता प्राप्त करते ही ‘खजाना खाली है’ का राग अलापना शुरु कर देते है। ऐसे तर्क अपराधपूर्ण है। उनसे पूछा जाना चाहिए कि यह सब जानकारी तो देश के हर प्रबुद्ध व्यक्ति को थी तो आपने अनाप- शनाप वादे किये ही क्यों? अब उन्हें कैसे पूरा करना है यह उस सरकार की समस्या है, जनता को तो काम चाहिए। निश्चित रूप से हर भारतीय चाहता है कि उसकी रोजी-रोटी की व्यवस्था हो, उसके पास सिर छुपाने के लिए छत्त हो, बच्चों को उचित शिक्षा मिले, स्वास्थ्य की बेहतरीन सुविधाएं हो, विकास आखिरी आदमी तक पहुंचें। मूलभूत आवश्यकताओं के लिए कोई भी मोहताज न हो। ऐसा तभी होगा जब ‘गरीबी हटाओ’ नारा नहीं, व्यवहार होगा। युवाओं को अपने सपने पूरा करने के लिए विदेश न जाना पड़े। महंगाई थमे, औद्योगिक मंदी का खात्मा हो, किसान, मजदूर की क्रय शक्ति बढ़ें। आज देश में अनेक प्रकार की समस्याएं दिखाई दे रही हैं उनमें से अनेक का कारण निराशा से उपजी कुंठा भी कहा जा सकता है। युवा शक्ति के सपनों और अवसरों की दूरी हर हाल में पाटा जाना चाहिए क्योंकि निराशा अवसाद उत्पन्न करती है जो अंततः हिंसा और विद्रोह का मार्ग प्रशस्त करता है। यहाँ व्यवस्था के प्रति आक्रोश की ओर संकेत हैं, न कि राष्ट्रद्रोह को अनदेखा करना। शांति का अर्थ  राष्ट्रद्रोह को सहन करना हर्गिज नहीं हो सकता। उसके लिए हजार युद्ध भी करने पड़े तो भी संकोच नहीं करना चाहिए।
विकास सड़क, संचार, यातायात, स्वास्थ्य, शिक्षा की स्तरीय सुविधाओं का नाम है। जो हर जिले में राजधानी दिल्ली जैसी सुविधाओं के पहुंचने का नाम हो।  सड़क पर गड्डे नहीं, गाड़ी हो। रेल की केवल टिकट ही नहीं उसमें सीट भी मिले। लम्बी लाईनों, भीड़-भाड़ से मुक्ति के लिए संकल्प लिया जाए कि जो भी योजनाएं बने वे दिखावटी, सजावटी ही न हो। काम फाइल पर नहीं जमीन पर हो और उसपर भी जरूरी है  सरकारी काम तय समय सीमा में पूरा हो। नेता-अफसर  काम करे न कि दाम गिने। काला धन समाज से पिछड़ेपन की कालिख को धोने का पुण्य कर्म करें। यह सब वायदे लच्छेदार भाषण तक सीमित न रहे बल्कि कानून का हिस्सा बने। हर वायदे को पूरा करने के लिए किसी की जिम्मेवारी सुनिश्चित की जाए। वायदे को पूरा करने का रोड़मैप घोषणापत्र के साथ लगाना अनिवार्य किया जाए ताकि हवाई वायदों पर रोक लगे। लापरवाही के लिए दंड का प्रावधान जरूरी है।
‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान’ की सार्थकता है विकास के उस अर्थ में जहां भारत में हर तरफ हरियाली और खुशियाँ हों। शुद्ध पर्यावरण और सुंदर प्रकृति हो। ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल  बिजली, स्कूल, और अस्पताल हो। नदियों को आपस में जोेड़ा जाए। राज्यों के बीच जल बटवारे को लेकर होने वाले विवादों के समाधान के लिए स्थाश्ी प्रबंधन हो जिसमें राजनीति का हस्तक्षेप प्रतिबंधित हो। बिजली उत्पादन बढ़ाने के काम में निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित हो तो सोलर ऊर्जा के अधिकाधिक उपयोग को बढ़ावा दिया जाए। पूंजी निवेश का स्वागत है लेेकिन कुछ क्षेत्रों में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगाकर हसतशिल्प एवं हथकरघा उद्योग को संरक्षण प्रदान करना होगा। विदेशी पूंजी निवेश को ढ़ांचागत निर्माण के लिए होना चाहिए। विकास दर बढ़ाने के लिए
न्यायिक सुधार बिना भ्रष्टाचार से लड़ने का हर दावा खोखला है। जनसंख्या के अनुपात से न्यायालयों की स्थापना हो। आधुनिक तकनीक का उपयोग हो, एक ही समय सबकी उपस्थिति की परम्परा समाप्त हो। भीड़ से बचने के लिए टाईम टेबल बदलते हुए संबंधित लोगों को अलग- अलग समय दिया जाए।   हर मुकद्दमें के निपटारे की समय सीमा हो। मामला लटकाने की अनुमति किसी भी कीमत पर नहीं दी जानी चाहिए। जिम्मेवार प्रशासनिक, राजनैतिक पदों पर रहे व्यक्तियों को किसी भी प्रकार की कोई रियायत न दी जाए।
इस बार का चुनाव अपने आप में अनूठा था। लम्बा, उबाऊ  , निर्जीव एफआईआरों का ढेंर रहा।  चुनाव आयोग को सशक्त बनाया जाना चाहिए परंतु चुनाव सुधार के विषय में ठोस कदम उठाकर राजनीति और सत्ता, प्रतिभाओं की बजाय तिकड़मी, अवसरवादी, भ्रष्ट और बेईमान लोगों के हाथों में जाने से बचाई जा सकती है। कारपोरेट घरानों को हतोत्साहित करना गलत है लेकिन राजनेताओं का उनके हाथों में खेलना महापराध है। आज जिस तरह की स्थितियां है, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों सहित सभी बड़े औद्योगिक घरानों के लिए अपनी आय का एक भाग शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सामाजिक सुरक्षा योजना में लगाना निश्चित किया जाए।
पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने के प्रयास होने चाहिए लेकिन स्वाभिमान की कीमत पर हर्गिज नहीं। सीमा की सुरक्षा सुनिश्चित हो। घुसपैठ का समर्थन देशद्रोह माना जाए। तस्करी पर रोक, नशे के कारोबार में सहयोग करने वालों को सार्वजनिक रूप से फांसी जरूरी है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर बजट भाग बढ़ाया जाए। हर युवक के लिए धार्मिक शिक्षा से पहले आधुनिक शिक्षा संग सैनिक प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए। सर्वधर्म सद्भाव जरूरी है इसलिए धार्मिकता जारी रहे लेकिन सार्वजनिक स्थलों पर नहीं। धार्मिक विश्वास व्यक्तिगत निष्ठा है। इसके सार्वजनिक प्रदर्शन से बचने का वातावरण बनाया जाना चाहिए।  
विदेशी भाषा की गुलामी की बजाय भारतीय भाषाओं, बोलियों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाए। प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा  न केवल अपमानजनक है बल्कि बालकों की बौद्धिक क्षमता को आरंभ में ही नष्ट करने का प्रयास है। यदि प्रशासन, न्याय और शिक्षा में भारतीय भाषाओं का प्रचलन स्वीकार कर लिया जाए तो देश की प्रतिभा चमकते देर नहीं लगेगी।
यह भी अक्सर देखा गया है कि सत्ता में आते ही सरकार को जो ऊर्जा अपने काम काज पर लगानी चाहिए थी, उसे वे पिछले सरकार  की परतें उखाड़ने में लगा देते है। परिणाम यह होता है कि कुछ सकारात्मक करने के बजाय  वे दलगत दलदल में फंसते और धंसते जाते है। नई सरकार को इस प्रवृति से बाज आना चाहिए। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं कि आर्थिक अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को राहत दी जाए। यदि यह कार्य कार्यपालिका की बजाय न्यायपालिका के विवेक पर छोड़ दिया जाए तो ज्यादा विवेकपूर्ण होगा।  यदि नई सरकार टकराव की बजाय व्यवहारिकता के रास्ते पर चलना स्वीकार करे और विपक्ष भी अपना रचनात्मक सहयोग दे तो  भारत पुनः अपना खोया गौरव प्राप्त कर सकता है।
चुनाव से पूर्व एक-दूसरे को उपशब्दों से नवाजने वाले सदभाव के मार्ग पर चले तो इस देश का बहुत बड़ा हित हो सकता है। लोकतंत्र किसी की हार का नाम नहीं है। ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ का संदेश सबकी जीत ही तो है। गीता का यह श्लोक, न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते स्मरण कराता  है कि वर्तमान के किसी भी अंधकार में केवल विवेक और आदर्श का प्रकाश ही शांति, सद्भावना  और समृद्धि की राह पर हमारा मार्गदर्शन कर  सकता है।--- डा. विनोद बब्बर
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