व्यंग्य----शादी की उम्र --- विनोद बब्बर
अपने घसीटाराम जी को सिर पकड़े अपनी तरफ आते देखा तो माथा ठनका। मैंने चारपाई पर चादर बिछाकर उनके स्वागत की तैयारी कर ही रहा था कि जनाब के पीछे- पीछे उनका शहजादा भी कमरे में दाखिल हुए और बिना दुआ-सलाम यू आ पसरे गए जैसे मातम पुरसी का आए हो।
मैंने श्रीमतीजी को चाय का इशारा किया और पूछ ही लिया, ‘क्या बात है घसीटा बाबू, आप तो पक्के कच्छा धारी है फिर सगाई के मौके पर शहनाई की बजाय रूखसाई का गीत क्यों गा रहे हो?’
सदा गरजने वाले घसीटाराम जी मन के मानसून के बावजूद चुप्पी साधे अपने साहिबजादे को घूरते रहे तो समझते देर न लगी कि पप्पू ने जरूर पापा का दिल दुखाया होगा। तब तक चाय आ गई। मैंने प्याला उनकी तरफ बढ़ाते हुए माहौल को बदलने की एक और कोशिश की, ‘अरे अब तो तुम्हारा चाय वाला आ गया, अब चाय चर्चा हो ही जाने दो।’
हमेशा ठंडी चाय को भी फूंक-फूंक कर पीने वाले घसीटा बाबू आज गर्म को भी सटा-सटा पी रहे थे। लेकिन पप्पू नजरे नीची किए मजे- मजे में घूंट भर रहा था। चाय खत्म होते ही घसीटाराम जी शुरु हो गए, ‘अब तुम ही समझाओं अपने लाडले भतीजे को। कम्बख्त इस बार भी परीक्षा में फेल हो गया तो हो गया, मुझे भी दुनिया की नजरों में फेल करने पर क्यों तुला है। उम्र कब की चालीस को पार कर चुकी है लेकिन हर बार पक्की नौकरी का झांसा देकर बच निकलता है। अब अगर ‘पक्की नौकरी’ इसकी किस्मत में नहीं तो उसका खामियाजा हम क्यों भुगते। मरने से पहले इसेे घोड़ी पर चढ़ाना चाहता हूँ। सरकार ने कब का रिटायर कर दिया। हाथ-पांव भी जवाब दे रहे है। पर यह न तो समझदार हो रहा है और न ही बच्चा बना रहना चाहता है। आज इसे समझा दो- अगर वक्त ही कमबख्त हो तो बढ़े-बूढ़ों की बात मानने में ही भलाई होती है।;
मेरा माथा ठनका, हो न हो, यहां भी मामला इंटरनेशनल पप्पू वाला है। मैंने पप्पू वल्द घसीटाराम को समझाने की कोशिश की लेकिन वह तो अपने वालिद जनाब से भी एक कदम आगे निकला। बोला, ‘जब इंटरनेशनल पप्पू भी असंमंजस में है। वह भी ‘बहुमत’ नहीं ला सका तो मम्मी ‘बहु’ जाने की जिद करने लगी। पर उसने सभी को समझा दिया। अब अंकल आप ही बताईए जब उसकी शादी की उम्र नहीं हुई तो पापा मेरे पीछे क्यों पड़े हैं? अभी मेरी उम्र ही क्या है। जब तिवारी अंकल 89 पर दुल्हा बने, दिग्गी अंकल 72 की उम्र में शेरवानी सिलवा रहे हैं। थरूर भी कुछ इसी उम्र में फिर से लड़की ढ़ूंढ रहे है तो हम दोनो को ही आखिर क्यों ‘बचपन’ में जिम्मेवारियों के बोझ तले दबाया जा रहा है।’
आज पहली बार घसीटाराम जी के वली अहदे सल्तनत की तकरीक सुनी तो कायल हो गया। बात में दम है, शायद घसीटाराम जी में ही धैर्य कम है। पप्पू की तकरीर जारी थी, ‘अंकल, अब मैं बच्चा नहीं हूं, अच्छी तरह से जानता हूँ कि शादी जीवन का एक महत्वपूर्ण कर्मकांड है। पश्चिम में यह भले ही अग्रीमंेट हो पर हमारे भारत इसे जन्म-जन्म का बंधन मानता है। वहाँ कपड़ों की तरह जीवन साथी बदले जाते हैं लेकिन यहां सात जन्म साथ निभाने की कसमें खाई जाती है। बेशक पति की लम्बी आयु के लिए पत्नी करवाचौथ का व्रत करती है। लेकिन लफड़ा यह है कि शादी की सही उम्र क्या हो, इसपर आम सहमति की जरूरत है। बेशक कानून लड़की 18 और लड़का 21 का हो तभी सात फेरों की अनुमति देता है लेकिन कानून के फेर में पड़ना ही कौन चाहता है। अक्षय तृतीया के दिन लाखों जोड़े बनते हैं। कुछ तो ऐसे भी एक-दूसरे से जुड़ते हैं जो जानते ही नहीं कि आज पहने नये कपड़े किसी नये जोड़ के प्रतीक हैं। गोद के दूधमुहें बच्चों तक की शादी के समाचार सुनने को मिलते हैं। ‘बाल’ विवाह को कानूनन अपराध बताने वाले खूब सक्रिय दिखाई देते है पर ‘अबाल’ विवाह पर सबकी बोलती बंद हो जाती है।
माफ करे ‘अबाल’ से मेरा मतलब किसी ‘गंजे’ की शादी से हर्गिज नहीं है। पर हाँ, ‘यदि आप मंजे’ हुओं पर शक करना चाहते हैं तो मुझेें एतराज भी नहीं है। इस बात में कोई शक नहीं कि ये मंजे हुए लोग सजे हुओ का खेल बिगाड़ रहे है। अपने यहाँ पहले शादी फिर बच्चे की सुदीर्घकालीन परंपरा को दरकिनार कर ‘पहले बच्चे’ फिर शादी वाले 88 साल के दूल्हें महाराज मेरे जैसे पप्पूओं की संभावनाओं को कम ही तो कर रहे हैं।’
नान स्टाप तकरीर जारी थी और मैं शर्म से पानी-पानी हो रहा था। अचानक उसका गला सूखने लगा तो उसने पानी का इशारा किया। जब तक पानी आता, मेरी खोपड़ी घूमने लगी, ‘भतीजेे के तर्क बिरला सीमेंट से सने होने के कारण मजबूत ही तो है। आखिर अब तक पिता बेटे की शादी करते थे लेकिन मिस्टर 88 का बेटा पापी ‘पापा’ की शादी का कारण बना है तो मिस्टर 72 यानि बड़बोलाश्री भी आपनी नई ‘राय’ के साथ कीर्तिमान की ओर है। पहले शादी फिर तलाक जैसे संकीर्ण विचार को ‘तलाक’ देकर मिस्टर 72 आजकल अपनी होने वाली पत्नी के तलाक की प्रक्रिया पूरी करवा रहे हैं। तलाक होते ही शादी करेंगे और फिर रही सही कसर पूरी करेंगे अपनों को डूबोने की। पूछना चाहता हूं कि इंटरनेशनल पप्पू को उनकी ‘राय’ अब तक क्यों नहीं मिली कि कुछ ‘क्रांतिकारी’ कर सके।
इसके पहले कि पानी पीकर घसीटाराम जी का पप्पू फिर शुरू होता, हमने मोर्चा संभाला, ‘देखा बेटा, तुम्हारी समस्या जूनुअन है। सुना है देश के नये सरदार इतिहास में ‘असरदार’ के रूप में अपना नाम दर्ज कराने के लिए कुछ खास करने की तैयारी में है। कानून की नम्बरी धारा को हटाने तक का अरमान उनके सीने में है। तो क्यों न उन्हीं से गुजारिश की जाए कि कानून में शादी की न्यूनतम आयु की तरह अधिकतम आयु का प्रावधान भी कानून में शामिल किया जाए ताकि कोई जवान को बंदूक और बूढ़ें को लाठी मिलती रहे। सरकारी नौकरी न मिले तो न मिले पर रोजी-रोटी का इंतजाम होना ही चाहिए। बेशक ‘जनाब’ तो कर के नहीं निभा सके पर आज के पप्पू तो निभाने लायक बनने के पहले कृछ ‘करने’ को तैयार ही नहीं। ‘बहुमत’ पाकर भी किसी टोपी वाले की तरह भगोड़ा बनना उन्हें स्वीकार नहीं है। इसलिए हे भारतश्री कुछ करों! युवाओं का देश भारत आपसे अनुरोध करता है कि ‘आप अपने ‘लोहपुरुष’ को कोई काम दो या न दो पर इस देश के हर पुरुषार्थी को परिस्थितियों से लोहा लेते देखकर जरूर कुछ सोचो। प्लीज! जरूर सोचो और जरूर, जरूर कुछ करो भी। तुम्हें गंगा मैया की सौगंध जरूर कुछ करो। उमरिया बीती जाए रे! घर से ज्यादा घरनी का डर सताये रें।’
मैंने श्रीमतीजी को चाय का इशारा किया और पूछ ही लिया, ‘क्या बात है घसीटा बाबू, आप तो पक्के कच्छा धारी है फिर सगाई के मौके पर शहनाई की बजाय रूखसाई का गीत क्यों गा रहे हो?’
सदा गरजने वाले घसीटाराम जी मन के मानसून के बावजूद चुप्पी साधे अपने साहिबजादे को घूरते रहे तो समझते देर न लगी कि पप्पू ने जरूर पापा का दिल दुखाया होगा। तब तक चाय आ गई। मैंने प्याला उनकी तरफ बढ़ाते हुए माहौल को बदलने की एक और कोशिश की, ‘अरे अब तो तुम्हारा चाय वाला आ गया, अब चाय चर्चा हो ही जाने दो।’
हमेशा ठंडी चाय को भी फूंक-फूंक कर पीने वाले घसीटा बाबू आज गर्म को भी सटा-सटा पी रहे थे। लेकिन पप्पू नजरे नीची किए मजे- मजे में घूंट भर रहा था। चाय खत्म होते ही घसीटाराम जी शुरु हो गए, ‘अब तुम ही समझाओं अपने लाडले भतीजे को। कम्बख्त इस बार भी परीक्षा में फेल हो गया तो हो गया, मुझे भी दुनिया की नजरों में फेल करने पर क्यों तुला है। उम्र कब की चालीस को पार कर चुकी है लेकिन हर बार पक्की नौकरी का झांसा देकर बच निकलता है। अब अगर ‘पक्की नौकरी’ इसकी किस्मत में नहीं तो उसका खामियाजा हम क्यों भुगते। मरने से पहले इसेे घोड़ी पर चढ़ाना चाहता हूँ। सरकार ने कब का रिटायर कर दिया। हाथ-पांव भी जवाब दे रहे है। पर यह न तो समझदार हो रहा है और न ही बच्चा बना रहना चाहता है। आज इसे समझा दो- अगर वक्त ही कमबख्त हो तो बढ़े-बूढ़ों की बात मानने में ही भलाई होती है।;
मेरा माथा ठनका, हो न हो, यहां भी मामला इंटरनेशनल पप्पू वाला है। मैंने पप्पू वल्द घसीटाराम को समझाने की कोशिश की लेकिन वह तो अपने वालिद जनाब से भी एक कदम आगे निकला। बोला, ‘जब इंटरनेशनल पप्पू भी असंमंजस में है। वह भी ‘बहुमत’ नहीं ला सका तो मम्मी ‘बहु’ जाने की जिद करने लगी। पर उसने सभी को समझा दिया। अब अंकल आप ही बताईए जब उसकी शादी की उम्र नहीं हुई तो पापा मेरे पीछे क्यों पड़े हैं? अभी मेरी उम्र ही क्या है। जब तिवारी अंकल 89 पर दुल्हा बने, दिग्गी अंकल 72 की उम्र में शेरवानी सिलवा रहे हैं। थरूर भी कुछ इसी उम्र में फिर से लड़की ढ़ूंढ रहे है तो हम दोनो को ही आखिर क्यों ‘बचपन’ में जिम्मेवारियों के बोझ तले दबाया जा रहा है।’
आज पहली बार घसीटाराम जी के वली अहदे सल्तनत की तकरीक सुनी तो कायल हो गया। बात में दम है, शायद घसीटाराम जी में ही धैर्य कम है। पप्पू की तकरीर जारी थी, ‘अंकल, अब मैं बच्चा नहीं हूं, अच्छी तरह से जानता हूँ कि शादी जीवन का एक महत्वपूर्ण कर्मकांड है। पश्चिम में यह भले ही अग्रीमंेट हो पर हमारे भारत इसे जन्म-जन्म का बंधन मानता है। वहाँ कपड़ों की तरह जीवन साथी बदले जाते हैं लेकिन यहां सात जन्म साथ निभाने की कसमें खाई जाती है। बेशक पति की लम्बी आयु के लिए पत्नी करवाचौथ का व्रत करती है। लेकिन लफड़ा यह है कि शादी की सही उम्र क्या हो, इसपर आम सहमति की जरूरत है। बेशक कानून लड़की 18 और लड़का 21 का हो तभी सात फेरों की अनुमति देता है लेकिन कानून के फेर में पड़ना ही कौन चाहता है। अक्षय तृतीया के दिन लाखों जोड़े बनते हैं। कुछ तो ऐसे भी एक-दूसरे से जुड़ते हैं जो जानते ही नहीं कि आज पहने नये कपड़े किसी नये जोड़ के प्रतीक हैं। गोद के दूधमुहें बच्चों तक की शादी के समाचार सुनने को मिलते हैं। ‘बाल’ विवाह को कानूनन अपराध बताने वाले खूब सक्रिय दिखाई देते है पर ‘अबाल’ विवाह पर सबकी बोलती बंद हो जाती है।
माफ करे ‘अबाल’ से मेरा मतलब किसी ‘गंजे’ की शादी से हर्गिज नहीं है। पर हाँ, ‘यदि आप मंजे’ हुओं पर शक करना चाहते हैं तो मुझेें एतराज भी नहीं है। इस बात में कोई शक नहीं कि ये मंजे हुए लोग सजे हुओ का खेल बिगाड़ रहे है। अपने यहाँ पहले शादी फिर बच्चे की सुदीर्घकालीन परंपरा को दरकिनार कर ‘पहले बच्चे’ फिर शादी वाले 88 साल के दूल्हें महाराज मेरे जैसे पप्पूओं की संभावनाओं को कम ही तो कर रहे हैं।’
नान स्टाप तकरीर जारी थी और मैं शर्म से पानी-पानी हो रहा था। अचानक उसका गला सूखने लगा तो उसने पानी का इशारा किया। जब तक पानी आता, मेरी खोपड़ी घूमने लगी, ‘भतीजेे के तर्क बिरला सीमेंट से सने होने के कारण मजबूत ही तो है। आखिर अब तक पिता बेटे की शादी करते थे लेकिन मिस्टर 88 का बेटा पापी ‘पापा’ की शादी का कारण बना है तो मिस्टर 72 यानि बड़बोलाश्री भी आपनी नई ‘राय’ के साथ कीर्तिमान की ओर है। पहले शादी फिर तलाक जैसे संकीर्ण विचार को ‘तलाक’ देकर मिस्टर 72 आजकल अपनी होने वाली पत्नी के तलाक की प्रक्रिया पूरी करवा रहे हैं। तलाक होते ही शादी करेंगे और फिर रही सही कसर पूरी करेंगे अपनों को डूबोने की। पूछना चाहता हूं कि इंटरनेशनल पप्पू को उनकी ‘राय’ अब तक क्यों नहीं मिली कि कुछ ‘क्रांतिकारी’ कर सके।
इसके पहले कि पानी पीकर घसीटाराम जी का पप्पू फिर शुरू होता, हमने मोर्चा संभाला, ‘देखा बेटा, तुम्हारी समस्या जूनुअन है। सुना है देश के नये सरदार इतिहास में ‘असरदार’ के रूप में अपना नाम दर्ज कराने के लिए कुछ खास करने की तैयारी में है। कानून की नम्बरी धारा को हटाने तक का अरमान उनके सीने में है। तो क्यों न उन्हीं से गुजारिश की जाए कि कानून में शादी की न्यूनतम आयु की तरह अधिकतम आयु का प्रावधान भी कानून में शामिल किया जाए ताकि कोई जवान को बंदूक और बूढ़ें को लाठी मिलती रहे। सरकारी नौकरी न मिले तो न मिले पर रोजी-रोटी का इंतजाम होना ही चाहिए। बेशक ‘जनाब’ तो कर के नहीं निभा सके पर आज के पप्पू तो निभाने लायक बनने के पहले कृछ ‘करने’ को तैयार ही नहीं। ‘बहुमत’ पाकर भी किसी टोपी वाले की तरह भगोड़ा बनना उन्हें स्वीकार नहीं है। इसलिए हे भारतश्री कुछ करों! युवाओं का देश भारत आपसे अनुरोध करता है कि ‘आप अपने ‘लोहपुरुष’ को कोई काम दो या न दो पर इस देश के हर पुरुषार्थी को परिस्थितियों से लोहा लेते देखकर जरूर कुछ सोचो। प्लीज! जरूर सोचो और जरूर, जरूर कुछ करो भी। तुम्हें गंगा मैया की सौगंध जरूर कुछ करो। उमरिया बीती जाए रे! घर से ज्यादा घरनी का डर सताये रें।’
घसीटाराम जी का मौन अनेक प्रश्न चिन्ह लिए खड़ा था पर पप्पू लगातार मुस्कुरा रहा था। वह क्यों इंटरनेशनल पप्पू से इस पप्पू तक माँ-बाप चाहे हार माने तो माने पर वह तो हर हाल में मुस्कराते है। आज तो उसकी प्रसन्न का कारण भी है। बेशक पहली बार हुआ हो लेकिन फेंकू चाचा की आड़ लेकर चिरकुमार अंकल की अक्ल ने फिलहाल उसे बचा लिया। मगर आशंका फिर भी बनी हुई है। इच्छा है घसीटाराम जी को सुझाव दूं- जब तक ‘पक्की नौकरी’ न लगे, पप्पू को नानी के घर भेज दिया जाए। क्या राय देते है आप? देखना जरा जल्दी। आखिर जवान की जवानी का सवाल है। Vinod babbar
व्यंग्य----शादी की उम्र --- विनोद बब्बर
Reviewed by rashtra kinkar
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