नमो रोड़मैप और उसके स्पीडब्रेकर-- डा. विनोद बब्बर

जिस आशा और उममीद के साथ देश की जनता ने तीन दशक बाद किसी दल को पूर्ण बहुमत देकर अपने इरादे जाहिर किये थे, उस उम्मीद को साकार करना किसी भी नई सरकार की प्राथमिकता होती है। वैसे भी सभी को नमो की प्राथमिकताओं को जानने की उत्सुकता थी। ‘सबका साथ सबका विकास’ का मूलमंत्र लेकर चली सरकार ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन’ के मार्ग पर चलने का संकल्प व्यक्त कर रही है तो विश्वास और धैर्य के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प देशी चाहिए। यह संतोष की बात है कि नये दायित्ववान नई ऊर्जा के साथ अपने काम में जुट गये हैं। नवनिर्वाचित सदस्यों द्वारा शपथ और लोकसभाध्यक्ष के चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी सरकार की योजनाओं के बारे में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति   ने ‘एक भारत,श्रेष्ठ भारत’ का आह्वान किया। द के पास नहीं है।
  निर्विवाद रूप से इसबात पर सर्वसम्मति होनी चाहिए कि हर योजना को साकार करने के लिए संसाधनों की आवश्यकता होती है। वर्तमान में कर बढ़ाने का विकल्प खतरनाक हो सकता है इसलिए विदेशी पूंजीनिवेश का सहारा है तो देशी पूंजी को भी प्रोत्यसाहित करने की जरूरत है। ऐसे में कालेधन के लिये एसआईटी बनाकर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का संदेश दे चुकी सरकार ने  अपने रोडमैप में देश की जनता को उम्मीदों को एकबार फिर से जगाया है। युवा भारत को  ‘स्कैम भारत से स्किलड भारत’ बनाने का संकल्प लिए यह सरकार सबको पक्का घर, पानी और 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने से हर राज्य में आईआईटी और आईआईएम स्थापित करने और राष्ट्रीय खेल प्रतिभा अभियान चलाने तक अनेक वायदों पर काम करने की तैयारी में है। जनता लम्बे समय से महंगाई से त्रस्त है क्योंकि पिछली सरकार ने उसे ‘सौ दिन में महंगाई कम करने’ का वायदा कर बेलगाम महंगाई के सामने बेसहारा छोड़ दिया गया था। नई सरकर महंगाई कम करने को अपना लक्ष्य घोषित कर रही है तो राहत की सांस ली जा सकती है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि रोजगार के लिये निवेश बढ़ने, गांव-शहर की खाई खत्म करने, देश में हाई स्पीड रेल चलाने और पर्वतीय राज्यों में रेल सुविधा बढ़ाने का संकल्प देश की तस्वीर बदल देगा।
अपने प्रथम नीति प्रपत्र में मोदी सरकार ने भारत के मस्तक प्रदेश कश्मीर से विस्थापित हुए पंडितों को फिर से घाटी में बसाने की बात कहीं है। अच्छा होता वहां  अल्पसंख्यकों की सम्पत्ति बहुसंख्यकों को हस्तांतरण रद्द तथा उसपर रोक लगाई जाती तो कश्मीरी पंडितों को घाटी से खंदेड़ने वालों को यह संदेश जाता कि इससे उन्हें कोई फायदा होने वाला नहीं है। भटके हुओं से बातचीत की जा सकती है लेकिन देशद्रोहियों से सख्ती से निपटना ही एकमात्र विकल्प है। संविधान की अस्थायी  धारा 370 के अध्ययन के लिए बुद्धिजीरवियों का दल बनाने से माहौल बनाने तक,  कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा, संरक्षा और कानूनी कवच प्रदान कर ही जम्मू कश्मीर की स्थिति में गुणात्मक एवं सकारात्मक परिर्वतन संभव है।
 यह पहली बार है कि केन्द्रीय मंत्रीमंडल में महिलाओं की संख्या बढ़ी है। पहली बार इस देश की विदेशमंत्री एक महिला है। ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ के तहत महिलाओं की शिक्षा, सुरक्षा तथा लम्बे समय से लंबित महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण को परिणति तक पहुंचाने का संकल्प देश की आधी जनसंख्या को सकारात्मक संदेश है। लेकिन इसपर पिछली सरकारों की तरह ढुलमुल नहीं, सीधे आगे बढ़ने की जरुरत है।
न्यायिक प्रक्रिया को तेज करना समय की मांग है इसके लिए केंद्र और राज्य को मिलकर काम करना होगा। इसके अतिरिक्त किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए कृषि सिंचाई योजना आरंभ करने,  पानी की किल्लत को कम करने के लिये रेन वॉटर हारवेस्टिंग को बढ़ावा देने, हर घर में शौचालय, अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिये प्रतिबद्धता, परंपरागत धार्मिक शिक्षा के लिए जाने जाने वाले मदरसों के आधुनिकीकरण, रोजगार सृजन में तेजी के लिए निवेश, उद्यम एवं विकास विरोधी व्यवस्था केा उन्मूलन, सभी राज्यों में एकसमान कर प्रणाली जीएसटी लागू करने के प्रयास, जमाखोरी और कालाबाजारी के खिलाफ कदम आगे बढ़ाने की योजना प्रशंसनीय है।
गरीबी से लड़ने का सबसे बड़ा हथियार है शिक्षा। सरकार ने भारतीय भाषाओं और संस्कृति के संरक्षण,  अविरल और स्वच्छ गंगा तथा सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण पर जोर दिया है। इसके लिए प्राथमिक शिक्षा में प्रामाणिकता और गुणवत्ता लाने के ठोस प्रयास करने चाहिए। जिस प्रकार पिछली सरकार ने सैम पित्रौदा के नेतृत्व में ज्ञान आयोग बनाकर संस्कृति को नष्ट करने के प्रयास किये और छोटे- छोटे बच्चों पर विदेशी भाषा थोपी उसके दुष्प्रभावों के निराकरण के लिए अनुभवी लोगों की सलाह पर कार्य करने की जरूरत है। यह सर्वथा उचित होगा कि जिन वरिष्ठ साथियों को मंत्रीमंडल में शामिल नहीं किया गया, उनके अनुभवों का लाभ इस क्षेत्र में लिया जाना चाहिए। विशेषरूप से डा. मुरली मनोहर जोशी जैसे शिक्षाविद् को ज्ञान आयोग का दायित्व देकर सरकार अपने रोडमैप को मंजिल तक पहुंचा सकती है। हिंदी के प्रति प्रधानमंत्री का रूख सकारात्मक है। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि वे विश्व मंचों पर भी किसी विदेशी भाषा की बजाय अपनी भाषा में भारत की बात कहेंगे।
अपने रोडमैप में सरकार सूचना तकनीक के अधिकतम उपयोग से विश्व स्तरीय सुविधाओं वाले 100 नये शहर बनाने और छोटे शहरों को हवाई मार्ग से जोड़ने ंका स्वप्न साकार करने की तैयारी है। कोयला क्षेत्र में पारदर्शी तरीके से निजी निवेश आकर्षित करने, राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन का विस्तार, अंतरराष्ट्रीय असैन्य परमाणु सहयोग समझौतों का क्रियान्वयन, परमाणु बिजली परियोजनाओं का विकास की योजना को साकार रूप दिया जा सका तो ‘एक सशक्त, आत्मनिर्भर तथा विश्वास से भरपूर’ भारत का निर्माण हकीकत बन सकता है। इस महत्वपूर्ण कार्य को विशेष निगरानी की आवश्यकता होगी अतः प्रधानमंत्री को इसके लिए उच्चाधिकार दल बनाना चाहिए।
नई सरकार को बदनाम कर असफल बनाने के षड़यंत्र भी आरंभ हो चुके हैं। सरकार बनते ही सारे देश में बिजली की दशा बिगड़ना इसका एक संकेत मात्र है। नाक्रशाही से अच्दे संबंध बनाने में लगे नमो को हर कार्य की जिम्मेवारी तय कर दोषियों को सजा देने का प्रावधान करना चाहिए वरना उनके रोड मैप को ये स्पीडब्रेकर आगे बढ़ने से पहले ही नकारा बना देंगे।
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री का यह कथन, ‘हमें संख्या के बल पर नहीं, सामूहिकता के बल पर आगे बढ़ना है।’ निश्चित रूप से लोकतंत्र को गरिमा प्रदान करता है लेकिन अपने प्रथम भाषण में  सीयोग का वचन देने की परम्परा से हटते हुए लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का यह कथन, ‘कौरवों की संख्या चाहे जितनी ज्यादा हो, पांडव दबने वाले नहीं’ निराशाजनक है। दुःखद आश्चर्य की बात है कि अपने इतिहास के निम्नतम स्तर पर पहुंचने के बाद भी कांग्रेस नेतृत्व जनता का फैसला स्वीकार करने को तैयार नहीं है। लोकंतत्र का तकाजा है कि देश के विकास के लिए कौरव-पांडवों के बीच के विवाद से हुए महाभारत से सबक लेते हुए मिलकर कार्य करने की परिपक्वता दिखाई जाए। ऐसे लोगों को देश की जनता के विवेक से नसीयत लेनी चाहिए जिसने उन 65 सांसदों में से किसी एक को भी इसबार लोकसभा की चौखट पर चढ़ने नहीं दिया जिन्होंने नरेंद्र मोदी को अमेरिका का वीजा न देने के लिए पत्र लिखा था। अतः अनावश्यक विवाद नहीं, आवश्यक समझदारी की जरूरत है।

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