सड़कों पर मंडराता काल -- डा. विनोद बब्बर

सड़क दुर्घटना में एक और मूल्यवान जीवन की क्षति। मात्र एक सप्ताह पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने गोपीनाथ मुंडे देश की राजधानी दिल्ली से अपने गृह राज्य महाराष्ट्र जाने के लिए सूर्यादय के समय हवाई अड्डे की ओर रवाना हुए थे कि सूर्यास्त हो गया। एक इंडिका कार ने उनकी गाड़ी को उस ओर अक्कर मारी जिस ओर मुंडे बैठे थे। अस्पताल पहुंचने पर उनकी हृदय गति शांत थी। मुंडे ही नहीं पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री साहिब सिंह वर्मा, राजेश पायलट तथा अन्य अनेक विभूतियां सड़क दुर्घटनाओं का शिकार हो चुकी हैं। पिछले दिनों, वर्षों से विदेश रह रहा एक परिवार भारत में अपने रिश्तेदारों के यहाँ शादी समारोह में भाग लेने दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरा। पर हवाई अड्डे से शादी समारोह के रास्ते को भी सड़कों पर मंडराते काल ने बाधित कर दिया। वह परिवार अपने एक सदस्य को हमेशा-हमेशा के लिए गँवा कर फिर भारत न आने की प्रतिज्ञा के साथ विदेश लौट गया।
पूरे देश में सड़कों की हालत खराब है। ऐसी खस्ता हाल सड़कें और घोर लापरवाही के बीच जब आगे बढ़ने की होड़, जल्दबाजी, शराब पीकर गाड़ी चलाने जैसे अनेक कारण होंगे तो दुर्घटनाआंे का अनुपात बहुत ज्यादा होना स्वाभाविक है। पिछले कुछ बरसों से निजीकरण के तहत ‘टोल’ वाली शानदार सड़कें बनने लगी हैं, जहाँ पैसे (टोल) देकर उनका उपयोग किया जाता है लेकिन अभी भी देश भर की 80 प्रतिशत से भी अधिक सड़कें पुरानी सकरी और खस्ता हाल हैं । कई-कई लेन होने की बात तो दूर उनमें डिवाईडर भी नहीं है। अनेक स्थानों पर तो दो वाहन एक साथ नहीं गुजर सकते। दूर दराज की बात छोड़ो, देश के व्यस्ततम मार्ग दिल्ली-हरिद्वार को ही देख लो, उसकी दशा अच्छी नहीं है। हर वर्ष कावड़ समय में यहां स्थिति बहुत खराब हो जाती है। कई सरकार्रें आइं और चली गईं पर उस सड़क का दर्द किसी ने भी नहीं समझा। हमारे लिए इससे बड़ी असफलता और अपमान की बात और क्या हो सकती है कि देश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान और जहाँ लाखों लोग अपने पितरों के पिंडदान के लिए आते हों उसी पतित पावनी गंगा के तट पर बसे हरिद्वार आने वाले लोग भी सुरक्षित नहीं हैं। इन पंक्तियों का लेखक पिछले सप्ताह आंधी के कारण इस मार्ग पर चार घंटे जाम में फंसा रहा क्योंकि गिरे पेड़ हटाने की कोई व्यवस्था नहीं थी।
यहीं क्यों, जयपुर तथा देश के कुछ हिस्सों में टोल वाली सड़कें तो बना दी पर आसपास रहने वाले लोगों तक का ध्यान ही नहीं रखा गया। उनके लिए सम्पर्क सड़कें बनाने और उनके रखरखाव का काम बिलकुल उपेक्षित है। सड़कों को पार करने के लिए थोड़ी-थोड़ी दूरी पर अण्डर पास बनने चाहिए थे ताकि स्थानीय लोगों को भी असुविधा न हो और यातायात भी बाधित न हो। आगरा के लिए बने हाई-वे पर दुर्घटनाओं की दर बहुत ज्यादा है तो क्यों?
एक अध्ययन के अनुसार, केवल दिल्ली महानगर में गत वर्ष सड़क दुर्घटनाओं मंे जान गंवाने वालों की संख्या आतंकवादी घटनाओं से कम नहीं है। इस तरह अनियंत्रित परिवहन भी एक अन्य प्रकार के आतंक का रूप ले रहा है। अक्सर होने वाला ट्रैफिक जाम इस आतंक को और भयावह बना रहा हैं। यदि सड़कों पर बढ़ते ‘रोडरेज’ को भी इसमें शामिल कर लें, तो जो तस्वीर उभरती है उससे काफी निराशा होती है। ऐसे में विचार होना चाहिए कि क्या स्कूली शिक्षा में सड़क शिष्टाचार को शामिल करने की ओर ध्यान देकर देश की नई पीढ़ी की मानसिकता में बदलाव संभव है? क्या सड़कों पर मंडराते काल को विकास की नियति मानकर चुपचाप बर्दाश्त करते रहने के अलावा कोई चारा नहीं है? क्या हम यातायात अनुशासन से इस काल को काबू में कर सकते हैं? ऐसेे प्रश्न हर व्यक्ति के मन में उठना स्वाभाविक है। सड़क पर दौड़ते वाहन यमराज के प्रतिनिधि न बने यह सरकार के साथ साथ समाज को भी सुनिश्चित करना है। ट्रैफिक अनुशासन संस्कृति, नैतिक मूल्यों का हिस्सा बने इसके लिए स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव की जरूरत है। जरूरत है ट्रैफिक नियमांे के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाये, उन्हें सख्ती से लागू किया जाये। फर्जी ड्राइविंग लाइसंेस पर कड़े दण्ड का प्रावधान, लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया को भ्रष्टाचार-मुक्त करना, सड़क नियमों के उल्लंघन को रोकने के लिए आधुनिक तकनीक का अधिकतम प्रयोग, ट्रैफिक जाम से मुक्ति का उपाय ढँ़ूंढ़ना, छोटे-बड़े सभी के लिए वर्ष में एक बार यातायात प्रशिक्षण शिविर में भाग लेना, एक व्यक्ति अथवा एक परिवार के पास अनेक गाड़ियां होने से सड़कों पर होने वाली भीड़-भाड़ को नियंत्रण करने जैसे उपाय ढँूंढने होंगे, वरना होती रहेंगी ऐसी दुर्घटनाएं और छोटी होती रहेंगी जीवन रेखाएं!
ड्राइवरों की दशा पर भी ध्यान दिया जाए, उन्हें बेहतर सुविधाओं के साथ-साथ वर्ष मंे एक बार प्रशिक्षण मिले, देश भर में सड़कों का सुधार हो, और हाई-वे पर तत्काल चिकित्सा सुविधाएं बढं़े। तभी काबू पा सकते हैं हम सड़कों पर मंडराते काल पर, वरना ये काल कल किसी को भी अपना शिकार बना सकते हैं, हमें भी। और अंत में यमदूतों की व्यथा-
यमदूतों की अपने आका से गुहार
हमसे क्या गुस्ताखी हुई सरकार
आजकल हमें पृथ्वी पर नहीं भिजवाते
क्या सारा काम खुद ही है निपटाते
यमराज की मुसीबत क्या दे रिप्लाई
आगे था कुआँ और पीछे थी खाई
लगाकर ऊँच-नीच का हिसाब
महिसासुर ने दिया जबाव
सड़कों पर मंडराता हो खुद काल
वहाँ कौन पूछता है हमारा हाल
अरे बावलों, अपना पैसेंस न गंवाओ
हमारी मजबूरी पर ध्यान दौड़ाओं
लोग अब यमराज से कहाँ डरते हैं
ज्यादातर दुर्घटनाओं में मरते हैं
हमारा नम्बर तो तब आयेगा-
जब पहियों पर दौड़ते काल से
कोई बच पाएगा! कोई बच पाएगा!
सड़कों पर मंडराता काल -- डा. विनोद बब्बर
Reviewed by rashtra kinkar
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22:12
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