पुनर्जन्म या.....
लगभग तीन दशक पूर्वक मेरे मित्र रामलाल जी अक्सर मुझे समझाया करते थे- ‘दूसरों के चक्कर में अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। तुम हर व्यक्ति के साथ उठकर चल देते हो। उनके लिए अपना समय, अपना धन बर्बाद करते हो। कल जब तुम कष्ट में आओंगे या बूढ़े जाओंगे तो बहुत पछताओंगे। इन लोगों में से कोई भी तुम्हारी मदद करने नहीं आएगा।’
मैं अक्सर उनकी बात को एक शुभचिंतक की राय मानकर खामोश रह जाता। लेकिन जब उनकी ‘नेक राय’ ब्रेकफास्ट, लन्च, डिनर की तरह मिलने लगी तो मैंने उनसे पूछ ही लिया, ‘मेरे भाई, जब मैं तुम्हारे लिए महीनों परेशान होता था। सरकारी अफसरों तक से झगड़ता था। तुम्हारे विरोधियों को समझाने जाता था तो उन दिनों तुमने मुझे एक बार भी अपनी इस कीमती राय से नहीं नवाजा। क्या तब तुम्हारे ‘ज्ञान चक्षु’ नहीं खुले थे या आपकी वीणा वाणी के तार उस समय झंझनाना नहीं सीखे थे?’
मित्रवर मजबूत तर्कशक्ति के स्वामी थे। और हाँ, जब उनके पास तर्क समाप्त हो जाते थे तो अपना अधिकार दिखाते हुए मुझे पागल तक घोषित कर देते थे। ईश्वरीय अन्याय ने रामलाल को मुझसे दूर कर दिया। उनकी कमी कई बार खलती थी लेकिन आज वे फिर प्रकट हो गए। एक पुराने साथी के शरीर में उनकी वहीं आत्मा प्रवेश कर गई। वे मेरे सामने उन्हीं पुराने तर्कों के साथ प्रस्तुत थे - ‘आप फलां के चक्कर में अपनी छवि खराब कर रहे हो। फलां के चक्कर में अपना समय बर्बाद कर रहे हो। आप संस्था की प्रतिष्ठा को ‘पर्सनलाइज’ कर रहे हो। यह गलत है।’
मुझे बहुत खुशी हुई मेरा पुराना मित्र लौट आया लेकिन तय नहीं कर पा रहा हूं कि यह उनका पुनर्जन्म है या वे मरे ही नहीं थे।
(चेतावनी - इस लघुकथा का कोई संबंध नहीं है। यदि कोई इसे अपनी मानता है तो किसी भी मानसिक आघात के लिए वह स्वयं जिम्मेवार होगा-- लेखक )
मैं अक्सर उनकी बात को एक शुभचिंतक की राय मानकर खामोश रह जाता। लेकिन जब उनकी ‘नेक राय’ ब्रेकफास्ट, लन्च, डिनर की तरह मिलने लगी तो मैंने उनसे पूछ ही लिया, ‘मेरे भाई, जब मैं तुम्हारे लिए महीनों परेशान होता था। सरकारी अफसरों तक से झगड़ता था। तुम्हारे विरोधियों को समझाने जाता था तो उन दिनों तुमने मुझे एक बार भी अपनी इस कीमती राय से नहीं नवाजा। क्या तब तुम्हारे ‘ज्ञान चक्षु’ नहीं खुले थे या आपकी वीणा वाणी के तार उस समय झंझनाना नहीं सीखे थे?’
मित्रवर मजबूत तर्कशक्ति के स्वामी थे। और हाँ, जब उनके पास तर्क समाप्त हो जाते थे तो अपना अधिकार दिखाते हुए मुझे पागल तक घोषित कर देते थे। ईश्वरीय अन्याय ने रामलाल को मुझसे दूर कर दिया। उनकी कमी कई बार खलती थी लेकिन आज वे फिर प्रकट हो गए। एक पुराने साथी के शरीर में उनकी वहीं आत्मा प्रवेश कर गई। वे मेरे सामने उन्हीं पुराने तर्कों के साथ प्रस्तुत थे - ‘आप फलां के चक्कर में अपनी छवि खराब कर रहे हो। फलां के चक्कर में अपना समय बर्बाद कर रहे हो। आप संस्था की प्रतिष्ठा को ‘पर्सनलाइज’ कर रहे हो। यह गलत है।’
मुझे बहुत खुशी हुई मेरा पुराना मित्र लौट आया लेकिन तय नहीं कर पा रहा हूं कि यह उनका पुनर्जन्म है या वे मरे ही नहीं थे।
(चेतावनी - इस लघुकथा का कोई संबंध नहीं है। यदि कोई इसे अपनी मानता है तो किसी भी मानसिक आघात के लिए वह स्वयं जिम्मेवार होगा-- लेखक )
पुनर्जन्म या.....
Reviewed by rashtra kinkar
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09:39
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