व्यंग्य- कड़ी मेहनत के बाद नानी घर At Nani House


कड़ी मेहनत, परीक्षा, परीक्षा परिणाम और फिर छुट्टियां, छुट्टियों में नानी घर। वर्षों से यहीं क्रम है। परीक्षा परिणाम चाहे कुछ भी रहा हो लेकिन छुट्टियां और छुट्टियों में नानी घर जाने के क्रम में कोई बदलाव नहीं आया। आज भी सबकुछ वैसा ही। जैसा पप्पू के पापा का बचपन था वैसा ही पप्पू का बचपन। बचपन और नानी घर का गहरा नाता है। इसी उम्र में कुछ निश्चिंतता होती है। सामाजिक दबाव कुछ कम होते हैं इसलिए पानी भरने के नाम पर बेशक ना नू करें पर नानी के नाम पर ना न करने का प्रचलन न था और न ही है। बड़े हो जाने पर जीवन के दबाव इस कदर हावी होते है कि ये दबाव हर मोड़ पर नानी याद कराते है इसलिए नानी के घर जाने का समय ही कहां मिलता है।
बचपन जीवन का श्रेष्ठ समय है। बचपन पीछे छूटता जाता है तो जीवन के तनाव समय से पहले बूढ़ा बना देते है। लेकिन अपना पप्पू बहुत सौभाग्यशाली है कि बचपन उसे छोड़ने को तैयार ही नहीं। आप लाख समझाओं कि आलू की फैक्ट्री नहीं, खेत होता है लेकिन खटिया की तरह अपने बाल हठ को पकड़े हैं। पर न जाने क्यों, लोगों को उनसे बहुत ईर्ष्या है। ये कर्मजले बचपन की परिभाषा तय करने के इतने उतावले है कि पचपन  के करीब पहुंच रहे पप्पू को बचपन का आनंद लेने से वंचित करना चाहते हैं। अरे भाई जब मजबूरीं  एक बच्चे पर जिम्मेवारियों का बोझ इतना लाद देती है कि उसे बचपन में ही मजदूरी तक करनी पड़ती है तो क्या आप एक अदद पप्पू को पचपन में बचपन की छूट नहीं दे सकते? जब लाखों बाल मजदूरों का शोषण जारी है तो एक  काल्पनित शासक को बचपन में विचरण करने से रोके क्यों? आप लाख बातें बनाओं लेकिन वे अपनी सी करके रहेंगे। बचपन जिंदाबाद!
हां, तो अपुन बात कर रहे हैं बचपन की। अपना बचपन कब का छूट गया। नानी यह संसार छोड़ गये। नानी घर का कहीं अता पता नहीं लेकिन सौभाग्यशाली है  पप्पू कि उसके पास बचपन भी है और नानी घर भी। उपी में खटिया खड़ी हुई लेकिन इसमें उसका क्या कसूर। आपने भी तो बिना सोचे समझे बच्चे को साइकिल थमा दी। बिना ब्रेक की साइकिल जितना कर सकती किया। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पप्पू ने मेहनत नहीं की। मेहनत तो खूब की। क्या  बिना मेहनत के ही अब तक सभी रिकार्ड टूटे? उसके बाद भी बेचारे को आपने कहां आराम से बैठने दिया है। कभी उपी तो मपी दौड़ते रहे हो। अब जब इतनी मेहनत की है तो आपको क्या अधिकार है कि उसे नानी घर जाने से रोक सको। मेहनत के बाद छुट्टियां  मनाना उसका अधिकार है। वह थाइलैंड तो जा नहीं रहा है कि आप अंगुली उठाओं। नानी घर जाना उसका मानवाधिकार है।
आपको यह पूछने वाले कौन कि  क्या किसानों की समस्याएं हल हो गई कि आप घूमने जा रहे है? अरे नासमझों किसानों की समस्याओं को उन्होंने क्या इसीलिए संजोये कर रखी थी कि विपक्ष में आने पर हल करेंगे? हल? अरे अब हल की जरूरत है भी किसे? किसान ने ही परम्परागत हल छोड़ ट्रैक्टर का दामन पकड़ लिया है तो विपक्ष से ही हल की आशा क्यों? आपको खुशी होनी चाहिए कि पप्पू ने कड़ी मेहनत के बाद नानी के घर जाने की परम्परागत परम्परा को नहीं छोड़ा। बहुत संभव है असली युवा किसान उसका साथ ही जाये। 
ओह नहीं समझे न! क्या इतनी खटर फटर के बावजूद असली किसान का आज तक बाल भी बांका  हुआ?  वे पक्ष रहे या विपक्ष में, असली के लिए नो आलस। तुम नाना प्रकार के उपवास करो उसने कब रोका है फिर आप उसे नानी के उपवन जाने से कैसे रोक सकते हैं?  
तुम लगाते रहो अटकले, पप्पू तो चला  नानी घर विद ओरिजनल किसान। 
ओके बाय लौट के मिलते है ।
विनोद बब्बर संपर्क-   rashtrakinkar@gmail.com


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