नैतिकता बिन धर्म नहीं -संस्कृति बिन पहचान नहीं
प्रकृति, संस्कृति और विकृति को परिभाषित करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, नोएडा परिसर के प्रभारी और समारोह के मुख्य वक्ता प्रो. अरुण कुमार भगत ने सर्वे भवन्तु सुखिनः और महोपनिषद के श्लोक ‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।। का विशेष उल्लेख किया।
डॉ. भगत के अनुसार, ‘हमने पूरे विश्व को केवल अपना परिवार कहा ही नहीं बल्कि व्यवहार में आत्मसात किया। अध्यात्म, योग, शून्य, सह-अस्तित्व, अनुकूलन, आश्रम व्यवस्था, कर्म की प्रतिष्ठा, कर्म चेतना से उत्थान, पर्यावरण चेतना, शल्य चिकित्सा, खगोल विद्या, दान की उदात्तता हमने ही पूरे विश्व को दी है। पिछले कुछ वर्षों से पूरे विश्व में योग दिवस मनाया जा रहा है। कपास ही नहीं, कपड़ा बुनने का ज्ञान हमने विश्व को दिया। वैदिक गणित, ट्रिग्नोमैट्री का ज्ञान भारत ने विश्व को दिया। महरौली में सैंकड़ो वर्षों से स्थापित लौह स्तम्भ प्रमाण है कि जंग रहित लौह धातु बनाने की विद्या विश्व ने हमसे ही सीखी।’ वे गत रविवार को गायत्री परिवार, शान्तिकुन्ज के तत्वावधान में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा द्वारा आर्य समाज मन्दिर, जनकपुरी में आयोजित समारोह में बोल रहे थे।
इस अवसर पर प्रो. अरुण कुमार भगत, महापौर श्री नरेन्द्र चावला, शांतिकुन्ज प्रतिनिधि श्री प्रदीप राव, गायत्री चेतना केन्द्र नोएडा के प्रभारी श्री आर.एन.सिंह ने प्रविण्य सूची में शामिल छात्रों को नकद पुरस्कार राशि, प्रशस्ति पत्र तथा सद्साहित्य भेंट कर उनका उत्साहवर्द्धन किया गया। इस अवसर पर सहयोगी शिक्षकों को भी ‘संस्कृति पुरोधा’ सम्मान से नवाजा गया। इस कार्यक्रम में अनेक प्रधानाचार्य, शिक्षक, शिक्षाविद, समाजसेवी एवं अनेक गणमान्य नागरिक और अभिभावक भी उपस्थित थे।
इससे पूर्व भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के संयोजक श्री खैराती लाल सचदेवा ने सभी का स्वागत करते हुए संगोष्ठी के विषय ‘विश्व को भारतीय संस्कृति की देन’ की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। उनके अनुसार ‘पश्चिमी संस्कृति की चकाचौंध से भ्रमित करते हुए सामान्यजन को हीन भावना से ग्रस्त करते हुए भारतीय संस्कृति को पिछड़ी, गंवारु बताने का एक अभियान चल रहा है। जबकि सत्य यह है कि भारतीय संस्कृति ने विश्व को बहुत कुछ दिया है। भारत को विश्व गुरु अकारण नहीं कहा जाता। आज की यह संगोष्ठी इसी भ्रम निवारण श्रृंखला का एक कड़ी है।’
चर्चा का श्रीगणेश करते हुए श्री महेश चन्द शर्मा (पूर्व महापौर) ने भाषा और संस्कृति को पूरक बताते हुए पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ‘धर्म और नैतिकता भिन्न हैं पर नैतिकता रहित कोई धर्म नहीं हो सकता। अपनी माता, मातृभूमि, अपने पूर्वजो का सम्मान नैतिकता है। विश्व हैरान है कि साधनों की दौड़ में पिछड़कर भी जीवन में शांति कैसे रहे। अध्यात्म, योग, विश्व ने हमसे ही लिए हैं।’
मोहन गार्डन विद्यालय के डा सुनील कुमार, विजय एन्कलेव के श्री राम प्रकाश कौशिक, प्राचार्य श्री आर.के.मिश्रा, दिल्ली प्रांत के बौद्धिक प्रमुख रहे शिक्षाविद् श्री गोविंद राम अग्रवाल, श्री राजपाल शर्मा, रजौकरी विद्यालय के श्री मुकेश पांचाल, झटीकरा शक्ति पीठ के श्री सुशील मिश्रा, पश्चिम विभाग कार्यवाह डॉ अम्बरीश कुमार, सहित अनेक विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किये।
दक्षिण दिल्ली नगर निगम के महापौर और समारोह स्थल क्षेत्र के पार्षद श्री नरेन्द्र चावला ने इस महत्वपूर्ण विषय पर संगोष्ठी के लिए आयोजकों को बधाई देते हुए छात्रों को संस्कार देने के कार्य में लगे सभी कार्यकर्ताओं का अभिनन्दन किया। राष्ट्र-किंकर संपादक विनोद बब्बर द्वारा संचालित इस कार्यक्रम का समापन श्री सचदेवा द्वारा सभी सहभागी शिक्षकों, अभिभावकों तथा कार्यकर्ताओं के आभार प्रदर्शन और हमेशा की तरह परम्परागत सहभोज से हुआ।
नैतिकता बिन धर्म नहीं -संस्कृति बिन पहचान नहीं
Reviewed by rashtra kinkar
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