फेसबुकिये अर्जुन का विषाद Facebooki Arjun ka Vishad


फेसबुकिये अर्जुन का विषाद
इस बार अर्जुन कुरुक्षेत्र में नहीं फेसबुक पर था। उसकी चिंता आज भी वही थी। वह समझ नहीं पा रहा था कि एक से एक बेहतरीन पोस्ट अपलोड करने पर भी उसे बहुत कम लाईक क्यों मिल रहे थे। कमेन्टस के नाम पर तो सूखा था परंतु अनेक लोग ऐसे भी थे जो उसकी पोस्ट पर नकारात्मक टिप्पणियां करते थे। कारण जानने के लिए उसने सबसे पहले अपनी फ्रैन्ड लिस्ट की ओर नजर घुमायी। आज भी वह हतप्रभ था क्योंकि इस मैदान में भी उसे मित्र के रूप में अनेक अमित्र भी तने हुए दिखाई दे रहे थे। अनेक ऐसे लोग भी फेसबुक पर मौजूद थे जिनसे उसे सहयोग के रूप में लाईक और कमैन्ट की आशा थी परंतु न जाने क्यों वे उसकी फ्रैन्ड रिक्वेस्ट को स्वीकार करने में देरी कर रहे थे। स्वयं को लाइक कमेन्टस के मामले में अत्यन्त दीनहीन मानने के कारण अर्जुन का हृदय विदीर्ण हो रहा था। उसने असली या नकली एप्पल जो भी मोबाइल उसे प्राप्त था, एक ओर रख दिया। लेकिन सोशल मीडिया की लत उसे चैन नहीं लेने दे रही थी। वह बार-बार फेसबुक से दूर रहने का संकल्प करता लेकिन लाइक कमैन्टस की चाहत उसके संकल्प को हर बार तार-तार कर रही थी।
खिन्न मन से सिर झुकाये सोफे पर बैठे पार्थ के मन में न जाने क्या सूझा कि वह तनाव मुक्ति के लिए पार्क की तरफ बढ़ गया। लेकिन   तनाव मूलक यंत्र अब भी उसके पास था। पार्क में उसे बसंत नहीं मोबाइल ही दीख रहा था। चहूं और खिले रंग-बिरंगे फूलों की भीनी- भीनी सुगंध की बजाय मन में अजब बेचैनी थी जो उसे पास की किसी डाली पर बैठी कोयल की कूक सुनने नहीं दे रही थी।
एक फेसबुकी योद्धा के लिए बसंत का मतलब उसकी पोस्ट पर अधिक से अधिक लाइक कमैन्टस होते है। लेकिन यह पाण्डु पुत्र यहां कौरव सेना द्वारा की जा रही ट्रोलिंग से इतना विचलित था कि उसे केशव की शरण में जाने के अतिरिक्त कुछ सूझ ही नहीं रहा था। इसलिए पार्क में समय बर्बाद न करते हुए वह सीधे केशव कुटीर जा पहुंचा।
प्रणाम के बाद सोफे पर मौन बैठे पार्थ को देख पार्थसारथी ने उसकी मनोदशा को समझने का प्रयास किया। माधव की मुरली बजती उससे पहले ही शून्य में निहारते भारत ने योगीराज को संबोधित करते हुए कहा, ‘हे केशव, हे अच्युत। आज मैं धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में नहीं, मोबाइल क्षेत्र फेसबुक नगरे लाईक और कमेंट की भीड़ में स्वयं को  अकेला पाता हूँ। जब मैं अपने बंधु-सखाओं की वॉल जांचता हूं तो वहां लाईक कमेन्टस की भरमार पाता हूं। जबकि मेरी वॉल सूनी है। अच्छी से अच्छी जनोपयोगी पोस्ट को भी नजरअंदाज करने वालों को मैं अपना सखा, संबंधी आखिर कैसे मानूं? हालांकि मैं जानता हूं कि  लाइक कमेन्ट से कुछ मिलने वाला नहीं है। यह मृग मारिचिका है।  समय की बर्बादी  है। लेकिन अपने आप को नजरअंदाज करने वालों को आखिर कैसे सहन करूं? उस युग में स्वयं की उपेक्षा को बर्दाश्त न करने की सीख आपने ही दी थी। आपके वचनों से प्राप्त ऊर्जा से ही मैं अष्टादश दिवस महाभारत  में अन्याय का प्रतिकार करता रहा। लेकिन आज मैं क्या करूं? मेरे लिए आज भी स्थिति उससे कम विषम नहीं है। मैं हर युग में आपका शिष्य रहूंगा। बेशक फेसबुक व्हासट्सअप हमारे पाठ्यक्रम से बाहर का विषय है लेकिन मैं अपनी हर समस्या के लिए आपको परेशान करना अपना अधिकार समझता हूं। इसलिए हे गुडाकेश सुलझाओं मेरा केस।
अर्जुन के करुण वचनों को सुनकर दयानिधि दया करने को विवश थे। उन्होंने इस बार फिर अर्जुन के अज्ञान का संज्ञान लेते हुए कहा, ‘हे एप्पलधारी, तुम महंगा मोबाइल तो खरीद सके हो पर सस्ता ज्ञान न जाने कब प्राप्त करोगे? ज्ञान की पैकिंग में अज्ञान की बातें करना आखिर कब छोड़ोगे? सूचना प्रौद्योगिकी के युग की देन इस सोशल मीडिया पर अपने आपको सोशल बनाओं। सच्चा फेसबुकिया हर समय अपने फेस पर मुस्कान रखता है क्योंकि वह जानता है कि यह असली नहीं आभासी दुनिया है। जो लाईक कमेन्टस को ही सब कुछ मानने वाले इसके लिए उपाय भी करते है। किसी की भी वॉल से बढ़िया कविता या शेर कापी करके अपनी वॉल पर अपने नाम से पेस्ट करते हुए उन्हें संकोच नहीं होता। बल्कि ऐसा करना वह अपना अधिकार समझता है। यदि कोई इसपर आपत्ति करे तो उसे एन्टीसोशल सिद्ध करने के लिए हर अस्त्र का प्रयोग करने से भी नहीं चूकता।
हे पार्थ! यदि तुम्हें लाईक कमेन्टस इतने ही प्रिय है तो तुम एक चमचा ब्रिगेड बनाओं जो ं तुम्हारे विचारों को बिना पढ़े ही लाइक में भी लाल वाला बटन दबाये। अगर हफ्ते दस दिन में ऐसे लोगों को अपने आफिस में बुलाकर कभी चाय समोसा करा सको तो कमेन्टस का सूखा भी दूर हो जायेगा। लेकिन हां, कुछ लोग ऐसे भी मिलेगे जो आलु भरे समोसे पर आपकी झोली नहीं भरते। उनके लिए यहां शक्ति, यहां श्रद्धा पुष्पम्, पत्रम्, जलम समर्पित करने का अभ्यास बनाओं।  संभव है कि कुछ दुर्लभ किस्म के लोग इतने पर भी न पिघले तो उनकी हर पोस्ट पर उनकी प्रशंसा करना आरंभ करो। उन्हें महामानव घोषित करने से कृपण मत बनना।  याद रखो यह हस्तिनापुर प्राप्त करने की लड़ाई नहीं जो मात्र अठारह दिन में जीती जा सके। यह लाईक कमेन्टस प्राप्त करने का सदा चलने वाला अनवरत महायज्ञ है इसमें प्रशंसा का घृत, संसाधनों की समिधा, मधुरता की सामग्री चाहिए। दिल में झूठी शान की अग्नि कायम रखे बिना यह फ्रॉड यज्ञ संपन्न होने वाला नहीं है।
इसी बीच चाय का समय हो गया। देवकीनंदन चुस्कियां लेते हुए कुन्ती पुत्र को सावधान करते हैं, ‘लाईक कमेन्टस के लिए अति आधीर होना भी ठीक नहीं। अस्थिर प्रवृत्ति होते हुए भी ऊपरी व्यवहार में सहज, सरल बने रहना चाहिए। लेकिन यह मत भूलों की आदान -प्रदान जीवन के हर क्षेत्र में होता है। तुम जिनके गुण गाओगे वे तुम्हारे लिए कुछ न कुछ करने का प्रयास करेंगे। लेकिन जो तुम्हें पसंद नहीं करते, वो किसी भी स्थिति में तुम्हारी किसी भी पोस्ट को कदापि लाइक नहीं करेंगे। यदि तुम्हें यह स्वीकार नहीं तो उन्हें अमित्र कर  विषाद से मुक्त पा सकते हो।’
चाय की चुस्कियां पूर्ण हुई तो  प्रभु का ध्यान घड़ी की ओर गया। उन्हें अर्जुन से भी बड़े किसी भक्त के लिए समय निकालना था। इसलिए ज्ञान यज्ञ को पूर्ण आहूति की ओर ले जाते हुए बोले, ‘हे पार्थ, यदि तुम लाइक, शेयर और कमेंट के इस मोह चक्र से स्वयं को  अलग रखते हुए फल की चिंता किये बिना अपने और अपने समाज के हित और आनंद के लिए कुछ पोस्ट कर सको तो तभी तुम मुझे प्रसन्न कर सकते हो। मात्र इधर- उधर की पंक्तियां कापी पेस्ट कर लाइक्स और कमेंट्स की कामना घोर दुःख का मूल है। स्वयं को ऐसे महा भंवर में फसाने से बचाने के लिए अपने स्मार्ट फोन में मौजूद यू-टयूब का उपयोग भी बढ़ाओं। वहां मनमोहक संगीत वाले भजन, गीत भी उपलब्ध है। फिलहाल इतना ही। अब तुम अपने हस्तिनापुर लौट जाओं, मुझे भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने दो।’ अब तक अर्जुन का विषाद भी दूर हो चुका था। उसने अपना मोबाइल उठाया और शुरु हो गया फेसबुक पर।
- विनोद बब्बर 1vinodbabbar@gmail.com

फेसबुकिये अर्जुन का विषाद Facebooki Arjun ka Vishad फेसबुकिये अर्जुन का विषाद Facebooki Arjun ka Vishad Reviewed by rashtra kinkar on 20:12 Rating: 5

No comments