धार्मिक स्वतंत्रता के लिए प्रथम बलिदानी थे गुरु तेगबहादुर



हमेशा की तरह इस बार भी साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था राष्ट्र किंकर द्वारा मकर-संक्रांति के अवसर पर आयोजित किया जाने वाला संस्कृति सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। राष्ट्र शक्ति वि़द्यालय सभागार में देश-विदेश से पधारे विद्वानों ने ‘गुरु तेगबहादुर जी का बलिदान और भारत’  विषय पर संगोष्ठी में भाग लिया। पूज्य स्वामी डा गौरांगशरण देवाचार्य जी महाराज के सानिध्य में आयोजित इस समारोह में मुख्य अतिथि स. जोगिन्दर सिंह (पूर्व निदेशक सीबीआई), मुख्य वक्ता सिक्ख इतिहास के विद्वान स.कुलमोहन सिंह तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में डा. परमानंद पांचाल (राष्ट्रपति के पूर्व भाषा सहायक) तथा  श्री अविनाश जायसवाल (राष्ट्रीय महांमत्री राष्ट्रीय सिक्ख संगत), अध्यक्ष के रूप में शिक्षाविद डा. शशि त्यागी (शिक्षाविद्) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए गुरु तेग बहादुर जी को धार्मिक स्वतंत्रता के जिए बलिदान देने वाला प्रथम महापुरुष बताया। 
श्री विकास त्यागी द्वारा वन्दे मातरम की प्रस्तुति से आरम्भ हुए इस प्रेरणा -पर्व में गायत्री परिवार के श्री खैरातीलाल सचदेवा ने देशभर से पधारे संस्कृतिप्रेमी रचनाकारों, कलाकारों का स्वागत करते हुए राष्ट्र किंकर की अब तक की ग्यारह वर्षों की यात्रा पर प्रकाश डाला तो पंचवटी लोक सेवा समिति के संरक्षक श्री अम्बरीश कुुमार ने हर हिन्दु परिवार द्वारा अपना बड़ा बेटा सिक्ख बनाने की चर्चा करते हुए सिक्खों को हिन्दुओं का बड़ा भाई घोषित किया। उन्होंने अपने सिक्ख बंधुओं से भी बडप्पन दिखाने का अनुरोध किया ताकि सांझी विरासत का गौरव बरकरार रहे।
‘गुरु तेगबहादुर जी का बलिदान और भारत’ विषय पर चर्चा आरम्भ करते हुए सिक्ख इतिहास के विद्वान स.कुलमोहन सिंह  ने अपने भाषण की शुरुआत करते हुए जब यह कहा, ‘सिक्ख का मतलब ज़िन्दगी भर सीखते रहना होता है और और मैं भी सीखने की प्रक्रिया से ही गुजर रहा हूँ।’ तो सभागृह तालियों से गूंज  उठा। उन्होंने गुरुनानक देव जी के ओमकार शब्द के आगे एक लगाने को भारतीय दर्शन के लिए क्रन्तिकारी बताया। गुरु तेग बहादुर साहिब के जीवन पर विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने  कहा कि जब तक औरंगज़ेब हिन्दुओं के सवा मन जनेऊ उतरवा नहीं लेता था, वह तब तक भोजन नहीं करता था। उसके अत्याचारों से भारत भर में आतंक फ़ैल गया तो तब गुरु तेग बहादुर साहिब ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर भारतीय समाज में जागृति लाने का निश्चय किया। 
स. जोगिन्दर सिंह ने अपने वक्तव्य में इतिहास की परते खोलते हुए एकता पर बल दिया। उनके अनुसार आपस की फूट और कुछ ऐसे ही गलतियों के कारण हम शोषित और गुलाम रहे।  उन्होंने  वर्तमान में बढ़ती धर्मान्धता को मानवता का दुश्मन बताते हुए कहा, ‘छोटी सोच वाले लोग उन्मादी होते है जबकि हर महापुरुष की तरह ईश्वर, अल्लाह, वाहे गुरु, अवतार, पैगम्बर को किसी प्रकार के आचरण से कोई फर्क नहीं पड़ता है। 
डॉ. परमानन्द पांचाल ने गुरु तेग बहादुर जी को धार्मिक स्वतंत्रता के लिए प्रथम बलिदानी बताते हुए सभी को अपनी इच्छानुसार कोई भी धर्म मानने का अधिकार है। इस मानविक अधिकार को बाधित करने वालों की निंदा करते हुए डा. पांचाल ने सामाजिक समरसता और देश की एकता अखण्डता के लिए राष्ट्रकिंकर द्वारा किए जा रहे प्रयासों की  कंठमुक्त सराहना की।
राष्ट्रीय सिक्ख संगत के राष्ट्रीय महामंत्री श्री अविनाश जायसवाल ने मानवता के लिए बलिदान देने वाले गुरु तेगबहादुर जी महाराज और क्रूरता के नायक औंरगजेब की तुलना करते हुए कहा, ‘गुरुतेग बहादुर जी की स्मृति को समर्पित  गुरुद्वारा शीशगंज, गुरुद्वारा रकाबगंज और श्री आनंदपुर साहिब में चौबीस घंटे देशी घी के दीए जलते हैं। प्रतिदिन लाखों लोग श्रद्धा से सिर नवाते हैं परंतु औंरगाबाद में बनी औंरगजेब की मजार पर अंधेरा रहता है।’ 
प्ूज्य स्वामी डॉ. गौरांगशरण देवाचार्य ने अपने सम्बोधन में गीता के श्लोक ‘स्वधर्म निधनु परधर्म भयावह की चर्चा करते हुए कहा, ‘ गुरु  तेग बहादुर जी ने इस श्लोक को अपने बलिदान से सार्थकता प्रदान की।’ स्वामीजी ने शब्दों में , ‘हर सच्चा हिन्दु पहले सिक्ख है। मैं गुरुद्वारे जाकर स्वयं को अपने गौरवशाली अतीत से गौरवांवित होता हूँ क्योंकि ‘गुरु तेग बहादुर, हिन्द की चाादर’ कहे गए हैं।   
कार्यक्रम संयोजक डा. विनोद बब्बर के अनुसार साहित्य, कला, सेवा, साधना, अध्यात्म के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा के माध्यम से विशिष्ट सेवा के लिए जिन ग्यारह विभूतियों को संस्कृति सम्मान प्रदान किया गया वे हैं- श्री नरेन्द्र अरोडा (करनाल), श्री अरविन्द पथिक (गाजियाबाद), बाबा कानपुरी (नोएडा), श्री जीशान अख्तर (झांसी), सुश्री अर्चना उपाध्याय (मेरठ), श्री ओमप्रकाश सपरा (दिल्ली), श्री शाति कुमार स्याल(नोएडा), श्री श्याम सुन्दर गुप्ता(दिल्ली) के अतिरिक्त 3 स्कूल  दिल्ली के विद्यालय में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा में सर्वाधिक भागीदारी के लिए यह सम्मान दिए गए। इन्हें  नटराज की भव्य प्रतिमा, प्रशस्तिपत्र संग शाल ओढ़ाकर इनकी सेवाओं के लिए कृतज्ञता ज्ञापित की गई। 
 इस अवसर पर प्रसिद्ध हास्य कवि किशोर श्रीवास्तव के संयोजन में आयेजित कवि सम्मेलन में  सर्वश्री विनोद पराशर, घमंडीलाल अग्रवाल, शमीम कीरतपुरी, मेहताब अहमद, इरफान राही, मिथिलेश, हरि नारायण गुप्ता, अरविन्द योगी, श्याम स्नेही, मनोज मैथिल, विजय गौड़, संजय कश्यप, गोप कुमार मिश्र, सुजीत शौकीन, इब्राहिम अल्वी, श्रीमती सुषमा भंडारी,शशि श्रीवास्तव, प्रियंका राय, अंजू शर्मा, भावना शर्मा, कमला सिंह जीनत, सरिता भाटिया, नेहा नहाटा, सहित अनेेक कवियों ने देशप्रेम और संस्कृति को समर्पित अपनी श्रेष्ठ रचनाएं प्रस्तुत की।   परंतु अरविंद पथिक द्वारा ओजस्वी   स्वर में प्रस्तुत वीररस की कविता तथा किशोर श्रीवास्तव द्वारा अपने चिर-परिचित अंदाज में प्रस्तुत हास्य कविता ने खचाखच भरे सभागार को झूमा दिया। सभी प्रतिभागी कवियों को भी मुख्य अतिथ  स. जोगिदर सिंह ने गुरु तेग बहादुर सम्मान के अन्तर्गत प्रशस्ति पत्र, अंगवस्त्रम्, स्मृति चिन्ह प्रदान किये।  
प्रतिकूल मौसम के बावजूद देश के कोने से कोने से पधारे सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए राष्ट्र-किंकर उपसंपादक मिथिलेश कुमार ने राष्ट्रीय सिक्ख संगत, राष्ट्र शक्ति वि़द्यालय द्वारा प्रदान किए गए सहयोग का विशेष रूप से स्मरण किया। कार्यक्रम के समापन पर शिरोमणि शस्त्रविद्या अजीत अखाड़ा विकासपुरी के युवा टीम द्वारा परम्परागत हथियारों का प्रदर्शन (गतका)  कर उपस्थित दर्शकों को रोमांचित कर दिया। कार्यक्रम के पश्चात परम्परागत खिचड़ी प्रसाद से हुआ।
धार्मिक स्वतंत्रता के लिए प्रथम बलिदानी थे गुरु तेगबहादुर धार्मिक स्वतंत्रता के लिए प्रथम बलिदानी थे गुरु तेगबहादुर Reviewed by rashtra kinkar on 22:49 Rating: 5

2 comments

  1. बहुत बढ़िया कार्यक्रम और सुन्दर रिपोर्टिंग...

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुंदर व सारगर्भित रिपोर्ट बब्बर जी।

    ReplyDelete