मौका मिले तो रावण बनकर गलतिया सुधारना चाहूंगा

 (डा . विनोद बब्बर की लंकेश उर्फ़ अरविन्द त्रिवेदी से खास मुलाकात)
इस धरा पर जीवन चक्र अनंत काल से अविरल घूम रहा है। सच कहें तो यह संसार एक रंगमंच है और हम सब अपने प्रारब्ध और परिस्थितियों के अनुसार अभिनय करते है। इसी अभिनय में कोई इतिहास बनाता है तो कोई खुद ही इतिहास बन जाता है। अच्छे पात्र का अभिनय करने पर श्रद्धा और सम्मान मिलना आम बात है लेकिन इतिहास के एक ऐसे पात्र जिसे हर साल हजारों- लाखो जगह जलाया जाता हो, उसका अभिनय करन वाले को श्रद्धा और सम्मान प्राप्त होना अपने आप में एक ऐतिहासिक कृत है। जी हां, हमारा अभिप्राय  लंकेश उर्फ अरविंद त्रिवेदी से ही हैं।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि के पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था। विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी ने कुबेर को जन्म दिया तो कैकसी रावण तथा कुम्भकर्ण की माता थी। रावण मे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों विस्मृत नहीं किया जा सकता। रावण एक अति बुद्धिमान ब्राह्मण तथा शंकर भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था। रावण में शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है, ‘हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम-भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।’ रावण ने अपनी भक्ति ने भगवान शिव को भी प्रसंन्न कर दिया था। रावण जानता था कि उसका अंत निश्चित था इसलिए उसने अपने मोक्ष के लिए भगवान राम के हाथों मरने का सारा जाल फैलाया था। रावण वध को लोग बुराई पर अच्छाई के विजय का प्रतीक मानते हैं, इसलिए पूरे देश में हर साल इसका पुतला बनाकर हर साल जलाया जाता है।
वाल्मीकि लिखते हैं ‘रावण को देखते ही राम मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।’
कभी गुजराती फिल्मों के लोकप्रिय स्टार रहे अरविंद त्रिवेदी ने 250 फिल्मों में काम किया। गुजराती के अतिरिक्त प्रेमबन्धन और पवित्र पापी जैसी हिन्दी फिल्मों में भी अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रदर्शन किया। प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक  रामानंद सागर की रामायण के  लंकेश  उर्फ अरविंद त्रिवेदी राम भक्त हैं। उनके साबरकाठा जिला के इडर स्थित निवास ‘अन्नपूर्णा’ में राम मंदिर है। जहां एक पुजारी स्थायी रूप से रहता है। लंकेश हर रामनवमी को विशाल आयोजन करते है तो निकट के प्रसिद्ध अम्बाजी तीर्थ जाने वाले पैदल भक्तो के भोजन और विश्राम ही नहीं दवा की व्यवस्था भी उनके निवास पर रहती है। यह संयोग नहीं बल्कि उनकी रामभक्ति का एक छोटा प्रमाण है कि पश्चिमी मुंबई के कांदी वली स्थित उनके निवास का नाम ‘पंचवटी’ है।
पिछले दिनों हिम्मतनगर में डा. स्वामी गौरांगशरण देवाचार्य के आश्रम में उनसे भेंट हुई तो उन्होंने  अपने निवास पर आमंत्रित किया।
बेशक बढ़ती आयु  के कारण शरीर सशक्त नहीं रहा लेकिन मानसिक रूप से अरविन्द भाई पूरी तरह से स्वस्थ हैं। आवाज में वहीं खनक, स्मरण शक्ति बेजोड़। रामचरित मानस, कम्ब रामायण, राधेश्याम रामायण, वाल्मीकि रामायण, आनंद रामायण सहित अनेक ग्रन्थ उन्हें कण्ठस्थ हैं। आज भी जब लंकेश शिवताण्डव स्तोत्र का सस्वर गायन करते हैं तो वातावरण में ओज का संचार होने लगता है। 1991 से 96 तक साबरकाठा के सांसद रहे श्री अरविंद त्रिवेदी ने इस साक्षात्कार में अनेक ऐसे रहस्यों से पर्दा हटाया जो उनकी छवि के बिल्कुल अलग हैं। प्रस्तुत है इस साक्षात्कार के मुख्य अंश-
आप अपने बचपन के बारे में कुछ बतायंे। क्या आपको शुरू से ही अभिनय में रुचि थी?
हमारे पूर्वज गुजरात के साबरकाठा जिले के कुकडिया गांव के निवासी थे। मेरे पिता श्री जेठा लाल त्रिवेदी  उज्जैन की एक मिल में मैनेजर थे।  हमारा परिवार बहुत संस्कारी था। मेरा जन्म 1938 में इन्दौर में हुआ। वहीं बचपन बीता। यदा-कदा अपने गांव आते थे। मेरे बड़े भाई  भालचन्द जी मुंबई में नौकरी करते थे। हालांकि उनका अभिनय की दुनिया से कोई संबंध नहीं था लेकिन  उन्हीं के कारण  मेरे मंझले भाई उपेन्द्र भाई और मैं मुंबई पहुचे।  सबसे पहले उपेन्द्र भाई फिल्मी दुनिया में आए। मैंने शुरू में मुंबई थियेटर में काम किया। आरंभिक गुजराती फिल्मों को छोड़ दे तो मैंने वीर मांगड़ा वाला, नरसी भक्त जैसे भक्ति फिल्मों में अभिनय किया। कुछ हिन्दी फिल्मों में भी काम किया। 
क्या आपने अभिनय का भ्कहीं से कोई प्रशिक्षण लिया?
मेरे ख्याल से अभिनय एक जन्मजात गुण है। उसे पैदा नहीं किया जा सकता। हां, थोड़ा बहुत तराशा जरूर जा सकता है। स्कूल के दिनों में मेरा दोस्त ईश्वर लाल सोनी गुरु और मैं चेला बनकर परोडी किया करते थे। ईश्वर भाई बेशक अभिनेता नहीं है परंतु फिर भी हम आज भी अच्छे दोस्त है। मुझे भक्ति संगीत, शास्त्रीय संगीत में बहुत रूचि रही है।
रामायण में रावण बनने का अवसर कैसे मिला?
मैं रामानंद सागर की हिन्दी फिल्म प्रेमबंधन में काम कर चुका था। उन्होंने रामायण के लिए लगभग 500 लोगों का टेस्ट लिया। संयोग से मुझे चुन लिया गया। हालांकि शुरु में मेरे मन में कुछ अनिश्चय की स्थिति थी लेकिन उपेन्द्र भाई ने मुझे कहा- ‘अरविन्द तुम्हारा जन्म ही रावण बनने के लिए हुआ है।’ 
आप रामभक्त हैं लेकिन रावण का अभिनय करते हुए आप कैसा अनुभव करते थे?
वैसे तो रावण भी रामभक्त था। जहां तक मेरा प्रश्न हैं। हर बार शूटिंग शुरू होने से पहले मैं रामजी से क्षमा याचना करता, ‘प्रभु अभी सेट पर जाकर आपके बारे में कुछ गलत भी कहूँगा लेकिन मुझे माफ़ करना।’ मेरे ख्याल से रावण आज के तथाकथित ‘ईमानदार’ जनसेवकों  से बेहतर था। तमिल की कम्ब रामायण के अनुसार जब रावण मृत्युशैय्या पर था तो श्रीराम ने एक बाण छोड़ते हुए उससे कहा- जाओ जाकर देखो क्या रावण के हृदय में सीता है।’ प्रभु के आदेश से रावण के हृदय की जांच करके लौटे बाण ने बताया कि वहां सीता नहीं है। स्पष्ट है कि रावण हृदय से पवित्र और नीतिवान था। वह निष्ठुर भी नहीं था। हाँ, उससे कुछ भूल अवश्य हुई। प्रथम रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि रावण के गुणों को स्वीकार करते हुये उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। वे  हनुमान के रावण के दरबार में प्रवेश के अवसर पर अपनी रामायण में कहते हैं- 
अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युतिः।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता।।
रावण उसूलों वाला था। वह घोर तपस्या करने वाला और नियमों का पालन करने वाला था। उससे बड़ा शिव भक्त कौन हो सकता है? एक बार महिला के प्रति बढ़ते अपराधों पर चर्चा के दौरान एक युवती का यह कहना कि हमें रावण जैसे भाई की जरुरत है जो अपनी बहन की इज्जत के लिए परमात्मा तक से भिड़ जाए।  
लंकेश का अभिनय करते हुए क्या कभी आप भावुक अथवा  परेशान भी हुए?
मैं रामायण का अभिनय करने से पहले बहुत अच्छी तरह से अभ्यास करता था। अनेक बार रात में जागकर संवाद याद करता। उस दौरान तो मैं रावण का ही जीवन जीता रहा। इन्द्रजीत के वध के समय मैं बहुत भावुक हो उठा था। मुझे लगा कि अब मेरा भी अंत हो गया है। अगले दिन राम-रावण युद्ध का फिल्मांकन था। श्रीराम ने रावण का रथ, अस्त्र आदि नष्ट कर दिये। इसी बीच सूर्यास्त हो गया। युद्ध रूक गया। मुझे वापस अपने महल लौटना था। बेशक यह सब अभिनय था लेकिन भारी कदमों से पैदल वापस लौटते हुए मेरी मनोदशा किसी पराजित योद्धा जैसी ही थी। वैसे मैं अपने अभिनय से पूर्ण संतुष्ट हूं। मुझ पर श्रीराम जी की कृपा तो है ही रावण की कृपा भी रही है। यदि मेरा अभिनय खराब होता तो उसकी भी बदनामी होती।
इतने लम्बे समय तक अभिनय से जुड़े रहने के बावजूद आप किसी व्यसन के शिकार नहीं हुए, इसका क्या कारण रहा?
1952 में जब में मात्र 14 वर्ष का था पिताजी का स्वर्गवास हो गया। मेरी माता बहुत धार्मिक थी। मैं रामभक्त था। भक्ति में बहुत शक्ति है। भक्ति का स्पर्श पाकर मिष्ठान प्रसाद बन जाता है। प्रवाह में भक्ति जुड़ जाए तो तीर्थ यात्रा हो जाता है। यह रामजी की कृपा रही कि मैं विपरीत वातावरण में रहते हुए भी व्यसनों से दूर रहा।
राजनीति में कैसे आना हुआ?
मेरी राजनीति में कभी कोई रूचि नहीं थी। मैं तो अकारण आया और अकारण ही लौट गया। जब प्रस्ताव मिला तो अपने पूर्वजों के क्षेत्र के लोगों की सेवा का अवसर जानकर मैंने इसे स्वीकार कर लिया। मुझसे जो संभव हुआ मैंने करने की कोशिश की। वैसे अभिनय मेरी पहली पसंद रही है। जो मैं जो कुछ हूं अभिनय के कारण हूं। आज भी पूरे देश में इतना प्यार मिलता है कि जो किसी बड़े-बड़े पूंजीपति अथवा नेता को मिल ही नहीं सकता। स्वयं अटल जी भी मेरे अभिनय के प्रशंसक रहे हैं।
आज जिस तरह से उपसंस्कृति बढ़ रही है। हमारी युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट किया जा रहा है, ऐसे में देश के भविष्य बारे में क्या सोचते हैं?
मैं निराशावादी नहीं हूं। आज देश में राजनीति ही नहीं हर क्षेत्र में बड़े परिवर्तन हो रहे हैं। ये अकारण नहीं है। यह सब प्रभु की कोई योजना है। सब अच्छा होगा।  हमारी युवा पीढ़ी हमारी शक्ति है। सकारात्मक दिशा मिलते ही वे चमत्कार कर दिखायेगे। देश और समाज का भविष्य उज्ज्वल है। भारत फिर से विश्वगुरु बनेगा।
अभिनय के विषय में आपकी पत्नी का क्या मत रहा हैं?
मेरी पत्नी बहुत अच्छे स्वभाव की थी। उसे मेरे अभिनय से कभी कोई आपत्ति नहीं हुई। हाँ, राजनीति को वह भी पसंद नहीं करती थी। वह भी रामभक्त थी। उसी की इच्छा था कि इडर वाले घर में भगवान राम की मूर्ति स्थापना की जाए। उसका स्वर्गवास हो गया तो मैंने उसकी अंतिम इच्छा को पूर्ण करने का संकल्प किया। विश्व विख्यात मुरारी बापू ने स्वयं इस मूर्ति में प्राण- प्रतिष्ठा की। वैसे तो मैं मुंबई में रहता हूं पर अक्सर इडर भी आता रहता हूं। 
आपके इस निवास का नाम ‘अन्नपूर्णा’ है। इसका कोई विशेष कारण?
हाँ, ‘अन्नपूर्णा’ हमारी कुल देवी हैं। सब उसी की कृपा का परिणाम है।  घर में उनकी प्राण-प्रतिष्ठा पहले से ही है।
आप स्वयं को ‘लंकेश’ कहलाना पसंद करते हैं। रावण  की कौन सी बात आपको सर्वाधिक प्रभावित करती है?
रावण में एक नहीं, अनेक गुण थे।   मृत्युशैय्या पर पड़े रावण से शिक्षा ग्रहण करने आये लक्ष्मण को उसने कहा- ‘अच्छे काम में देर मत करना और बुरे काम में जल्दी मत करना। मैं स्वयं स्वर्ग तक सोने की सीढ़ी बनाने जैसे नेक कार्य को टालता रहा लेकिन सीता हरण में जल्दबाजी का फल भोग रहा हूं।’
यदि ईश्वर आपसे अगले जन्म में राम या रावण बनने के बारे में इच्छा पूछे तो आप क्या चाहेगे?
मेरी कोई इच्छा नहीं। प्रभु की इच्छा।
यदि प्रभु स्वयं आपसे आपकी इच्छा पूछे तो आप क्या बनना चाहेगे?
रावण ताकि पिछली गलती को सुधार सकूं।
आप स्वयं को किस रूप में याद किया जाना पसंद करेंगे- एक सांसद के रूप में, जनसेवक के रूप में, 250 गुजराती फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता के रूप में या रावण के रूप में?
केवल एक इंसान के रूप में।
 लंकेश संग स्वामी जी और विनोद बब्बर 
आप गुजराती फिल्मो के महानतम अभिनेताओं में शामिल रहे हैं लेकिन जो लोकप्रियता आपको रामायण धारावाहिक के कारण मिली है क्या वह हिन्दी के बिना संभव थी?
निश्चित रूप से हिन्दी इस देश की एकता की सबसे मजबूत कड़ी है। गुजराती मेरी मातृभाषा है लेकिन हिन्दी मेरी मातृभूमि की भाषा है। मेरी पूज्य माताजी बहुत अच्छी हिन्दी जानती थी। मैंने दसवीं कक्षा तक संस्कृत भी पढ़ी है। देश के हर व्यक्ति को हिन्दी सीखनी चाहिए।
रामानंद सागर जी के विषय में कुछ कहना चाहेंगे?
महर्षि वाल्मीकि रचित संस्कृत रामायण एक वर्ग तक सीमित रही। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस के माध्यम से उसे देश के जन-जन तक पहुंचाया लेकिन रामानंद सागर ने उसे देश ही नहीं दुनिया के हर कोने तक पहंुचाया। मुझे भी इसी कारण देश-विदेश में बहुत प्यार मिला। 
मैं वर्षो से देख रहा हूं आप रुद्राक्ष की मालाएं पहनते हैं, इसकी कोई खास वजह?
ये मेरा श्रृंगार है। श्रृंगार ऐसा होना चाहिए जिसे कोई न उतारे। सोना, चांदी तो उतार लिए जाएंगे लेकिन रुद्राक्ष मेरे साथ रहेगी। 
श्रेष्ठ अभिनय के लिए आपको अनेक पुरस्कार भी प्राप्त हुए होंगे। सबसे बड़ा पुरस्कार कौन सा था?
देश के हर व्यक्ति ने मुझे जो प्यार दिया वह किसी भी पुरस्कार से बहुत बड़ा है। मैं सभी के प्रति नतमस्तक हूं। मेरा सब कुछ इस देश के प्रति न्यौछावर है।

पुनश्चः हमने राजकोट में बैंक अधिकारी रहे  लंकेश के बचपन मित्र ईश्वर लाल सोनी से इस विषय पर चर्चा की। उन्होंने बतायाः-
अनेक दशकों बाद 1981 में मुझे अरविंद भाई के बारे में जानकारी मिली तो मैंने उन्हें फोन किया तो वे शबना, विनोद मेहरा, संजीव कुमार के साथ शूटिंग पर थे लेकिन उन्होंने शूटिंग कैंसिल कर मुझसे मिलने को प्राथमिकता दी। हमारी खूब बाते हुई। उन्होंने बचपन के कई मित्रों के बारे में भी पूछा। हमारे बचपन के साथी वेलजी भाई जिनकी आर्थिक स्थिति कुछ कमजोर थी, अरविंद भाई ने उनका ध्यान रखने का कहा। एक बार जब उज्जैन गए तो अनेक बड़े बड़े लोग उन्हें अपने घर ले जाना चाहते थे लेकिन उन्होंने वेलजी भाई के दो कमरे के मकान में रूकना पसंद किया। 
एक बार जब मेरी शादी की गोल्डन जुबली थी। अरविंद भाई अस्पताल में होने के कारण नहीं आ सके लेकिन जैसे ही अस्पताल से छुट्टी मिली वे मेरे घर आए और तीन दिन हमारे साथ ही रहे।
मौका मिले तो रावण बनकर गलतिया सुधारना चाहूंगा मौका मिले तो  रावण बनकर गलतिया सुधारना चाहूंगा Reviewed by rashtra kinkar on 07:48 Rating: 5

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