अगर यह है आधुनिकता तो अनैतिकता क्या है?

यह सर्वविदित ही है कि हमारे युवाओं के एक बड़े वर्ग की सोच, संस्कृति, जीवनशैली एवं मनोरंजन के सारे साधन बदल गए हैं। अत्याधुनिक कहे जाने वाले सभी युवाओं के जीवन में ऐसा नकारात्मक परिवर्तन न आया हैं लेकिन भटकाव के कई नये द्वार खुल रहे हैं। फैशनपरस्ती और ड्रग्स उनके जीवन का आधार बन गए हैं। इन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है, केवल अपना मनोरंजन करना था मनमानी करना, इनकी नियति बन गई है। इन्हें न तो अपने परिवार से कुछ लेना-देना है, न समाज से और न राष्ट्र से। इनकी दिलचस्पी इनमें से किसी में भी नहीं है। सकारात्मक सोच से बहुत दूर ये युवा वर्तमान युग की कई खोखली चीजों से प्रभावित हैं। अपने कर्तव्यों और कार्यक्षेत्रों से विमुख ये युवा पता नहीं कौन-सी नई राह बनाने में लगे हैं।
आज के युवाओं को प्रभावित करने वाली चीजों में से मुख्य हैं- इंटरनेट, अश्लील एवं फूहड़ फिल्में, पब संस्कृति, ड्रग्स, फैशन, महंगे मोबाइल, जिनमें एसएमएस एवं एमएमएस करना, महंगी गाड़ियां एवं न सबके लिए मोटी रकम। ये चीजें ऐसी हैं, जो युवाओं में रचनात्मक एवं सृजनात्मक सोच के बजाय, घातक सोच को अंजाम दे रही हैं, परंतु हमारे युवा इस घातक सोच को ही आधुनिक युग की प्रतिष्ठा एवं सम्मान का स्वरूप देने में जुट गए हैं। इस सर्वेक्षण में जो तथ्य सामने आये हैं, उससे कष्ट तो होना स्वाभाविक है, परंतु सच्चाई चाहे कितनी भी अप्रिय क्यों न हो उसेे नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है। यदि हम इस ओर से आँंखें मूंदते हैं तो इसका अर्थ होगा कि हम भी इस संकट को हल्के से ले रहे हैं।
इस तथ्य से कौन इंकार करेगा कि इंटरनेट का मायाजाल आज का सर्वाधिक आकर्षित करने वाला एक सशक्त माध्यम है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि युवा इंटरनेट से सूचना एवं ज्ञानवर्द्धक सामग्री से अधिक कुछ ऐसी बातें खोजते हैं, जो उनके नैतिक पतन का रास्ता तैयार करती हैं। जैसे वेब पोर्टलों पर सेक्स से जुड़ी कई साइट्स हैं, जो सहज ही आकर्षित कर लेती हैं। भारत के उच्च शिक्षण संस्थान जैसे दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बंगलौर, खड़गपुर, अहमदाबाद आदि बड़े महानगरों में स्थित आई.आई.टी., मेडिकल एवं आई.आई.एम. के युवाओं से पूछे जाने पर यह बात सामने आई कि इन संस्थानों में अधिकतर युवाओं एवं युवतियों के लिए सेक्स एक सामान्य बात है। विवाह से पूर्व ही इन्हें वैवाहिक जीवन की सामान्य गतिविधियों की अच्छी-भली जानकारी एवं अनुभव प्राप्त है। पाँच से सात प्रतिशत युवा, जो इस राह को नापसंद करते हैं, उन्हें विशिष्ट विशेषणों से नवाजा जाता है।
मंहगे उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने का तात्पर्य चरित्र, शील एवं मर्यादाओं को ताक पर रखना नहीं होना चाहिए। क्योंकि किसी भी देश का भविष्य कहे जाने वाले युवा यदि अश्लीलता की हदें पार करेगा तो उनके जीवन की धड़कन ही सही ढंग से धड़क पा सकती। यदि वे स्वयं अपने जर्जर शरीर और लड़खड़ाते कदमों के रहते स्वयं को नहीं संभाल पा रहे हैं तो समाज एवं राष्ट्र के भार को क्या वहन कर पाएंगे।
विशेषज्ञों के अनुसार शिक्षित शहरी युवाओं की फैलती जमात के लिए मुख्य मुद्दा है- अपनी क्षमता बढ़ाना। ये युवा क्षमता का मतलब मानते हैं नए ड्रग्स का अधिकतम उपभोग। पार्टी, ड्रग्स का खूब प्रचलन है। एशिया में आज सिंथेटिक रसायन और मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले एंफेटामाइन्स की खूब मांग है। एक सर्वेक्षण के अनुसार एम्स में नेशनल ड्रग डिपेन्डेन्स ट्रीटमेंट सेंटर में प्रतिवर्ष 32,000 नशेड़ी पहुँचते हैं। पेनकिलर, सिडेटिव, एंक्जियोलाइटिक्स, हिप्नॉटिक जैसी दवाओं के साथ ही अफीम से बनी सिंथेटिक दवाओं का दुरूपयोग तेजी से बढ़ रहा है। नशीली दवाएं लेने की आदत बन जाने के बाद उसे छोड़ना लगभग असंभव हो जाता है। युवतियों में नशे की गोलियां लेने की बढ़ती प्रवृति देखी जा सकती है। यह बेहद शर्मनाक है कि भारत में 85 प्रतिशत ड्रग्स लेने वाले शिक्षित वर्ग से हैं जो इसे सेक्स के साथ जोड़ते हैं। कई बार खतरनाक औषधियों को कामुकता बढ़ाने के लिए लिया जाता हैं। इसका असर खत्म होते ही भारी झटका लग सकता है, अधिक सेवन से मौत भी हो सकती है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शहरों में ड्रग्स के साथ खतरनाक प्रयोग आम बात हो गई है। अधिकतर युवा पेशवर साथियों के दबाव, उबाऊ जिंदगी, तनाव एवं आवश्यकता से अधिक आय की वजह से मादक पदार्थों का सेवन शुरू कर देते हैं। ये 20 से 40 आयु वर्ग के हैं, जिनमें युवतियां भी शामिल हैं। जहां 2009 में मादक पदार्थ सेवन शुरू करने की उम्र 20 साल थी, वहीं आज घटकर 17 साल हो गई है। स्कूली बच्चों तक ड्रग्स की पहुंच जबरदस्त खतरे की घंटी है। 15 साल की उम्र सबसे संवेदनशील माना जा सकता है। किशोर अवस्था के ये छात्र अपने साथियों के दबाव में मादक पदार्थों का स्वाद चखकर इस कुचक्र में फंस जाते हैं।
आज की पार्टी का स्वरूप बदल गया है। मदमस्त करने वाली लाइट, धुआं, ड्राइ अइस फाग ओर कान फोड़ने वाले टेक्नो संगीत की धुन पर नाचते सैंकड़ों युवक किसी डान्स पार्टी में नहीं, बल्कि आधुनिक रेव पार्टी में होते हैं। इस पार्टी में शराब नहीं बंटती है, परंतु इससे स्थान पर ऐसी चीजें बंटती हैं, जिन्हें दूसरे नाम दिए गए हैं, पर ये सभी तरह-तरह के नशे हैं। इन सभी को आज कोकीन ओर अफीम के उत्पादों स भी अधिक इस्तेमाल किया जाता है। इन दिनों बरसों पुराना हुक्का आधुनिक रूप धरकर सामने आया है। बड़े-बड़े शॉपिंग माल्स के अलावा अलग से ऐसे रेस्टोरेंट खुल गए हैं, जो सरेआम धुएं में दहकने युवाओं को विशेष स्थान मुहैया करा रहे हैं।
जीवन में यौवन एक ऊर्जा का आगार है। इस ऊर्जा को नशा, वासना एवं आधुनिक खुली संस्कृति में गंवाना नहीं चाहिए। युवा ऊर्जा एवं शक्ति के प्रतीक हैं, उन्हें इनका उपयोग मनमाने ढंग से करने की छूट नहीं मिल सकती है। इसका नियोजन सदैव रचनात्मकता में, सृजनात्मकता में, पीड़ित मानवता की सेवा में, गरीबी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद आदि के खिलाफ करना चाहिए। आज बहनों की इज्जत सरेआम लूटी जा रही है और भाई कायर बनकर खड़े तमाशा देख रहे हैं, क्योंकि इनमें न तो साहस है, न संघर्ष करने का जज्बा। आज अपने युवा यदि एकजुट होकर समाज के इन अपराधी ऑक्टोपस को मिटाने के लिए आमादा हो जाएं तो फिर ये अधिक समय तक टिक नहीं पाएंगे, परंतु आज हमारे युवा आसुरी शक्तियों के हाथों के खिलौने बन गए हैं।
आज भारत परिवर्तन की अंगड़ाई ले रहा है। इसकी सफलता राष्ट्र के युवा द्वारा अपनी नैसर्गिक क्षमता की पहचानने और उसे सकारात्मक दिशा देने में ही निहित है। स्कूली पाठ्यक्रम से नैतिक मूल्यों को विलग करने वाले की पहचान कर उन्हें समाजद्रोही करार दिये बिना इस बुराई के विरूद्ध जंग शुरु नहीं की जा सकती है। हमारी सरकार, विशेष रूप से मानव संसाधन मंत्रालय इसके लिए पहल करनी होगी। भारत को ‘ज्ञान’ में रत बनना है तो उसे अनैतिकता से विरक्त होना ही होगा। आश्चर्य है कि धर्म और समाज के ठेकेदार मौन है। वे कब समझेंगे कि उनका मौन अपराध है जिसके लिए उन्हें कभी क्षमा नहीं किया जाएगा। लेखक -- डा. विनोद बब्बर (09868211911 )
अगर यह है आधुनिकता तो अनैतिकता क्या है?
Reviewed by rashtra kinkar
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06:16
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ज्ञानपरक लेख... इतनी बुराइयां इनमें आना चिंतनीय है, लेकिन, बुराइयों का ठहर जाना हमें निसहाय कर देता है.
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