ठूंठ की छाँव Down fall of so called Poetry


एक प्रकाशक मित्र परेशान थे। आते ही शुरु हो गए- ‘कुछ करते क्यों नहीं। कविता बहुत तेजी से फैल रही है।’
मैंने कहा- ‘अगर सचमुच ऐसा है तो यह शुभ संकेत है।’
इतना सुनते ही वे बुरी तरह बिगड़े- ‘खाक शुभ संकेत है। न छंद, न लय, न तुकबंदी और न ही विचार। कुछ भी तो नहीं है तुम्हारे बेटो की कविताओं में। और तुम हो कि ‘वाह! बहुत बढ़िया’, ‘शानदार! लगे रहो!’ लिखकर माहौल को बिगाड़ने में अपना योगदान दे रहे हो। मेरी बात ध्यान से सुन लो- अब भी सुधर जाओं। वरना कविता की हत्या में कल तुम्हारा भी नाम होगा।
मैंने पूछा- अरे भाई, युवा है। अगर उसके मन में कोई लहर उठती है तो तुम क्यों रोकते हो? बहने दो कविता की बयार। एक तो तुम आजकल कविता- संग्रह छापते ही नहीं हो। उसपर फेसबुक, व्हाटसअप पर अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने वालों से भी इतना नाराज क्यों हो?’
अपना माथा पीटते हुए वे बोले- अरे भाई। वे कुछ लिखे भी तो। कोई दस कविताएं उठाकर देख लो। एक लिखता है- ‘प्रिये तुम क्यों जाती हो।’ तो दूसरे की कविता है- ‘गंगा तुम क्यों बहती हो।’ तीसरा कवि कहता है- ‘माया तुम क्यों बड़बड़ाती हो।’ चौथा उससे भी बढ़कर- ‘भैय्या तुम क्यों सो जाते हो।’ लेकिन पांचवा तो जैसे सबका बाप निकला। कहता है - ‘दादा तुम सदा उड़ते क्यों हो। 
कहां तक गिनाऊं। सारा कसूर तुम्हारा है जो उन्हें इतना भी नहीं समझाते उन्हें कि कविता लिखने की जिद्द करने से पहले कम से कम इतना तो जान ही लेना चाहिए कि कविता किसे कहते है। कम से कम सौ कविताएं पढ़ों। उनके भाव सौंदर्य को समझो। छन्द, अलंकार किसे कहते हैं। पहले दोहा, कुंडली, गज़ल, गीत, मुक्तक का अंतर तो समझ लो फिर कहना कविता। एक तो आजकल किताबे बिकती बहुत कम है उसपर ऐसा कचरा परोस दे तो क्या होगा यह समझने की कोशिश क्यों नहीं करते। इधर कुछ प्रकाशक इन्हें भी छाप रहे है। उनकी जितनी मांग बस उतनी छापी, उन्हें सौपी, अपना मुनाफा लेकर एक तरफ हुए। न बेचने की चिंता न प्रचार की जरूरत। और तुम्हारे बेटे समझते हैं- ‘छा गये।’ अरे मूर्खों, अपनी जूती, अपना सिर। उसपर भी फूले नहीं समा रहे हो।’

पहले ही बहुत उमस थी। इसलिए चाय की बजाय रामदेव की ब्राह्मी का शरबत प्रस्तुत करते हुए उन्हें समझाने की कोशिश की, ‘मित्र, जवानी में जोश ज्यादा होता है। आज युवा भारत है। मतलब चारो तरफ जोश हिलोरे ले रहा है। इसी क्रम में कविता का सागर उमड़ भी रहा है। वे धीरे- धीरे समझेंगे कि कविता रसोई की तरकारी नहीं है जिसे दिन में तीन बार चूल्हें पर चढ़ाया जाता है। अभी तो खूब चहक रहे हैं- यहां, छपे, वहां छपे। यह सम्मान, वह अवार्ड। लेकिन कल खुद ही जब अपनी ‘कविता; पढ़ेगे तो जरूर .....गे। 
हां. तुम भी केवल उन्हें कोसने की बजाय अपने अंदर भी झांक कर देखों। क्या कभी आपने कविता की तमीज सीखाने की कोशिश की है? क्या कभी उन्हें सलाह दी कि कबीर, तुलसी, मीरा, महादेवी, निराला, गिरधर को जानों। अगर तुम ऐसा करते तो यकीन मानना- तुम्हारी कुछ किताबें जरूर उन तक पहुंच जाती। सिर्फ मुनाफा कमाने तक सीमित रहने वाले मेरे मित्र, कभी कविता पर कोई कार्यशाला आयोजित करो और हमारे बेटों को भी उसमें आमंत्रित करों। पहले उनकी सुनों। फिर बताओं उन्हें क्या होती है कविता। 
तुम लाख गलत कहो हमारे बेटो को लेकिन ये उनसे लाख दर्जे अच्छे हैं जो दूसरों की कविता चुराकर अपने नाम से पोस्ट करते है। जो है, जैसा है प्रस्तुत है। तुम या तो ‘उन्हें बहने दो’ या फिर उन्हें बताओं कि ‘बहा कैसे जाता है।’ 

ब्राह्मी के बारे में केवल बाबा ने ही नहीं कहा, मेरे बाप- दादा के समय से ही दावा किया जाता है कि ब्राह्मी बुद्धिवर्धनी होती है। शरबत ब्राह्मी का था। उसने कुछ असर किया या नहीं किया। लेकिन वे मौन हो गये। लेकिन कविता मौन नहीं होगी। बरसती रहेगी। बहती रहेगी। झूमती रहेगी। प्रिया के अधर चूमती रहेगी। सजन से रूठती रहेगी। चमन को लूटती रहेगी। बहारो में महफिल सजाती रहेगी, सितारों से राह सजाती रहेगी।
लेकिन मेरे प्यारे युवा मित्रों! तुम भी कुछ कोशिश करो। कविता को कविता बनाये रखने के लिए ‘क्वान्टिटी’ की बजाय अपना ध्यान ‘क्वालिटी’ पर भी दो। जल्दबाजी की बजाय। मन में आये भावों को पहले पकाओं। बार-बार पकाओं। फिर अपने लिखे को खुद ही बार- बार पढ़ों। अपने निकट मित्रों को पढ़वाओं। जहां जरूरत महसूस करो परिवर्तन करों। ऐसे परिवर्तन सब करते है। मैंने स्वयं एक बहुत बड़े कवि की डायरी देखी है जिसमें नीली स्याही से लिखी कविता में लाल, हरे, काले रंग के अनेक संसोधन भी थे। 
मारे प्रकाशक मित्रों को शिकायत न हो। कुछ कोशिश आप भी करो। विश्वास रखों- आपकी श्रेष्ठ कविता बाहर आने के लिए मचल रही है। उसे रास्ता दो- मन के भावों को समझाओं। बुद्धि विवेक को उन भावों को शब्दाकार देने में मदद करने का निर्देश दो। बस इतना जरूर ध्यान रहे- आप पर छंदमुक्त कविता लिखने का आरोप लगता है तो लगने दो। लेकिन कविता में नयेपन का भाव अपनी लय के साथ विद्य़मान जरूर होना चाहिए। 
अरे यह क्या??? आपका और आपकी कविता का पक्ष प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति तो खुद ही नहीं जानता कि कविता किसे कहते हैं! 
हाय कविता तेरी यही कहानी! अंधे गूंगे कर रहे अपनी मनमानी!!- विनोद बब्बर 9868211911 

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